ब्रिटिश शासन में कुटीर उद्योगों का पतन
आधुनिक भारत का इतिहास – अध्याय 10
रिव्यू –
प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – डॉ. मोहनलाल गुप्ता
प्रकाशक है – शुभदा प्रकाशन
पृष्ठ संख्या है – 20
उपलब्ध है – अमेजॉन पर
ब्रिटिश शासन में भारतीय कुटीर – उद्योगों का पतन क्यों हुआ और उसके क्या परिणाम हुए ? इस पर लेखक ने प्रस्तुत किताब में प्रकाश डाला है |
लेखक द्वारा लिखित “आधुनिक भारत का इतिहास” इस किताब के प्रत्येक अध्यायों को उन्होंने और शुभदा प्रकाशन ने ई. बुक के रूप में प्रकाशित किया क्योंकि वह चाहते हैं कि इतिहास के विद्यार्थियों , विश्वविद्यालय के अध्यापकों और इतिहास पढ़नेवाले पाठकों के लिए यह किताब सस्ते दर पर उपलब्ध हो ताकि विश्व के किसी भी कोने में ,किसी भी समय ,कम खर्चे में इस किताब का लाभ लिया जा सके |
अब बात करते हैं इस अध्याय की – अंग्रेजों के भारत आने के पहले यहां की अर्थव्यवस्था के तीन मुख्य आधार थे |
1. खेती
2. पशुपालन और
3. कुटीर उद्योग
अंग्रेज जब भारत में नए-नए ही आए थे तब भारत में बननेवाली हर एक वस्तु विश्व विख्यात थी | स्पेशली महीन सूती कपड़ा जो भारतीय कुटीर उद्योगों द्वारा उत्पादित था | ढाका की मलमल पूरे विश्व में निर्यात की जाती थी |
सन 1918 में प्रकाशित पहली भारतीय औद्योगिक आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस समय पश्चिमी यूरोप में असभ्य जातियां निवास करती थी | उस समय भारत के शासको का वैभव उफान पर था |
भारत के शिल्पकार अपनी उच्च कोटि की कारीगरी के लिए पूरे विश्व में विख्यात थे | विदेशी यात्रियों ने भारत के कुटीर उद्योगों का वर्णन अपने डायरीयो में लिख रखा है | मुगल काल में , खासकर नूरजहां के काल में बहुत से उद्योग विश्व विख्यात थे |
फ्रांसीसी यात्री बर्नियर ने लिखा है कि भारतवर्ष को छोड़कर कोई भी देश ऐसा नहीं जहां इतनी विभिन्न प्रकार की वस्तुएं मिलती हो | इन यात्रियों के वर्णनों से यह स्पष्ट होता है कि भारत का कुटीर उद्योग 18 वीं सदी तक अपनी उन्नत अवस्था में था और भारत की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी थी | तब दो प्रकार के उद्योग अस्तित्व में थे |
1. ग्रामीण उद्योग
2. नगरीय उद्योग
ग्रामीण उद्योगों में गांव के लोगों की और घरेलू आवश्यकताए पूरी की जाती थी | ग्रामीण उद्योगों की यह विशेषता थी कि उन्हें अपना कच्चा माल गांव से ही मिल जाता था | इनका बनाया माल गांव में ही बिक जाता था और बचा हुआ वार्षिक मेलों में … गांव में “बार्टर सिस्टम” भी काम करता था |
नगरीय उद्योग – कुलीन सामंत वर्ग और धनी व्यापारी वर्ग के विलासिता की वस्तुएं बनाता था | इनका बाजार अत्यंत सीमित था | नगरों में प्रत्येक उद्योग का एक मुखिया होता था जो कामगार और उत्पादन का मूल्य निर्धारित करता था | उद्योग एक परंपरागत व्यवसाय था | इसीलिए शिल्प – संघ जातीय सत्ता से नियंत्रित होता था |
“ईस्ट इंडिया कंपनी” एक व्यापारिक संस्था थी | इसका मूल उद्देश्य यहां के छोटे-बड़े उद्योगों पर अपनी मोनोपोली स्थापित करना था ताकि वह ज्यादा से ज्यादा लाभ कमा सके | कंपनी यहां बननेवाले माल को सोना – चांदी देकर ही खरीद सकती थी | वह वस्तु विनिमय नहीं कर सकती थी क्योंकि ब्रिटेन में ऐसा कुछ बनता ही नहीं था |
अब कंपनी ने यहां बननेवाले कपड़ों को इंग्लैंड में बेचा तो इसका वहां की अर्थव्यवस्था पर विपरीत परिणाम पड़ा | भारतीय कपड़ा वहाँ पर खूब बिका पर वहाँ का सोना – चांदी यहां आने लगा | वहां के कपड़ा कारखाने का माल वैसे ही पड़ा रहा | अब इससे इंग्लैंड में कंपनी के विरुद्ध विरोध भड़क उठा | इसके लिए ब्रिटेन ने एक कानून पास किया जिसके अनुसार ब्रिटिश शासित प्रदेशों में भारतीय कपड़ा नाहीं तो पहना जा सकता था | नहीं तो , किसी और काम में इस्तमाल किया जा सकता था पर भारतीय कपड़े की क्वालिटी ही इतनी अच्छी थी कि ब्रिटेनवासी उसे इस्तेमाल करते ही रहे |
