LAL QILA BOOK REVIEW SUMMARY IN HINDI

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लाल किला
आचार्य चतुरसेन द्वारा लिखित
रिव्यू –
लाल किला साहित्यकार आचार्य चतुरसेन की कालजयी रचना है | प्रस्तुत किताब में उन्होंने लाल किले में रहकर संपूर्ण हिंदुस्तान पर शासन करनेवाले मुगल बादशाहों की रोचक और मार्मिक दास्तान को बड़ी ही बारीकी और सजीवता के साथ पाठकों के सामने रखा है | लाल किले को “रेड फोर्ट ” के नाम से भी जाना जाता है | यह पुरानी दिल्ली में स्थित एक ऐतिहासिक इमारत है |
यूनेस्को द्वारा इसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया गया है | यह लाल पत्थरों से बना हुआ है जिसमें इंडियन और पर्शियन कला की झलक देखने को मिलती है जिसे देखने बहुत से सैलानी देश – विदेश से यहां आते हैं |
लाल किले को बनाने की शुरुआत 12 मई 1638 को हुई | इसकी डिजाइन उस्ताद अहमद लाहौरी ने बनाई | इसी ने ताजमहल की भी डिजाइन बनाई थी | बाद मे मुगल बादशाह ने अपनी राजधानी आगरा से दिल्ली शिफ्ट करवा ली क्योंकि अभी बादशाह यही से अपना राज्य कारभार देखनेवाला था |
उसके काल में यह सत्ता का केंद्र बन गया | सन 1739 में लाल किले पर नादिरशाह ने आक्रमण किया | उसने यहां की बहुत सारी मूल्यवान वस्तुएं लूट ली | ब्रिटिश राज के दौरान घटित हुई 1857 की क्रांति का समापन भी लाल किले में हुआ क्योंकि क्रांतिकारियों ने अपना नेता इसमे रहनेवाले आखिरी मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर को मान लिया था |
15 अगस्त 1947 को जब देश स्वतंत्र हुआ तो देश के पहले प्रधानमंत्री माननीय श्री पंडित जवाहरलाल नेहरू इन्होंने भारतीय तिरंगे को लाल किले के लाहोरी गेट पर फहराया |
लाल किला दिल्ली में स्थित एक ऐतिहासिक इमारत है जिसने इतिहास में घटित बहुत सारी घटनाओं को अपनी आंखों से देखा है | इसे मुगल बादशाह शाहजहां ने बनवाया था क्योंकि उसे इमारतें बनाने का शौक था | यहाँ मुगल बादशाह बड़ी शानो – शौकत के साथ रहता था | जिस लाल किले में उनके हुकुम के बगैर एक पत्ता भी नहीं हिलता था | उसी लाल किले में उसे एक मुजरिम के रूप मे पेश किया गया |
उन्हे उनके ही घर से बाहर निकाला गया | अंग्रेजों की वजह से शाही परिवार को बड़ी त्रासदी झेलनी पड़ी | उनकी अब की और तब की स्थिति में अंतर बताने के लिए ही शायद लेखक ने लाल किले में मनाई गई आखिरी ईद का वर्णन किया है और बाद में शाही परिवार के कत्ल होने के बाद की ईद का …
शाही परिवार के साथ-साथ दिल्ली इतनी बर्बाद हो गई थी कि सुख , खुशी , त्यौहार क्या होते हैं ? यह शायद वह भूल ही गई थी | वहां हुए कत्लेआम की घटना पढ़कर आप सुन्न हो जाओगे | इतने लोग मारे गए जिनकी गिनती नहीं थी | पूरी दिल्ली लाशों से पटी पड़ी थी |
ऐसे में दूसरी ईद आई | शाही परिवार की एक बेटी ने अपने बेटे के लिए एक सामान्य परिवार से उसके बेटे के पुराने कपड़े मांगे | इस के साथ वह बेहोश होकर गिर पड़ी | होना ही था क्योंकि वह अपने अच्छे दिनों में ऐसे कितनों को नए कपड़े दान देती होंगी | भाग्य की ऐसी विटम्बना को शायद वह सह नहीं पाई |
