MAHARANA SANGA BOOK REVIEW SUMMARY

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मेवाड़ केसरी
महाराणा साँगा
एम. आय. राजस्वी द्वारा लिखित
रिव्यू –
राजपूताना की केंद्रीय शक्ति थी “मेवाड़” | इसी मेवाड़ के महाराज थे “महाराणा साँगा” | इनका असल नाम “संग्राम सिंह’ था | लोग उन्हें प्यार से “साँगा” कहते थे | राजपूताने में बहुत से महान वीर हो गए जिनकी गाथाओं से इतिहास सराबोर है | इसीलिए राजपूताने की भव्यता भी बहुत बड़ी है |
यह धरती मरुस्थल है जहां हमेशा पानी की किल्लत रही है लेकिन सत्ता के लिए किए गए षड्यंत्र , अपनी आन – बान , कभी-कभी झूठी शान के लिए भी खून की नदियां खूब बही है |
जब कोई राजपूत केसरिया पग पहनकर रणभूमि में उतरता था तो उसकी वीर पत्नी जौहर कर लेती थी | हालांकि , इनमें आपसी झगड़े , मन – मुटाव खूब रहे | इसके बावजूद बहुत सारे राजपूत राष्ट्रीय भावना के तहत देश की स्वतंत्रता के लिए शहीद हुए |
उन्होंने विदेशी आक्रमणकारियों से अपने देश की रक्षा करने के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए | इस कड़ी में मेवाड़ के राणा बप्पा रावल और उनकी पीढ़ियाँ अग्रगनी रही है | इसी राजवंश के महाराणा साँगा और महाराणा प्रताप अपनी वीरता के लिए इतिहास में प्रसिद्ध है | राजपूताने में बहुत से वीर और वीरांगनाए हुई |
इनका इतिहास बहुत लंबा है | इसीलिए हमें और अधिक किताबें पढ़नी होगी और उनके बारे में ज्यादा जानना होगा | अपने इतिहास और वीरों के बारे में जानने के इस सफर में बने रहिए “सारांश बुक ब्लॉग” के साथ | महाराणा साँगा वैसे तो मेवाड़ के सिंहासन के अधिकारी नहीं थे क्योंकि वह अपने पिता की दूसरी संतान थे जैसा कि हिंदू राजाओं में परंपरा रही थी |
उनका ज्येष्ठ पुत्र ही उनका वारिस होता था | इसी नाते महाराणा साँगा के बड़े भाई “पृथ्वीराज सिंह” ही मेवाड़ के वारिस थे पर उनके काका सूरजमल ने उनके मन में अपने सगे भाई साँगा के विरुद्ध इतना जहर भर दिया कि वह अपने भाई के ही रक्त के प्यासे हो गए |
पर महाराणा साँगा के पवित्र मन का उनको पता कैसे लगे ? इसके लिए उन्हे साँगा पर विश्वास करना पड़ता जो उन्होंने कभी नहीं किया | पृथ्वीराज और सूरजमल के षड्यंत्र से महाराणा सांगा कैसे बचे ? भाग्य के चलते वह मेवाड़ के सम्राट कैसे बने ? और राज परिवारों में सत्ता के लिए कितने षड्यंत्र रचे जाते हैं ? इसी पृष्ठभूमि पर आधारित यह कथानक है |
आशा है लेखक का यह प्रयास सफल हो ! उन्होंने इतिहास की घटनाओं को उपन्यास के रूप में लिखकर बहुत ही अच्छा किया | इस तरह घटनाए याद रखने में आसानी होती है | उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति के भावनाओं के सूक्ष्मता से दर्शन कराए हैं |
कहानी बहुत स्पीड से आगे बढ़ती है | हालांकि , किताब का मुखपृष्ठ देखकर किताब बोरियत भरी लग सकती है | पर नहीं , इतनी अच्छी किताब के लिए लेखक का बहुत-बहुत धन्यवाद | प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – एम. आय. राजस्वी
प्रकाशक है – प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ संख्या – 152
उपलब्ध है – अमेजॉन और किंडल पर
इसी के साथ जानते हैं | इस किताब का –
सारांश –
यह घटना है सन 1468 के बाद कि जब मेवाड़ के राजा राणा रायमल थे | इसके पहले सन 1468 में रायमल के भाई उदयसिंह ने षड्यन्त्र करके अपने पिता राणा कुंभा की हत्या कर दी |
उदयसिंह अपने इस कृत्य के लिए इतिहास में कुप्रसिद्ध है | मेवाड़ की जनता को जब इसके बारे में पता चला तो उन्होंने उदयसिंह को सिंहासन से उतारकर “रायमल” को राणा बनाया | उदयसिंह के षडयंत्रों के चलते रायमल को कुछ वक्त अपने ससुराल “ईडर” में भी बिताना पड़ा था जो उनकी पहली पत्नी रतनकुँवर का मायका था | रतनकुंवर ही उनकी पटरानी भी थी |