भारतीय कुटीर उद्योगों का विनाश हुआ कारण –
1. मुगल सत्ता कमजोर होकर छोटे-छोटे राज्यों में बंट गई | नादिरशाह और अहमदशाह अब्दाली ने आक्रमण करके दिल्ली और देश को इतना लूटा की देश की स्थिति दयनीय हो गई
2. देशी राज्यों के विनाश के कारण भी श्रेष्ठ कारीगर बेरोजगार हो गए |
3. ईस्ट इंडिया कंपनी ने दमनकारी नीतियां अपनाई जैसे की कंपनी के अधिकारी या फिर उनके प्रतिनिधि भारतीय बुनकरों को सीमित समय में निश्चित प्रकार का कपड़ा तैयार करने के लिए मजबूर करते थे और फिर इसे अपने मनमाफीक दाम में खरीदते थे |
अगर , बुनकर या जुलाहे आनाकानी करे तो उनके अंगूठे काट दिए जाते थे | इसी कारण बंगाल में बसे कपड़ा बुनकर बंगाल छोड़कर भाग गए | इसका बहुत बुरा परिणाम कपड़ा उद्योग पर पड़ा | इसकी शिकायत बंगाल के नवाब ने कंपनी से की थी | ब्रिटेन से अब प्राइवेट बिजनेस करनेवाले लोग भी अपना माल बेचने भारत आने लगे |
इससे भी भारत का आर्थिक शोषण हुआ | सन 1813 के बाद यहां से कच्चा माल इंग्लैंड ले जाया गया और वहां का बना पक्का माल बेचने के लिए भारत लाया गया | भारत से की गई लूट से ही “मॉडर्न इंग्लैंड” का निर्माण हुआ |
इसी लूट के कारण औद्योगिक क्रांति का बोलबाला हुआ | ब्रिटिश सरकार ने भारतीय उत्पादों पर बहुत अधिक कर लगाकर और अपना माल बिना टैक्स के भारतीय बाजारों में उतारा |
जब देश में अकाल पड़ा था | लोग भूख से मर रहे थे तब देश का अनाज बाहर भेजा जा रहा था | भारतीय व्यापारियों पर इतना अधिक टैक्स था कि वह कोई व्यापार ही नहीं कर पा रहे थे |
कुटीर उद्योगों का पतन होने के और भी कई कारण है जो इस प्रकार है –
1. विदेशी शिक्षा के कारण भारतीय जीवन पर पाश्चात्य शैली का प्रभाव दिखाई देने लगा था |
2. विदेशी पढ़कर आए लोग कपड़े और घर की सजावट की वस्तुएं विदेशी शैली की इस्तेमाल करने लगे थे | इससे भी भारतीय उद्योगों को खतरा हुआ |
3. भारतीय कार्यालयों में ब्रिटेन में बना कागज ही इस्तेमाल करने की सख्ती की गई |
4. भारत और इंग्लैंड के बीच समंदर से आने – जाने के लिए ब्रिटेन में बने जहाज ही इस्तेमाल किए जाने लगे | भारतीय नहीं |
4. भारत में बननेवाले हथियारों के उद्योग पर भी ब्रिटिश सरकार ने रोक लगा दी |
5. रेल का निर्माण उन्होंने अपनी सुविधा के लिए किया | ना की , भारतीयों की ….
6. भारत में पड़नेवाले अकालो में बहुत से श्रेष्ठ कारीगर और शिल्पी नष्ट हो गए |
7. कारीगरों और उनके द्वारा बनाए गए उत्पादनो पर नजर रखनेवाला संगठन नष्ट हुआ | इससे गिल्ड – पद्धति नष्ट हो गई |
8. नए कारीगरों के लिए प्रशिक्षण का अभाव रहा | कुटीर उद्योगों के नष्ट होने से भारतीय अर्थव्यवस्था चरमराकर गिर गई | कुटीर उद्योगों के कारण भारत देश समृद्ध था | मध्य युग में भारत समृद्ध देशों में गिना जाता था | वही ब्रिटिश सरकार की स्थापना के बाद यह निर्धन देशों में शामिल हो गया |
कुटीर उद्योगों के विनाश के कारण बहुत से शिल्पकार और कलाकार बेरोजगार हो गए | अब वह किसान बन गए तो ब्रिटिशों ने उनकी खेती का भी वाणिज़्यिकरण कराया | अब उसका क्या प्रभाव पड़ा ? यह आप “कृषि का वाणिज्यिकरण” इस बुक रिव्यू में पढ़िएगा | वह भी हमारे “सारांश बुक ब्लॉग” पर उपलब्ध है |
तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए …
धन्यवाद !!
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