लाल किला मुगल सत्ता और राजनीति का प्रतीक था | मुगलों की सत्ता भारत पर “बाबर” के आक्रमण के साथ ही शुरू हो गई और आखिर तक आखिरी मुगल बादशाह “बहादुर जफर” तक चली | मुगल बादशाह का वंश तब तक मौजूद रहा जब तक आखिरी मुगल बादशाह को रंगून यानी अब का “यांगोन” नहीं भेज दिया गया |
बाबर के बाद उसके वंशज एक के बाद एक तख्त पर बैठते गए | अब उनका स्वभाव कैसा था ? उस जमाने के उनके पर्सनल और प्रोफेशनल किस्से | यहां लेखक ने पूरे विस्तार के साथ बताए है |
उम्मीद है आपको यह किताब पसंद आए | चलिए तो , सारांश में देखते हैं इन बादशाहों के जीवन को पास से … प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – आचार्य चतुरसेन
प्रकाशक है – बुक कैफे
पृष्ठ संख्या है – 143
उपलब्ध है – अमेजॉन और किंडल पर
सारांश –
बाबर ने जब भारत में मुगल सत्ता स्थापित की तब चित्तौड़ की गद्दी पर राणा सांगा विराजमान थे | उन्होंने दिल्लीपति पठानों को 18 बार हराया था | बाबर को सत्ता स्थापित करने में “रेमिदास” नाम के वजीर का बहुत बड़ा हाथ था | सरदार हेमू के दिल्ली पर अधिकार करने के बाद हुमायूं काबूल भाग गया | इसके पहले उसके बेटे अकबर का जन्म अमरकोट के किले में हुआ | उसके काबूल भागने के बाद दिल्लीपति शेरशाह सूरी का निधन हुआ तो दिल्ली के ही एक फकीर शाहदोस्त ने उसे जूता और चाबुक भेजा |
इस रहस्य को समझ कर उसने दिल्ली पर अधिकार कर लिया | उसके बाद उसका बेटा अकबर गद्दी पर आया | वह 13 साल का था तब उसका संरक्षक बैरम खां जो उसके पिता हुमायूं का मित्र भी था | ने सरदार हेमू और सिकंदर सूरी को हराया | इसके दो साल बाद अकबर ने राज्य संभाला और बैरम खां को मक्का भेज दिया |
मेवाड़ के प्रत्येक राणा ने मुग़लों को इस धरती पर विदेशी ही माना और वह आखिर पर्यंत अपने राष्ट्र को स्वतंत्र रखने के लिए लड़ते रहे | अकबर और सलीम के रिश्ते में खटास थी | सलीम अपने पिता से हमेशा नाराज रहता था | इसलिए उसने अपने पिता से बगावत की | तब अकबर ने सलीम के बड़े बेटे खुसरो को बादशाह बनाना चाहा |
राजा मानसिंह खुसरो का सगा मामा था | मानसिंह ने अपना समर्थन खुसरो को दिया | इस बात के लिए अकबर ने मानसिंग को सजा देनी चाही |
मानसिंग को सजा देने के लिए अकबर ने उसे दरबार में बुलाकर अपने पानदान की एक गोली खाने के लिए कहाँ और दूसरी गोली खुद खाई पर इस बार वह गलती से जहर की गोली खुद खा गया जिससे उसकी मौत हो गई |
मरने से पहले उसने सलीम याने के जहांगीर को बादशाह बनाया | अकबर ने राजपूतों से रिश्ता तो जोड़ा पर उन्हें बराबरी का दर्जा न दे पाया |
इसके बहुत सारे किस्से आप को आनेवाली इतिहासों की किताबों मे पढ़ने को मिलेंगे जिनके रिव्यू हम हमारी वेबसाईट “सारांश बुक ब्लॉग” पर देने वाले है | इसीलिए जुड़े रहिए “सारांश बुक ब्लॉग” के साथ | अब विषय पर लौट आते है |
गद्दारी तो उसके बेटे ने की पर उसने उसको माफ कर दिया | खुसरो के बादशाह बनने के लिए समर्थन तो उसके ससुर ने भी दिया पर उसने उसे जान से नहीं मारना चाहा | पर यही समर्थन मानसिंह ने दिया तो उसे जहर की गोली देकर मारना चाहा जबकि मानसिंह ने तो वही किया जो एक मामा को करना चाहिए था |
पर कहते हैं ना ! भगवान के घर देर है | अंधेर नहीं ! उन्होंने मानसिंह के साथ न्याय किया | अकबर के बाद सलीम तख्त पर आया | वह कच्छवाहा राजपूतो को बिल्कुल पसंद नहीं करता था | उसने एक दिन शराब के नशे में अपनी कच्छवाहा राजपूत पत्नी को कोड़े से पीट-पीटकर मार डाला जो मानसिंह की बहन थी |
वह अव्वल नंबर का शराबी था | वह नूरजहां से बेहद प्यार करता था | उसका असल नाम “मेहरुनिसा” था | वह बहुत ही खूबसूरत थी | इसके साथ-साथ वह बाकी कलाओं में भी निपुण थी | वह अपने आसपास के माहौल को अपनी कला – कुसर से खूबसूरत बना देती थी | इत्र और गहनों का व्यापार उसके काल में अपने चरम सीमा पर था |
जहांगीर ने उससे शादी करने के लिए उसके पति को मरवा डाला था | उसका जन्म रेगिस्तान में हुआ था | अपनी गरीबी के कारण उसके पिता ने उसे रेगिस्तान में ही छोड़ दिया था | बाद में पछता कर उठा भी लिया था | उन्हें क्या पता था ? यह लड़की एक दिन हिंदुस्तान की रानी बनेगी | उसने जहांगीर को पूरी तरह अपने बस में कर रखा था |
जहांगीर बुरी आदतों के साथ – साथ खुश – मिजाज भी था | अब वह बादशाह था तो अपनी लहर में कुछ भी कर गुजरता था जिससे साधारण लोगों को बहुत तकलीफ होती थी | जहांगीर अपने हाकिम से बहुत चिढ़ता था क्योंकि वह कट्टर और धर्मांध व्यक्ति था | एक दिन वह दरबार में तब आया जब जहांगीर शराब के नशे मे था |
उसे देखते ही जहांगीर ने अपना तीर कमान मंगवाया ताकि वह उस हाकीम को मार सके | नूरजहां के कहने पर उसे असली तीर कमान की जगह बेंत के बने तीर – कमान दिए गए | जहांगीर उसे तीर मारते जाता था | वह झुक – झुक कर सलाम करते जाता था | आखिर में नूरजहां के कहने पर उसे कहा गया कि अभागे लेट जा | तब हकीम बेचारा लेट गया | जहांगीर समझा वह मर गया | इसके बाद जहांगीर बोला अच्छा हुआ | वह मर गया | इसने भी बहुतों की जान ली है |
जहांगीर जब अपने राजधानी में घूमने निकलता तो सारा सरंजाम साथ में लेकर निकलता था | कुछ हाथियों पर रोटियां पकते रहती तो किसी पर नॉनवेज बनते रहता | शराब और फल तो साथ में रहते ही थे | उसके लवाजमे के साथ राजपूत सरदार भी चलते रहते थे |
जब वह उनको शोरबा ( एक तरह की रस्सेदार सब्जी )खाने को देता तो उन्हें स्वीकार करना ही पड़ता | चलते घोड़े पर एक प्लेट में रसेदार सब्जी खाने में उनकी बहुत भद होती | कपडो पर दाग पड़ जाते | ऊपर से बादशाह को घोड़े पर खड़े होकर कोर्निश भी करनी पड़ती |
राजपूत सरदारों की यह फजीहत देखकर उसे बड़ा मजा आता | वह गर्मियों में कश्मीर चला जाता | सर्दियों में लाहौर लौट आता | एक बार जब वह कश्मीर से वापस आ रहा था तो रास्ते में ही उसका स्वर्गवास हुआ |
जहांगीर के बाद उसका दूसरा बेटा खुर्रम बादशाह बना | उसने शाहजहां नाम धारण किया | इसके बड़े भाई खुसरो को अकबर ने बादशाह बनाना चाहा था | इसलिए जहांगीर अपने बड़े बेटे खुसरो से नफरत करता था | खुसरो ने अपने पिता की जगह बादशाह बनने के लिए प्रयत्न किए थे | इसलिए अकबर भी इससे नाराज था |
जहांगीर ने अपने बेटे खुर्रम को बादशाह घोषित किया तो खुसरो और खुर्रम में विद्रोह हो गया | जहांगीर ने गद्दी पर बैठते ही अपने ही बेटे खुसरो को दंड दिया | उसे सारे शहर में अपमानजनक घूमाने के बाद कैद में डाल दिया और उसके होंठ सी दिए |
अब शाहजहान कैसे तख्त तक पहुंचा ” इसकी कहानी हमारे “सारांश बुक ब्लॉग” पर उपलब्ध बहुत सारी किताबों के रिव्यू मे है | आप हिस्ट्री कैटेगरी चेक कर सकते हैं |
शाहजहाँ के हरम में दो हजार से भी ज्यादा स्त्रिया थी | एक – एक बेगम हजारो रुपये रोज खर्च करती थी | बेगम महल का वार्षिक खर्च एक करोड रुपए था फिर भी इसमें वह खर्चे सम्मिलित नहीं थे जो वक्त – वक्त पर बेगमों और शहजादियो द्वारा दान में दिए जाते थे |
इत्र और सुगंधित द्रव्यों की हरम में सदा ही रेल – चेल रहती थी | पानी में मोतियों का चूरा काम में लाया जाता था | उस हरम के वैभव , ऐश्वर्य और ऐशों – आराम के चर्चे देश-विदेश में प्रचलित हो गए थे | सब तरफ मुगल ऐश्वर्य की धूमधाम थी | ऐसे इस हरम मे हिजड़े और राजपूत सामंत राजा बारी-बारी से पहरा देते थे |
उन शाही महलों के बीच बादशाह का एक खास कमरा था | उसे “खासगाह” कहा जाता था | अब वह कैसा था ? उसके वैभव का वर्णन आप किताब में पढ़ लीजिएगा ताकि आप जान सके की मुगल ऐश्वर्य किस चरम सीमा पर था |
शाहजहां एक स्त्री – लोलुप व्यक्ति था | इसी के चलते उसने कई स्त्रियों की जिंदगी बर्बाद कर दी थी | जिसमें से एक का पती था “शाइस्ता खां ” | इसने आगे चलकर शाहजहां से अपना बदला लिया | इन बुरी आदतों के अलावा वह प्रजा के लिए एक न्याय देनेवाला और राजकाज के मामलों में चाक – चौबंद राजा था |
शाहजहां के बाद उसका तीसरा बेटा “औरंगजेब” तख्त पर आया | इसकी कहानी बहुत से लोग जानते हैं | इसलिए अगले अध्याय की तरफ बढ़ते हैं | औरंगजेब के बाद दिल्ली के तख्त पर कौन-कौन आया ? इसकी कहानी आप “सारांश बुक ब्लॉग ” पर उपलब्ध “सल्तनत- ए – दिल्ली ” इस किताब के रिव्यू में पढ़ सकते है | इस दौरान मराठों का इसमें क्या योगदान रहा ? यह आप किताब में ही पढ़ लीजिएगा |
अगले अध्याय में वीर राजपूत “लक्ष्मणदेव” के बारे में बताया गया है जिन्होंने बैरागी बनकर “माधोदास” नाम धारण कर लिया था | उनके चमत्कारी शक्तियों के कारण वह सिखों के उत्थान के लिए लड़ने लगे | वह बंदा के नाम से प्रसिद्ध हुए | मुगलों ने उन पर अनगिनत अत्याचार कर उन्हें मार डाला |
मुगलों का ऐश्वर्य तब खोखला हुआ जब ईरान के नादिरशाह ने दिल्ली पर आक्रमण किया | उसने दिल्ली में चार दिन तक लगातार कत्लेआम किया | दिल्ली लाशों से पट गई | बूढ़े बादशाह ने अपनी पगड़ी उसके पैरों पर रख दी | बादशाह की दीन दशा देखकर उसने कत्लेआम रोक दिया |
उसने पूरा शाही खजाना लूट लिया | तख्ते – ताऊस ले गया जो 7 करोड़ रुपये का था | इसके साथ ही वह 15 करोड रुपए , 300 हाथी , 10, 000 घोड़े, कई हजार ऊंट और कोहिनूर हीरा अपने साथ ले गया |
