ब्रिटिश शासन में भारत से धन का निष्कासन
आधुनिक भारत का इतिहास – अध्याय 9
डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित
रिव्यू –
प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – डॉ. मोहनलाल गुप्ता
प्रकाशक है – शुभदा प्रकाशन
पृष्ठ संख्या –
उपलब्ध है – अमेजन के किंडल पर ई. बुक के
रूप मे
कहते है की भारत पहले सोने की चिड़िया था | यह सच है | इसका सबूत यहां घूमने आए विदेशी सैलानियों के लेखों से मिलते हैं | ऐसे ही एक फ्रांसीसी यात्री बर्नियर ने भारत की अमीरी के बारे में कहा | उसने लिखा , चारों तरफ से आनेवाला सोना और चांदी यहां जमा होता है | यह मिस्र से भी अमीर देश है | क्या आप ने सोचा की यह सब अमीरी यहीं पर क्यों थी ? अन्य देशों में क्यों नहीं ?
क्योंकि यहां प्राकृतिक संसाधनों की कमी नहीं थी | मौसम अनुकूल था और मेहनत करनेवाले लोग थे | जब ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत पर अधिकार हो गया तो सबसे पहले उन्होंने यहां का धन इंग्लैंड भेजना आरंभ किया | इस बात पर सब से पहले ध्यान खींचा दादाभाई नौरोजी इन्होंने |
भारत में ब्रिटिश आर्थिक नीति और उसके प्रभावों को दर्शाते हुए जॉन सुलीवन लिखता है की उनकी प्रणाली एक से स्पन्ज के रूप में काम करती है जो गंगा नदी के किनारे से प्रत्येक अच्छी वस्तु को लेती है और टेम्स के किनारो पर निचोड़ देती है |
भारत पर सबसे पहले आक्रमण सिकंदर ने किया पर वह यहां से धन नहीं लेकर गया | बाद के आए शक , हूण , कुशाण यहीं पर बस गए | इसीलिए धन बाहर नहीं जा सका | बाद में आए मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भी भारत को लूटा लेकिन ब्रिटिशों की लूट के आगे यह कुछ भी नहीं था |
सन 1765 में ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल की दीवानी मिली | इसके बाद अगले 20 सालों तक उसने पूरे देश को खोखला बना दिया | यहां तक की ज्यादातर आबादी को पेट भर खाना तक नहीं मिलता था | इनके नीतियों का देश के उद्योग धंधों पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ा |
सन 1767 में ब्रिटिश क्राउन ने कंपनी को चार लाख पाउंड प्रतिवर्ष देने के निर्देश दिए | भारत की इकोनॉमी के लगातार गिरते ढांचे के बारे में सबसे पहले दादाभाई नौरोजी , गोविंद रानडे और रमेशचंद्र दत्त इन्होंने बताया |
इनमे सबसे मुख्य मुद्दा यह था कि ब्रिटिश , इंग्लैंड की कंपनियों के लिए जो भी कच्चा माल यहाँ ले जा रहे थे | उसके लिए भारत को कोई भी भुगतान नहीं किया जा रहा था | अलग-अलग अर्थशास्त्रियों के अनुसार वक्त – वक्त पर इंग्लैंड को भेजी गई राशि करोड़ों पाउंड की है |
इसके अलावा लंदन में भारतीय ऑफिस का खर्च , भारतीय सेना के रेजीमेंटों के प्रशिक्षण का खर्च , चीन और फारस में हुए ब्रिटिशों के मिशन का खर्च , इंग्लैंड से भारत तक बिछाई गई टेलीग्राफ लाइनों का पूरा खर्च और ब्रिटिश राज ने कंपनी के माध्यम से भारत का जो हस्तांतरण किया | इसमें होनेवाला खर्च भी हम पर ही लादा गया |
इससे भारत पर 5.50 करोड़ रुपए का कर्ज चढ़ गया | यह साल था 1850 से 1851 | इसके अलावा 1857 के विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजों ने जो 47 करोड रुपए खर्च किए | ब्रिटिश कंपनी ने उसको भी भारत पर कर्ज माना |
सन 1834 से 1924 के 90 सालों के दरम्यान इंग्लैंड को भेजी गई राशि 394 से लेकर तो 591 मिलियन पाउंड है | भारत से धन बाहर भेजने के बुरे प्रभाव यह हुए की भारत पर 1939 से लेकर 1940 तक 1200 करोड़ का कर्जा हो गया |
इससे देश की जनता पर कर का बोझ बढ़ा | उनका जीवनस्तर गिरने लगा | इससे दरिद्रता बढ़ी | अकाल पड़ने लगे | देश में आर्थिक संकट उत्पन्न होने लगे | आम जनता के मन में ब्रिटिशों के प्रति रोष उत्पन्न होने लगा | इसकी परिणति राष्ट्रीय आंदोलनो में हुई |
अब धन के निष्कासन के बारे में राष्ट्रवादी नेताओं के विचार किया है ? विदेशी विद्वानों के विचार किया है ? यह आप किताब में पढ़ लीजिएगा और यह भी की स्वच्छता और स्वास्थ्य का ज्ञान होते हुए भी .. एक भारतीय की औसत आयु 32 वर्ष थी जबकि एक यूरोपियन की 60 वर्ष | पर क्यों ? पढ़कर जरूर जानिए अपने इतिहास को | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते है | और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !!
BRITISH..DHAN KA NISHKASAN BOOK REVIEW
