यह उपन्यास देवकीनंदन खत्री द्वारा १९ वी सदी के शुरुवात में लिखा गया है | यह उपन्यास इतना प्रसिद्ध हुआ की कहते है इस उपन्यास को पढने के लिए बहुत से लोगो ने देवनागिरी सीखी थी | इस उपन्यास पर आधारित चंद्रकांता नाम से दूरदर्शन पर नब्बे के दशक में धारावाहिक भी प्रसारित होता था | जिसका क्रूर सिंग नाम का पात्र अच्छा –खासा प्रचलित हुआ था क्योंकि वह “यक्कू” इस अंदाज में बोला करता था की लोगो को उसका बोलने का अंदाज बहुत पसंद आता था | इस किरदार को अखीलेंद्र मिश्र ने निभाया था | इस किरदार का में असली उपन्यास में ज्यादा रोल नहीं है | सच कहे तो हमें लगता है की चंद्रकांता से “अय्यारी” नाम का शब्द भी कुछ ज्यादा ही प्रसिद्ध हुआ है | इस उपन्यास के अय्यार सूरत बदलने में माहिर होते है इसीलिए शायद अय्यार फिल्म में हीरो को भी सूरत बदलने में माहिर दिखाया है | ऐसे इस उपन्यास में जादू है , तिलिस्म है , एक युवक की बहादुरी है तो उसके प्रेमिका का उसके लिए अथाह प्यार है | इस उपन्यास के लेखक ने कहानी को इस तरह लिखा है की जैसे वह हमारे सामने बैठे हमें यह कहानी सुना रहे हो | आप जब कहानी पढेंगे तो आप को खुद ही अनुभव होगा | लेखक के लिखाण में उर्दू भाषा का टच नजर आता है | हमने आज तक जितने भी चंद्रकांता के धारावाहिक देखे सबमे अलग – अलग कहानी दिखाई गयी पर एक भी चैनल इस धारावाहिक को पूरा नहीं दिखा पाया इसलिए हम लोगो ने सोचा की क्यों न इसका ओरिजनल उपन्यास ही पढ़ा जाये ताकि इसकी असली कहानी लोगो को पता चले तो आइए जानते है इसका सारांश………….
यह नौगढ़ के राजकुमार विरेंद्रसिंग और विजयगढ़ की राजकुमारी चंद्रकांता की प्रेम कहानी है | पहले इन दोनों के पिता मित्र रहते है पर वक्त के साथ उनके बीच में कड़वाहट आ जाती है इसलिए चंद्रकांता और विरेंद्रसिंग एक दुसरे से मिल नहीं पाते | ऐसे में इन दोनों की मदद करने के लिए आगे आते है विरेंद्रसिंग के मित्र तेजसिंग जो की एक अय्यार है | अय्यार लोग सूरत बदलने में माहिर होने के साथ – साथ शातिर , चालाक और ताकतवर होते है | ऐसे ही यह तेजसिंग अपनी तरकीबे लडाके नौगढ़ और विजयगढ़ में मित्रता करवा देते है | उसके बाद खुदको और विरेंद्रसिंग को विजयगढ़ में पहुंचा देते है |चंद्रकांता किताब के चार अध्याय है और हर एक अध्याय में और भी सब – अध्याय जुड़े हुए है |
जैसे की पहले अध्याय में परिचय के साथ २३ बयान लिखे है |
दुसरे में २७ बयान लिखे है |
तीसरे में ३० बयान लिखे है |
चौथे में २३ बयान लिखे है |
अब हम इस किताब की जितनी तारीफ करे उतनी कम है |लेखक ने यहाँ पर बहुत सारे पात्रो को लेकर कहानी गुंथी है फिर भी उन्होंने कहानी में छोटी – छोटी बातो का बहुत ध्यान रखा है | इसीलिए इतने सारे जगह कहानी बिखरी होने के बावजूद भी कहानी सिरे से लेकर अंत तक समझ में आती है | कोई कनफ्यूजन नहीं होता |
चंद्रकांता अध्याय – २, ३, ४ का सारांश
चंद्रकांता के २,३,४ मिलाकर एक ही सारांश बता रहे है |
शिवदत्त , चपला और चंद्रकांता दोनों का अपहरण कर उन दोनों को कही गुफा में रखता है | चपला जो की एक अय्यार है वह चंद्रकांता और खुद को छुडा लेती है पर फिर और एक तिलिस्म में फंस जाती है | अब चंद्रकांता को छुड़ाने के लिए विरेंद्रसिंग को यह तिलिस्म तोडना होगा | जो की वह करते है क्योंकि यह तिलिस्म( जादुई जगह ) इन्ही के नाम पर बंधा रहता है | इस तिलिस्म के टूटते ही चंद्रकांता जिस तिलिस्म में बंद है वह तिलिस्म भी टूट जाता है क्योंकि वह तिलिस्म चंद्रकांता के नाम पर बंधा रहता है | विरेंद्रसिंग , शिवदत्त को हराकर चुनारगढ़ जित लेते है | क्रूर सिंग और उसके दो अय्यार नाजिम और अहेमद दोनों की मौत हो जाती है | चंद्रकांता और विरेंद्रसिंग की शादी हो जाती है | तेजसिंग और चपला की , देवीसिंह और चंपा की शादी हो जाती है | यहाँ तक की कहानी इन अध्यायों में दी गई है | इसके बाद की कहानी चंद्रकांता संतति में बताई गयी है |
चंद्रकांता संतति का कुछ भाग देवकीनंदन खत्री जी के सुपुत्र ने लिखा है क्योंकि खत्रीजी अपने जीवनकाल में इस उपन्यास को पूरा नहीं कर पाए |
तो स्वागत है आपका इस जादू से भरी दुनिया में जहाँ चंद्रकांता , विरेंद्रसिंग और वहां के पात्र आपका इंतज़ार कर रहे है | तो निकल पडीए इस सैर पर |
धन्यवाद !
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