इसके बाद दिल्ली ने दुर्रानी का आक्रमण सहा | शाह दुर्रानी के आक्रमण ने महाराष्ट्र में हाहाकार मचा दिया क्योंकि इसमें मराठों की हार हुई थी | इसके बाद दिल्ली के लाल किले पर गुलाम कादिर ने हमला किया | इसे महादजी सिंधिया ने मार डाला | लाल किले की स्त्रियों को बचाया |
अब अंग्रेजों ने बादशाह को सिंधिया की कैद से छुड़वाया और इलाहाबाद लेकर गए | वहां का किला बादशाह को दिया | इसके बदले लॉर्ड क्लाइव ने बंगाल , बिहार , उड़ीसा की दीवानगी बादशाह से ले ली | इसका मतलब अब वह उन क्षेत्रों से लगान वसूल कर सकते थे |
इसके बदले उन्होंने बादशाह को 26 लाख रुपए पेंशन देने का वादा किया पर जैसे ही बादशाह दिल्ली आया | नए गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स ने बादशाह को खिराज भेजना बंद कर दिया | यह कहकर कि वह मराठों से मिल गए हैं |
लॉर्ड लेक ने दिल्ली के सारे अधिकार अपने कब्जे में कर लिए और बादशाह की पेंशन 12 लाख कर दी | अब बादशाह नाम मात्र को रह गया था | बादशाह को कब्जे में करने के लिए दिल्ली में मजबूत सेना रखी गई | पहले अंग्रेज , बादशाह को दिल्ली का बादशाह और कंपनी सरकार का न्यायाधीराज मानते थे | उनके साथ बात करते वक्त , पत्र व्यवहार करते वक्त अदब का पालन किया जाता था |
लेकिन वॉरेन हेस्टिंग्स और लॉर्ड एमहर्स्ट ने सारे कायदे बदल दिए | अब बादशाह तमाम दरबारीयो की नजरो मे तुच्छ हो गया | इसके बाद बहादुर शाह जफर गद्दी पर आए | यह बादशाह खुद एक कवि थे | उनके पास करने को कुछ था ही नहीं तो वह दिनभर शेरो – शायरी किया करते | खाने – पीनेवाले लोगों का उनके पास जमावड़ा लगा रहता था | उनके ही दरबार में प्रसिद्ध शायर जौंक और मिर्ज़ा ग़ालिब भी थे |
ऐसे इनके दिन बीत ही रहे थे कि 1857 का संग्राम खड़ा हुआ | बादशाह ने क्रांतिकारियों का नेतृत्व स्वीकारा | इसकी बहुत भयानक सजा उन्हे और उनके परिवार को मिली | अंग्रेजों ने उनके परिवार को कत्ल कर दिया | उन्हे उनके ही लाल महल से बाहर निकाल दिया | जिस घर में उन्होंने शानो – शौकत के साथ अपनी जिंदगी बिताई थी |
उसी घर में उस पर मुकदमा चलाया गया | अपने ही घर में उसे बहुत अपमान सहना पड़ा | आखिर उसे रंगून याने अभी के यांगोन भेजा गया | वहीं उनका स्वर्गवास हुआ | इसी के साथ मुगलों का अस्तित्व लाल किले से खत्म हुआ |
1857 की क्रांति को दबाने के बाद बर्बाद दिल्ली पीछे रह गई | अब फिर से रमजान का महीना आया पर अब ना तो वह शान थी | नहीं तो वह खुशियां… नहीं तो वह खुशियों से , उपहार से , शानो – शौकत से भरा लाल किला ….
एक जमाने में मुगल सल्तनत अपने ऐश्वर्य की चरम सीमा पर थी पर नाकारा वारिसों के कारण उसका कैसे पतन हुआ ? इसी का लेखा – जोखा लेखक ने प्रस्तुत किताब में दिया है | लाल किले के इतिहास को जानने के लिए पढिए – लाल किला – आचार्य चतुरसेन द्वारा लिखित किताब | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहीए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !!

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