CHANDRAMAHAL KA KHAJANA REVIEW HINDI

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चंद्रमहल का खजाना
वेद प्रकाश काम्बोज द्वारा लिखित

रिव्यू –
लेखक वेद प्रकाश काम्बोज इन्होंने 1958 से लेखन की शुरुआत की | आज तक उनका लेखन कार्य जारी है | पहले – पहल उन्होंने जासूसी उपन्यास लिखे लेकिन पिछले 5 वर्षों से उन्होंने अपने लेखनी की धारा को मोड़कर ऐतिहासिक और पौराणिक उपन्यास लिखे |
इस तरह उन्होंने उत्कृष्ट साहित्य की रचना की | जब वह जासूसी उपन्यास लिखते थे तो उनकी किताबों का जादू पाठकों के सर चढ़कर बोलता था | उन्होंने अपने लेखनी से अलफानसे , गिल्बर्ट , सिंगही जैसे पात्रों की रचना की |
जो लोग उनकी किताबें पहले से पढ़ चुके है | वह इन पात्रों को आज भी नहीं भूले | नीलम जासूस कार्यालय उनके प्रसिद्ध उपन्यासों को 30 साल बाद दोबारा पाठकों के सामने लेकर आया है | उनके उपन्यास पठनीय है या नहीं यह तो हम आपको उनके द्वारा लिखित दो-तीन उपन्यास पढ़ने के बाद ही बता पाएंगे |
फिलहाल तो हमने उनका एक ही उपन्यास पढा है जिसका रिव्यू और सारांश हम आज के ब्लॉग में आपको बता रहे हैं | चलिए तो बात करते हैं किताब की ..
कहानी असली घटनाओं को लेकर शुरू होती है लेकिन बाद में काल्पनिक कहानी में तब्दील हो जाती है | वैसे कहा जाए तो कहानी की पृष्ठभूमि ऐतिहासिक है और पूर्वी पाकिस्तान यानी के बांग्लादेश और भारत में घटित होती है |
पूरी कहानी एक खजाने के इर्द – गिर्द ही घूमती रहती है जैसा की किताब का नाम है -“चंद्रमहल का खजाना”| इस खजाने को पाने के लिए बांग्लादेश की तीन-तीन पीढ़ियां अपनी चप्पल घिसती है | अब आप किताब पढ़ कर जानिए कि किस-किस के नसीब में यह करोडो का खजाना है |
किताब पढ़ते वक्त एक बात आपके ध्यान में आएगी कि लेखक ने किताब लिखते वक्त कोई भी गलती नहीं की |छोटी से छोटी बात का ध्यान रखा | इसलिए आप किताब पढ़ने के बाद उसमें से कोई भी कमी नहीं निकाल सकते | बहरहाल , अब जानते हैं किताब का सारांश ..
सारांश –
कहानी सन 2006 और सन 1971मे बांग्लादेश में घटित होती है | भारत , 2006 के वक्त मे मानव वर्मा एक पत्रकार है | उस ने अपनी जान पर खेलकर एक नेता की असली खबर लाई लेकिन उसके बॉस ने उसे छापने से इनकार कर दिया क्योंकि उसका बॉस उस नेता का पिट्ठू निकला |
इस बात से चिढ़कर मानव वर्मा नौकरी छोड़कर एकांतवास में रहने लगा ताकि अपने दिमाग को शांत रख सके | एक रात उसके कॉटेज के पास वाले कुएं में एक व्यक्ति छुपता हुआ उसे दिखायी दिया जिसके पीछे दो बंदूकधारी लगे थे |
मानव अपनी जान खतरे में डालकर उस व्यक्ति को बचा लेता है | बचाते समय उसे पता चलता है कि वह व्यक्ति एक नवयुवती है | उसे किडनैप कर लिया गया था लेकिन क्यों ? इसका जवाब पाने के लिए वह शुभांगी के पिता से बात करता है |
शुभांगी के पिताजी हिरेन मुखर्जी अपनी बीती जिंदगी के बारे में बातें बताना शुरू करते हैं क्योंकि मानव एक रिपोर्टर है | उसने उसके बेटी की जान बचाई | अतः विश्वास का पात्र है | हिरेण के पिताजी सत्यम मुखर्जी बांग्लादेश के बहुत बड़े जमींदार रहते हैं | उनका पाकिस्तानी फौज के अफसरो के साथ उठना – बैठना है |
