ADVENTURES OF RUSTY BOOK REVIEW HINDI

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एडवेंचर्स ऑफ़ रस्टी
रस्किन बॉन्ड द्वारा लिखित
रिव्यू –
रस्किन बॉन्ड एक इंडो – वेस्टर्न लेखक हैं | Read more उनके पूर्वज ब्रिटिश थे | उनका जन्म सन 1934 में कसौली में हुआ | उनके दादा-दादी देहरादून में रहा करते | उनके दादाजी फॉरेस्ट ऑफिसर थे | उनको अलग-अलग जानवर पालने का बड़ा शौक था | उनके जानवरों के अलग-अलग किस्से हम अपने सारांश में बतानेवाले ही हैं | अभी हम किताब के रिव्यू पर लौट आते हैं |
प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – रस्किन बॉन्ड
हिंदी अनुवाद किया है – ऋषि माथुर इन्होंने
प्रकाशक है – राजपाल एंड संस
पृष्ठ संख्या है – 160
उपलब्ध है – अमेजॉन और किंडल पर
रस्किन के दादाजी को बागबानी का भी बड़ा शौक था | उन्हें प्रकृति से बेहद लगाव था | उनका यह गुण रस्किन में भी आ गया | वे दोनों दादा – पोता जहां तक हो सके अपनी तरफ से प्रकृति को संजोने की कोशिश किया करते | रस्किन के पिताजी वायुसेना में थे | जब रस्किन 4 साल के थे तब उनके माता-पिता का तलाक हो गया |
उनकी माता ने दूसरी शादी कर ली | रस्किन को एक छोटा सौतेला भाई था | जब उनके पिता दिल्ली में सेना के टेंट में रहा करते तब रस्किन भी अपने पिता के साथ वही रहते थे | उन्होंने तब दिल्ली के जंगलो का वर्णन किया है | जहां अब कंक्रीट की इमारतें ही इमारतें है |
दिल्ली के बाद उनके पिता का तबादला कोलकाता में हुआ | जब वे 10 साल के थे तब उनके पिता का निधन हो गया और उनके दादा – दादी का भी ….
अब वे अकेले रह गए थे | कुछ दिन वह अपने सौतेले पिता और माँ के साथ रहे | उसके बाद उनकी जिम्मेदारी उनके अलग-अलग रिश्तेदारों ने निभाई | जब वे थोड़े बड़े हो गए तो वह लंदन चले गए लेकिन लंदन उन्हें रास नहीं आया | भारत में पले – बढ़े रस्किन को भारत देश बहुत याद आ रहा था |
इसलिए वह सब कुछ छोड़कर भारत चले आए | 1955 मे वह भारत देश लौटे | अब यहां आने के बाद ना तो उनके पास कोई नौकरी थी , नहीं तो रहने का कोई ठिकाना…… ऐसे में उनको एक पत्र मिला जो अदालत की तरफ से था | जिसमें लिखा था कि उनके अंकल केन ने उनका मसूरी का छोटा सा बंगला उनके नाम कर दिया | उन्होंने अपने केन अंकल की याद समझकर उस घर को अपना परमनेंट बसेरा बना लिया |
वह अब मसूरी में ही रहते हैं | वह हमेशा से लेखक बनना चाहते थे | उनका यह सपना अब पूरा हो चुका है | वह साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता लेखक है | यह पुरस्कार उनको सन 1993 में मिला | 1999 में पद्मश्री और 2014 में पद्मभूषण उनको प्रदान किया गया | उनका पालन – पोषण देहरादून , नई दिल्ली और शिमला में हुआ | यह तो हो गया उनका छोटा सा परिचय |
आईए , अब देखते हैं , इस किताब का –
सारांश –
प्रस्तुत किताब उनके खुद के अनुभव है जो उन्होंने रस्टी नाम लेकर लिखें | हमें पहले लगता था की डायरी सिर्फ लड़कीयां ही लिखती है लेकिन लड़के भी डायरी लिखते हैं भई…. जिस किताब का आज आप सारांश पढ़ रहे हैं | यह उनके डायरी की ही यादें हैं जो उपन्यास के रूप में उन्होंने लिखी है |
जब उन्हें उपन्यास लिखने का ऑफर मिला तो डायरी के यादों को उपन्यास में तब्दील करने के लिए उन्होंने बीच-बीच में भारत के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन जोड़ा | किताब में कुल 16 अध्याय है जो उनके बचपन से लेकर तो बड़े होने तक का सफर बताते है जिसमें उनके चहेते दादा – दादी , उनके पालतू जानवर , उनके करीबी मित्र , अन्य रिश्तेदार और सबसे चहेते उनके पिता शामिल है |
