स्वराज्यातील स्त्री गुप्तहेर
ईश्वर त्रिम्बक आगम द्वारा लिखित
रिव्यू –
छत्रपती शिवाजी महाराज स्वराज्य के संस्थापक है | वह अपनी असाधारण और प्रभावी गुप्तचर प्रणाली के लिए प्रसिद्ध थे क्योंकि एक राजा होने के नाते उन्हे अपने दुश्मनों की हर एक चाल पर ध्यान रखना जरूरी था | इसीलिए उन्हे अपना एक जासूसी खाता निर्माण करना पड़ा |
इस जासूसी खाते के मुख्य थे – बहिरजी नाईक | वह भेस बदलने मे माहिर थे | भेस बदलने के बाद उन्हें पहचानना मुश्किल था | वह और उनके जासूस साधु, भिखारी, फ़कीर, व्यापारी, कारीगर, ज्योतिषी अलग – अलग व्यक्तिओ जे रूप मे आसानी से सामान्य लोगों मे घुलमिल जाते थे | इस कारण वह दुश्मनों के प्रदेशों की महत्वपूर्ण जानकारी इकट्ठा कर पाने मे कामयाब होते थे |
जिसमे शामिल था – दुश्मन के सेना की ताकत का पता लगाना | उनकी युद्ध योजनाओं के बारे मे पता करना | उनके इलाके के विवरण, दुश्मन के शिविरों और किलेबंदी के मिनट-मिनट की जानकारी के बारे में पूरी डीटेल निकालना |
बहिर्जी के पास बीजापुर, दिल्ली, कर्नाटक, पुणे जैसे महत्वपूर्ण शहरों में लगभग 3,000 से 4,000 जासूसों का एक विशाल नेटवर्क था | उन्होंने अपनी एक अलग अद्भूत संचार प्रणाली विकसित की थी | जिसमे शामिल थी एक कोडित भाषा जिसमें जानवरों और पक्षियों की आवाजे शामिल थी जिसे सिर्फ उनके जासूस ही समझ सकते थे |
शिवाजी महाराज के कई अभियानो की आश्चर्यजनक जीत बहिरजी नाईक की खुफिया जानकारी के कारण मानी जाती हैं | इन्ही सब सफलताओ के कारण बहिर्जी नाईक को “स्वराज्य की तीसरी आँख” या “शिवाजी का छाया पुरुष” भी कहा जाता है | शिवाजी महाराज ने उन्हें उनके असाधारण कार्य के लिए “नाईक” याने के प्रमुख की उपाधि से सम्मानित किया था |
महाराज की प्रसिद्ध रणनीति थी – “गुरिल्ला युद्ध” | यह रणनीति आश्चर्य, गति और धोखे पर बहुत अधिक निर्भर करती थी | बहिर्जी , शिवाजी महाराज को उनके हर एक अभियान के लिए सही और सटीक जानकारी एकदम सही समय पर उपलब्ध करवाते थे जिससे महाराज को दुश्मन की चालों का अनुमान लगाने, उनकी कमजोरियों पर प्रहार करने का मौका मिल जाता था | इन जानकारियों द्वारा किए गए अभियानों मे शामिल है –
पुणे के लाल महल में रहते हुए शाहिस्ता खान पर हमला | अब चूंकि यह महाराज का खुद का ही घर था | तो उन्हे इसके बारे मे पूरी जानकारी थी | शाहिस्ते खान और उसके सैन्य की , अंगरक्षकों की और दिनचर्या की विस्तृत खुफिया जानकारी बहिर्जी ने दी |
इस जानकारी ने शिवाजी महाराज ने 300 मावलों के एक छोटे दल के साथ एक साहसिक रात का छापा मारने में सक्षम बनाया | इससे मुगल सरदार शाहिस्ते खान को काफी नुकसान हुआ | महाराज ने उसकी चार ऊँगालिया भी काट दी | इसका इतिहास आप पहली से चौथी तक की स्टेट बोर्ड की किताबों मे पढ़ पाओगे |
दुसरा है – आगरा से पलायन | जब शिवाजी महाराज को औरंगजेब ने धोके से आगरा में कैद कर लिया था | तब बहिर्जी का गुप्तहेर खाता ही महाराज और उनके पुत्र संभाजी की पलायन योजना बनाने और उसे अंजाम देने में सहायक था | जिसने 700 मील के मार्ग पर सुरक्षित ठिकाने और एस्कॉर्ट प्रदान किए गए थे |
उम्बरखिंड के युद्ध मे कर्नल करतलब खान की 20,000 मजबूत सेना के बारे में बहिरजी द्वारा एकत्र की गई खुफिया जानकारी ने शिवाजी महाराज को एक पहाड़ी दर्रे में मुगल सेनाओं पर सफलतापूर्वक घात लगाकर हमला करने और उन्हें हराने में मदद की |
सूरत की प्रसिद्ध लूट के लिए भी खुफिया जानकारी बहिर्जी ने ही उपलब्ध करवाई | यह औरंगजेब की सबसे अमीर राजधानी थी | यहाँ (1664 और 1670) की दो सफल लूटों की योजना बनाने और उन्हें अंजाम देने में बहिर्जी की खुफिया जानकारी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई |
बहिर्जी के अलावा महाराज की अपनी एक खुफिया प्रणाली थी | जिसमे शामिल थे – स्थानीय लोग, किसान और कारीगर जो अपने इलाके और स्थानीय परिस्थितियों के गहरे ज्ञान का फायदा उठाकर खुफिया जानकारी इकट्ठा करते थे |
वह इस नेटवर्क का उपयोग कर के दुश्मनों को भ्रमित करते थे | गलत सूचनाए फैलाकर उन्हे भटकाते भी थे | उनकी खुफिया जानकारी इकट्ठा करने की विधियाँ और गुप्त अभियानों का उपयोग अपने समय से बहुत आगे था |