इन्हीं के पुत्र थे “पृथ्वीराज और साँगा” | दूसरी रानी के पुत्र थे “जयमल” | राजा रायमल हालांकि अपने सारे बच्चों को एक जैसा प्यार करते थे पर फिर भी इन तीनों में आपसी दुश्मनी घर कर गई | यह सब किया उदयसिंह के बेटे “सूरजमल” ने क्योंकि वह भी मेवाड़ का सिंहासन हथियाना चाहता था |
इसलिए वह मेवाड़ के उत्तराधिकारियों का खात्मा करना चाहता था | उसकी जुबान मीठी और मन में कपट वास करता था | यह अब मेवाड़ में शरणागत बनकर रह रहा था क्योंकि इसके पिता की बिजली गिरने से मौत हो गई थी |
महाराज रायमल ने गयासुद्दीन खिलजी को बहुत बुरी तरह परास्त कर दिया | उनके पराक्रम की धूम चारों तरफ थी | उनके तीनों बेटे भी अब किशोर हो चले थे | तीनों में आपसी प्रेम भी बहुत था | एक दिन उन्होंने उनके राज्य में उत्पात करनेवाले लुटेरों का सफाया किया |
इस विजय पर राज्य में बड़ा जश्न मनाया गया | पृथ्वीराज और साँगा की सब लोक तारीफ कर रहे थे पर जयमल की तरफ किसी का ध्यान नहीं था | सूरजमल यह मौका कैसे छोड़ देता ? उसने जयमल को सिंहासन का लालच देकर पृथ्वीराज और साँगा के खिलाफ भड़काया |
जयमल ने तारीफों के पुल बांधकर पृथ्वीराज के मन में साँगा के लिए क्रोध उत्पन्न किया | वैसे तो साँगा ही कम उम्र से सबसे ज्यादा पराक्रमी थे और प्रजावत्सल भी | वह माता-पिता के साथ प्रजा के भी लाडले थे | इससे पृथ्वीराज को यह भय सताने लगा कि कहीं उसके पिताजी साँगा को ही राजा न बना दे !
इस कारण पृथ्वीराज साँगा के खून का प्यासा हो गया | अब इस जलन की आग में घी डालने का काम सूरजमल ने किया | उसने अब तक जयमल को भी अपने साथ मिला लिया था | एक दिन पृथ्वीराज शिकार के बहाने साँगा को जंगल ले गया | वहाँ उसने उन पर प्राण घातक हमला किया |
इसमें साँगा बाल – बाल बचे पर उनकी एक आंख घायल हो गई | वह उसी अवस्था में सेवन्तरी गांव में स्थित रूप नारायण के मंदिर में भागते हुए गए | वहां मारवाड़ के राठौड़ बिंदा जैतमलोट आए हुए थे | उन्होंने उनका बचाव किया पर खुद सपरिवार शहीद हो गए |
महाराणा साँगा बहुत दिनों तक मारवाड़ में रहे | पूरी तरह ठीक होने के बाद वह मारवाड़ के ही एक गांव में एक ग्वाले के यहां नौकरी करने लगे | ग्वाले की ईर्ष्या के कारण उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी | उन्होंने श्रीनगर में सैनिक की नौकरी ले ली क्योंकि अभी वह मेवाड़ वापस नहीं जाना चाहते थे |
वह षड्यंत्रो से दूर एक सादा – सरल जीवन जीना चाहते थे | उन्हें सिंहासन का कोई लालच न था | उन्होंने अपने पराक्रम से अजमेर के करीब एक छोटी सी रियासत श्रीनगर के राव कर्मचंद का मन जीत लिया | राव कर्मचंद ने भी उन्हें अपार स्नेह दिया |
उनकी असलियत जानने के बाद उन्होंने अपने बेटी की शादी भी उनके साथ कर दी | अब तक दो गुप्तचरों को उन्होंने मेवाड़ की खबर लाने के लिए नियुक्त किया था | उन गुप्तचरों द्वारा उन्हें पता चला कि सूरजमल के कहने पर जयमल ने अपराध स्वीकार कर के सारा इल्जाम पृथ्वीराज पर डाला था |
राणा साँगा को जंगली जानवर उठाकर ले गया | ऐसी अफवाह मेवाड़ में फैलाई गई लेकिन सूरजमल जानता था कि साँगा जिंदा है | पृथ्वीराज को देश निकाला दिया गया था | अब वह जान गया था कि इस षड्यंत्र के पीछे सूरजमल है |
पृथ्वीराज और राणा साँगा दोनों सगे भाई थे | उनमें आपस में बैर था पर दोनों राष्ट्रद्रोही नहीं थे | अपना राज्य छोड़ने पर भी दोनों दुश्मनों से नहीं जा मिले बल्कि पृथ्वीराज ने तो मेवाड़ के ही हित में बहुत से कार्य किए जिससे मेवाड़ की कीर्ति बढ़ने लगी |
