उल्टा लटका राजा
सुधा मूर्ति द्वारा लिखित
रिव्यू –
प्रस्तुत किताब रामायण और महाभारत की रोचक कथाओ का संग्रह है | स्पेशली प्रभु श्रीराम के पूर्वजों की और उन्हीं के दूसरे अवतार भगवान श्री कृष्ण की …
प्रस्तुत किताब की –
लेखिका है – सुधा मूर्ति
प्रकाशक है – प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ संख्या है – 161
उपलब्ध है – अमेजॉन और किंडल
किताब में पूरे 25 अध्याय है | भारत भूमि के लोगों के मन में प्रभु श्री राम और भगवान श्री कृष्ण बसते हैं | यह उनके दैनंदिन जीवन का एक हिस्सा है | भगवान के इन अवतारों ने मनुष्य जन्म में जो उपलब्धियां अर्जित की | उन्हें भारतीय लोग त्योहारो के रूप में मनाते हैं जैसे कि रामनवमी , जन्माष्टमी और दशहरा इ. |
इस कारण अयोध्या , मथुरा , वृंदावन , द्वारका गोवर्धन जैसी जगहे लोगों के पसंदीदा तीर्थस्थल बन गए हैं | श्रीराम और श्री कृष्ण वैसे तो भगवान विष्णु के ही अवतार है पर उनके दोनों रूपों में बहुत भिन्नता हैं जैसे प्रभु श्रीराम का जन्म त्रेता युग में हुआ तो भगवान कृष्ण द्वापर युग में हुए जो चार युगों में से दो युगो को दर्शाते हैं |
रामायण से जुड़ी कथाए चित्रों , साहित्य , नृत्य और संगीत के माध्यम से दर्शायी जाती है | रामायण के बहुत सारे संस्करण है | उदाहरणार्थ – वाल्मीकि रामायण , अद्भुत रामायण , पंपा रामायण , कंब रामायण इत्यादि | भगवान राम के राज्यकाल में प्रजा हर तरह से सुखी थी | उनके राज्यकाल को “रामराज्य” कहते हैं जिसका मतलब ही सबके लिए सुख शांति का काल है |
उनके चलाए हुए बाण गंतव्य तक पहुंचते ही थे | इसीलिए शायद जब कोई चीज हंड्रेड परसेंट असर करनेवाली हो तो उसको रामबाण इलाज कहते हैं | प्रभु श्री राम एक न्यायपूर्ण राजा थे |
भगवान श्री कृष्ण का राज परिवार में जन्म होने के बावजूद उनका पालन पोषण एक ग्वाले के रूप में हुआ | उन्हें बहुत बार राजा बनने का अवसर मिला पर उन्होंने राजा बनना स्वीकार नहीं किया | भगवान राम के विपरीत भगवान श्री कृष्ण को रूमानी माना जाता है | उन्हें हर उम्र का व्यक्ति अलग-अलग तरह से प्रेम करता है |
प्रस्तुत कहानीया पढ़ने के पहले आपको इनके बारे में इतना जानना तो जरूरी ही था | अब थोड़ा लेखिका के बारे मे जान लेते है | वैसे तो वह एक बहुत ही प्रसिद्ध व्यक्ति है | इन किताब मे हम विशेषकर उनके द्वारा बच्चों के लिए किए गए कार्यों के बारे मे जानेंगे |
सुधा मूर्ति प्रसिद्ध लेखिका और समाजसेवी हैं | उन्होंने बच्चों के विकास और शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है | उन्होंने बच्चों के लिए कई प्रेरणादायक और शिक्षाप्रद कहानियाँ लिखी हैं जिनमें ज्यादातर भारतीय संस्कृति, नैतिकता, और जीवन के मूल्यों पर आधारित कहानियाँ होती हैं |
उनकी कहानियाँ सरल भाषा में होती हैं | इसीलिए बच्चे इसे आसानी से समझ पाते है | उनकी बच्चों के लिए लिखी मुख्य किताबओ मे शामिल है – “ग्रैंडमा’स बैग ऑफ स्टोरीज” (दादी की कहानियों का थैला) – यह बच्चों की पसंदीदा किताबो मे से एक है |
“मैजिक ऑफ द लॉस्ट टेंपल” (खोए हुए मंदिर का जादू)
“हाउ द अर्थ गॉट इट्स ब्यूटी”
“हाउ द मैंगो गॉट इट्स मैजिक”
“अनयूजुअल टेल्स फ्रॉम इंडियन मेथोलॉजी” सीरीज
उनकी कहानियाँ बच्चों को , दूसरों की मदद करने, समस्याओं का समाधान ढूंढने, और अपनी असफलताओं से सीखने के लिए प्रेरित करती हैं |
उन्होंने अपनी कहानियों को बच्चों तक पहुंचाने के लिए नए माध्यमों का उपयोग किया है | उन्होंने उनकी सबसे ज्यादा बिकनेवाली बच्चों की किताबों पर आधारित एक एनिमेशन सीरीज “स्टोरी टाइम विथ सुधा अम्मा” लॉन्च की है |
यह सीरीज यू ट्यूब पर “कथा’ नाम के चैनल से मिल जाएगी | यह सीरीज 6 भाषाओं याने हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, कन्नड़, तेलुगु और तमिल भाषा में उपलब्ध है | इससे उनकी कहानियों के किरदार बच्चों के सामने जीवंत हो उठते हैं |
वह माता – पिता को उनके बच्चों की परवरिश और शिक्षा को लेकर महत्वपूर्ण सलाह भी देती हैं | उनका कहना है की बच्चों को गैजेट्स से दूर रखना चाहिए और किताबों को उनका मित्र बनाना चाहिए |
ताकि उनके ज्ञान मे वृद्धि हो | वे बेहतर इंसान बन सकें | वे बच्चों को उम्र के हिसाब से जिम्मेदारियां देने मे विश्वास रखती है | वह उनसे लगातार संवाद करने की सलाह देती हैं | उनका मानती है की बच्चों को कभी भी अपने सपनों को नहीं छोड़ना चाहिए और असफलताओं से डरने के बजाय उनसे सीखना चाहिए |
इंफोसिस फाउंडेशन की अध्यक्ष के रूप में काम करते हुए उन्होंने ने शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है | जिसमे शामिल है स्कूलों का निर्माण , उनका नवीनीकरण | विशेषतः भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में |
उनका फाउंडेशन गरीब विद्यार्थियों को स्कालरशिप द्वारा उनकी मदद करता है | फाउंडेशन उनकी आर्थिक सहायता भी करता है | इससे उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने में मदद मिलती है |
कुल मिलाकर, वह बच्चों के लिए एक प्रेरणास्रोत हैं | उन्होंने अपनी कहानियों और सामाजिक कार्यों के माध्यम से उनके जीवन को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है | उन्हें उनके इस योगदान के लिए 2023 में बाल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया है |
चलिए तो अब शुरू करते हैं प्रस्तुत कहानियों का –
सारांश –
प्रभु श्री राम का जन्म सूर्यवंश में हुआ था | इसी सूर्यवंश में “दिलीप” नाम के राजा हुए जिनकी पत्नी का नाम सुदक्षिणा था | जैसे कि आप जानते हैं | सूर्यवंश के गुरु ऋषि वशिष्ठ है | उनके ही कहने पर राजा दिलीप ने “नंदिनी गाय” की खूब सेवा की क्योंकि इसके पहले उन्होंने रास्ते में मिली गाय को सम्मान नहीं दिया था | इसलिए उन्हें संतान प्राप्ति नहीं हो रही थी |
नंदिनी की सेवा के बाद उन्हें “रघु” नाम का पुत्र हुआ | वह अपने पराक्रम से बहुत प्रसिद्ध हुए | इतने कि उनके वंश को उनके नाम से “रघुवंश” कहा जाने लगा | इन्हीं “रघु” का पुत्र “अज” था और अज के पुत्र थे महाराज “दशरथ” | अब महाराज दशरथ कौन है ? यह तो आप जानते ही है |
