दीद्दा – कश्मीर की योद्धा रानी
आशीष कौल द्वारा लिखित
रिव्यू –
इस किताब की नायिका एक स्त्री है जिसने पुरुष प्रधान समाज में अपना अस्तित्व स्थापित किया | इसलिए उन्होंने यह किताब कश्मीर की महिलाओं को ही समर्पित की है क्योंकि इन महिलाओं की तरह ही रानी दीद्दा बहुत ही खूबसूरत और साहसी थी |
हम इतिहास प्रसिद्ध बहुत से पुरुष पात्रों को जानते हैं | उनके पराक्रमों को जानते हैं लेकिन ऐसी स्त्री पात्रों के बारे में बहुत ही कम जानते हैं | रानी दीद्दा उनमें से एक है | वह बहुत सालों तक गुमनामी के अंधेरे में रही | लेखक के प्रयासों से ही हम रानी दीद्दा की कहानी जान पाए जो 1200 सालों से इतिहास में दबी पड़ी थी |
रानी दीद्दा शायद बचपन से पोलियो ग्रस्त थी | इसलिए उनके माता-पिता ने उन्हें त्याग दिया था | वह उनके प्यार के लिए तरसती रही | ऐसे मे वल्जा नामक संरक्षिका ने उसे माँ जैसा प्यार दिया | वहीं उनकी सहेली , राजदार सब कुछ थी | उनका विवाह अय्याशी के लिए कुख्यात राजा के साथ हुआ पर इस राजा ने उन्हें अपार प्रेम और मान – सम्मान दिया जो उन्हें उनके मायके में नहीं मिला |
उन्होंने राजा को राजगद्दी का वारिस दिया जो दूसरी रानियां नहीं दे पाई थी | जब उनका विवाह हुआ तो राज्य में अव्यवस्था थी | उन्होंने राजा को भी उसकी जिम्मेदारियों का एहसास कराया जिससे अब प्रजा उन्हें पसंद करने लगी थी | राजा की मृत्यु के बाद उन्हें सती जाने पर मजबूर किया जाने लगा पर उन्होंने अपनी चतुराई और साहस से इस प्रथा को अपने पैरों तले कुचल दिया |
उन्होंने अपने सेनापति के साथ मिलकर राज्य में हो रहे षडयंत्रों का सफलतापूर्वक निपटारा किया और इस तरह वह मध्यकालीन काल में इतिहास में सबसे लंबे समय तक राज करनेवाली रानी बन गई |
उन्होंने उस वक्त के प्रभावशाली राजा और लोगों के बीच अपनी एक विशेष जगह बनाई | ऐसे पुरुषों के बीच में जिन्हे किसी महिला के शासन के अधीन काम करना स्वीकार नहीं था | खासकर तब जब वह महिला अपंग हो |
वह ऐसी पराक्रमी थी कि किसी भी युद्ध का पासा पलट सकती थी फिर चाहे सामनेवाला दुश्मन कितना भी खतरनाक क्यों ना हो ? वह उन्हें घुटने टेकने के लिए मजबूर कर देती थी | वह रानी दीद्दा से इतना डर जाते थे कि उन्हें चुड़ैल मानने पर मजबूर हो जाते थे |
रानी दीद्दा अपने संघर्षों से अकेले लड़ते हुए सत्ता में स्थापित हुई | उन्होंने कश्मीर पर 54 वर्ष यानी सन 950 से सन 1003 तक राज किया | कश्मीर को एक सशक्त राज्य बनाया | भगवान ने उन्हें बहुत सारे गुण दिए थे | सिर्फ एक विकलांगता के कारण कोई भी उनसे विवाह नहीं करना चाहता था |
उनके पिता के लिए यह एक चिंताजनक विषय था | क्षेमगुप्त के रहते हुए ही रानी दीद्दा सत्ता का केंद्र बन गई थी | बाद में उन्होंने पूरे राज्य पर अपना अधिकार स्थापित किया | उन्होंने राज्य में बहुत सारे सुधार किए | वह जनता की प्रिय रानी बन गई |
