AUGHAD BOOK REVIEW SUMMARY IN HINDI

औघड़

नीलोत्पल मृणाल द्वारा लिखित

रिव्यू –

    औघड़ यह नीलोत्पल मृणाल द्वारा लिखित दूसरी किताब है | उनकी पहली किताब “काला घोडा” यह उनके सिविल सर्विसेस की तैयारियों के अनुभवो पर बेस है जिसमे उन्होंने अपने अनुभव साझा किए है | उनके कई सारे साथी अभी कलेक्टर और सिविल सर्विसेस के अन्य पदों पर आसिन है | इन सब के कमेन्ट आप उनकी पहली किताब के प्रारंभ मे पढ़ पाओगे | 

      इस परीक्षा की तैयारी जो भी करता है | वह अपने देश की परिस्थितियों को करीब से जानने लगता है | यह परीक्षा भले ही उनके कई सारे विद्यार्थियों को कोई पद ना दे पाए पर उन्हे एक परिपक्व व्यक्ति जरूर बना देती है जिनका देश मे मौजूद हर एक चीज को देखने का नजरिया कुछ अलग ही होता है | ऐसे ही कुछ सत्यों से लेखक ने अपनी किताब द्वारा लोगों को रूबरू करवाया है |

औघड़ भारतीय ग्रामीण जीवन और परिवेश की जटिलताओ पर लिखा गया उपन्यास है | एक युवा लेखक द्वारा इसमे उन पहलुओ पर बेबाकी से लिखा गया है जिन पर पिछले दशक के युवा लेखकों द्वारा बहुत ही कम लिखा गया है | ऐसा लगता है जैसे लेखक ने यह किताब बहुत सोच समझकर लिखी है क्योंकि उन्होंने जो शब्द , वाक्य उपयोग मे लाए है | उनके बहुत गहन अर्थ निकलते है | काश…. किताब के उन शब्दों को हम आप को बता पाते | खैर …. कोई बात नहीं , जब आप किताब पढ़ेंगे तो आप को दिख ही जाएंगे |

इस अप्रतिम किताब के

लेखक है – नीलोत्पल मृणाल

प्रकाशक है – हिन्द युग्म

पृष्ठ संख्या – 384

उपलब्ध – अमेजन , किन्डल

पहले तो किताब हमे बहुत बोर लगी | दो बार पढ़ते – पढ़ते रख दी लेकिन जैसे – जैसे आप आगे पढ़ते जाएंगे | आप को किताब नीचे रखने की इच्छा नहीं होगी | किताब का अंत तो आप को हिलाकर रख देगा | गाँव के किरदार आप को बहुत बार जाने पहचाने लगेंगे | उन जैसे बहुत बार फिल्मों मे देख चुके है | न्यूज पेपर मे पढ़ चुके है | किताब आप को ठेठ देहाती भाषा से रूबरू करवाती है | पुरुषोत्तम और फुँकन सिंह गाँव के उच्चभ्रू और ताकतवर लोगों का प्रतिनिधित्व दर्शाते है |

      लोकतंत्र आया फिर भी वह ताकत के बल पर अपनी सत्ता बनाए रखना चाहते है | उनके खिलाफ एक भी गलती करने वाले को दूसरे दिन उनके दरबार से बुलावा आ जाता है | हमे सबसे रोचक पात्र बिरंचि का लगा जो गाँव वालों के नजरों मे तो एक पगलट आदमी है लेकिन असल मे वही सबसे होशियार युवक है | गाँव का शुभचिंतक है |

     पंचायत चुनावों के द्वारा गाँव के कुछ उच्चवर्णीय लोगों की बुरी सत्ता को समाप्त कर गाँव के बाकी लोगों को एक साम्मानित जीवन देना चाहता है | इसीलिए किसी कमजोर को खड़ा करके उसे चुनाव जितवाकर वह चुनाव की दिशा ही बदलना चाहता है लेकिन गाँव की राजनीति के चलते उसके लोग उसी के साथ धोका करते है | राजनीति के आड़ मे गाँव का भी एक बीभत्स चेहरा देखने को मिलता है | आइए देखते है , इस किताब का सारांश ….

सारांश –

  कहानी मलखानपुर के गाँव मे घटती है जहां जातपात का बडा ही वर्चस्व है फिर भी नई पीढ़ी के लोग इन सब बातों को नहीं मानते और मिलजुलकर गाँव की दशा को बदलना चाहते है | गाँव के कुछ उच्च जातीय और उच्चभ्रू लोग जिनकी पुरखों से गाँव पर सत्ता चलते आयी है | वे इन नई पीढ़ी और पिछड़े लोगों को आगे नहीं जाने देना चाहते | इसमे शामिल है , पुरुषोत्तम और उसका बेटा फुँकन | 

    फुँकन बिना चुनाव के ही गाँव का प्रतिनिधि है क्योंकि उस के पुरखे हमेशा से ही गाँव का प्रतिनिधित्व करते आए है | उसको लगता है उसके अलावा यह हक किसी और का हो ही नहीं सकता | बिरंचि गाँव का गरीब लेकिन पढा लिखा नवयुवक है | कुछ कारणों की वजह से वह मार खाता है जिस कारण वह कुछ भी लिखने मे अक्षम है | इस कारण उसका भविष्य बर्बाद हो जाता है |

वह अपने मित्र लखन लोहार के साथ नशा करता है | उसके नशे की आदत और उसकी बातों के कारण लोग उसे पागल समझते है क्योंकि लोग उसकी बाते समझने के लिए सक्षम नहीं है तभी तो शहर के डॉक्टर के यहाँ साफ़सफ़ाई करने वाला उस गाँव मे डॉक्टर बनकर अपना गुजर बसर करता है | बिरंचि के पास जीने का कोई मकसद नहीं | इसी दौरान गाँव से बचपन मे भागकर गया हुआ पबीत्तर खूब सारे पैसे कमाकर गाँव आता है | 

     उसकी संगत मे बिरंचि जीवन की तरफ थोड़ा आशा से देखने लगता है | चुनाव मे पिछड़े वर्ग की तरफ से , पबीत्तर को खड़ा कर दिया जाता है | इसमे गाँव के ही उच्च जाती से आए हुए चंदन और शेखर इनका साथ देते है | शेखर दिल्ली मे पढ़ता है और वहाँ के सुधारवादी माहोल से प्रेरित है जैसे की राँझना पिक्चर मे दिखाया गया है | 

     अब बिरंचि और उसके चार दोस्त मिलकर चुनाव की तैयारियों मे लग जाते है लेकिन फुँकन सिंह से यह कैसे बर्दाश्त होगा ? वह और उसका पिता अपने गंदे राजनीति के मोहरे फेंकते है | बिचार बिरंचि इसमे फंस जाता है | उसके साथ विश्वास घात होता है | विश्वास घात करने वाला और कोई नहीं बल्कि उसके चार दोस्तों मे से ही एक है | अब पढ़कर जानिए की दोस्ती के नाम पर कलंक कौन है ?

हमे तो यह किताब अच्छी लगी | आप को भी लगेगी | जरूर पढिए …. |

धन्यवाद !

 

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