धना
पहेलवान गणेश मानुगड़े द्वारा लिखित
रिव्यू –
यह एक पहेलवान युवक और एक सुकुमार लड़की की प्रेमकहानी है | जिस गाव मे वह रहता है | उसके लिए वह दंगल जीतकर उसका मान बढ़ा सकता है या फिर कुश्ती छोड़कर राजलक्ष्मी के साथ अपना घर बसा सकता है | पर कुश्ती उसकी जिंदगी है | क्या चुनेगा वह ? इस बीच उसकी जिंदगी मे और भी घटनाए घटती है | इन घटनाओ का उसकी जिंदगी पर क्या असर होता है ? इसी पर आधारित यह किताब है |
जिस गाँव की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए धना कुश्ती प्रतियोगिता जितना चाहता था , जिसके लिए वह रात – दिन एक कर रहा था | उसी गांव की प्रतिष्ठा के खिलाफ वह नकली पहचान लेकर लड़ता है | इस जीद से की वही जीतेगा और वह जितता भी है |
अब उसके जीतने से तो गाँव की प्रतिष्ठा धूल में मिल गई | ऐसे में वह जीत कर भी हारा | तो इससे उसे क्या हासिल हुआ ? यह समझ मे ही नहीं आया | वह सामनेवाले प्रतियोगी सूर्याजीराव को दिखा देना चाहता था कि धना , धना है | उसके जैसा और कोई नहीं |
धना इतना स्वार्थी विचार कैसे कर सकता है ? जबकि वह तो अपना सर्वस्व त्यागकर देशहित मे काम करना चाहता है | जहां स्वार्थ को कोई जगह नहीं | इस बार लेखक की किताब ने निराश किया | लगा की कहानी को जबरदस्ती ही आगे बढ़ाया जा रहा है |
जैसे की जिस संगठन का धना राजा बननेवाला था | हमें लगता है कि उस संगठन की अब कोई जरूरत नहीं थी क्योंकि देश को आजाद हुए 10 साल हो चुके थे | देश में अच्छे नेता अभी भी मौजूद थे | अगर किसी पर फिर भी अत्याचार होता तो मदद करनेवालों की कमी नहीं थी | जिस तरह धना , बिल्ला बनकर आया | उसी तरह वह कुश्ती जीतने के बाद बिल्ला की पहेचान के साथ ही वापस जा सकता था | उसको स्फोट कर के गायब होने की जरूरत ही नहीं थी |
जिस राजलक्ष्मी को धना स्वीकार नहीं कर सकता | उसके आदमी राजलक्ष्मी को खत्म कर देना चाहते हैं | उसी राजलक्ष्मी को सूर्याजी , धनाजी के हवाले करना चाहता है | क्यों ? यह भी समझ में नहीं आया और सबसे बड़ी बात तो हमें धना का ही कैरेक्टर समझ में नहीं आया कि आखिर वह अपने जीवन में करना क्या चाहता है ? क्या वह पहेलवान बनना चाहता है ? पर पहेलवानी के लिए तो राजलक्ष्मी को छोड़ना होगा | पर वह राजलक्ष्मी से भी मिलना जारी रखता है | तो क्या वह उससे विवाह कर के सांसारिक व्यक्ति बनना चाहता है ?