रानी दीददा कभी भी एक योद्धा नहीं बनना चाहती थी | वह विकलांग होने के कारण अपने माता-पिता के लिए एक उपेक्षित बच्ची थी | अपने पिता को वह हमेशा उनके सेनापति विक्रमसेन के साथ प्रसन्नचित होकर बात करते हुए देखती थी तब उसे लगा कि योद्धा बनने के बाद शायद उसके पिताजी उस पर भी ध्यान देंगे |
इस विचार के तहत वह योद्धा बनी और सर्वश्रेष्ठ योद्धा बनी | एक उपेक्षित बालीका से वह एक प्रसिद्ध रानी बनी जिससे उसके राज्य के सभी लोग प्यार करते थे | उसके राज्य में रहना चाहते थे | उनका सम्मान करते थे | उनके प्रयासों ने दो बार मोहम्मद गजनी को हराया जो कश्मीर के रास्ते भारत में घुसना चाहता था |
कश्मीर के शासकों की वजह से मोहम्मद गजनी ने कश्मीर का रास्ता छोड़ , गुजरात का रास्ता अपनाया और सोमनाथ मंदिर पर 16 बार क्रूरता भरे हमले किए | इन हमलों के बारे में डिटेल में जानने के लिए आप “सोमनाथ” इस किताब का रिव्यू और सारांश पढ़ सकते हैं जो हमारी वेबसाइट “सारांश बुक ब्लॉग” पर उपलब्ध है |
अपने अंतिम समय मे उन्होंने कश्मीर की सुरक्षा बहुत ही मजबूत हाथों में सौंपी | प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – आशीष कौल
प्रकाशक है – प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ संख्या है – 216
उपलब्ध है – अमेजॉन और किंडल पर
रानी दीद्दा के पूरे व्यक्तित्व को और डिटेल में सामने लाने के लिए इनपर और किताबें लिखी जानी चाहिए | यह हमारे हीरोज है जिन्होंने मातृभूमि और स्वधर्म की रक्षा के लिए विदेशियों से हमेशा युद्ध किए | आईए जानते हैं सारांश में रानी दीद्दा के प्रिय रानी बनने का सफर…
सारांश –
जिस समय कश्मीर के राजा “गोनन्द” थे | उसी समय भारत के उत्तरी सीमा स्थित “करकोटा साम्राज्य” में ललितादित्य का उदय हुआ | उन्होंने एशिया के बहुत सारे देशों को जीता जैसे पंजाब , कन्नौज , तिब्बत , लद्दाख बिहार , बंगाल इत्यादि | उन्होंने ही अरबों की शक्ति को सिंध मे रोका |
राजा ललितादित्य ने आठवीं सदी आते-आते पूरे भारत में अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया | ललितादित्य ने श्रीनगर के बाहर अपनी राजधानी बनाई जिसका नाम “परिहासपुर” रखा गया | ललितादित्य ने चार मुख्य मंदिर बनवाये थे | उसमें से एक भगवान विष्णु को समर्पित था |
भगवान विष्णु की मूर्ति बनाने के लिए 84 हजार तोले सोने का उपयोग किया गया था | कहते हैं कि, इस मूर्ति की स्थापना के दिन स्वयं भगवान वहां उपस्थित थे | उस समय तक कश्मीर में बौद्ध धर्म का प्रभाव बढ़ने लगा था | इसलिए उन्होंने शुद्ध तांबे की बुद्ध की मूर्ति उम्दा कारीगरों द्वारा बनवायी |
