SHREEMAAN YOGI BY RANJEET DESAI BOOK REVIEW AND SUMMARY IN HINDI(श्रीमान योगी)

श्रीमान योगी

रणजीत देसाई द्वारा लिखित

रिव्यु –

   यह बुक उस शूरवीर के बारे मे बताती है जो मराठाओ की आन – बान और शान थे | जो राजा नहीं बल्कि सचमुच प्रजा के राजा थे | इसीलिए जब उन्होंने प्रजा पर अत्याचार होते देखा तो उन्होंने मुग़ल साम्राज्य , आदिलशाही , कुतुबशाही जैसे बड़े शक्तियों के विरुद्ध जाकर अपना स्वराज्य स्थापित करने की हिम्मत दिखाई | इस स्वराज्य में स्त्रियों को आदर की दृष्टी से देखा जाता था | जहाँ सबको अपना धर्मपालन करने की छुट थी | 

     उनकी लड़ाई किसी धर्म से नहीं थी बल्कि बुरी सोच से थी | इसीलिए तो उनके सैन्य में कई मुग़ल सैनिक भी थे | छत्तीस गाँव की जागीर तो उनको उनके पिता द्वारा बचपन में ही मिल गई थी | वे अगर चाहते तो अपना जीवन बड़े आराम और ऐश्वर्य के साथ जी सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया | उनकी प्रजा के दुःख ने उनको ऐसा करने नहीं दिया | स्वराज्य की स्थापना के लिए , पहला गढ़ जितने के साथ ही उन्होंने अपने परिवार की सुरक्षा भी दाव पर लगा दी | प्रस्तुत पुस्तक उनके जीवन वृत्तान्त के बारे में बताती है जिसमे हर छोटी बड़ी घटना शामिल है | 

     इस किताब की मुख्य घटनाये है – स्वराज्य की स्थापना के लिए एक के बाद एक गढ़ जितना , अफजल खान को मारना , शाईस्ताखान की उंगलिया काटकर उसे पुणे से भगाना ,औरगजेब के चंगुल से भाग निकलना | सिर्फ शिवाजी महाराज , औरंगजेब के सेनापति जयसिंह को मात न दे सके | उसी के कारण वह आगरा जा पहुंचे और औरंगजेब के धोके के शिकार बन गए | इस लाजवाब किताब के लेखक है – रणजीत देसाई ( मूल किताब मराठी में )

प्रकाशक – मेहता पब्लिशिंग हाउस ( मराठी किताब के लिए )

राधाकृष्ण प्रकाशन प्रा.लि. ( हिंदी किताब के लिए )

हिंदी अनुवाद – प्रो. वेद्कुमार वेदालंकार

पृष्ठ संख्या – 882

उपलब्ध – किनडल

उनके पराक्रम की गाथा पढ़ते – पढ़ते शरीर साहस से तन जायेगा तो उनके बलिदान से मन रो उठेगा | हम ऐसा नहीं कहेंगे की यह कथानक बहुत अच्छा है | आप को किताब से चिपकाये रखता है | यह इन घटनाओ के लिए बहुत ही छोटा वाक्य होगा क्योंकि यह इस धरती पर प्रत्यक्ष घटित हुई घटनाये है जो पढ़ते – पढ़ते आप को रोमांच से भर देती है | धन्य है वे शिवाजी महाराज और उनके लिए जान की बाजी लगनेवाले मावले और उनके साथी……..

