निर्मला
मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित
रिव्यू –
मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित उपन्यास ‘निर्मला’ एक मार्मिक और सामाजिक उपन्यास है | इसका प्रकाशन 1927 में हुआ था | इसका लेखन उन्होंने दहेज प्रथा और अनमेल विवाह को ध्यान मे रखकर किया | उन्होंने इसे लिखने की शुरुवात 1926 में ही शुरू कर दी थी | मुंशी प्रेमचंद किसी परिचय के मोहताज नहीं है |
वह 19 वी सदी के प्रसिद्ध लेखकों में से एक रहे हैं , जिन्होंने उस जमाने के लोगों की खुशी , दुःख , पीड़ा , परिस्थितियां , परंपराएं और न जाने ऐसी कितनी ही भावनाओं और जानकारी को अपने लेखन में समेटा | वह यथार्थ की कहानियों पर ज्यादा जोर देते थे | “निर्मला” यह उनका ऐसा ही एक यथार्थवादी उपन्यास है |
जिसमे भारत की मध्यमवर्गीय युवतियों की दयनीय स्थिति का चित्रण है, जो इन सामाजिक कुरीतियों का शिकार होती हैं |
‘निर्मला’ प्रेमचंद के महत्वपूर्ण सामाजिक उपन्यासों में से एक है | इसमें प्रेमचंद ने नारी जीवन की करुण त्रासदी को यथार्थवादी ढंग से प्रस्तुत किया है | यह उपन्यास नारी के स्वाभिमान, उसके त्याग और समाज में उसकी दयनीय स्थिति का सजीव चित्रण करता है |
उपन्यास में दहेज प्रथा के कारण होनेवाली पीड़ा और लड़कियों के विवाह में आनेवाली समस्याओं को गहराई से दर्शाया गया है | निर्मला के माध्यम से प्रेमचंद ने उस समय के समाज में व्याप्त रूढ़ियों और अंधविश्वासों पर प्रकाश डाला है | प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – मुंशी प्रेमचंद
प्रकाशक है – फिंगर प्रिन्ट पब्लिकैशन
पृष्ठ संख्या – 184
उपलब्ध है – अमेजन पर
आईए , जानते हैं इसका सारांश –
सारांश –
निर्मला एक 15 वर्षीय सुंदर और सुशील लड़की है | उसके पिता वकील है | घर में अच्छा खाना – पीना होने की वजह से उसके पिता के बहुत से रिश्तेदार उनके घर पर ही आकर रहने लगते हैं |
इसीलिए उसके पिता कुछ भी पैसा जोड़कर नहीं रख पाते | ऐसे में जब निर्मला की शादी तय हो जाती है तो उसके पिता को कर्ज लेने की नौबत आती है | इस कारण निर्मला के माता-पिता मे झगड़ा हो जाता है | निर्मला की माँ को सबक सिखाने के लिए , उसके पिता रात के अंधेरे मे घर से बाहर निकलते हैं |
इसी समय एक बदमाश निर्मला के पिता की हत्या कर देता है | इसका कारण आप किताब मे पढ़ लीजिएगा | अब दहेज के अभाव में निर्मला की शादी टूट जाती है | घर में पिता के मरने के बाद गरीबी दस्तक देती है | इस गरीबी के कारण उसकी माँ , उसकी शादी दहेज न लेनेवाले 35 वर्ष के व्यक्ति के साथ करती है |
निर्मला के पती का नाम तोताराम है | वह भी एक वकील है | निर्मला के पिता जैसे | वह उम्र में निर्मला से बहुत बड़े है | वह अपनी तरफ से निर्मला को खुश रखने की पूरी कोशिश करता है लेकिन उम्र का यह अंतर और सामाजिक परिस्थितियाँ उनके रिश्ते में हमेशा ही एक बाधा के रूप मे मौजूद रहती है |
निर्मला उसके पति को सम्मान तो देती है पर प्यार नहीं कर पाती क्योंकि एक महीने पहले इसी उम्र का व्यक्ति उसका पिता हुआ करता था | तोताराम को उसकी पहली पत्नी से तीन बेटे है जिनके नाम मनसाराम, जियाराम और सियाराम है |
उनमे से मनसाराम सबसे बड़ा बेटा है और निर्मला की ही उम्र का है | निर्मला के घर आने के बाद घर में सौतेले संबंधों के कारण कई तरह की जटिलताएँ उत्पन्न होती हैं | इसी मे से एक यह है की जब निर्मला , मनसाराम के साथ अच्छे से बर्ताव करती है तो उसका पति अपने बेटे और निर्मला को लेकर शक करता है |
निर्मला का बड़ा सौतेला बेटा इसी दुख के कारण अपने प्राण त्याग देता है | मनसाराम की अकाल मृत्यु हो जाती है | इसके लिए जाने – अनजाने निर्मला को ही दोषी ठहराया जाता है | इसके लिए उसकी पति परायणता भी काम नहीं आती क्योंकि उसी पर शक किया जाता है और परिस्थितियाँ भी उसे कसूरवार साबित करती है |
कहानी बड़ी ही मार्मिक है | हमें तो उपरयुक्त कहानी से इतना समझ में आया की निर्मला के मायके और ससुराल में दोनों में ही घर के मुखियाओं का दोष ज्यादा है | दोनों ही अपने स्वार्थ के परे अपने पत्नी और बच्चों के बारे में सोच नहीं पाए |
निर्मला के पिता अगर अपनी सारी कमाई अपने रिश्तेदारों पर खर्च न कर के उसमें से कुछ अपने बच्चों के लिए भी जोड़े रखते तो शायद उनका झगड़ा ना होता | वह घर में ही रहते और जिंदा रहते क्योंकि उनके मरने के बाद तो वह रिश्तेदार जिनके लिए वह अपनी पत्नी से झगड़ पड़े थे |
वह तो निर्मला के परिवार को बीच मजधार मे छोड़कर भाग गए | निर्मला का पति भी अपने स्वार्थ के कारण अपनी बेटी की उम्र की लड़की के साथ शादी करता है और पछताता हैं |
जब उसे पता है कि घर में उस युवती के उम्र के ही अपने बेटे है तो क्यों वह इतनी छोटी लड़की से शादी करता है ? उसके शक्की स्वभाव के कारण , एक हीरे जैसा युवक अपनी जान गवा बैठता है | अगर घर का मुखिया अपने परिवार को अच्छे से संभाले तो समाज में कोई भिखारी, चोर , बदमाश ना मिले |
घर की नेम प्लेट पर अपना नाम लिखने से पहले घर के मुखिया को एक बात जरूर समझ लेनी चाहिए की उसे घर के हर एक सदस्य को कभी प्यार से , कभी गुस्से से , संभाल कर अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी | अपने विचार घरवालों पर थोपने से पहले , उनके विचारो को जानना होगा | उनके वर्तमान और भविष्य के बारे मे सोचना होगा |
निर्मला के मायके और ससुराल दोनों ही तरफ पिताओ की गलतियों का खामियाजा बच्चों को भुगतना पड़ा | समाज की इस कुरीति पर प्रहार करती प्रस्तुत किताब को जरूर पढिए |
तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहीए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए….
धन्यवाद !!
NIRMALAA BY PREMCHAND BOOK REVIEW