जिस दिन वह मूर्ति जमीन से उठाई गई | उस समारंभ में खुद ललितादित्य उपस्थित थे | जैसे ही मूर्ति ऊपर उठाई गई | बादल गरज कर बहुत जोर से बारिश शुरू हो गई | वह मूर्ति आकाश में कहीं गायब हो गई | जब सूर्य भगवान बुद्ध की मूर्ति के पीछे से निकले तो सूर्य की किरणे भगवान बुद्ध पर चमक रही थी और वह मूर्ति आकाश की ओर जा रही थी |
यह नजारा वहाँ उपस्थित पूरे जन – समुदाय ने देखा | उनका राज्य काल स्वर्ण युग के नाम से प्रसिद्ध है | बाद में इस राज्य की अवनती शुरू हो गई | ई. सन 900 में इसी राज्य की गद्दी पर राजा शंकर वर्मन विराजमान हुए |
शंकर वर्मन का काल इतिहास मे सबसे बुरे काल के रूप मे जाना जाता है | उसके काल में अकाल पड़ा | बाढ़ आई | प्रजा परेशान थी फिर भी उसने कर वसूलना जारी रखा | वह शराब और सत्ता के नशे में चूर था |
उसके सेनापति “पर्वगुप्त” ने उसे बहुत समझाया पर वह नहीं माना | अब प्रजा और राज दरबारोंयो की मदद से पर्वगुप्त ने शासन संभाला | इसके पहले शंकर वर्मन को पत्थर से बांधकर “वितस्ता नदी” में फेंक दिया गया | उसके पहले उसने पर्वगुप्त को श्राप दिया कि उसका अपना खून ही जिंदगी और राजकाज से दूर शांति में समाप्त हो जाएगा |
बाद में उसे एक पुत्र प्राप्त होता है | यही पुत्र “क्षेमगुप्त” है | दीद्दा का पती | क्षेमगुप्त के जन्म पर लोहार साम्राज्य के महाराज सिम्हराज और रानी श्रीलेखा और उनकी पुत्री दीददा को भी बुलाया जाता है |
सिम्हराज , पर्वगुप्त के मित्र है | जब इन दोनों को पता चलता है की किसी सन्यासी के पास दिव्य विद्या है | यह दोनों अपने बच्चों का भविष्य जानने के लिए उसके पास जाते हैं | तब पर्वगुप्त को पता चलता है की उसकी बहू राज्य का भाग्य बदलेगी | न कि , उसका बेटा…
सिम्हराज को बेटों के बाद एक बेटी चाहिए थी ताकि वह उसकी शादी कर के अपनी शक्ति बढ़ा सके | उसके जवाई की भी मदद उसे मिलती रहे | सिम्हराज ने भगवान शिव से बेटी के लिए प्रार्थना की | उसे बेटी मिली पर वह अपाहिज थी |
इस वजह से वह बहुत निराश हुआ | दीददा की विकलांगता के कारण उसे उसके माता-पिता का प्यार नहीं मिला | भाई – बहन उसकी मजाक उड़ाया करते | वह हमेशा अपने राजमहल में उपेक्षित ही रही सिर्फ उसे वल्जा का साथ मिला जो अफ्रीकन मूल की महिला थी |
वही उसकी बॉडीगार्ड और माँ भी थी | दीद्दा विकलांग होते हुए भी बहुत ताकतवर थी | वह हमेशा से युद्ध कला सीखना चाहती थी | उसके बार-बार अनुरोध करने के बाद भी उसके गुरु विक्रमसेन उसे अपनी शिष्या बनाने से इनकार करते रहे |
आखिर एक दिन ऐसा कुछ हुआ कि उन्हें दीद्दा को अपनी शिष्या बनाना ही पड़ा | अब दीद्दा से उन्होंने कैसे-कैसे कठिन परिश्रम करवाए | यह आप किताब में जरूर पढ़िएगा | आखिर दीद्दा पूरी 52 विद्याओ में पारंगत हो गई और साथ में एक कुशल योद्धा भी |
एक दिन वह शिविर लगाकर अपने खेमे में बैठी थी तभी क्षेमगुप्त को वहां पकड़कर लाया गया | साथ में वल्जा भी थी | क्षेमगुप्त शिकार करते-करते लोहार साम्राज्य की सीमा में प्रवेश कर गए थे | तब तक उसकी शादी चित्रलेखा के साथ हो गई थी | उससे उसे दो बेटियां ही थी | उसे अभी तक राज्य का वारिस नहीं मिला था |
