सिद्धार्थ
हरमन हेस द्वारा लिखित
रिव्यू –
हरमन हेस द्वारा लिखित “सिद्धार्थ” विश्व प्रसिद्ध किताब है | यह एक युवा ब्राह्मण सिद्धार्थ की आध्यात्मिक यात्रा का वर्णन करती है | किताब की पृष्ठभूमि बुद्ध काल पर आधारित है लेकिन यह भगवान बुद्ध के जीवन पर आधारित नहीं है | सिद्धार्थ की इस आध्यात्मिक यात्रा मे उसकी मुलाकात भगवान बुद्ध से होती भी है | फिर भी वह संतुष्ट नहीं होता |
किताब का मुख्य विषय स्वत्व और सच्चे ज्ञान की खोज है | किताब का नायक सिद्धार्थ जीवन के परम सत्य को खोजने के लिए अपने घर और आरामदायक जीवन को छोड़कर आध्यात्मिक यात्रा पर निकल पड़ता है |
अपनी इस यात्रा के दौरान वह कई अलग-अलग अनुभवों से गुजरता है | इन्ही अनुभवों मे से एक यह है की किसी मानव गुरु के बजाय एक नदी से ज्ञान प्राप्त करता है | नदी की धारा, जो लगातार बहती रहती है लेकिन हमेशा एक ही रहती है, उसे एकता, निरंतरता और जीवन के चक्र का प्रतीक लगती है |
किताब सिद्धार्थ के भीतर चलनेवाले संघर्षों के बारे मे बताती है जैसे कि आत्मा और शरीर के बीच चलनेवाला संघर्ष , ज्ञान और अनुभव के बीच और त्याग और भोग के बीच का संघर्ष | उपन्यास यह बताता है कि सच्चा ज्ञान इन द्वंद्वों को समझने और उनमें तालमेल स्थापित करने से आता है |
शब्दों की अपनी ही सीमाए होती है | इसीलिए तो ज्ञान को शब्दों में पूरी तरह व्यक्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि शब्द हमेशा अधूरे और एकतरफा होते हैं |
प्रस्तुत उपन्यास मूलतः जर्मन भाषा में लिखा गया है और 1922 में प्रकाशित हुआ है |
इसका अंग्रेजी अनुवाद 1951 में प्रकाशित हुआ और 1960 के दशक में यह काफी लोकप्रिय हुआ, खासकर हिप्पी आंदोलन के बीच |
हरमन हेस को 1946 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, और “सिद्धार्थ” उनकी सबसे प्रसिद्ध कृतियों में से एक है | यह उपन्यास सरलता लिए हुए काव्यात्मक शैली में लिखा गया है, जो इसकी गहेराई को बढ़ाता है |
संक्षेप मे कहे तो “सिद्धार्थ” की आध्यात्मिक यात्रा हमे सिखाती है कि सच्चा ज्ञान और स्वत्व की खोज करने के लिए केवल एक ही मार्ग नहीं है | नाहीं तो इसे केवल शिक्षा से ही पाया जा सकता है | बल्कि , यह जीवन के विभिन्न अनुभवों और भीतर के अंतर्ज्ञान से प्राप्त होता है |
प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – हर्मन हेंस
हिंदी अनुवाद – मदन सोनी
प्रकाशक है – मंजुल पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ संख्या – १२८
उपलब्ध है – अमेजन और किन्डल पर हिंदी और इंग्लिश भाषाओ में |
सारांश –
किताब के कवर पर भगवान बुद्ध की तस्वीर और नाम सिद्धार्थ देखकर लगता होगा की यह किताब भगवान बुद्ध के बारे में होगी पर यह कहानी है सिद्धार्थ नाम के एक ब्राह्मण पुत्र की जो भगवान बुद्ध के जैसा ज्ञान पाना चाहता है | इसीलिए वह अपने मित्र गोविन्द के साथ जंगलो में रहनेवाले समनो के पास जाते है और समन बन जाते है |
भगवान बुद्ध से मिलने के बाद भी उसे उस ज्ञान की तृप्ति नहीं मिलती जिसे वह खोज रहा था | उसका मित्र गोविन्द भगवान बुद्ध का शिष्य बनकर वही रह जाता है | सिद्धार्थ आगे बढ़ जाता है | आगे नगर में जाकर वह प्रसिद्ध गणिका कमला के संपर्क में आता है | बाद में इसी कमला से उसे एक पुत्र भी प्राप्त होता है जो उसे बुढ़ापे पे छोड़कर चला जाता है |
वह कामास्वामी के संपर्क में आता है | वह शरीर से तो सांसारिक बन जाता है पर मन से एक समन ही बने रहता है | इसीलिए सफलता हमेशा उसके कदम चूमती है लेकिन जैसे – जैसे वह अमीर बनते जाता है वैसे – वैसे वह पूरा सांसारिक बन जाता है | उसे बुढ़ापा , बीमारियाँ घेर लेती है | तब कही जा के उसकी आँखे खुलती है | तो फिर वह सबकुछ छोड़कर स्वत्व ( खुद को ) को खोजने के लिए निकल पड़ता है | इस दौरान वह एक मल्लाह को अपना गुरु व मित्र बनाता है | सिद्धार्थ का पुत्र भी उसे बुढ़ापे में छोड़कर चला जाता है क्योंकि उसने भी अपने पिता को बुढ़ापे में छोड़ा था | यहाँ इनडायरेक्टली ब्रह्माण्ड का नियम बताया गया है की हम जैसा करते है वैसी ही स्थितियां हमारे पास लौट आती है |
वह भगवान बुद्ध का भी ज्ञान आत्मसात नहीं कर पाता क्योंकि खुद को श्रेष्ठतम समझने का अहंकार उसे ऐसा करने नहीं देता | किताब को पढ़कर जानिए की क्या वह खुद को खोज पाता है ? क्या सिद्धार्थ वह ज्ञान हासिल कर पाता है जिसकी खोज में वह निकला था ? यह किताब किसी बुद्धिजीवी के लिए ही ठीक है | यह किताब उनके लिए सही है जो जीवन को बहुत नजदीक से जानना चाहते है | बुद्ध का ज्ञान अर्जित करना चाहते है | नश्वर और शाश्वत संसार के बारे में जानना चाहते है | यह किताब उन्ही के लिए है जो संसार की हर एक चीज को , भावनाओं को , व्यक्ति को बारीकी से समझना चाहते है | अगर आप भी सिद्धार्थ के विचारों से प्रेरित है | तो जीवन की अनमोल सिख देनेवाली इस किताब को जरूर पढिए | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते है और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !
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