आपको यह कहानी तो जाननी ही चाहिए क्योंकि यह “रामायण” के रचयिता “महर्षि वाल्मीकि” से जुड़ी है | “रत्नाकर” नाम का एक डाकू था जो जंगल से जानेवाले राहगीरों को लूटकर मार डालता था | एक बार महर्षि नारद उसी रास्ते से जा रहे थे | उन्होंने रत्नाकर डाकू से कहा कि तुम बुरे काम करके अपने खाते में पाप का बोझ बढ़ा रहे हो ! तुम जिस परिवार के लिए यह कर रहे हो ! क्या वह भी तुम्हारे पाप बांटने को तैयार है ? तुम घर जाकर पूछो |
वह घर गया | उसने पूछा | घरवालों ने उसके पाप में हिस्सेदार होना अस्वीकार किया | बस ! वह नारद मुनि के चरणों में गिर पड़ा | नारद मुनि के कहने पर डकैती छोड़ दी और तपस्या करने लगा | वह राम नाम का जाप करता रहा | उसने इतने वर्ष कड़ी तपस्या की , की उसके ऊपर चीटियों की बांबी तैयार हो गई |
इसीसे लोग अब उसका असली नाम भूलकर उसे “वाल्मीकि” के नाम से जानने लगे | महर्षि वाल्मीकि को आदिकवि कहा जाता है और उनके द्वारा रचित काव्य “रामायण” को “आदिकाव्य” |
“समय की माप” अध्याय में – राजा “निमी” की कहानी है | एक बार उन्होंने यज्ञ किया | वह भी महर्षि वशिष्ठ के कहने पर … लेकिन वह वशिष्ठ को यज्ञ का वक्त बताना भूल गए | इससे महर्षि क्रोधित हो गए और इसी कारण राजा निमी ग्लानि से भर उठे | वह अब जीना नहीं चाहते थे और चाहते थे कि वह उनकी प्रजा की आंखों से अपने राज्य को देखें | इसलिए फिर उन्हें महर्षि ने आंखों की पलकों में बदल दिया | “पलकों” को संस्कृत में “निमी” कहते हैं | पलकों को झपकाने के लिए एक पल लगता है | समय की इसी इकाई को “निमिष” कहते हैं |
प्रभु श्रीराम के वंश को सूर्यवंश , रघुवंश के अलावा ईक्ष्वाकू वंश के नाम से भी जाना जाता है | इसी वंश मे राजा सत्यव्रत हुए | इनके पुत्र राजा हरिश्चंद्र थे | जो बहुत ही सत्यवादी थे | यह इसी के लिए प्रसिद्ध है | इनके सत्यवादिता की परीक्षा महर्षि विश्वामित्र ने ली थी जिसमे राजा उत्तीर्ण हुए | इनकी कहानी बहुत प्रसिद्ध है | इसलिए उसे स्किप कर देते है | उसे आप किताब मे ही पढ़ लीजिएगा |
हम बात करेंगे इनके पिता सत्यव्रत की जो सशरीर स्वर्ग जाना चाहते थे | जो की संभव नहीं था फिर भी महर्षि विश्वामित्र ने राजा को वचन दे दिया और अपनी तपस्या के बलबूते राजा को स्वर्ग भेजने लगे | जैसे ही राजा बादलों के ऊपर पहुंचे | स्वर्ग के देवताओं ने भी उन्हें नीचे धकेलना शुरू किया | इससे वह उल्टे हो गए और बीच में ही लटक गए | इसी से इस कहानी का नाम उल्टा लटका राजा रखा गया |
इसके पहले महाराज सत्यव्रत ने इस बात के लिए महर्षि विश्वामित्र के बड़े पुत्र “शक्ति” पर दबाव भी डाला | यहां तक कि उन्हें धन का लालच भी दिया | इससे वह क्रोधित हो गए और उन्होंने उसे तीन श्राप दे दीए जिससे अब महाराज सत्यव्रत को “त्रिशंकु” भी कहा जाने लगा | “त्रिशंकु” को स्वर्ग मे प्रवेश देना मतलब बहुत सारे चुनौतियों को निमंत्रण देना था |
यह बात देवताओं ने महर्षि विश्वामित्र को समझा दी पर विश्वामित्र ने त्रिशंकु को वचन दे दिया था | इसलिए उन्होंने उसके लिए नए स्वर्ग की निर्मिती की जिसे त्रिशंकु के स्वर्ग के नाम से जाना जाने लगा |
ईक्ष्वाकु वंश में ही “बाहू” नाम के राजा हुए | वह एक विलासी और निर्बल राजा थे | इसका फायदा उठाकर किसी दूसरे राजा ने उनके राज्य पर आक्रमण कर दिया | अब वह जंगल में छुप गए | उन्होंने भार्गव ऋषि के आश्रम में शरण ली | उनके साथ उनकी दो पत्नियां थी जिसमें से एक गर्भवती थी | दूसरी रानी ने ईर्ष्या में आकर गर्भवती रानी को विष दे दिया |
भार्गव ऋषि को इसका पता तो चला पर वह बालक को पूरी तरह विषमुक्त न कर सके | विष के कुछ अंश के साथ ही उस पुत्र का जन्म हुआ | इसीलिए उस बच्चे का नाम “सगर” रखा गया | वक्त के साथ “सगर” बड़े हुए | युद्ध कौशल से उन्होंने अपना राज्य वापस पा लिया | अब उनकी भी दो पत्नियां थी | उनकी दूसरी पत्नी ने तपस्या के बलबूते 60,000 पुत्र पाए |
इन पुत्रों ने एक तालाब खोदा जिसे “सागर” कहा जाने लगा क्योंकि यह “सगर” के पुत्र थे | अब सगर राजा ने “अश्वमेध” यज्ञ करने का विचार किया | उनके यज्ञ के घोड़े को “इंद्र” ने अगवा कर लिया | इन 60, 000 पुत्रों ने उस घोड़े को खोजना शुरू किया | वह तपस्या में लीन कपिल ऋषि तक पहुंचे |
उन्होंने पूछने पर कोई जवाब नहीं दिया तो सगर के पुत्रों ने उन्हें मारना शुरू किया | ऋषि ने आंखें खोली | उन्होंने उनकी तपस्या की शक्ति से 60 हजार पुत्रों को भस्म कर दिया |
वह राख में परिवर्तित हो गए | जब सगर राजा को यह बात पता चली तो वह भागे – भागे कपिल ऋषि के पास आए | उन्होंने उनसे माफी मांगी | ऋषि ने कहा कि अगर स्वर्ग की गंगा नदी का पानी उनकी राख के ऊपर से बहेगा तो वह स्वर्ग पहुंच जाएंगे |
राजा सगर ने तपस्या आरंभ की पर वह स्वतः ही स्वर्ग सिधार गए | लंबे अंतराल के बाद उनके कुल में “भगीरथ” का जन्म हुआ | इन्होंने गंगा नदी की तपस्या की पर उनके प्रवाह को संभालने के लिए भगवान शिव का मानना जरूरी था | इसीलिए “भगीरथ” ने भगवान शिव की तपस्या की | भगवान शिव ने माता गंगा को धरती पर लाने में मदद की | जब गंगाजी का पानी धरती पर आया तो ऋषि “जु” के आश्रम में बाढ़ आ गई |
उन्होंने नदी को पी लिया | अब “भगीरथ” ने भगवान शिव और विष्णुजी दोनों की प्रार्थना की | अंत में ऋषि ने अपनी जंघा से गंगा नदी को प्रवाहित किया | वह सगर के पुत्रों की राख के ऊपर से बही और उनको मोक्ष प्राप्त हुआ | आज भी भारतवर्ष में यह मान्यता है कि मृतक व्यक्ति की राख गंगा नदी में बहाने से उसको मोक्ष प्राप्त हो जाता है | भगीरथ के निरंतर तपस्या ने “भगीरथ प्रयत्न” शब्द को जन्म दिया जो किसी कठिन कार्य के लिए किए जानेवाले प्रयत्नों को दर्शाता है |
“सोने का पेड़” कहानी मे ईक्ष्वाकु वंश के प्रसिद्ध राजा “रघु” जब भी कोई युद्ध जीतते | बड़ा यज्ञ कर के सब कुछ दान कर देते | तो दूसरी तरफ कौस्थेय नाम का निर्धन छात्र अपने गुरु से शिक्षा प्राप्त कर चुका था | वह गुरु दक्षिणा देने के लिए अपने गुरु के पीछे ही पड़ गया जबकि उसके गुरु उसे फ्री में शिक्षा देकर विदा कर रहे थे | आखिर गुरु ने क्रोध में आकर 10 लाख स्वर्ण मुद्राए मांगी | अब वह निर्धन ब्राह्मण इतना धन कहां से लाए ?
