BANDHAN BOOK REVIEW IN HINDI

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REVIEW –

बंधन महासमर सीरीज की पहली किताब है | इस सीरीज की कुल 9 किताबें प्रकाशित है और महाभारत पर आधारित है | किताब के विषय को वैसे ही हैंडल किया गया है जिसके लिए लेखक नरेंद्र कोहली विख्यात है | यानी कि आपको ऐसे पौराणिक कहानियों में हुए चमत्कार नदारत दिखेंगे | किसी भी व्यक्ति के पास कोई दैवी शक्तियां नहीं दिखेगी |

मनुष्य जीवनकी जो मर्यादाए होती है वही आप को सब लोगों के जीवन में दिखेंगी | आज तक हम सिर्फ महाभारत की कहानियों को ही जानते थे कि वह कैसे घटित हुई ? लेकिन इसमें बसे पात्रों के भाव और भावनाए कैसी थी ? हमें नहीं पता था |

पर प्रस्तुत किताबें आप को हर एक व्यक्ति के पास से दर्शन कराती है | उनकी सोच से रूबरू कराती है | तब के समाज में भी कुछ प्रथाएं प्रचलित थी जैसे की द्रौपदी के जन्म स्थान पांचाल में बहुपतित्व की प्रथा प्रचलित थी | इसीलिए शायद द्रोपदी के पांच पति होते हुए भी किसी को कुछ नया नहीं प्रतीत होता था |

मद्र देश में शादी के वक्त लड़की वाले कन्या के बदले पैसे लेते थे | विवाह के पहले हुए पुत्र को ऋषि समाज अंगीकार कर लेता था लेकिन राज परिवार नहीं | वहां नियोग पद्धति अपनाई जाती थी |

इसी के कारण शायद महाभारत में बहुत सारी घटनाएं घटित हुई | वह आगे देखेंगे कि कैसे-कैसे इन समाज के नियमों का असर इसमें सम्मिलित पात्रों पर होता गया और घटनाएं घटती गई |

उस वक्त स्त्रियों के विचारों और इच्छाओं को उतना महत्व नहीं दिया जाता था | यह बहुत सारे स्त्री – पात्रों के संवाद से पता चलता है जैसे पहले अंबा , अंबिका और अंबालिका का भीष्म , उनकी इच्छाओं का दमन कर अपहरण कर लेकर आते हैं |

सत्यवती भी अपने पिता के इच्छाओं की बलि चढ़ती है | माद्री का भाई शल्य भी उससे पूछे बगैर उसकी शादी पांडु के साथ कर देता है | कुंती की इच्छा के विरुद्ध उसे दत्तक दे दिया जाता है | पांडु अपने ही सनक में कुंती और माद्री को त्याग देता है लेकिन जब यही चीज माद्री पांडु के साथ करना चाहती है तो उसे वापस जाने के लिए कोई स्थान नहीं |

स्त्री अपनी इच्छा से नाही तो पति को त्याग सकती थी , नाहीं तो उसके रहते दूसरा विवाह कर सकती थी लेकिन पुरुष के लिए यह सब ग्राह्य था क्योंकि आर्यों ने नए नियम बनाकर स्त्री के महत्व को कम कर दिया था |

या आज की भाषा मे कहे तो कोई भी पुरुष फेमिनिज़म (स्त्रियों के अधिकारों का समर्थन) के पक्ष मे नहीं था |

लेखक की जानकारी हमने अभ्युदय वॉल्यूम 2 के वीडियो में दी है | उसे भी आप एक बार जरूर देखें | प्रस्तुत किताब के –

लेखक है – नरेंद्र कोहली

प्रकाशक है – वाणी प्रकाशन

पृष्ठ संख्या है – 469

उपलब्ध है – अमेजॉन पर

किताब के केंद्र में है भीष्म और उनकी प्रतिज्ञा | लेखक ने महाभारत की काहनियों को पाठकों के सामने इतना अच्छा वर्णित किया है कि महाभारत काल सजीव हो उठता है | लगता है की यह सब घटनाए आपके आसपास ही घट रही हो |

आप उन सारे पात्रो के मनोभावों से , सुख-दुख से जैसे जुड़ जाते हैं | राजकुमार देवव्रत ने अपने सुखों का त्याग किया | अपने पिता शांतनु के लिए , उन्होंने अपनी होने वाली माता की संतानों के लिए अपना अधिकार छोड़ दिया | इसका वचन सत्यवती के पिता दासराज ने लिया क्योंकि उसकी सोच वही तक सीमित थी |

वह राजभोग के परे कुछ भी नहीं देख पाता था | उसके इस इच्छा को पूरा करने के लिए देवव्रत ने एक भीषण प्रतिज्ञा की | इसी कारण उन्हें “भीष्म” कहा जाने लगा | सामाजिक विधि विधान और रीति-रिवाज के अनुसार उन्हें जो धर्म संगत लगा उन्होंने वह किया लेकिन उनके इस प्रतिज्ञा ने उन्हें एक व्यक्ति के तौर पर , उनके परिवार को और समाज को हमेशा कष्ट ही दिया | यह सब बताने के लिए उनके जीवन चित्र को रेखांकित किया गया है |

वह यह प्रतिज्ञा न करते , तो शायद महाभारत का युद्ध ही ना होता | वह अपने धर्म संकट , चिंतन प्रक्रिया में इतना खो गए कि कर्महीन हो गए | इस बात का पता उन्हें कुरुक्षेत्र की भूमि मे श्री कृष्ण द्वारा बताई बातों से लगता है | अपने इस कर्महीनता का प्रायश्चित करने के लिए ही शायद वह मृत्यु स्वीकार करते हैं |

अपने बचपन से ही अपने माता-पिता के प्रेम से वंचित रहे | वह आश्रमों में कठोर अनुशासन वाला जीवन जीते रहे | बड़े होते-होते उन की धर्म में चिंतन प्रक्रिया सक्रिय होती गई और साथ में विवाह संस्था से उनका विश्वास भी जाता रहा |

महासमर इस पहले भाग में शांतनु , दासराज , सत्यवती , उसके बेटे राजकुमार चित्रांगद और विचित्रवीर्य के माध्यम से लोभ , भोग , काम ईर्ष्या , अहंकार और डर जैसी भावनाओं को प्रकट किया गया है |

प्रस्तुत किताब में कुरुवंश के प्रत्येक सदस्य के चरित्र पर प्रकाश डाला गया है फिर भी भीष्म ध्रुव तारे के जैसे अपनी अलग ही चमक बिखेरते है | महाभारत का नया रूप महासमर के रूप में नरेंद्र कोहली जी ने रचा है |

रामायण और महाभारत हमारी संस्कृति की धरोहर है | इनकी वजह से संपूर्ण दुनिया हमें जानती है | कहते हैं की महाभारत में जो नहीं , वह और कही नहीं | इनमें हर वह भाव , हर वह स्थिति है जिसे हम हमारे जीवन में अनुभव करते हैं |

महाभारत भावनाओं में डुबो देने वाली कथा है | मन को तरोताजा करने वाली , अत्यंत सखोल ज्ञान देने वाली है | महाभारत मे बताई सिख आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितने सालों पहले थी | मानव प्रकृति की हर रंग इस ग्रंथ में है | हमे महाभारत पढ़ने के बाद लगता है की भीष्म को उनका अधिकार नहीं मिला लेकिन भीष्म के चरित्र को अगर सामझा जाए तो वह अधिकार की नहीं , मुक्ति की खोज में थे | उन्हें वही प्रिय था |

SUMMARY –

बंधन कहानी है सत्यवती और भीष्म के रिश्तों की , की कैसे एक सौतेली माता अपने पुत्र का तिरस्कार करती है लेकिन पति निधन के बाद राज्यलोभ के चक्कर में वह तिरस्कार भूल , उसी पुत्र पर आश्रित हो जाती है |

माता सत्यवती के इच्छाओं की पूर्ति करते-करते भीष्म को यह भी पता नहीं चलता कि , वह आगे घटने वाली घटनाओं की नींव रख रहे हैं | प्रस्तुत किताब के मुख्य पात्र है , भीष्म उनकी सौतेली माता सत्यवती और कुरुओ का राज सिंहासन |

सत्यवती और उसके पिता ने भीष्म को सब कुछ त्यागने पर मजबूर कर दिया | फिर भी उन्हें राज सिंहासन की जिम्मेदारियो से बांधकर रखा | यह बंधन सत्यवती ने भीष्म को दिया | बुढ़ापे में सत्यवती खुद तो सारे बंधन तोड़कर महर्षि व्यास के आश्रम चली जाती है लेकिन भीष्म को फिर से बंधन में बांधकर चलती है कि वह कुरुओ के नए राजा का पालन पोषण करें जबकि भीष्म एक सन्यासी का जीवन जीना चाहते हैं |

वे इन बंधनों को तोड़कर मुक्त होना चाहते हैं | सत्यवती के दिए बंधन उनको राज प्रसाद में ही रहने के लिए मजबूर कर देते हैं लेकिन भीष्म सत्यवती की बात क्यों माने ? क्यों नहीं वह अपने मन की करते हैं ? क्योंकि भीष्म अपने माता-पिता की आज्ञा और इच्छा को अपना धर्म मानते हैं |

इसीलिए तो खुद गृहस्थी बसाने की उम्र में वानप्रस्थ स्वीकार करते हैं और पिता को वानप्रस्थ होने की आयु में एक पत्नी लाकर देते हैं | इस तरह वह उदार होने के चक्कर में प्रकृति के नियमो के साथ खिलवाड़ करते है जिसका खामियाजा , उन्हें और कुरुओ को भुगतना पड़ता है | भीष्म अपना सब कुछ दाव पर लगाकर सत्यवती को माता के रूप में हस्तिनापुर लेकर आते हैं |

वह सत्यवती को माता तो मानते हैं लेकिन सत्यवती उन्हें अपने विरोधी के रूप में देखती है | वह सोचती है कि भीष्म अपना वचन नहीं निभाएंगे | उसको भीष्म पर विश्वास नहीं | वह सोचती है कि , भीष्म उनसे सब राजपाठ छीन लेंगे क्योंकि वह अभी तक ऐसे निम्न कोटि के लोगों के बीच में पली – बढ़ी है , जो एक मछली के लिए भी आपस में झगड़ लेते थे |

महाराज शांतनु तो सत्यवती के सामने असहाय है | इस उम्र में सत्यवती का उनको छोड़कर जाना उन्हें डरा देता है | सत्यवती तो एक निषाद कन्या थी | उसने इतना सारा वैभव कभी देखा नहीं | इसलिए वह सारे धन को , कुरुओ की शक्ति को , अपने मुट्ठी में रखना चाहती है |

इसी राज्य और संपत्ति की लालसा में वह अपने प्रेमी पराशर और पुत्र वेदव्यास को छोड़कर , हस्तिनापुर के महाराज शांतनु से विवाह कर लेती है | भीष्म के प्रति उसकी नफ़रत उसके बेटे चित्रांगद और विचित्रवीर्य में भी अअ जाती है | वे दोनों भी भीष्म को बिल्कुल पसंद नहीं करते | भीष्म यह नफरत सह नहीं पाते और राजमहल से दूर गंगा किनारे अपनी कुटिया में रहने लगते हैं |

सत्यवती के कारण उसके बेटे गुरुकुल में रहकर पढ़ाई करने के बजाय राजमहल में ही रहकर शिक्षा प्राप्त करते हैं | परिणाम ,में उन मूल्यों को नहीं सीख पाते जो गुरुकुल वाले बच्चे सीखते हैं | इसका परिणाम यह होता है कि वह दोनों उद्दंड होने के साथ-साथ बड़ों का मान सम्मान करना भी भूल जाते हैं |

प्रजा पर अत्याचार करना शुरू करते हैं क्योंकि वह सोचते हैं कि यह राज्य उनका है | वह यहां के राजा है और उनके अधीन लोगों को यह पता होना चाहिए क्योंकि यही सोच सत्यवती की भी है | चित्रांगद अपने अहं के कारण मृत्यु को प्राप्त होता है और विचित्र वीर्य कम उम्र में ही राज्य भोगों के कारण बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है |

उसके भी जीवन का कोई भरोसा नहीं , तब सत्यवती फिर से एक बार डर जाती है कि कहीं यह राज्य उसके हाथ से न चला जाए | तब वह भीष्म में एक पुत्र के रूप में सहारा ढूंढती हैं | भीष्म तो है ही धर्म का पालन करने वाले | माता की आज्ञा उनके लिए सर्वोपरि है | चाहे वह अनुचित ही क्यों ना हो !

सत्यवती बीमार विचित्र वीर्य का विवाह करना चाहती है | तो जिम्मेदारी फिर से एक बार भीष्म पर आ जाती है | वह काशी नरेश के तीन कन्याओं का अपहरण करते हैं | उन तीनों के मन का विचार किए बगैर कि वे कन्याएं क्या चाहती है ?

काशी नरेश भी भीष्म को नहीं रोकते | शायद इस विचार के साथ की तीन-तीन बेटियों के लिए उन्हें बहुत सा धन देना पड़ेगा और भीष्म से युद्ध करना पड़ेगा सो अलग .. |

इससे उनके सैन्य की भी हानि होगी | अंबा को छोड़कर अंबिका और अंबालिका का विवाह विचित्रवीर्य के साथ हो जाता है | यहाँ अंबिका और अंबालिका की मनोदशा का वर्णन लेखक ने बखूबी किया है |

यहाँ आप उनके चरित्रों को बखूबी जान पाओगे | नहीं तो प्रायः इन दोनों पात्रो के बारे में कोई ज्यादा जानता नहीं है | इसी तरह विचित्रवीर्य कुरुओ के राजसिंहासन का वारिस देने के पहले ही चल बसता है |

फिर से एक बार सत्यवती के दिमाग का चक्र घूमने लगता है | उस जमाने की रीति के अनुसार वह ,अपने पहले पुत्र वेदव्यास को पुत्र प्राप्ति के लिए बुलाती है |

अंबिका को धृतराष्ट्र , अंबालिका को पांडु और अंबिका का दासी मर्यादा को विदुर नाम के पुत्र मिलते हैं | सत्यवती अपने बहूओ को , भीष्म को अपनी उंगलियों पर नचाती है , लेकिन अंबिका दूसरी बार में उसका आदेश मानने से इनकार कर देती है |

सत्यवती सिर्फ वेदव्यास की बातों पर विश्वास करती है क्योंकि वह उनका अपना पुत्र है | वेदव्यास जी उसे बताते हैं कि भीष्म उसे मन से अपनी माता मानते हैं | अब वक्त के साथ सत्यवती को भी इस बात की पुष्टि होती है | वह भी भीष्म को अपने बेटे के रूप में स्वीकार कर लेती है | वेदव्यास और भीष्म के रिश्ते तो पहले से ही अच्छे हैं |

धृतराष्ट्र , पांडु और विदुर के जन्म के पश्चात भीष्म के सामने यह दुविधा आती है कि सिंहासन पर किसे असिन किया जाए | वैसे देखा जाए तो बड़ा होने के नाते राज सिंहासन पर धृतराष्ट्र का अधिकार है लेकिन वह अंधा है | भीष्म एक अंधा राजा प्रजा को नहीं देना चाहते क्योंकि वे मानते हैं कि राज्य किसी एक का न होकर पूरी प्रजा का है |

इसलिए पूरी प्रजा को एक अच्छे राजा से वंचित रखने के बजाय एक व्यक्ति को राज्य से वंचित रखा जाए तो इसमें कोई बुराई नहीं | यही सोच कर वह पांडु को सम्राट बना देते हैं | विदुर तो सम्राट नहीं बन सकता क्योंकि उसकी माता एक दासी है |

पांडु के सम्राट बनने के कारण धृतराष्ट्र जल भूल जाता है | वैसे बचपन से ही वह बहुत ईर्ष्यालु है | उसकी वाणी मीठी और मन में कपट वास करता है | वह पांडू को हर चीज से वंचित रखना चाहता है | पांडु स्वभाव से भोला – भाला है |

वह धृतराष्ट्र के बहकावे में आ जाता है | पांडु की प्रकृति भी उसके पिता विचित्र वीर्य के जैसी नाजुक है | एक सम्राट होते हुए लोग उसकी इस कमजोरी के बारे में न जान ले , इस कारण वह हस्तिनापुर में टिकता ही नहीं | धृतराष्ट्र उसे हमेशा प्रोत्साहित करते रहता है | वह तपस्या करने ऋषि श्रृंग के आश्रम में चला जाता है |

धृतराष्ट्र उसके अनुपस्थिति में राज्य संभालता है | पांडु के न रहने से धृतराष्ट्र राजा बन जाएगा और पांडु के पुत्रों के न रहने से पूरा कुरु साम्राज्य उसके बच्चों का हो जाएगा |

धृतराष्ट्र जैसे ईर्ष्यालु है , गांधारी भी वैसी ही है | हस्तिनापुर आते ही वह अपने भाव सत्यवती को बता देती है कि वह बड़ी तो है लेकिन साम्राज्ञी नहीं | गांधारी भी सोचती है कि साम्राज्ञी तो न बन सकी लेकिन राजमाता बनकर , यहां की सत्ता अपने हाथ में जरूर लेना चाहेगी |

इसके स्वप्न वह धृतराष्ट्र को भी दिखाती है कि उनका पुत्र तो यहां का सम्राट बन ही सकता है | इसके लिए उनका पुत्र ,उम्र में सबसे बड़ा होना चाहिए लेकिन यह अवसर युधिष्ठिर उनसे छीन लेता है दुनिया में पहले आकर .. .. |

इस ईर्ष्या के कारण गांधारी अपने ही बच्चे को मार देना चाहती है | जब ब्रह्मर्षि वेदव्यास को गांधारी के इन मनोभावों का पता चलता है तो वह बहुत दुखी हो जाते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि ईर्ष्या ही ईर्ष्या को जन्म देगी और यही ईर्ष्या सर्वनाश कराएगी |

गांधारी के पिता की ईर्ष्या ,गांधारी और शकुनि दोनों में आ जाती है क्योंकि उसका पिता बड़ी मजबूरी में अपनी बेटी की शादी एक अंधे राजकुमार के साथ करता है |

अपनी इस मजबूरी और अपमान का बदला लेने के लिए वह शकुनी को हस्तिनापुर के राजकरण में इंवॉल्व करता है ताकि अपनी उपस्थिति से वह कुरु राज्य को प्रभावित कर सके |

कुरु की राज्यसभा में सम्मिलित करने के लिए गांधारी धृतराष्ट्र को मना लेती है | यह कहकर कि उसका मायका दूर है | धृतराष्ट्र इतनी लंबी यात्रा नहीं कर पाएगा | इसीलिए वह अपनी इच्छाओं का दमन करेगी लेकिन अगर शकुनी यही रह गया तो , उसके रूप में उसका मायका उसके साथ में ही होगा | धृतराष्ट्र , उसकी बात मान लेता है और शकुनि अपना जाल बिछाने के लिए हस्तिनापुर मे ही रह जाता है |

इधर पांडू भी राज्य से संन्यास नहीं लेता क्योंकि अगर वह सन्यास लेता है तो दोबारा हस्तिनापुर लौटकर नहीं आ सकेगा और फिर उसकी संतान सिंहासन पर अपना हक नहीं जता पाएगी |

इसलिए कुंती के कहने पर वह संन्यास नहीं लेता बल्कि तपस्या करने वन में चला जाता है ताकि वह अपने लक्ष्य प्राप्ति के बाद हस्तिनापुर लौट सके | कुंती और माद्री को पांच पुत्र प्राप्त होते हैं | अब पांडु का उद्देश्य पूरा हो चुका है | जिस दिन वह हस्तिनापुर वापस आने ही वाला होता है उसी दिन उसकी मृत्यु हो जाती है |

कुंती वापस हस्तिनापुर नहीं लौटना चाहती क्योंकि जहां उसका पति नहीं वहां वह लौटकर क्या करें ? हस्तिनापुर से उसके सारे रिश्ते पांडू की वजह से थे | वह ऋषि श्रृंग के ही आश्रम में रहकर अपने बच्चों का पालन पोषण करना चाहती है | जहां उसे सब अपना मानते हैं लेकिन पांडू की यह इच्छा नहीं थी |

उसने पुत्र इसीलिए प्राप्त किए क्योंकि वह चाहता था कि उसके वंशज हस्तिनापुर के सम्राट बने | यही बात ऋषि शृंग , कुंती को समझाते हैं और उन सबको हस्तिनापुर तक छोड़ने के लिए आते हैं |

अब अगले भाग में देखेंगे कि , क्या कुंती का सोचना उचित था ? यहाँ उसका कोई अपना है या नहीं | धृतराष्ट्र , गांधारी , शकुनी जैसे कपटी लोगों से कैसे वह अपने बच्चों को बचाएगी ? पढ़िएगा जरूर ! तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहीए |

मिलते हैं और एक नई किताब के साथ , तब तक के लिए

धन्यवाद !!

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