मृत्युंजय
शिवाजी सावंत द्वारा लिखित
रिव्यू –
प्रस्तुत किताब मूलतः मराठी मे लिखी गई है | हमने इसका मराठी वर्जन ही पढ़ा है | लेखक शिवाजी सावंत इनकी मृत्युंजय के अलावा “छावा , युगंधर और लढत कादंबरी भी बहुत ही प्रसिद्ध है | इसके अलावा उन्होंने कई लेखन किए हैं | प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – शिवाजी सावंत
प्रकाशक है – मेहता पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ संख्या है – 800
उपलब्ध है – अमेजन , किन्डल पर
लेखक ने इस किताब को इस तरह लिखा है मानो कहानी के पात्र खुद ही खुद की कहानी हमें बता रहे हो और हम सामने बैठकर सुन रहे हो | यह कादंबरी मुख्यतः कर्ण को केंद्र मे रखकर लिखी गई है | यह कर्ण की कहानी है , जो की मृत्युंजय है , जिसने मृत्यु को जीत लिया है |
ऐसा इसलिए क्योंकि कर्ण को पता है कि उसका कवच मांगने के लिए इंद्रदेव रूप बदलकर आनेवाले हैं और बिना कवच के वह युद्ध में हारकर मर जाएगा फिर भी वह अपना दानी स्वभाव ना छोड़ते हुए अपना कवच दान कर देता है | इसीलिए वह मृत्युंजय है |
कर्ण के जीवन मे मुख्य रूप से वर्णित व्यक्तिओ मे शोण शामिल है | वह कर्ण का भाई है | वह उसे बिना स्वार्थ के पूरी जिंदगी प्यार करता है | कुंती की कहानी सुने बगैर कर्ण की कहानी अधूरी है | इसलिए कुंती भी एक विशेष पात्र के रूप मे यहाँ मौजूद है क्योंकि वह कर्ण की माँ है |
द्रौपदी के बाद कर्ण ने किसी से प्रेम किया तो वह थी वृषाली | किम्बहुना , उसने वृषाली से ज्यादा ही प्रेम किया | वह कर्ण की धर्मपत्नी थी | उसने भी एक आदर्श संगिनी के रूप मे कर्ण का हमेशा साथ दिया |
कर्ण की कहानी दुर्योधन के बगैर भी अधूरी है | कर्ण उसे अपना सबसे अच्छा मित्र मानता है पर वह धूर्त है , कपटी है | अपने स्वार्थ के लिए कर्ण से मित्रता करता है | अश्वत्थामा , द्रोण और अर्जुन के पात्र भी कुछ समय के लिए कहानी में है और सबसे बाद में है इस संपूर्ण जगत के सार भगवान श्री कृष्ण … उन्होंने कुरुक्षेत्र के युद्ध का वर्णन किया है | किताब में इन सारे पात्रो और उनके व्यक्तित्व के साथ साथ जचेगी | ऐसी पिक्चर्स भी दी है |
शिवाजी सावंत द्वारा लिखित प्रस्तुत उपन्यास “मृत्युंजय” एक अत्यंत प्रसिद्ध और सराहनीय मराठी उपन्यास है | इसके हिंदी अनुवाद को भी पाठकों ने खूब पसंद किया है | प्रस्तुत उपन्यास महाभारत के सबसे जटिल और दुखद पात्रों में से एक कर्ण के जीवन पर आधारित है |
प्रसिद्ध मराठी लेखक शिवाजी सावंत जिनका पूरा नाम शिवाजी गोविंदराव सावंत है , इन्हे “मृत्युंजयकार” के नाम से भी जाना जाता है |
महाभारत में कर्ण को अधिकतर एक खलनायक के रूप में प्रस्तुत किया गया है लेकिन लेखक ने उसे एक संवेदनशील , मानवीय और कई संघर्षों से जूझते हुए व्यक्ति के रूप में दिखाया है |
उपन्यास में कर्ण के जन्म से लेकर उसकी मृत्यु तक की पूरी यात्रा को दर्शाया गया है, जिसमें उसके बचपन, उसके अपमान, उसकी मित्रता, प्रेम और त्याग को गहरे भावनात्मक स्तर पर उभारा गया है |
इस उपन्यास की सबसे खास बात यह है की इसमे बहु-दृष्टिकोणवाली लेखन शैली का उपयोग किया गया है | कहानी केवल कर्ण के दृष्टिकोण से नहीं बताई गई है, बल्कि उसके जीवन से जुड़े अन्य प्रमुख पात्रों के विचारों और अनुभवों के माध्यम से भी प्रस्तुत की गई है |