उसका मन पता नहीं क्यों ? राजकाज में नहीं लगता था | इसीलिए वह शिकार में टाइम पास करता था | क्षेमगुप्त एक अय्याश राजा था | उसके हरम में हजारों की संख्या में स्त्रियां थी | उसकी बहुत सी बेशर्मिया उसका मित्र और मंत्री नरवाहन अपने अंदर छुपा कर रखता था | वह उसका सच्चा हितैषी था |
क्षेमगुप्त का प्रधानमंत्री था “फाल्गुन” | यह उस घराने से आता था जिसने पूर्ववर्ती महाराजाओं की इमानदारी से सेवा की पर फाल्गुन ऐसा नहीं था | क्षेमगुप्त के बारे में उसके मन में जहर भरा था | वह राज्य में अपना एक हिस्सा चाहता था | अपनी पोजीशन मजबूत करना चाहता था |
उसने “डामरो” का विद्रोह खत्म कर के राज्य की बहुत बड़ी सेवा की | इस सेवा के बदले उसने अपनी बेटी “चित्रलेखा” की शादी क्षेमगुप्त के साथ कर दी | अब राज्य कारभार फाल्गुन संभालता था और महल उसकी बेटी |
जब क्षेमगुप्त ने दीद्दा को पहली बार देखा | तभी वह उससे प्रेम करने लगा | वह विकलांग है यह जानने के बाद भी उससे विवाह किया | उसे नहीं पता था कि उनकी शादी विधि लिखीत थी | यही भविष्यवाणी थी |
दीद्दा जब कश्मीर आई तो उसने राज्य की स्थिति अती खराब पाई | तब हर तरफ षडयंत्रों की बू आ रही थी | फाल्गुन अपने अधिकारों का उपयोग करके दीद्दा पर लिमिटेशन लगाना चाहता था | पर उसे क्या पता था की 52 विद्याओ में महारत रखनेवाली यह रानी उसकी सोच के बाहर है |
दीद्दा से अब सब राजगद्दी के वारिस के लिए आशा लगाने लगे पर उसका पति इसमें अक्षम था | अब वह क्या करें ? क्योंकि राजा में कितनी ही कमियां हो ! दोष दीद्दा को ही मिलता और उसकी रवानगी राजा के जनानखाने के किसी एक कोने में हो जाती |
दीद्दा यह बिल्कुल नहीं चाहती थी | अब सिर्फ भगवान ही उसकी मदद कर सकते थे | भगवान के रूप में उसकी मदद “अभिनव गुप्त” ने की जो बहुत ही पहुंचे हुए संत थे | बाद में वह दीद्दा के गुरु भी बन गए |
अभिनव गुप्त के आशीर्वाद से दीद्दा को एक पुत्र प्राप्त हुआ | उसके कुछ ही दिनों में क्षेमगुप्त का स्वर्गवास हो गया | दीद्दा , क्षेमगुप्त के जाने से पूरी तरह टूट गई क्योंकि क्षेमगुप्त ही ऐसा व्यक्ति था जिसने उसे विकलांग होते हुए भी अपनाया था | उससे प्रेम किया था | क्षेमगुप्त जाते-जाते उसके राज्य और बेटे की जिम्मेदारी दीद्दा को सौंप कर गया |
दीद्दा अपने पति के वचन का पालन करने के लिए सती नहीं गई | जैसे ही क्षेमगुप्त का स्वर्गवास हुआ तभी से राजगद्दी के लिए षड्यंत्र शुरू हो गए | उसके और उसके बेटे के प्राणों पर खतरा मंडराने लगा | पहली बार में दीद्दा ने सफलतापूर्वक अपनी अपने बेटे और अपने सैनिकों की जान बचाई |