प्रस्तुत कहानी भी महाराज के इसी जासूसी विभाग के अनेक ज्ञात और अज्ञात मावलों की है जिसमे तुळसा, मंजुळा, जना जैसी अदम्य साहसवाली लड़कियां भी थी | यह सारे नाम इतिहास मे कहाँ गायब हुए | किसी को नही पता…. जासूसों का नाम पता न होना | यही तो शिवाजी महाराज के जासूसी विभाग की विशेषता थी | इसी के बलबूते उन्होंने स्वराज्य को मजबूत बनाया | दुश्मनो को हराया |
स्वराज्य के लिए खुद के प्राणों का बलिदान देनेवाले इन वीरों को हमारा शतशः नमन | प्रस्तुत किताब की कहानी काल्पनिक है पर वास्तविकता की धरातल पर लिखी गई है | यह जना नाम के लड़की जासूस की साहसिक यात्रा की कहानी है जो बहिर्जी से प्रेम करती है | बहिर्जी अब खाता प्रमुख नहीं बल्कि खुद एक ट्रैनी जासूस है | जना के आने के बाद उनके जिंदगीमे क्या घटित होता है | इसी की यह कहानी है | प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – ईश्वर त्रिम्बक आगम
प्रकाशक – ई. बुक के रूप मे
पृष्ठ संख्या – 76
उपलब्ध – अमेजन पर
सारांश –
कहानी है “जना” नाम के युवती की जो शिवाजी महाराज के जासूसी विभाग में एक जासूस है | फतेह खान के लोगों ने जेजुरी के पास के गांव पर हमला कर उसे नेस्तनाबूत कर दिया है | स्त्रियों को उठाकर अपने साथ ले गए है | इसी में थी जना की बचपन की सहेली – रखमा जो उसे बरसों बाद मिली थी | इन्हीं स्त्रियों को छुड़ाने के लिए जना अपने जासूसी खाते के लोगों के साथ आई थी |
इसमें मुख्य थे बहिर्जी नाईक | बहिर्जी और जना एक दूसरे को पसंद करते हैं पर उनका कर्तव्य , प्रेम के पथ पर उन्हें आगे नहीं बढ़ने देता | स्त्रियों को छुड़ाने में दोनों गुटों में लड़ाई हुई | इसमें जना जबरदस्त जख्मी हुई | इसी अवस्था में लेटे हुए उसे अपने भूतकाल के दृश्य याद आने लगे | वह इतने दुखदाई थे कि वह बीच-बीच में चिल्ला उठती थी | फतेह खान की छावनी से पीछा करनेवाले लोगों में उसे असलम भी दिखा जिसने 7 साल पहले रामवाडी गांव में जना के माता – पिता की हत्या की थी |
जना ने उसे मारकर अपना बदला लिया | उसके पिता हथियार बनाते थे | वह अपने माता-पिता की लाडली संतान थी | उसके पिता ने उसे घोड़े पर बैठना सिखाया था | हथियार चलाना सिखाया था | अपने प्यारे पिता को मरते हुए उसने अपनी आंखों से देखा था |
नाना , शिवाजी महाराज के सरदार थे | वह शिवाजी महाराज के स्वराज के लिए जासूसी करते थे | नाना ही उस जासूसी खाते के मुख्य थे | उनके ही मातहत बाकी सारे जासूस ट्रेन हुए थे जिनमें बहिर्जी भी शामिल थे |
ऐसे इस नाना की एक बार जना के पिता “सवता लोहार” के साथ मित्रता हो गई | वह स्वराज्य के सैनिकों के लिए एक से बढ़कर एक हथियार बनाकर देने लगे | रामवाडी गांव बेचिराख होने के बाद नाना ने ही जना को अफ़गानों के हाथ पड़ने से बचाया था |
उन्होंने जना को अपनी बेटी से भी बढ़कर माना | उन्हें भी कोई संतान नहीं थी | जना बचपन से ही बहादुर और योद्धा किस्म की लड़की थी | उसके इस गुणो को देखते हुए नाना ने उसे ट्रेन किया | उसे एक उम्दा जासूस बनाया | नाना के बहुत सारे मुहिमो में वह उनके साथ थी पर यह आखिर की मोहीम जना की यात्रा खत्म कर गई |
जना ने अपनी बहादुरी से लोमड़ी को सिर्फ तीरों से मारा | इस बहादुरी के लिए खुद जिजामाता ने उसको पुरस्कार दिया | उसने शिवाजी महाराज के दर्शन भी किए | महाराज तब पुणे के लाल किले में रहते थे | यह काल स्वराज्य के शुरुआत का था |
तोरणा किले के अभियान में जना और उसके साथी सम्मिलित थे | जना ने मरने से पहले राणादा से एक वचन लिया कि वह “रखमा” से शादी करेगा क्योंकि वह जना की जीवलग सहेली थी और अब उसका कोई नहीं था | जना के जाने के एक पल पहले बहिर्जी ने उसके मांग में सिंदूर भर के अपना प्रेम पूर्ण कर लिया था |
यह लोग सर्वस्व अपने देश पर न्योछावर करते हैं | प्रेम के लिए उनके जीवन में कोई जगह नहीं | वह अपना घर संसार तक नहीं बसा सकते | उन्होंने स्वेच्छा से यह सब त्याग दिया था अपने देश के लिए , अपनी आनेवाली पीढ़ियों के लिए , हमारे लिए | जना जैसे वीरों को हमारी भावपूर्ण श्रद्धांजलि ..
तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते है और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !!
SWARAJYATIL STREE GUPTAHER REVIEW