उपन्यास को नौ खंडों में विभाजित किया गया है | इनमें से चार खंडों का वर्णन स्वयं कर्ण करता है, जबकि अन्य पांच खंडों का वर्णन उसके जीवन के महत्वपूर्ण पात्र करते हैं | जैसे की – शोण (उसका पालक भाई), कुंती (उसकी माता), दुर्योधन (उसका निष्ठावान मित्र) , वृषाली (उसकी पत्नी) और भगवान कृष्ण (जो कर्ण के जीवन और नियति पर एक गहरा दार्शनिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं)|
यह शैली पाठको को कर्ण के चरित्र को विभिन्न कोणों से समझने और उसकी जटिलता को महसूस करने में मदद करती है |
कर्ण को समाज द्वारा “सूतपुत्र” के रूप में लगातार अपमानित किया जाता है, जबकि वह सूर्यपुत्र और कुंती का ज्येष्ठ पुत्र होता है | यह उपन्यास उसकी पहचान के संकट और सामाजिक भेदभाव के दर्द को गहराई से बताता है |
दुर्योधन के प्रति कर्ण की अटूट निष्ठा और मित्रता, यहाँ तक कि अपने विनाश की कीमत पर भी, एक महत्वपूर्ण विषय है | उपन्यास धर्म, अधर्म, कर्म और उसके परिणामों के दार्शनिक पहलुओं पर प्रकाश डालता है, क्योंकि कर्ण का जीवन इन अवधारणाओं के इर्द-गिर्द घूमता है |
यह सवाल भी उठाया गया है कि क्या व्यक्ति का भाग्य पूर्वनिर्धारित होता है या उसके अपने चुनाव उसके जीवन को आकार देते हैं | कर्ण अपनी दानशीलता के लिए प्रसिद्ध है, और उपन्यास उसके निस्वार्थ त्याग को रेखांकित करता है |
लेखक ने कर्ण की कहानी के माध्यम से तत्कालीन समाज में व्याप्त अन्याय, विशेषकर वर्ण व्यवस्था के कारण होनेवाले भेदभाव पर प्रकाश डाला है |
“मृत्युंजय” को भारतीय साहित्य में एक मील का पत्थर माना जाता है | इसकी गहन मनोवैज्ञानिक अंतर्दृष्टि और कर्ण जैसे पौराणिक चरित्र के मानवीय चित्रण के लिए इसे बड़े स्तर पर प्रशंसा मिली है |
इसका कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है, जिनमें हिंदी, कन्नड़, गुजराती, तेलुगु, मलयालम और बंगाली शामिल हैं |
प्रस्तुत पुस्तक को कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें सबसे मुख्य 1994 में भारतीय ज्ञानपीठ का मूर्तिदेवी पुरस्कार शामिल है | शिवाजी सावंत यह पुरस्कार प्राप्त करनेवाले पहले मराठी लेखक थे |
संक्षेप में, “मृत्युंजय” केवल महाभारत की एक कहानी का पुनर्कथन नहीं है, बल्कि यह मानवीय भावनाओं, नियति, मित्रता और सामाजिक चुनौतियों के खिलाफ संघर्ष की एक शाश्वत गाथा है, जिसने इसे भारतीय साहित्य में एक अमूल्य स्थान दिलाया है |
चलिए तो जानते है , इस किताब का सारांश …
सारांश –
कर्ण और शोण बचपन मे नदी किनारे जाकर छोटे – छोटे शंख – सीपियाँ जमा करते हैं | अमूमन , गांव के सारे छोटे बच्चे ऐसे ही खेल खेलते हैं | उन दोनों के किशोरावस्था मे आने के बाद उनके पिता उनको युद्ध कौशल सीखाने के लिए हस्तिनापुर लेकर जाते हैं |
वहाँ आचार्य द्रोण कर्ण को , अपना शिष्य बनाने से इनकार कर देते हैं | फिर भी कर्ण हार न मानते हुए सूर्य भगवान को अपना गुरु मान अपना अभ्यास शुरू कर देता है और अर्जुन से भी अच्छा धनुर्धर बन जाता हैं |
कौरवों के ग्रुप में अकेला कर्ण ही ऐसा है जो पांडवों में से भीम और अर्जुन को हरा सकता है | जब कर्ण , अर्जुन को प्रतियोगिता में ललकारता है तो वह सूत पुत्र है सिर्फ इसीलिए अर्जुन के साथ नहीं लड़ पाता | इसी मौके का फायदा उठाकर दुर्योधन , कर्ण को अंगदेश का राजा बनाकर अपना मित्र बना लेता है |
इसी प्रतियोगिता में कुंती , कर्ण के कवच को देखकर समझ जाती है कि यह उसी का बेटा है और तंबू में ही मूर्छित हो जाती है | इसमें कुंती का बचपन से लेकर तो पांडवों की माता बनने तक का सफर बताया गया है | असल मे वह मथुरा के महाराज “शत्रुघ्न” की बेटी थी जिसके बचपन का नाम पृथा था |