पहली बार कश्मीरवासियों ने अपनी रानी का योद्धा रूप देखा | दीद्दा एक निपुण योद्धा थी | इस युद्ध में उसका साथ नरवाहन ने दिया | वल्जा हमेशा उसके साथ रहती थी | इस षड्यंत्र के पीछे फाल्गुन था | दीद्दा भी लगातार राजनीतिक और कूटनीतिक रणनीतियां बनाने में लग गई क्योंकि उसे अपने राज्य और पुत्र को षडयंत्रकारियों से बचाना था |
“फाल्गुन” को उसने देश निकाला दिया | तो क्षेमगुप्त के भांजे “महिमन और पटाला” उसके नए शत्रु के रूप में सामने आए | रानी ने उनका भी बंदोबस्त किया | दीद्दा को अपनी और अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए ईमानदार लोग सैनिक के रूप में चाहिए थे जो उसके लिए अपनी जान तक दे सके |
इसीलिए कश्मीर के युवकों को प्रोत्साहित करने के लिए उसने अपने गुरु विक्रमसेन के साथ खुद का मुकाबला रखा | वह अपने पराक्रम से जीत गई | उनकी इस जीत को देखकर बहुत सारे युवक सेना में भर्ती हुए | विक्रमसेन ने उन सब को अच्छे से तैयार किया |
इस तरह दीद्दा की “एकांगी सेना” तैयार हो गई | एकांगी सेना के योद्धा सबसे खतरनाक थे | इस सेना का सेनापति वज्रबाहु था | रानी दीद्दा ने राजकुमार अभिमन्यु के प्रशिक्षण के लिए भी विक्रमसेन को बुलाया क्योंकि अब वक्त आ गया था कि अभिमन्यु राजा बनकर राजगद्दी संभाले | उसके पहले उसे सारा प्रशिक्षण पूरा कर लेना था |
अभिमन्यु को राजा बनाकर दीद्दा “काबुल” चली गई क्योंकि उसके नाना भीमसेन बीमार थे और अपने आखिरी दिनों में दीद्दा को याद कर रहे थे | वह काबुल के राजा थे | इस यात्रा में अभिनव गुप्त भी दीद्दा के साथ थे | काबुल के राजा भीमसेन की मृत्यु की खबर सुनकर जहां सारे भारतीय राजा दुखी हुए | वहीं भारत की सीमा से सटे जियारत साम्राज्य में खुशियां मनाई गई |
यह ईरान के साम्राज्य का एक भाग था और अब छोटे-छोटे राज्यों में बँट चुका था | जियारीद के राजा “वुशगामीर” ने काबुल पर आक्रमण करने की योजना बनाई क्योंकि उसे पता था की भीमशाह का उत्तराधिकारी “जयपाल” एक कमजोर राजा है |
इसीलिए वुशगामीर ने विशाल सेना के साथ अबू मोहम्मद को भेजा | अब रानी दीद्दा ने इसे किस रणनीति से हराया ? उनके इस पराक्रम को आप किताब में जरूर पढ़ें | संत अभिनव गुप्त की दिव्य दृष्टि के अनुसार , कमजोर जयपाल के होते हुए रानी दीद्दा ही यह लड़ाई लड़ सकती थी | उनके लिए यह लड़ाई अनिवार्य थी क्योंकि काबुल पर अगर फारसियो का कब्जा हो जाता | तो कश्मीर भी उनके हत्थे चढ़ता क्योंकि दोनों की सीमाएं लगकर ही थी |
इस युद्ध में दीद्दा के सिर्फ एक हजार सैनिक थे और वुश गामीर के 30 हजार | अब तक हर लड़ाई , हर समस्या में क्षेमगुप्त का मित्र नरवाहन , दीद्दा के साथ परछाई की तरह रहा लेकिन वक्त के साथ वह दीद्दा को चाहने लगा |
दीद्दा को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने नर वाहन से बात करना बंद कर दिया | इससे दोनों के बीच अविश्वास ने जन्म ले लिया | नरवाहन यह सह न सका | उसन खुद को समाप्त कर दिया | इस तरह दीद्दा के शुभचिंतकों में से एक कम हो गया |