उनकी अच्छी धाक उस इलाके और वहां के लोगों में है | फिर भी उन पर पाकिस्तानी सेना का कहर टूट पड़ता है | कहानी तब की है जब पूर्वी पाकिस्तान , पश्चिमी पाकिस्तान का ही एक हिस्सा हुआ करता था | प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – वेद प्रकाश काम्बोज
प्रकाशक है – भारतीश्री प्रकाशन
पृष्ठ संख्या है – 353
उपलब्ध है – अमेजॉन पर

सन 1971 में पाकिस्तान के सैनिक शासको ने अपने देश की जनता को उनके प्रतिनिधि चुनने का मौका दिया था | पूर्वी पाकिस्तान में अवामी लीग के शेख मुजीबुर रहमान जीतकर आए | वहीं पश्चिमी पाकिस्तान में जुल्फिकार अली भुट्टो जीत कर आए | वह पीपुल्स पार्टी के थे |
300 सीटों वाली नेशनल असेंबली में अवामी लीग को 201 सीटें मिली और पीपुल्स पार्टी को 99 | इसका मतलब था की , जनादेश कहता है की , देश की बागडोर शेख मुजीब को सौंप दी जाए लेकिन मिस्टर भुट्टो और सैनिक तानाशाह जनरल याहया खान दोनों इसमें आनाकानी कर रहे थे |
इस बात को लेकर संघर्ष बढ़ता ही गया और उग्र होता गया | दोनों पक्षों के बीच संधि का भी ढोंग किया गया | पश्चिमी पाकिस्तान ने सैनिकों की मदद से पूर्वी पाकिस्तान की मांग को कुचल दिया | इसके बाद पूर्वी पाकिस्तान पर सेना द्वारा अमानुष अत्याचार किए गए |
इस गृहयुद्ध के कारण , शेख मुजीबुर रहमान ने 26 मार्च 1971 को स्वतंत्र बांग्लादेश की घोषणा कर दी | मिस्टर शेख को देशद्रोही करार दिया गया | इससे स्थिति और बिगड़ गई | पाकिस्तानी सेना का मुकाबला करने के लिए मुक्तिवाहिनी का गठन किया गया | मुक्तिवाहिनी पाकिस्तानी सेना के लिए एक चुनौती बनकर सामने आई |
अब सेना को पता चला कि वह यहाँ ज्यादा दिन नहीं टिक सकती | इसीलिए फिर उन्होंने यहां से खजाना , बड़े-बड़े व्यापारियों और जौहरियों को लूटना शुरू किया | खजाना लूटकर वह पश्चिमी पाकिस्तान भेज रहे थे ताकि पूर्वी पाकिस्तान पूरी तरह कंगाल और बर्बाद हो जाए |
यहां तक की कहानी पूरी तरह सच्ची है | अब आगे की कहानी काल्पनिक है | ऐसा ही एक खजाना जिसमें 100 किलो सोना और करोड़ों के हीरे जवाहरात थे | पश्चिमी पाकिस्तान भेजे जा रहे थे | इसी खजाने को मुक्तिवाहिनी लूट लेती है |
इस खजाने की सुरक्षा पाकिस्तानी फौज का अफसर “वजीर खान” कर रहा होता है | अपनी नाकामयाबी से वह झुँझला उठता है | अब वह जी -जान से इस खजाने की तलाश में जुट जाता है |
उसे पता चलता है कि सत्यम मुखर्जी इसमें शामिल है | वह पूरी फौज के साथ सत्यम मुखर्जी के महल को जिसका नाम “चांदमहल ” था उसे घेर लेता है | वह बड़ी बेरहमी से सत्यम मुखर्जी और उसकी पत्नी को गोलियों से छलनी कर देता है |
सत्येन मुखर्जी के विश्वासू नौकर बख्तावरऔर हिरेन मुखर्जी यह दृश्य देख लेते है | खतरे का एहसास पाकर सत्यम मुखर्जी ने पहले ही हिरेन को ढाका से बुला लिया था ताकि वह खजाने की जानकारी हिरेन को दे सके लेकिन , अगर वह हिरेन से नहीं मिल पाए तो .. ?वह खजाने की जानकारी हिरेन तक कैसे पहुंचाएं ?