जितना उनके दादाजी को जानवर पालने का शौक था | उतना ही उनकी दादी को यह नापसंद था | उनके घर आनेवाले रिश्तेदार जानवरों की वजह से जल्दी ही वापस जाया करते | इन बातों के तहत उन्होंने सबसे पहले एक बाघ की बात बताई जो छोटा था तो दूध पीकर गुजारा करता था |
जैसे – जैसे वह बड़ा होता गया | वह उसी आदमी को खाने के लिए दौड़ता जो उसकी देखभाल करता | परिणाम ! उसे सर्कस में दे देना पड़ा | एक अजगर जो रस्किन के दादाजी का पालतू था | उनके साथ रेल सफर में था | रस्किन और उनके दादाजी का खाना वही चट कर गया | समझो … अगर वह टोकरी में से बाहर आ जाता तो ! रेल में सफर कर रहे बाकी यात्रियों की क्या हालत होती ? ऐसा ही वह घर में भी परेशान किया करता | इसका भी परिणाम ! उसे जंगल में छोड़ना पड़ा |
एक छोटी बंदरिया , वह तो इतनी बदमाशी थी की उसके कारण खुद रस्किन और उनके अंकल – आंटी को बहुत परेशानी झेलनी पड़ी पर रस्किन ने इन सारी बातों को इतने मजाकिया अंदाज मे लिखा है की आप हंसी से लोट – पोट हो जाओगे |
उनके दादाजी को प्रकृति से भी बेहद लगाव था | देहरादून के उनके बंगले के आजू – बाजू कितने ही पेड़ – पौधे थे | बारिश के दिनों मे यह दोनों इन पेड़ पौधों की बीजे और कलमे लेकर जंगल में जाते और उनको वहां लगा आते ताकि उनसे और नए जीवन की उत्पत्ति हो सके |
रस्किन देहरादून अपने दादा-दादी के पास छुट्टियां बिताने आते | उनके यहां अब बहुत सारे दोस्त बन गए थे | जिनके साथ वह देहरादून की टेढ़े -मेढ़े रास्तों पर साइकिल चलाने का आनंद लेते | प्राकृतिक तालाब में , रात की चांदनी में नहाने का मजा लेते | कीचड़ में बैठी भैंसे पर सवारी करते | तांगे में सवारी करते क्योंकि एक तांगेवाला उनका बहुत अच्छा दोस्त बन गया था |
वैसे भी तब देहरादून में टैक्सी का चलन आने का ही था | उनकी जिंदगी में आए बहुत से लोगों के साथ वह दोबारा नहीं मिले लेकिन उनके घर का नौकर “प्रेम” इसका अपवाद रहा | “अंतिम संस्कार” शीर्षक के तहत रस्किन ने अपनी व्यथा कही है | जब उनके पिताजी का निधन हुआ था लेकिन जिंदगी आगे बढ़ती रही |
उनका दाखिला शिमला के हॉस्टल में हो गया | वहां के वातावरण से तंग आकर उन्होंने अपने ही एक हॉस्टल के साथी “दलजीत” के साथ भागने का प्लान बनाया | इसमें वह सफल भी हुए लेकिन उनको किस कदर परेशानी उठानी पड़ी ? यह आप किताब में जरूर पढ़िएगा |
इस यात्रा के दौरान वह डाकुओं के चंगुल में भी फँस गए | वह वहां से बाल – बाल बचे | अंततः दोनों अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच चुके लेकिन वह जहाज छूट चुका था जिसमें बैठकर यह दोनों दुनिया घूमनेवाले थे |
खैर… जिंदगी आगे बढ़ती रही | वह एक नामचिन लेखक बन गए | “उमरिया कटती जाए” में उन्होंने अपने बारे में और उनके बीते बचपन की यादों के बारे में सोचा | अब तो उनके नौकर “प्रेम” के बच्चे भी बड़े हो गए थे | वह प्रेम जो उम्र में उनसे भी छोटा था लेकिन इनके जीवनसाथी का अब तक कहीं नामोनिशान ही नहीं था |
30 साल बाद जब लेखक देहरादून का चक्कर लगा रहे थे तब उन्होंने वह तालाब खोजने की कोशिश की जिसमें वे और उनके दोस्त नहाया करते लेकिन वह नहीं मिला | आगे जाकर प्रकृति ने वैसा ही एक और तालाब बनाया था जिसमें छोटे बच्चे खेल रहे थे जैसे रस्किन और उनके दोस्त खेला करते |
आखिर , यह सच है ! वक्त किसी के लिए नहीं रुकता | बताने की जरूरत नहीं | लेखक की किताबें अवॉर्ड विनिंग है | किताबें सचमुच बहुत अच्छी है | बड़ों एवं बच्चों के लिए एक खुशनुमा माहौल बना देती है | दिमाग को तरोताजा कर देती है | प्रकृति को पास से जानने के लिए रस्किन की किताबों को पढ़िएगा जरूर …..
तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !!

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