इन सब के अतिरिक्त वह सब कुछ छोड़-छाड़ कर गुप्त संगठन का सदस्य भी बनना चाहता है जिसकी परीक्षाओं में वह पग – पग पर फेल होता जाता है | इस बार लेखक कहानी का तारतम्य जोड़ने में असफल हुए तो क्या ?उनके द्वारा लिखित “बाजिन्द” किताब सारी कमियों को पूरा कर देगी |
वह किताब हर दृष्टि से बहुत-बहुत अच्छी है | हमें वह किताब इतनी अच्छी लगी थी की धना इस किताब पर लेखक का नाम देखकर हमने तुरंत यह किताब पढ़ने को ली पर यह किताब हमारी आशाओं पर खरी नहीं उतरी फिर भी एक बार पढ़ने लायक जरूर है |
लेखक पहेलवान है | इसीलिए धनाजी और सूर्याजी की बीच हुई दंगल के बारे मे लिखते वक्त उन्होंने कुश्ती के पैंतरों के बारे में पूरे डिटेल में लिखा | अगर आप पहेलवानी क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं तो आपको यह किताब जरूर पसंद आएगी | प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – पहलवान गणेश मानुगड़े
प्रकाशक है – मेहता पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ संख्या है – 122
उपलब्ध है – अमेजॉन और किंडल पर
सारांश –
यह धना और राजलक्ष्मी की प्रेम कहानी है | धना एक प्रसिद्ध पहेलवान है | वह गांव का एक गरीब व्यक्ति है जिसकी एक माँ के अलावा और कोई नहीं | घर खर्च के लिए उसकी माँ गांव के अमीर और मान – मरातबवाले व्यक्ति सर्जेराव के खेतों में काम करती है |
यही सर्जेराव धना के पहेलवानी का खर्चा उठाते हैं | इसी सर्जेराव की बेटी है “राजलक्ष्मी” | धना और राजलक्ष्मी की प्रेम -कहानी पूरे गांव में जब प्रचलित हो जाती है तो सर्जेराव अपनी बेटी की शादी धना के साथ करने के लिए राजी हो जाते हैं पर उनकी एक शर्त है धना को पहेलवानी छोड़नी होगी जबकि पहेलवानी ही धना की जिंदगी है |
धना इसके लिए तैयार नहीं | इसीलिए सर्जेराव और पूरे गांववाले धना से नाराज हो जाते है पर धना गांव के नरभक्षी बाघ को मारकर सबका दिल जीत लेता है | इस लड़ाई मे धना बहुत घायल होता है | इसलिए उसे तालुका के अस्पताल में भर्ती किया जाता है | वहां से कुछ अज्ञात लोग उसका अपहरण कर लेते है |
वह लोग एक गुप्त संघटन के सदस्य हैं जो छुपकर देशवासियों की मदद करते हैं और बुरे लोगों के खिलाफ लड़ते हैं | इस संगठन के संस्थापक धना के ही पिताजी थे | इसलिए वह लोग अब धना को ही अपना राजा बनाना चाहते हैं | धना को इसके लिए अपना सर्वस्व त्यागकर इस संघटना का सदस्य बनना होगा | धना इसके लिए तैयार होता है | उसी दरम्यान मरे हुए जंगली बाघ को पकड़ने के लिए आया फॉरेस्ट ऑफिसर सूर्याजी राजलक्ष्मी के प्यार में पड़ जाता है तो दूसरी तरफ बाघ को सिर्फ हाथों से मारनेवाले धनाजी का वह फैन भी हो जाता है |
धनाजी की कुश्ती 6 महीने बाद पंजाब के बिल्ला पहेलवान के साथ होनेवाली है लेकिन धना तो घायल है | इसलिए गांववाले , गांव की प्रतिष्ठा बचाने के लिए सूर्याजी को दंगल के लिए तैयार करते हैं क्योंकि सूर्याजी भी पहले अव्वल नंबर के पहेलवान रह चुके हैं |
उन्होंने पाँच साल पहले कुछ व्यक्तिगत कारणों से पहलवानी छोड़ दी थी | अब राजलक्ष्मी के रूप में वह फिर से अपना भूतकाल जीना चाहते है | इसलिए उन्होंने राजलक्ष्मी के साथ विवाह करने की बात कही | विवाह के पहले उनकी बिल्ला के साथ कुश्ती है | इसके पहले धना को पता चलता है कि बिल्ला और उसके साथी आतंकवादी है | वह कुछ बखेड़ा करनेवाले हैं | इसीलिए धना और उसके साथी उन लोगों को अगवा कर अपने ठिकाने पर ले जाते हैं |
इधर बिल्ला बने धनाजी के साथ सूर्याजी की कुश्ती होती है | इस दौरान सूर्याजी को कुछ बातों पर संदेह होता है | कोल्हापुर संस्थान का एक हाथी विस्फोट में मर जाता है | अब यह केस सुलझाने के लिए सूर्याजी के ही पास आता है | तब उसे और भी बातों का पता चलता है |
इसी की वजह से वह राजलक्ष्मी की जान बचा पाता है | उसे धना की संघठना के बारे में भी पता चलता है | वह उस संगठन को खत्म करना चाहता है | इसीलिए वह एक हजार हथियारबंद सिपाहियों को लेकर धना के गुप्त ठिकाने की ओर चल पड़ता है |
अब आप पढ़ कर यह जानिए की क्या सूर्याजी , धनाजी की संघठना को खत्म कर पाता है या नहीं ? या फिर धना के ही लोग सूर्याजी को खत्म कर देते हैं | राजलक्ष्मी आखिर किसकी होती है ? क्या वह अपने प्रेम धना के लिए मृत्यु स्वीकार करती है ? पढ़कर जरूर जानिएगा … तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !!