मदर इंडिया
कैथरीन मेयो द्वारा लिखित
रिव्यू – यह एक ऐसी विवादग्रस्त किताब है जिसने भारत मे खलबली मचा दी थी | जिसकी लेखिका अमेरिकन थी और अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान भारत आयी थी | वह एक इतिहासकार थी | उन्होंने पूरे भारत का दौरा किया | लोगों से बातचीत की | इन लोगों मे उच्छभ्रू और निन्म दोनों वर्गों के लोग शामिल थे | उनके संस्कृति और रीतिरिवाजों को पास से जानने की कोशिश की | उनका कहना था की उन्होंने खुद जो देखा – सुना उसे इस किताब मे लिख दिया |
इस किताब ने उन्हे विदेशों मे तो खूब प्रसिद्धि दिला दी लेकिन भारत मे वह उतनी ही कुप्रसिद्ध हुई | यहाँ तक के उनके पुतले और किताब भारत के लोगों ने जला दी | भारत के नेताओ का कहना था की हम अंग्रेजों की दासता की वजह से पिछड़े हुए है , अज्ञानी है ,गरीब है लेकिन लेखिका ने हर चीज के लिए प्रमाण देते हुए यह प्रमाणित करने की कोशिश की है की भारतीय पिछड़े , अज्ञानी , गरीब उनके रीतिरिवाजों की वजह से है | इन रीतिरिवाजों मे शामिल है – बालविवाह , विधवाओ का पुनर्विवाह न होना , सतीप्रथा ( लड़कियों को उनके पति के साथ जींदा जला दिया जाता ), प्रसव प्रक्रिया घर मे ही गंदगी मे होना | वह भी गंदी और अनपढ़ दायी के हाथों…………|
किताब के अनुसार अंग्रेजों ने भारत के लोगों का जीवनस्तर बढ़ाने के लिए बहुत काम किए | भारत को विदेशी लोग गांधीजी का देश कर के जानते है | शायद इसलिए लेखिका ने बहुत बार उनके नाम का उल्लेख किया है | जब यह किताब प्रकाशित हुई तो पूरे भारत मे खलबली मच गई क्योंकि इसने भारत का बहुत ही बदसूरत चेहरा दुनिया के सामने लाकर रख दिया |
उस वक्त के नेताओ को लगा की इसमे सच्चाई कम और अतिशयोक्ति ज्यादा है | इसलिए इस किताब के जवाब के लिए लाला लाजपतराय को किताब लिखनी पड़ी | इसी किताब के जवाब के लिए “मदर इंडिया” फिल्म भी बनी | इस किताब मे उस वक्त के बहुत सारे दिग्गज लोगों के विचार भी बताए गए है जिसमे से कुछ किताब के विषय को सही बताते थे तो कुछ गलत | उस दौर के नेता सिर्फ स्वतंत्रता की ओर अपनी आंखे गड़ाए बैठे थे और उसी के लिए कार्यरत भी थे लेकिन अपने ही देश के स्त्री के प्रति उदासीन थे |
किताब मे उन सारे पत्र , पत्रिका , समाचार पत्र ई. के प्रमाण दिए है जिससे उनकी लिखी बातें सही साबित हो | इस किताब का विषय इतना अधिक व्यापक है की हम जैसे छोटे वाचक इसपर कोई टिप्पणी नहीं दे सकते लेकिन हमारी यह इच्छा जरूर है की भारत के स्त्री की व्यथा सुनाने वाली इस किताब को वरिष्ठ इतिहासकार और आलोचक जरूर पढे | हम शहरों मे रहने वाले लोगों को लगता है की सबकुछ अच्छा हो गया है लेकिन अखबार और टी. वी. चैनल्स प्राचीन कुप्रथाओ से जुड़ी कभी – कभी ऐसी खबरे सुना देते है की लगता ही नहीं हम इक्कीसवी सदी मे जी रहे है |
भारत के स्त्री की स्थिति अभी भी बहुत सारे पिछड़े गांवों मे दयनीय अवस्था मे है | इन सारे स्थितियो मे से निकलने का बस एक ही उपाय है _ शिक्षित होना | इस बहुचर्चित कृति की लेखिका है –
मूल लेखिका – कैथरीन मेयो
हिन्दी अनुवाद – कँवल भारती
पृष्ठ संख्या – 444
प्रकाशक -फॉरवर्ड प्रेस ( प्रथम संस्करण – 2019 )
कैथरीन मेयो की यह किताब जितनी विश्वविख्यात है उतनी ही यह विवादग्रस्त भी है | किताब जब प्रकाशित हुई तो ब्रिटेन ,भारत और अमेरिका मे खलबली मच गई | यह किताब सन 1924 – 1927 के दशक मे लिखी गई जब अंग्रेजों का भारत पर शासन था | तब न्यूयॉर्क के टाउनहॉल के बाहर इसकी प्रतिया जलाई गई | ब्रिटेन और भारत की केन्द्रीय असेंबली मे बहसे हुई |
भारत के केन्द्रीय असेंबली मे इसपर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई | बहुत कम किताबे ऐसी होती है जो सबका ध्यान अपनी ओर खींचती है | किताब पूरे भारत भर मे स्त्रियों की दशा कितनी दयनीय है | इस पर प्रकाश डालती है |
कोलकाता की जीवनशैली को इसमे बहुत पास से बयान किया गया है | इस किताब मे पूरे 29 अध्याय है और पाँच भागों मे बांटे गए है | आइए इसी के साथ देखते है इसका सारांश………….
सारांश –
अब का कलकत्ता तब के ब्रिटिश साम्राज्य का दूसरा बडा शहर था | इसलिए लेखिका ने शायद अपनी किताब की शुरुवात के लिए इस शहर को चुना | सबसे पहले अध्याय का नाम है “मांडले की बस” | इसमे उन्होंने पूरे कलकत्ता का वर्णन किया है | चाहे वह सड़के , दुकाने , इमारते हो या वहाँ की पूजापाठ का तरीका , या फिर वहाँ की जीवनशैली और रीतिरिवाज हो | इन सारे रीतिरिवाजों को लेकर निन्म स्तर और उच्च स्तर के लोग क्या सोचते है ? मुख्यतः इसपर प्रकाश डालने की कोशिश की है | उस वक्त भारत इन दो स्तरों मे ज्यादा बटा हुआ था | इसका मुख्य कारण बताया गया है – अशिक्षा |
भारत के लोग अपनी गरीबी और दुर्दशा के लिए अंग्रेजों को जिम्मेदार मानते थे | जब की लेखिका का कहना है की भारत मे हमेशा अराजकता थी | यहाँ के राज्य आपस मे ही लडा करते | इस कारण विदेशी हमलावर भारत पर आक्रमण किया करते | प्राचीन हिन्दू जाती के लोग बिना लड़े ही हमले को सह लेते और खामोश पड़े रहते |
इसके बाद उन्होंने बालविवाह के दुष्परिणामों के बारे मे बताया है की कैसे लड़कियों का बचपन मे ही विवाह हो जाने के कारण और कम उम्र मे ही माँ बनने के कारण उस लड़की पर और उसके बच्चे पर प्राणघातक संकट मंडराते रहते अगर उसे और उसके बच्चे को उचित उपचार वक्त पर नहीं मिलते तो उनकी जान भी चली जाती | बालविवाह को लेकर एक बिल भी प्रस्तुत किया गया था |
उसका तर्क किताब मे दिया गया है | शरीर से अपरिपक्व माँ की संतान होने की वजह से , बच्चे भी अशक्त होते | लेखिका के मतानुसार वे न तो अच्छे डॉक्टर और सैनिक बन सकते , न तो समाज के अच्छे निर्माण मे अपना सहयोग दे सकते | बालविवाह रोकने के लिए अलग – अलग बिल प्रस्तुत किए गए लेकिन किसी का भी फायदा नहीं हुआ क्योंकि यहाँ के लोगों ने रीतिरिवाजों को सबसे ऊपर रखा | बालविवाह की वजह से बहुत सी लड़कियों की जल्दी ही मृत्यु हो जाती |
फिर किताब देवदासी प्रथा की वजह से लड़कियों का जीवन कैसे प्रभावित होता है | इसपर प्रकाश डालती है | इसके बाद उन्होंने स्त्रियों की प्रसूति पर ध्यान दिया है जहां उनकी प्रसव प्रक्रिया को घर मे ही किसी गंदी रूम मे किया जाता | वह भी दाई के हाथों जिसे न तो इसका कोई ज्ञान रहता था , न तो इससे जुड़ी साफ़सफ़ाई का .. | दाई यह काम इसलिए करती थी क्योंकि यह उसका वंश परंपरागत व्यवसाय था | अगर वह यह काम नहीं करेगी तो खाएगी क्या ? क्योंकि उसे अपनी जाती के बाहर नया काम करने की छूट नहीं थी |
यह दाई निन्म स्तर के जाती की होती थी क्योंकि भारत मे स्त्रियों का प्रसव याने एक अछूत काम .. | इसलिए इस काम के लिए स्त्री भी अछूत जाती की ही चाहिए थी | प्रसव से जुड़े सारे रीतिरिवाज निचले और उच्च स्तर के दोनों लोगों मे एक जैसे ही थे | जिस – कारण इस गंदे हाथों वाली और अनपढ़ दाई की वजह से प्रसूता स्त्री और उसके नवजात बच्चे को बहुत बार इन्फेक्शन हो जाता था या फिर उनको अपनी जान गवानी पड़ती |
पुरुषों का तो इसमे कोई नुकसान नहीं होता था क्योंकि वह पहली पत्नी के मरने के बाद दूसरी शादी कर लेते और दूसरी भी चल बसी तो तीसरी …. | इसलिए उनके जीवन मे स्त्रियों का कोई मोल नहीं था | यह पुरुषों के पुनर्विवाह की बात सच्ची लगती है क्योंकि प्रेमचंदजी के बहुत से उपन्यास मे इसका जिक्र मिलता है | वह भी तो उसी दौर के लेखक थे |
रीतिरिवाजों के कारण अमीर लोग भी प्रसव के दौरान स्वास्थ्य सेवाए लेने मे आनाकानी करते थे | घर की औरते प्रायः पुरुषों को इन सारी परिस्थितियों से दूर रखती थी | इस कारण अनजाने मे ही एक स्त्री ही दूसरे स्त्री की दुश्मन हो जाती | इस किताब मे दिए हुए स्त्री – प्रसूति से रिलेटेड जीतने भी किस्से या फिर प्रस्तुत बिल पढ़ेंगे तो आप के रोंगटे खड़े हो जाएंगे |
किताब पढ़कर ऐसे लगता है जैसे पहले की औरतों को बहुत ही विषम परिस्थिती यों मे जीना पड़ता था | तब भारतीय स्त्री के लिए पति ही परमेश्वर था | वो जो कहे वह वही करती थी | बचपन मे ही शादी के नाम पर वह मायके से विदा हो जाती और अगर पति उसे छोड़ता है तो उसका कोई ठिकाना न रहता | न तो उसे मायके मे जगह मिलती नहीं तो ससुराल मे | मायके और ससुराल के जायदाद मे भी उसको कोई हक नहीं मिलता था | उसे पूरी जिंदगी पहले अपने पिता पर , फिर पति पर और बाद मे अपने बेटे पर आश्रित रहना पड़ता |
इसका एक बडा कारण अशिक्षा था | ऐसे मे उन पर बेटे पैदा करने के लिए भारी दबाव आ जाता क्योंकि वह कुल का दीपक होता था | किताब मे दिए गए बयानों से पता चलता है की कुछ लोगों ने लड़कों को जींदा रखकर लड़कियों को शिशुअवस्था मे ही मार डाला | यह ऐसे भयानक तथ्य है जिससे किताब पढ़कर ही रूबरू हो जाया जा सकता है | क्या यह सब सच हो सकता है ? इसके लिए हमे भी और किताबे पढनी पड़ेगी | किसी न किसी किताब मे इसका जिक्र आएगा ही | पुराने हिन्दू रिवाजों के अनुसार पुरुष पहली पत्नी को त्याग भी सकता था | उसे गुलाम भी बना सकता था और पहली पत्नी के रहते हुए दूसरी पत्नी भी ला सकता था | इस रिवाज के कारण कितने ही लड़कियो के जीवन उजड़ गए | इसका लेखा जोखा लेखिका ने यहाँ दिया है |