इसीलिए फिर उन्होंने हिरेन को ध्यान में रखकर खजाने के लिए पहेलियां बनाई | उन्हें पता था कि , उनका पढ़ा लिखा बेटा यह पहेलियां सुलझा लेगा | इसलिए वह मरते वक्त “नदी का बचपन” यह शब्द हिरेन तक पहुंचाना चाहते थे | इधर बख्तावर की मदद से हिरेन “मुक्तिवाहिनी” के लोगों तक पहुंचता है | वहां से दो भारतीय जासूसों की मदद से भारत तक .. |
भारत में उसके पिता सत्यम मुखर्जी के एक मित्र कोलकाता में रहते थे | उनकी एक बेटी थी “मदालसा” | वह मदालसा और हिरेन का विवाह कर देते हैं | हिरेन उन्हीं का व्यापार संभालता है | वह अमीर हो जाता है |
पूर्वी पाकिस्तान पर पश्चिमी पाकिस्तान के अत्याचार के कारण लोगों के झुंड के झुंड भारत में शरण लेने के लिए पहुंचते है | इससे भारत पर आर्थिक तनाव बढ़ने लगा | इसीलिए फिर भारत को उनके बीच कूदना पड़ा | नतीजा यह निकला कि पूर्वी पाकिस्तान मुख्य पाकिस्तान से अलग हुआ और बांग्लादेश कहलाने लगा |
बांग्लादेश आझाद हुआ | आझाद बांग्लादेश में शेख मुजीब की सरकार का गठन हुआ | अब हीरेन मुखर्जी ने बांग्लादेश जाने की इच्छा जाहिर की ताकि अपनी जमींदारी के बारे में कुछ जानकारी ले सके लेकिन उसके ससुरजी ने उसकी एक न सुनी |
शादी के बहुत सालों बाद शुभांगी ने उनके यहां जन्म लिया था तब तक वजीर खान उसका पता निकालते निकालते उस तक पहुंच चुका था | हिरेन उसको देखकर सकते में आ गया | हिरेन जैसे ही पिस्तौल लेकर उस पर हमला करने के लिए नीचे तक आया | वह गाड़ी में बैठकर फरार हो गया |
वजीर खान की वजह से हिरेन अपनी पत्नी बेटी और सास ससुर के साथ ऑस्ट्रेलिया शिफ्ट हो जाता है | उसके सास – ससुर अब तक गुजर गए | उसने अपनी बेटी शुभांगी को कोलकाता पढ़ने के लिए भेजा था | उसकी बेटी अब बड़ी हो गई है |
लिहाजा वह भी ऑस्ट्रेलिया का सारा व्यापार समेट कर भारत वापस आता है | शुभांगी के लिए दिए गए बर्थडे पार्टी में एक युवक हिरेन को गालियां दे देकर अच्छी खासी धुनाई करता है | हिरेन यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाता |
लिहाजा अपने माथे पर लगा कलंक मिटाने के लिए वह खजाना ढूंढने के लिए बांग्लादेश जाना चाहता है | चाँद – महल पहुंचकर उसे वहां बांग्लादेश की खुफिया सर्विस का ऑफिसर “जमाल भाई ” मिलता है |
अगली सुबह नदी का बचपन इस आधार पर हिरेन मुखर्जी नदी के उस पत्थर तक पहुंचता है ,जहां वह बचपन में अपने पिता के साथ खेला करता था | वहाँ उसे अपनी जन्म तारीख खुदी हुई दिखती है |लेकिन उसमें 10 साल आगे की तारीख है | तभी उस पर कोई हमला करता है | वह घायल होकर फिर से कोलकाता आ जाता है |
वह तारीख उसे अपनी एक तस्वीर तक पहुंचाती है जो चाँदमहल में ही लगी है | तब तक उसने शुभांगी और मानव को बांग्लादेश भेज दिया था | अब वजीर खान की जगह उसके बेटे ने ले ली है | वह प्रशिक्षित एजेंट और लडाका व्यक्ति है | वह मानव के फोन में माइक्रोफोन फिट कर के , मानव के पहले उस तस्वीर तक पहुंचता है |
वहां पर लिखे कोड को समझने के लिए , वह शुभागी का फिर से अपहरण करता है | वह उसे टॉर्चर कर के हीरेन से इसका मतलब पूछता है | उस क्लू के आधार पर वह सत्येन मुखर्जी के पुराने मित्र सिद्धू तक पहुंचता है | तब तक मानव ,जमाल और एक हेलीकॉप्टर पायलट भी उन तक पहुंचते है |
शुभांगी खुद को छुड़ाकर फार्म हाउस के पास के खेतों में घुस जाती है | सिद्धू , जफर खान को एक तस्वीर के बारे में बताता है जो मरने के पहले सत्येन मुखर्जी ने उसके पास भिजवाई थी | जफर खान बूढ़े सिद्धू और उसकी पत्नी को मार कर झोपड़ी में से तस्वीरें को लेकर भाग जाता है लेकिन असल फोटो उसके हाथ से वही छूट जाती है |
जिसमे खजाने का पता है | वह पता जमाल को मिलता है | पता मिलते ही जमाल का ईमानदारी का मुखौटा उतर जाता है | जमाल मानव और हेलीकॉप्टर पायलट इरशाद को मारना चाहता है तभी शुभांगी पीछे से आकर जमाल को गोली मार देती है |
तभी इन सब का तमाशा देखता जफर खान शुभांगी को गोली मार कर घायल कर देता है | जफर खान एक प्रशिक्षित लडाका है | इसीलिए वह मानव और इरशाद पर भारी पड़ जाता है | वह उन दोनों को लगभग मार ही चुका होता तभी ऐसी घटना घटती है की सारी बाजी ही पलट जाती है | क्या है वह ?
यह आप जरूर पढ़िए | पढ़कर जरूर जानिए की हिरेन मुखर्जी के माथे पर वह कौन सा दाग है जिसे धोने के लिए उसका खजाना ढूँढना जरूरी हो गया था | क्या वह इसमे कामयाब हो पाता है या नहीं ? पढ़कर जरूर जानिए | तब तक पढ़ते रहिए ! खुशहाल रहिए ! मिलते है और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए..
धन्यवाद !

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