दीद्दा का बेटा अब बड़ा हो चुका था और कश्मीर का राजा बन चुका था | अब उसके विवाह का वक्त था | दीद्दा अपनी बहू के रूप में किसी योद्धा लड़की को नहीं चाहती थी | वह एक सीधी – सरल लड़की अपने बेटे के लिए चाहती थी जो उसके बेटे के जीवन को प्यार से भर दे |
ऐसी लड़की उसे “वसुंधरा” के रूप में मिली जो “हिमवात” देश की राजकुमारी थी | वक्त के साथ वह दीद्दा से नफरत करने लगी | यहां तक की दीद्दा के बहू और बेटे ने मिलकर दीद्दा को राजमहल से बाहर निकाल दिया | दीद्दा ने राजा की इच्छा का सम्मान किया |
अभिनवगुप्त ने उन्हें तपस्या में लगा दिया | यह सब करते हुए भी वह अपने लोगों की सेवा करती रही | वसुंधरा के पिता और पति ने उससे दूरी बना ली थी | अब सिर्फ राज्य का प्रधानमंत्री महामर्दन ही उसके साथ था जो खुद राजगद्दी हड़पना चाहता था |
राजमहल में षड्यंत्र बुने जा रहे थे | दीद्दा को इस बात का पता था | उन्होंने अभिनवगुप्त के आश्रम से चार युवा ब्राह्मणों को अभिमन्यु की मदद के लिए भेजा | उनकी मदद से अभिमन्यु ने अच्छा राज्य चलाया | वसुंधरा ने महामर्दन द्वारा इन चार ब्राह्मणों को मरवा डाला | इतना ही नहीं उसने अपने पति अभिमन्यु की भी हत्या करवा दी |
दीद्दा जो अब तक सब जानबूझकर शांत थी | अपने बेटे के हत्या की बात सुनकर रणचंडी बन गई | उसने महामर्दन को बहुत ही दर्दनाक मौत दी | वसुंधरा ने खुद को ही समाप्त कर दिया | अब दीद्दा ने अपने पोते नंदीगुप्त को नया राजा घोषित किया | वह फिर साम्राज्य संभालने लगी | उन्होंने देखा उसके अनुपस्थिति में राज्य में अराजकता फैल चुकी थी | प्रजा परेशान थी | उसके राज्य को हड़पने के लिए षड्यंत्र रचे जा रहे थे |
दीद्दा ने फिर एक बार इन सब का सफलतापूर्वक सामना किया | एक बार जब वह जंगल से जा रही थी तो कुछ अज्ञात व्यक्तियों ने उन पर हमला किया | रानी को गड़रिये “तुंगा” ने बचाया | वह एक कुशल योद्धा था | रानी दीद्दा का राज्य काल ई. 900 के अंत और ई. 1000 के शुरुआत में था | इस वक्त कश्मीर में बौद्ध धर्म तेजी से फैल रहा था |
उन्होंने लोगों में शैव धर्म को फैलाया | विष्णु जी के बहुत सारे मंदिर बनवाए | इसीलिए ब्राह्मण उनके समर्थक बन गए | इनमें से एक था “यशोधर” जिसे रानी दीद्दा ने अपना सेनापति बनाया | इसने सेनापति बनकर उस वक्त के शक्तिशाली राजा “थक्काना” को हरा दिया |
शक्तिशाली राजा को हराने के बाद यह अपने ईमान पर कायम न रह सका | इसने एक पुरुष होने के नाते , एक स्त्री शासन कर्ता के खिलाफ विद्रोह किया | रानी इसके विद्रोह से बहुत दुखी हुई | उन्होंने अपनी एकांगी सेना की मदद से सफलतापूर्वक इसके विद्रोह को दबा दिया | तुंगा पर रानी दीद्दा के बढ़ते विश्वास के कारण बाकी सब लोग तुंगा को जान से मारने की कोशिश करने लगे |