इसलिए वह राजा के पास गया | राजा भी सब कुछ दान कर चुके थे | तब वह भी धन कहां से लाए ? इसलिए उन्होंने धनवान कुबेर की अलकापुरी पर आक्रमण करना चाहा और इसी विचार के साथ वह अलकापुरी आकर शमी के पेड़ के नीचे सो गए |
कुबेर ने सब जानने के बाद शमी के पेड़ की पत्तियों को ही सोने की मुद्राओं में बदल दिया | यह देखते ही महाराज रघु ने युद्ध के विचार को त्याग दिया | उन्होंने पेड़ से सिर्फ 10 लाख स्वर्ण मुद्राएं लेकर बाकी की वैसे ही छोड़ दी | उन्होंने वह धन कौस्थेय को दे दिया |
कौस्थेय ने अपने गुरु को… गुरु को अपनी गुरुदक्षिणा मिली | कौस्थेय को अपना ज्ञान पर महाराज रघु को कौस्थेय से कुछ भी फायदा नहीं हुआ | उल्टा उसने अहंकार में आकर अपने गुरु पर गुरुदक्षिणा के लिए दबाव डाला था | अगर उसे मांग कर ही गुरुदक्षिणा देनी थी तो इतनी जिद क्यों की ? हमें तो कौस्थेय ऋषि की सोच पसंद नहीं आई ? हां , महाराज रघु ने अपना कर्तव्य बखूबी निभाया |
निर्धन होने के बावजूद 10 लाख स्वर्ण मुद्राओं के लिए प्रयत्न किया | इन प्रयत्नों में उनके प्राण भी जा सकते थे क्योंकि युद्ध प्राण ही तो लेते हैं | तभी से लोग दशहरे के दिन शमी के पत्तों को सोने के रूप में अपने बुजुर्गों को देकर उनका आशीर्वाद लेते हैं |
“रावण एक जटिल असुर” में – रावण और उसकी शिव भक्ति के बारे में बताया गया है और कैसे कुबेरजी चार दिशाओं में से एक दिशा के स्वामी बने | बाकी सारी कहानीयां महाभारत से ली गई है | तो , उन्हें हमने नहीं बताया क्योंकि रामायण के मुकाबले महाभारत की ज्यादातर कहानियां प्रचलित है |
वह अमूमन बहुत से लोगों को पता है | रामायण की यह कहानीयां बहुत ही कम सुनने को मिलती है | इसलिए इसका “सारांश” आपको बताया | वैसे लेखिका का हमें धन्यवाद देना चाहिए कि महाकाव्य की इन कहानियों को किताबों के माध्यम से हम तक पहुंचायां |
नहीं तो , आज के जमाने में किसको इतना समय है की पूजा घर की चौकी पर बैठकर इन ग्रंथो को पढे | इस किताब के माध्यम से हम उन कहानियों के , पात्रों के , घटनाओं के , निकट जा पाए | आशा है , कहानीयां आपके लिए ज्ञानवर्धक होगी | बाकी की कहानीयां जानने के लिए जरूर पढ़िए – “उल्टा लटका राजा” | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !!