SHURPANAKHA BOOK REVIEW SUMMARY HINDI

शूर्पनखा

अशोक शर्मा द्वारा लिखित

रिव्यु –

यह कहानी शूर्पनखा और रावन के जीवन के बारे में विस्तृत रूप से बताती है | हम सब शूर्पनखा को एक बुरी स्त्री के रूप में जानते है | जिसने वनवास के दौरान श्रीरामजी को बहुत परेशान किया और सीताजी के अपहरण का कारण बनी | प्रस्तुत किताब में लेखक यही बताने की कोशिश कर रहे है की उसने ऐसा क्यों किया ? शूर्पनखा को ऐसा लगता है की उसने रावण को हराने के लिए श्रीरामजी को चुना पर उसे क्या पता था की यह सब पहले से ही विधिलिखित था क्योंकि दिग्विजयी रावण को हराने के लिए उससे भी बड़े वीर योद्धा की जरुरत थी | यहाँ एक पत्नी और माँ का बदला बताया है |

प्रस्तुत कहानी में उस वक्त स्त्रीयों का क्या अस्तित्व था | उस पर भी प्रकाश डाला गया है जैसे की पुरुष एक स्त्री को वस्तु समझता था | उसके लिए स्त्री के अस्तित्व का कोई मतलब नहीं | हालाकी यह बात सारे पुरुषो पर लागु नहीं होती थी | लेकिन फिर भी……. शूर्पनखा को प्रिय बहन कहनेवाला रावण उसकी सारी खुशिया छिनकर , उसे दंडक वन की स्वामिनी बना देता है जिसका उसके लिए कोई महत्व नहीं | मंदोदरी के पिता की एक इच्छा पूरी करने के कारण बाकी सारे राजा भी अपने बेटियों को रावण को देना चाहते है | एक वस्तु की तरह , उनके मन का विचार किये बगैर……

सोलह साल की केकसी , अपने पिता के कहने पर अधेड़ उम्र के विश्रवा ऋषि के साथ शादी करने के लिये तैयार हो जाती है | केकसी के सपनो का विचार भी उसका पिता नहीं करता | जब सीताजी को अग्निपरीक्षा देनी पड़ती है और अयोध्या छोड़कर आश्रम में रहना पड़ता है तब शूर्पनखा को तब के समाज पर बहुत गुस्सा आता है | इसके लिए वह खुद को कारण समझकर सीताजी से बार – बार माफ़ी भी मांगती है |

जहाँ शूर्पनखा की माँ और बाकि स्त्रीयों ने पुरुषप्रधान संकृति को अपने ऊपर हावी होने दिया | अपने अधिकारों के लिए वह कभी लड़ी नहीं लेकिन शूर्पनखा और कुम्भिनसी इन दोनो ने इस बात को नकारकर , खुद के लिए न्याय पाने का सोचा, खुद के लिए लड़ने का सोचा और कामयाब रही | कहानी में और भी बहुत कुछ है पढ़ने के लिए जैसे की रावण के मरने के बाद लंका का क्या होता है ? शूर्पनखा और कुम्भिनसी की प्रेमकहानी और उनके पतियों के बारे में विस्तृत रूप से बताया है |

रावण के मरने के बाद बिभीषण के साथ साथ बहुत सारे राक्षस आर्य धर्म स्वीकार करते है | बाकि कही दूर – दूर भाग जाते है | इसी तरह शायद सारे राक्षस गायब हो चुके | खलनायक जीतना ताकतवर होगा , नायक को भी उतना ही ताकतवर होना पड़ता है | किम्बहुना, उससे भी ज्यादा…. तभी तो लोग उसे याद रख पाते है | लेखक के बारे में जानकारी हम अगले ब्लॉग में देंगे | उनकी और एक किताब के साथ | वैसे आप इस कहानी को सच मत समझ लीजियेगा | यह एक काल्पनिक कथा है | लेकिन कहानी अच्छी है | माइथोलॉजी में अगर आप की रूचि है तो आप को यह किताब पढ़कर अच्छा लगेगा | इस किताब के –

लेखक है – डॉ. अशोक शर्मा

प्रकाशक – अंजुमन प्रकाशन

पृष्ठ संख्या –247

उपलब्ध – किनडल

सारांश –

कहते है की रावण प्रकांड पंडित था, महान शिवभक्त था ,एक अच्छा योद्धा था | वह सात द्वीपों का स्वामी था | अपने इसी घमंड के चलते वह अपने से कमतर लोगो को सताता था | उनको अपने कण्ट्रोल में रखने की कोशिश करता था | अपनों से बड़ो का मान – सन्मान करना भूल गया था | उसके शुभचिंतक , जो उसको उसकी कमिया बताते थे वह उनको मरवा देता था |

अपने शक्ति के मद में चूर होकर वह बाकि राजाओ से अकारण ही युद्ध मोल लेता था | उनके राज्यों को तहस – नहस कर देता था | रावण राक्षस धर्म को मानने वाला था | जो उसके इस धर्म को नहीं मानता उसे वह मरवा देता | ऐसे इस रावन की बहने शूर्पनखा और कुम्भिनसी भागकर प्रेमविवाह करती है |

जो राक्षसों में कोई बड़ी बात नहीं | उनके पती राक्षस धर्म को स्वीकार नहीं करते | रावण उनपर आक्रमण कर के शूर्पनखा के पती को उसकी आँखों के सामने मार देता है | पति के मरने के बाद रावण , शूर्पनखा को दंडकारण्य में रखता है जो लंका से बहुत दूर है | वहा उसे एक पुत्र होता है जो अच्छी चिकित्सा ना मिलने के कारण बीमारी से मर जाता है | अब दोनों बहनों के मन में रावण के प्रति नफरत जागती है |

वह उसका विनाश चाहती है लेकिन इस रावण को हराए कैसे ? यह उनके समझ में नहीं आता | तभी वह दंडकारण्य में रह रहे राम , लक्ष्मण और सीता के बारे में सुनती है और उनके पराक्रम के बारे में भी | तभी उन दोनों बहनों के मन में आशा की किरण जागती है | उसके बाद वह रावण से बदला लेने की योजना बनाती है | अब कैसे उसका नाक टूटता है और रावण को बदला लेने के लिए कैसे उकसाती है | यह तो जगजाहिर है | इसमें लेखक ने बताने की कोशिश की है की वह कोई बुरी स्त्री नहीं थी |

उसके माता – पिता ने उसकी सुन्दरता को देखते हुए उसे बहुत अच्छे – अच्छे नाम दिए थे | कोई भी माता – पिता अपने बच्चो का कोई बुरा सा नाम नहीं रखते | रावण के लंका में रहने वाले राक्षसों ने उसका नाम बिगाड़कर , शूर्पनखा कर दिया | शूर्पनखा और कुम्भिनसी के सीताजी के साथ आत्मीयता के रिश्ते थे | दोनों बहने सीताजी से आश्रम में मिलने तब गयी थी जब वे माँ बनने वाली थी और अयोध्या छोड़ चुकी थी | सीताजी से प्रेरणा पाकर , दोनों बहनों ने संसार का मोह त्यागकर , अपने माता – पिता के साथ आश्रम में रहकर तपस्वियों का जीवन चुन लिया था | शूर्पनखा की कहानी अगर जाननी है तो यह किताब जरूर पढ़िए |

धन्यवाद !!

wish you happy reading………

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