PITRURUN BOOK REVIEW SUMMARY IN HINDI

तीसरी किताब का नाम है – पितृऋण

रिव्यु और सारांश –

    यह दोनों एक साथ इसलिए दे रहे है क्योंकि यह किताब बहुत छोटी है | जैसा की आपने किताब के मुखपृष्ठ पर देखा होगा की एक जैसे दो व्यक्तियों की फोटो है जैसे की मिरर इमेज हो लेकिन गौर से देखने पर पता चलता है की उनमे से एक व्यक्ति उम्र में बड़ा है और इसी में इस किताब की कहानी निहित है | मुखपृष्ठ हमेशा ही कहानियो को बयां करनेवाले होते है |

इस किताब की जानकारी इस प्रकार है –

मूल लेखिका – सुधा मूर्ति ( कन्नड़ भाषा में )

मराठी अनुवाद – मन्दाकिनी कट्टी

पृष्ठ संख्या – 92

प्रकाशक – मेहता पब्लिशिंग हाउस

उपलब्ध – अमेज़न

बहेरहाल, यह धरती पर बसे ,मानवजाती में जन्मे व्यक्ति के भावनाओ के एक छोटेसे अंश की कहानी है | जो माने तो पितृऋण है ना माने तो कुछ भी नहीं | धरती पर मानवजाति ही ऐसी है जिसमे भावनाए बसी होती है | बिना भावनाओ के मनुष्य कुछ भी नहीं |

ऐसे ही यह व्यंकटेश नाम के व्यक्ति की कहानी है जिनके लिए पैसो से ज्यादा लोगो का दुःख और सुख मायने रखता है | उनकी बेटी गौरी भी उनके जैसे ही आदर्शवादी है | जो मेडिकल की पढाई पूरा कर के डॉक्टर बनने के सपने को पूरा कर रही है | व्यंकटेश की पत्नी शांता और बेटा एकदम उनके उलट व्यवहारदक्ष, भावनाशुन्य व्यक्ति है | जिन्हें अपना पैसा , स्टेटस ,बिजनेस के अलावा और कोई नहीं दिखता |

व्यंकटेश बैंक में मेनेजर है | एक बार उनकी बदली हुबली गाँव में हो जाती है | तब उन्हें हर दूसरा व्यक्ति किसी और ही नाम से पुकारता है तब उन्हें लगता है की यह कोई इत्तफाक नहीं बल्कि उनके जैसा ही दिखनेवाला व्यक्ति वही कही आस – पास रहता है | उनके मन में विचार आता है | हमारे कोई रिश्तेदार इधर नहीं | मेरे माता पिता भी किसी और शहर के है | अगले व्यक्ति के पिता का नाम भी दूसरा है | फिर यह व्यक्ति एकदम मेरे जैसा ही कैसे ? इसी उधेड़बुन में व्यंकटेश , उस व्यक्ति और उसकी माँ से मिलते है |

अब वह उनके कोई करीबी है या फिर उनके कोई रिश्तेदार है या फिर वह उन कहानी में से एक है जिसमे कहा जाता है की धरती पर एक जैसे चेहरे के सात लोग होते है | किताब बहुत ही छोटी सी है इसलिए ज्यादा नहीं लिख पा रहे है | एक है – किताब के आखिरी में गौरी द्वारा कहा गया वाक्य मन को छू जानेवाला है जिसे पढ़कर एकदम गला भर आये | किताब बहुत अच्छी है , इसे एकबार जरूर पढ़िए |

धन्यवाद !

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