इसलिए रानी को ना चाहते हुए भी उसे अपने मायके “लोहार साम्राज्य” भेजना पड़ा | उसके पास अब विश्वास करने लायक कोई नहीं था | “रक्का” नामक योद्धा था पर लालच उस पर कभी भी हावी हो सकता था |
डामरो का एक बार फिर से विद्रोह उठ खड़ा हुआ | फाल्गुन ने इनके विद्रोह को दबाया | इस बीच दीद्दा के आसपास के साम्राज्य में बहुत उथल -पुथल मची हुई थी | ईरान में तेजी से इस्लाम धर्म फैल रहा था | जबकि अफ्रीका में व्यापारी लोगों ने इस्लाम धर्म को फैलाया |
दीदा को अपने धर्म और साम्राज्य की रक्षा के लिए एक अच्छा राजा चाहिए था जो कि उसका पोता “नंदीगुप्त” नहीं था | उसने नंदीगुप्त को राजगद्दी से उतार दिया और कश्मीर के योग्य राजा के लिए एक प्रतियोगिता आयोजित की जिसके जरिए वह कश्मीर को एक योग्य शासक देना चाहती थी क्योंकि अब उनकी उम्र हो चुकी थी और उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा था
इस प्रतियोगिता से उन्हें राजकुमार संग्रामराज एक योग्य शासक के रूप में मिला | इसकी मदद के लिए उन्होंने तुंगा को बुला लिया | दोनों से उन्होंने शपथ ली कि वह दोनों मिलकर कश्मीर को महमूद गजनी के आक्रमण से बचाएंगे | संग्रामराज के साथ ही उन्होंने वज्रबाहु को लोहार साम्राज्य का राजा बना दिया |
79 वर्ष की उम्र मे उनका स्वर्गवास हुआ | दीद्दा की मृत्यु के तेरह साल बाद सन 1013 में वह दुश्मन आया जिसके बारे में दीद्दा ने पहले से ही सावधान किया था | संग्रामराज और तुंगा ने मिलकर उसे बहुत बुरी तरह हराया |
राज्य की लालसा मे संग्रामराज ने तुंगा और उसके बेटे को मरवा डाला | इसके बाद फिर एक बार गजनी का आक्रमण हुआ | इस बार भी वह बहुत बुरी तरह पराजित हुआ | वह इतना अपमानित हुआ और डर गया कि उसने दोबारा कश्मीर की तरफ आँख उठाकर भी नहीं देखा |
तुंगा और उसके बेटे के रूप में कश्मीर की धरती ने फिर से अपने ईमानदार लोगों को खोया | दीद्दा की दूर दृष्टि ने कश्मीर साम्राज्य को विदेशियों से बचाए रखा | अब आप किताब पढ़ कर यह जानिए की रानी दीद्दा ने योद्धा बनने के लिए कितने परिश्रम किए ?
अपने विकलांगता पर मात कैसे की ? क्यों राजा क्षेमगुप्त ने विकलांग दीद्दा से शादी की ? वह भविष्यवाणी कौन सी थी ? अभिनवगुप्त किन सिद्धियों के स्वामी थे ? रानी दीद्दा को चुड़ैल रानी क्यों कहा जाता था ? क्यों लोगों को लगता था कि उनके पास चमत्कारी शक्तियां है ? क्यों हमेशा कश्मीर की धरती पर ईमानदार लोगों की हत्या की जाती थी ?
यह शंकर वर्मन का श्राप था या उन लोगों का भाग्य ? इन सारे सवालों के जवाब पाने के लिए जरूर पढिए -“दीद्दा – कश्मीर की योद्धा रानी” आशीष कौल द्वारा लिखित | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए….
धन्यवाद !!
DIDDA BOOK REVIEW SUMMARY IN HINDI