उसे बचपन में ही भोजपुर के महाराज कुंतीभोज ने दत्तक ले लिया | इसीलिए फिर उसका नाम कुंती हो गया | उनकी असली पिता को , कुंती के भोजपुर आने के बारह , तेरह साल बाद एक बेटा होता है | वही कृष्णजी के पिता वासुदेव है | इसी नाते कुंती , कृष्ण की बुआ लगती है |
ऐसे में एक दिन महायज्ञ करने के लिए उनके भोजपुर में दुर्वासा ऋषि आते हैं जो की अत्रि ऋषि और महासती अनसूया के पुत्र है और योगीराज दत्तात्रेय के बंधु है | वह अपने क्रोध के लिए जाने जाते हैं | जिन पंचतत्वों से यह धरती बनी है | वह उन तत्वों को अपना दास बना लेने के लिए महायज्ञ करते है |
इसके लिए कुंती उनकी दिन – रात जागकर , थक – कर सेवा करती है क्योंकि उनके श्राप से सभी डरते हैं | जब दुर्वासा ऋषि का यह यज्ञ पूरा होता है तो वह कुंती को उपहार स्वरूप एक मंत्र देते हैं | उस मंत्र के उच्चारन पर वह शक्ति मानव रूप में कुंती के पास आएगी और अपने जैसा ही एक तेजस्वी पुत्र देकर चली जाएगी |
इस मंत्र को देकर दुर्वासा ऋषि तो चले जाते हैं पर इधर कुंती का कौतूहल जागता है | उसे जिज्ञासा होती है कि क्या यह मंत्र सचमुच मे काम करेगा ? यह जाँचने के लिए वह सूर्यदेवता का आवाहन करती है | इसके फलस्वरूप सूर्य देव मानव रूप में आकर उसे एक पुत्र देते हैं |
यही पुत्र कर्ण है | इसीलिए कर्ण को सूर्य के प्रति एक अपनापन लगता है | उसके कान में सूर्य के जैसे चमकनेवाले कुंडल भी हैं | कुंती अविवाहित थी | इसलिए उसने अपने पिता की प्रतिष्ठा बचाने के लिए , कर्ण को पानी में छोड़ दिया पर उसका मातृमन बहुत ही तड़पता रहा |
उसके मन की उलझन , उसका दर्द , उसकी अपने बेटे के लिए तड़प , अपने पिता की प्रतिष्ठा के लिए खुद के प्राण तक लेने की कोशिश करना …. इन सब बातों का वर्णन लेखक ने बहुत ही से खूबी से किया है | किताब वाकेही अच्छी है | जरूर पढ़िएगा |
कुंती का विवाह हस्तिनापुर के महाराज पांडू से होता है | कुछ ही दिन में पांडु , माद्री से भी विवाह कर लेता है | कुंती महारानी बनकर ज्यादा दिन नहीं रह पाती क्योंकि महाराज पांडु को मिले श्राप के कारण वह बहुत ही डिप्रेशन में चला जाता है | वह राज – पाठ छोड़कर जंगल में चला जाता है | उसके साथ कुंती और माद्री भी जंगल में चले जाती है |
दुर्वासा ऋषि के मंत्रों से कुंती को तीन और माद्री को दो ,ऐसे पांडु को पांच पुत्र प्राप्त होते हैं | यही पांडु के पुत्र पांडव है | जंगल में ही पांडु और माद्री की मृत्यु हो जाती है फिर कुंती पांडवों को लेकर हस्तिनापुर आ जाती है |
कर्ण को सूर्य के प्रति अप्रतिम आकर्षण है और गंगा नदी के प्रति भी क्योंकि उसे गंगा नदी में ही तो छोड़ा गया था | उसके पास कवच – कुंडल है जो कि उसके भाई शोण के पास भी नहीं है | कर्ण को लगता है कि , उसके बच्चों के पास वह रहेंगे | इसलिए वह अपने पहले बेटे को देखने के लिए बड़े उत्साह से आता है कि उसको कवच और कुंडल है कि नहीं पर उसको निराशा ही हाथ लगती है |
इसलिए वह अपनी दूसरी संतान से आस लगाए बैठता है परंतु उसकी यह आशा कभी पूरी नहीं हो पाती | खैर , समय बीतता है | कर्ण का जीवन आगे बढ़ते जाता है | आखिर वह दिन भी आता है जब कर्ण निहत्था कुरुक्षेत्र के युद्ध मे अर्जुन के सामने खड़ा रहता है और उसके बाद क्या होता है ? यह तो आप को पता ही है |
कर्ण के जीवन को पास से जानने के लिए , जरूर पढिए | शिवाजी सावंत द्वारा लिखित “मृत्युंजय” | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते है और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ……
धन्यवाद !!