अब पृथ्वीराज और साँगा के न रहने से जयमल सिंहासन का वारिस बन गया | अब सूरजमल ने उसे अपने रास्ते से हटाने के लिए जाल फैलाया | उसने जयमल को राजकुमारी “तारा” के सपने दिखाए | उसने जयमल को तारा से प्रेम निवेदन करने उस उद्यान में भेजा जिसमें परपुरुष का प्रवेश निषिद्ध था |
जब इसकी खबर तारा के पिता को मिली तो वह बहुत क्रोधित हुए | उस उद्यान के मुख्य प्रहरी ने जयमल को तुरंत ही मौत के घाट उतार दिया | सूरजमल यही तो चाहता था | उसने एक-एक करके तीनों युवा शक्ति को सिंहासन से दूर कर दिया था | इस षड्यंत्र में सबसे बड़ी बात यह थी की जयमल के उद्यान में जाने की खबर सूरजमल के गुप्तचर ने ही राजा तक याने के तारा के पिता तक पहुंचाई थी |
जयमल को मारनेवाला उद्यान प्रहरी प्रमुख भी सूरजमल का ही मित्र था | जब यह खबर पृथ्वीराज को मिली तो उसने इसके पीछे के षड्यंत्र को भाँप लिया | वह तुरंत तारा के पिता से मिला | तारा की विवाह के लिए शर्त थी कि जो कोई भी उसके पिता के राज्य के एक भाग “टोड़ा” को अफगानो से मुक्त कराएगा | वह उसीसे विवाह करेगी |
तारा एक अनिंद्य सुंदरी थी | अब जयमल के बदले पृथ्वीराज ने यह काम कर दिखाया तो तारा ने पृथ्वीराज को अपना पति स्वीकार किया | तारा के पिता की मध्यस्थिति से महाराज रायमल ने पृथ्वीराज को माफ कर दिया | तारा और पृथ्वीराज का विवाह हो गया | पृथ्वीराज मेवाड़ के शासक बने | उनके नेतृत्व मे मेवाड तरक्की करता रहा | इस वीर को उसी के बहेनोई ने जहर देकर मार डाला | इसके पहले भी सूरजमल की पत्नी ने उन्हे विष देकर मारने का प्रयत्न किया था फिर भी क्या उन्होंने अपनी सुरक्षा का इंतजाम करना ठीक न समझा होगा ? पृथ्वीराज के साथ रानी तारा भी सती हो गई |
अब मेवाड़ को राणा साँगा की जरूरत थी | चारणी माता की भविष्यवाणी सच होनेवाली थी | राणा साँगा मेवाड़ पहुंचे | उन्होंने राणा पद संभाला | उनके परचम के तले मेवाड़ ने खूब तरक्की की | उन्होंने राजपूताने को संगठित किया |
मेवाड़ की सेना राजपूताने में सबसे शक्तिशाली सेना थी | उन्होंने राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए अफ़गानों से युद्ध किया | अब तक मुगल वंशीय बाबर का बोलबाला हो रहा था | वह बहुत ही बड़ी शक्ति बनकर उभर रहा था | उसके बढ़ते कदम को रोकने के लिए अफ़गानो ने राणा साँगा के साथ संधि कर ली |
उन्होंने यह संधि स्वीकार कर ली पर उनके ही कुछ धर्मांध सरदारों को उनकी यह बात पसंद नहीं आई | उन्होंने उन्हें जहर देकर मार डाला | जब वह संगठित सेना लेकर बाबर से लड़ने जा रहे थे | जिस किसी विश्वासघाती ने उन्हें जहर देकर मारा | उसने न सिर्फ महाराणा सांगा के साथ विश्वासघात किया बल्कि राष्ट्र के साथ भी धोखा किया |
अगर वह जिंदा होते तो बाबर अपने पैर इस भूमि पर कभी नहीं गड़ा पाता | नाही तो मुगलसत्ता यहाँ स्थापित होती | सिर्फ एक आंख और एक हाथ के साथ उन्होंने इतना पराक्रम किया | वह लंगड़ा कर भी चलते थे क्योंकि इसके पहले के युद्ध में उनका एक हाथ जाता रहा और एक पैर भी घायल हो गया |
उन्हें पता था कि जहर देकर लोग विश्वासघात करते हैं जैसे कि उनके बड़े भाई के साथ किया गया फिर भी अपने लोगों पर अटूट विश्वास उन्हें ले डूबा | विश्वासघातियों की वजह से देश ने एक महान हीरे को खोया | धोखा देनेवाला कोई पराया नहीं | अपना ही था | इतिहास हमें बहुत कुछ सीखाता है | आशा है लोग इससे अच्छी शिक्षा लेंगे |
क्या महाराणा सांगा के न रहने से इन धर्मांध व्यक्तियों ने मेवाड़ को बचाया या रण छोड़कर भाग गए | मेवाड़ की रक्षा कैसे हुई ? महान प्रतापी राणा साँगा के पराक्रम और वीरता को जानने के लिए पढिए – मेवाड़ केसरी महाराणा साँगा |
तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते है और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !!

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