अश्वत्थामा – महाभारत का शापित योद्धा
रिव्यु –
प्रस्तुत किताब आशुतोष गर्ग द्वारा लिखी गई है | इस किताब का नायक अश्वत्थामा है | यह महाभारत का एक महत्वपूर्ण पात्र है | यह आचार्य द्रोण के पुत्र है जो हस्तिनापूर के राजकुमारों के गुरु थे | उनके पिता पांडवों को ज्यादा पसंद करते थे , विशेषतः अर्जुन को … लेकिन अश्वत्थामा ने न जाने क्यों दुर्योधन मे अपना मित्र ढूंढा | इसीलिए दुर्योधन के मित्र उसके मित्र थे |
दुर्योधन के शत्रु उसके शत्रु थे | दुर्योधन की अंतिम अवस्था देखकर उसने उसके शत्रुओ को नुकसान पहुचाना चाहा | इसी के चलते उसे श्रीकृष्ण के कोप का भाजन बनना पडा | कहते है की वह अमर है क्योंकि महाभारत के युद्ध में अश्वत्थामा से दो ऐसे अक्षम्य अपराध हो गए थे, जिनके लिए श्रीकृष्ण ने उसे एकाकी और जर्जर अवस्था में हजारों वर्षों तक पृथ्वी पर भटकने का शाप दे दिया था |
किताब यह प्रश्न करती है की क्या कृष्ण ने उसके साथ अन्याय किया या फिर इसके पीछे कोई दैवीय योजना थी ? या अश्वत्थामा के माध्यम से भगवान कृष्ण आधुनिक समाज को कोई संदेश देना चाहते है ?
अश्वत्थामा के जीवन के अनछुए पहलुओं को उजागर करती हुई यह किताब है | लेखक ने अश्वत्थामा के दृष्टिकोण से महाभारत की कथा को एक नए रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है |
अश्वत्थामा , दुर्योधन का मित्र था | इसलिए ऐसा समझ जाता है की अश्वत्थामा भी दुर्योधन के जैसे कुटिल और दुराचारी था लेकिन यह उपन्यास अश्वत्थामा के व्यक्तित्व के अन्य गुणों के साथ उसके चरित्र की विशेषताओं को भी बताने का प्रयास करता है, जिन्हें अक्सर उपेक्षित किया जाता है | इसीलिए शायद बहुत सारे दिग्गज व्यक्तियों ने इस किताब की सराहना की है जिसे आप किताब की शुरुवात मे ही पढ़ पाओगे |
लेखक आशुतोष गर्ग इन्होंने हिमाचल प्रदेश से एम.ए.( हिंदी ) और दिल्ली से स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त किया है | उन्होंने इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय से एम.बी.ए. की डिग्री प्राप्त की है | उनकी अभी तक १५ किताबे प्रकाशित हो चुकी है | वह हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओ में पारंगत है | उनका नाम अनुवाद के क्षेत्र मे एक परिचित नाम है | फ़िलहाल वह, रेल मंत्रालय में उप – निदेशक के पद पर कार्यरत है | किताब को प्रकाशित किया है प्रख्यात पब्लिशिंग हाउस , मंजुल पब्लिशिंग हाउस ने | इस किताब का पहला संस्करण २०१७ में प्रकाशित हुआ था | किताब १६० पन्नो की है और इसकी कीमत है १५० रुपये | यह किताब आपको अमेज़न पे आसानी से मिल जाएगी |
वैसे तो लेखक पीछले पच्चीस सालो से लेखन का कार्य कर रहे है | अश्वत्थामा जैसे भूले – बिसरे पात्रों के बारे में लोगी को याद दिलाने का उनका यह “अश्वत्थामा” इस किताब के रूप में पहला प्रयास है | आएये तो जानते है इस किताब का सारांश …………….
सारांश –
अश्वत्थामा इस बुक में महाभारत के ही प्रसंगों की पुनरावृत्ति हुई है | जिन्हें महाभारत के प्रसंग याद है उनके लिए अश्वत्थामा कोई नया पात्र नहीं है | जिन्हे पता नहीं उनको बता दू की अश्वत्थामा, आचार्य द्रोण का बेटा है |
आचार्य द्रोण पांडवो और कौरवो के गुरु थे | इन्होने उन सबको युद्ध कला सिखाई थी | पांडव और कौरव वह जिनके बीच में कुरुक्षेत्र का प्रसिद्ध युद्ध हुआ था | इसी युद्ध के वक्त भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवो में से एक अर्जुन को उपदेश दिया था | यही ज्ञान अभी हम सब के लिए “भगवद्गीता” के रूप में उपलब्ध है | इसी कुरुक्षेत्र युद्ध में जब द्रौपदी के भाई के हाथो गुरु द्रोण की हत्या होती है तो अश्वत्थामा , पांडवो के निरागस पुत्रो की हत्या कर देता है फिर पांडवो के विनाश के लिए ब्रह्मास्त्र चला देता है पर … वह उसे वापस नहीं ले पाता | जिसके कारण सृष्टि का विनाश होना आरंभ हो जाता है |
फिर वह , यह सब बचाने के लिए अपना ब्रह्मास्त्र उत्तरा के गर्भ पर चला देता है जिससे उसके बच्चे की गर्भ में ही मौत हो जाती है | इसी बात से क्रुध्द होकर भगवान श्रीकृष्ण, अश्वथामा को श्राप देते है की उसके घाव कभी नहीं भरेंगे | उसके घावो से हमेशा खून और पीब रीसते रहेगा | इस दर्द और तकलीफ को वह हजारो सालो तक इस धरती पर रहकर भोगता रहेगा | कहते है की भगवान श्रीकृष्ण के इसी श्राप के कारण वह आज भी जिन्दा है |
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