इस किताब में वैसे तो कई प्रसंग है जो आप को किताब छोड़कर कही जाने नहीं देंगे |

अफजल खान को मारने के बाद , जब शिवाजी राजे पन्हालगढ़ में अटक जाते है क्योंकि सिध्दी जौहर ने पन्हालगढ़ को घेरा डाला हुआ था | तब शिवा नाई ,नकली शिवाजी राजे बनकर सिद्धि जौहर को धोका देता है और मारा जाता है | राजे और शिवा नाई का वार्तालाप आप को रुला देगा |

इसके बाद राजे को विशालगढ़ पहुँचना था और सन्देश के तौर पर तोफ दागनी थी | जब तक की राजे गढ़ नहीं पहुँच गए तब तक बाजीप्रभु और उनके साथी १५० मावले घोड़खिंड में मसूद और उसकी विशाल सेना के साथ लड़ते रहे तब तक तोफ की आवाज नहीं आयी | उसके बाद रात भर के थके मांदे मावले मसूद की सेना द्वारा मारे गए पर इसका गम उनमे से किसी को नहीं था क्योंकि उनके राजे गढ़ पहुँच चुके थे | उनका काम पूरा हो गया था | घोड़ खिंड का नाम बाजीप्रभु के बलिदान और शौर्य के कारण ‘पावनखिंड’ हो गया | इसपर अभी मराठी फिल्म भी बन गई है जो जून २०२१ को अमेज़न प्राइम पर उपलब्ध होगी | आप यह फिल्म जरूर देखिएगा ताकि आप , अपने नए पीढ़ी को अपना इतिहास बता सके | उन महान व्यक्तियों के बारे में बता सके जिन्होंने असाधारण काम किये | आइये इसीके साथ देखते है इसका सारांश……..

सारांश –

    जिस तरह भवानी माता शिवाजी महाराज की मदद किया करती उससे लगता है की उन्होंने ही राजे को इस धरती पर स्वराज्य स्थापित करने के लिए भेजा होगा क्योंकि

स्वराज्य के लिए पहला गढ़ जितने के बाद ही उनको धन की आवश्यकता थी तो उन्हें तोरणा दुर्ग में मंदिर बनाते समय की गई खुदाई में सोने की मोहरों से भरे घड़े मिले | इससे

उनका कुछ दिन के लिए काम चल गया | बाद में तो उनको किले जितने के बाद धन मिलता गया और स्वराज्य बढ़ता गया | वह हर काम के पहले देवी माँ और उनकी माता

जिजाबाई इनका आशीर्वाद लिया करते | ऐसा नहीं की उनको हमेशा इमानदार लोग ही मिले , कुछ धोका करनेवाले भी थे | बाद में उन्होंने उन धोकेबाजो को अच्छा सबक सिखाया |

उनकी बुद्धि हमेशा सजग रहती थी | जिसकी वजह से वह हमेशा शक्ति के बजाय युक्ति से काम लेते थे | प्रस्तुत पुस्तक उनके जन्म से पहले की घटनाओ से लेकर तो उनके बेटे

संभाजी को साथ में लेकर दिल्ली से मुगलों की कैद से आझाद होने की कहानी बयां करती है | वह एक अच्छे योद्धा होने के साथ साथ एक धार्मिक व्यक्ति भी थे | प्रस्तुत पुस्तक में

लेखक ने उनका परिचय एक योगी के रूप में करवाया है जो की किसी भी युद्ध या मोहिम के बाद किसी भी तरह की विलासिता या आनंद में डूबने के बजाय जैसा की प्रायः बहुत

सारे राजा किया करते | राजे अपने स्वराज्य के राज्यकारभार और देखरेख में लग जाया करते | जो अपने कर्म को ज्यादा महत्व देते थे | वह एक कर्मयोगी थे | अगर आप किताब

को ध्यान से पढोगे तो आप अंदाजा लगा सकते हो की उनके विश्राम के दिन नगण्य थे | वह हमेशा ही किसी न किसी दौरे पर रहा करते | किसी न किसी मोहिम की योजना तैयार

करने में ही लगे रहते |

राजे का जन्म पुणे के शिवनेरी किले में हुआ | शिवाई देवी के नाम के ऊपर से उनका नाम शिवाजी रखा गया | उनकी आठ शादिया हुई थी लेकिन उनकी

जीवनसंगिनी हमेशा उनकी पहली पत्नी सई ही रही | सई से उनको एक बेटी सखुबाई और एक बेटा संभाजी थे | उनके बड़े भाई का नाम भी संभाजी ही था | उनके पिता बंगलौर के