फिर किताब का वह अध्याय आता है , जहां बात होती है विधवाओ को इतनी कठोर शिक्षा क्यों ? इस सवाल के जवाब मे उस वक्त के लोगों के जवाब अगर आप पढ़ेंगे तो आप उनकी सोच पर दंग रह जाओगे | फिर है भारत मे फैली और एक कुप्रथा – सती प्रथा के बारे मे | इसके खिलाफ राजा राम मोहन राय इन्होंने बहुत काम किया | आखिर सती प्रथा को रोकनेवाला ऐक्ट पास हो गया | जिस भारत देश के लोग अपनी मातृभूमि को माता कहते थे | वही लोग रीतिरिवाजों के नाम पर अपने बहु – बेटियों की क्या दुर्दशा करते थे | यह आप को किताब पढ़कर समझ मे आएगा |
फिर किताब मे बात होती है पर्दा प्रथा की | वैसे तो किताब मे इसपर व्यापक चर्चा की गई है | फिर भी इसके दुष्परिणाम यह दिखाते है की इस प्रथा के कारण स्त्रियों को पर्याप्त ऑक्सीजन न मिलने के कारण उन्हे तरह – तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ता है | फिर बात आती है – स्त्रियों के साक्षरता की | अव्वल तो उस जमाने मे स्त्रियों को पढ़ने – लिखने का अधिकार नहीं था |
कुछ उच्च कुलीन स्त्रिया अगर पढ़ – लिख भी जाती तो भी अन्य स्त्रियों को साक्षर करने मे उनका कोई योगदान नहीं रहता | इसका एक कारण स्त्री का स्वतंत्र न होना बताया गया है जिस कारण वह अकेले घर के बाहर नहीं जा सकती थी और दूसरा है पुरुषप्रधान संस्कृति | अगर कोई लड़की पढाने के लिए राजी होकर किसी गाव मे चली भी जाती तो उसकी पवित्रता कुछ पुरुषों द्वारा हर ली जाती |
स्त्री उसकी अशिक्षा के कारण अपना योगदान देश की उन्नति के लिए भी नहीं दे पाती | इस कारण भी तब देश पिछड़ा हुआ था | अशिक्षा के कारण स्वच्छता और व्यवस्थित तरीके से रहना भी उनको पता नहीं था | इस कारण भी बहुत सी स्त्रिया और उनके बच्चे बीमारियों का शिकार हुआ करते | फिर जातिव्यवस्था के उच्च स्तर के बारे मे बताया गया है की सिर्फ वही लोग पढे लिखे होने के कारण बड़े – बड़े पदों पर उन्होंने ही कब्जा करके रखा और दूसरों को शिक्षा से वंचित रखा |
लेखिका और एक बार तब के भारत मे कुप्रचलित जाती व्यवस्था पर प्रहार करती है | जिसमे प्रायः चौथे स्तर के लोगों को अछूतो का दर्जा दिया जाता | उनका जीवन और उसका मूल्य पशुओ से भी बदतर हुआ करता था | इसलिए प्रायः अछूत कहे जाने वाले यह लोग ईसाई धर्म स्वीकार कर लेते थे | जिससे उनकी अछूतो की श्रेणी मे गिनती नहीं होती थी |
ब्रिटिश लोग इनको पढालिखा कर अच्छी ज़िंदगी देना चाहते थे जबकी भारत के उच्च श्रेणी के लोग और साहूकार चाहते थे की वह अशिक्षित ही रहे ताकि वह उनको अपने इशारों पे नचा सके इसलिए भारत की आबादी का एक बहुत बडा हिस्सा रहे इस जनसंख्या को लगता था की ब्रिटीशो का ही राज रहे क्योंकि ब्रिटिश राज में उनको कुछ राहत थी |
उन्हे लगता था की सत्ता अगर फिर से उच्च भ्रू के हात में चली जाएंगी तो उनका फिरसे शोषण शुरू हो जाएगा इस किताब में दी गई बहुत सी बातें विरोधाभासी लगती है जैसे की इतिहास की कुछ किताबों में लिखा है की ब्रिटिश जबरदस्ती लोगों को ईसाई धर्म लेने पर मजबूर किया करते जबकी यह किताब कहती है की भारत के बहुत से लोग स्व खुशी से धर्म परिवर्तन किया करते ब्रिटिशो ने भारत की जनता को शिक्षित करने के लिए बहुत प्रयत्न किए जिसमे शामिल है स्कूल और कॉलेज बनवाना उनमे टीचर्स नियुक्त करना और इन सब का खर्च खुद ही वहन करना |
नवयुवक अगर विश्वविद्यालयों में जाता है तो विश्वविद्यालय को उसको नौकरी भी देनी पड़ेगी अगर ऐसा नहीं होता तो इस युवक को लगता है की कॉलेज जाने का क्या फायदा ? इस हालत में वह विश्वविद्यालय बंद करने के लिए आंदोलन भी करने को तयार है | वह पढ़-लिखकर ग्रैजूएट हो भी जाए तो उनको सिर्फ लिखा पड़ी का ही काम चाहिए उन्हे मेहनत के काम करने मे शर्म आएगी |
ऐसी परिस्थिति में ब्रिटिशो के सारे प्रयास विफल हो जाते थे |
उसके बाद का विषय है भारत में पवित्र मानी जानीवाली गोमाता के बारे में | तब के भारत में लोगों के लिए गाय का क्या महत्व था ? यह आप प्रेमचंद जी के उपन्यास “गोदान” से जान सकते है | जो उनकी बहुत ही प्रचलित कृति है | बहेरहाल , हम बात करते है इस किताब में दी गई बातो के बारे में | यहाँ बताया गया है की, लोग गाय को तब तक अपने घर में रखते थे जब तक वह उनके काम की थी उसके बाद उसका कोई ख्याल नहीं रखा जाता था|
वैसे भी भारत एक कृषिप्रधान देश था तो हर किसान के पास जरूरत से ज्यादा मवेशी होते थे लेकिन उनके चराई के लिए जो जमीन होती थी वह बहुत ही कम.. परिणाम पशु पेट भर खाना नहीं खा पाते थे | किसान पशुओ के चारे के लिए आवंटित किए गए जमीन पर भी अपनी उपज निकलता था | परिणाम, उसके पशु भूक के कारण जल्दी मर जाते | वह इसका दोष भी ब्रिटिश राज्य पर लगाता | किसान ,उसके मवेशी , उनके पशुओ के लिए आवंटित की गई जमीन और ब्रिटिश सरकार द्वारा चलाए गए कार्यक्रम इन सब का लेखा – जोखा लेखिका ने यह दिया है |
फिर लिखा है भारत की धार्मिक नागरिक बनारस के बारे में | एक पर्यटक के तौर पर उन्होंने जिस गंदगी को देखा वही भारतीय लोग अपनी परंपरा के अनुसार उसे पवित्र मानते थे | एक ही जगह के पानी को दैनंदिन कामों के उपयोग में लाने से बहुत सी बीमारिया होती थी | जिसमे प्रमुख है – हैजा | अब उसके फैलाव को रोकने के लिए काम भी सरकार को ही करना होता था | इसके लिए लेखिका ने 21 जनवरी 1926 को यंग इंडिया मे प्रकाशित ,पृष्ठ 3991 “अवर इनसैनीटेशन” यह लेख पढ़ने की सलाह दी है | तब के भारत के लोग इतने अंधविश्वासी थे की प्रशिक्षित डॉक्टरो से इलाज करवाने की बजाय वह नीम हकीमों पर ज्यादा भरोसा करते थे | परिणाम, अच्छा और वक्त पर इलाज न मिलने के कारण उन्हे अपनी जान गवानी पड़ती थी |