सूबेदार थे | वे वाही उनकी दूसरी पत्नी तुकाबाई के साथ रहा करते | राजे के पिता शाहाजी महाराज इन्होने उनके लिए सारे इंतजाम करवा दिए थे | उन्होंने दादोजी कोंडदेव के साथ

अन्य लोग भी उनकी देखभाल के लिए भेज दिए थे | राजे जब छोटे थे तो उनको पुणे की जागीर मिली थी | तब पुणे पूरी तरह उजडी हुई जगह थी | छोटे राजे , जिजामाता और

बाकि सारे लोगो ने मिलकर पुणे को फिर से बसाया | वहां महल , कोठिया बनवाई , मंदिर बनवाये , घर बनवाये , बाग – बगीचे लगवाये | पुणे में ही लाल महल बनवाकर राजे वही

रहने लगे | शिवनेरी से लाल महल , लाल महल से पुरंन्दर गढ़ , पुरंदर गढ़ से राजगढ़ ऐसे उनके रहने की जगह बदलती गई | राजगढ़ उनके राज्य का केंद्र था जहाँ उन्होंने अपने

जीवन के छब्बीस साल बिताये | पुणे के लाल महल में जब शाइस्ता खान रहने लगा तो राजे ने लाल महल पर रातोरात हमला करके शाइस्ता खान की उंगलिया काट दी जिससे वह

डरकर लाल महल और पुणे छोड़कर भाग गया | इस मोहिम के लिए राजे ने बहुत ही अच्छी प्लानिंग की थी | वह आप जरूर पढ़े | ऐसे ही बहुत सारी सेना साथ में लेकर आनेवाले

अफजल खान को भी उन्होंने बहुत अच्छी प्लानिंग बनाकर हराया | यह भी आप जरूर – जरूर पढ़े | वह संतो का बहुत आदर करते थे | संत तुकाराम महाराज इन्होने तो उन्हें स्वयं

समाधी लेने से पहले आशीर्वाद दिया था |

इतना सबकुछ होने के बाद भी मुग़ल सम्राट औरंगजेब के सेनापति मिर्जाराजा जयसिंह ने उन्हें चारो तरफ से दबोच लिया | राजे के काल में ही अंग्रेज भारत आ चुके थे

| ताज महल भी नया नया ही बन चूका था | आगरा में रहते हुए खुद शिवाजी महाराज उसे देखने के लिए गए थे | जयसिह के चंगुल से बचने के लिए राजे बहुत युक्तियाँ लगाते रहे

लेकिन विफल ही रहे | जब से राजे मिर्जा राजा से मिले उन्हें अपमान का घूंट ही पिना पड़ा | अपनी संपत्ति और राज्य के साथ – साथ राजे को अपने बेटे संभाजी को भी राजनीति

का मोहरा बनाना पड़ा | यह सब करते समय उनका मन अती……. पीड़ा से भर उठा | मिर्जा राजा के ही चक्कर में राजे आगरा जा पहुंचे | वह क्यों और किसलिए यह आप किताब

में ही पढ़िए | यहाँ औरंगजेब में उन्हें कैद कर लिया और मारने का प्लान बनाया लेकिन अपनी माँ , देवी माँ , अपने पुरानो की कथाओ पर , संतो की बातो पर विश्वास कर के

उन्होंने हिम्मत बटोरकर युक्ति सोची , उसपर अमल किया और वे कैद से भागने में सफल हो गए | तो इसी वृत्तान्त के साथ यह किताब यहाँ समाप्त होती है | किताब के बारे में

हमें कुछ भी बताने की जरुरत नहीं | यह पहले से ही दिग्गज किताबो की श्रेणी में शामिल है | छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में जानने के लिए यह किताब एक अच्छा जरिया है |

किताब जरूर पढ़िए……..

धन्यवाद !!

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