भारतीय हमेशा कर्ज में डूबा रहता था क्योंकी उसकी प्रतिष्ठा और प्रथा उसे अपनी कमाई से ज्यादा खर्च करने की मांग करती थी | इसके लिए उसे साहूकार से कर्ज लेना पड़ता था | यह साहूकार ब्रिटिश सरकार से नफरत करता था क्योंकि सरकार ने लोन की व्यवस्था कर दी थी जिस कारण साहूकार का धंदा – मंदा पड़ जाता था | वह लोगों की अशिक्षा का फायदा उठाकर उन्हे ठगता था |
यह तो हमने किताब में वर्णित कुछ ही मुद्दों को आपके सामने रखा है लेकिन लेखिका ने छोटी से छोटी बातों पर प्रकाश डाला है | इसमे कितनी बातें सच्ची और कितनी बढ़ा – चढ़ा कर बताई गई है | यह आपको ही तय करना है | किताब को एक बार जरूर – जरूर पढिए |
Conclusion
मदर इंडिया – एक ऐसी किताब जो हमे उस वक्त के भारतीय समाज मे स्त्रियों और शूद्रों की स्थिति कितनी दयनीय थी ? इसके दर्शन कराती है | जब भारत के लोग अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे थे तब किताब की लेखिका कैथरीन मेयो ने भारत के समाज , धर्म ,संस्कृती और स्त्रियों की दयनीय स्थिति पर प्रहार किया था | इस किताब की वजह से भारतीय समाज मे इतनी क्षुब्धता बढ़ गई की , इस किताब के उत्तर मे भारतीय सिनेमा जगत ने “मदर इंडिया ” नाम की फिल्म बनाई |
इस फिल्म की नायिका “राधा ” अपने दो बेटों को हलाखी के परिस्थिति मे पालती है | पर इससे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता | वह अपने जीवन जीने के नैतिक मूल्यो पर कायम रहती है | अच्छे जीवन के लिए वह अपने मूल्यों के साथ कोई समझौता नहीं करती | इन्ही नैतिक मूल्यों पर जब उसका छोटा बेटा हल्ला बोलता है तो वह उसे गोली मारने से भी पीछे नहीं हटती |
इसमे भारतीय नारी को एक स्ट्रॉंग व्यक्तित्व के रूप मे दिखाया गया है जब की कैथरीन मेयो की किताब मे भारतीय नारी की दशा अति दयनीय बताई गई है | हालाकी , उसमे बताई गई परिस्थितियों मे बहुत सी परिस्थितियाँ सच्ची थी लेकिन उनमे अतिशयोक्ति बहुत ज्यादा थी | इसमे स्त्रियों की जो – जो परिस्थितियाँ बताई गई है | उनमे से कुछ – कुछ सच्ची थी | इसकी प्रामाणिकता उस वक्त के लेखकों की किताबों से मिलती है जैसे की प्रेमचंद जी की किताबे , उनसे से पता चलता है की , नाबालिग बच्चियों की शादी अधेड़ उम्र के व्यक्ति के साथ होती थी |
स्त्रियों की प्रसूति एक अलग कमरे मे होती थी जहां दूसरी प्रसूति तक कोई भी नहीं झाकता था | प्रायः वह धूल से भरा एक स्टोर रूम होता था | साधारण वर्ग की स्त्रिया प्रसूति के लिए अनपढ़ दाई पर निर्भर रहती थी | वह ब्रिटिशो के द्वारा स्थापित अस्पताल मे जाने से कतराती थी | यही स्थिति उच्च वर्ग के स्त्रियों की भी रहती थी क्योंकि पीढ़ी दर पीढ़ी दाई ही उनके यहाँ प्रसूति करवाते आई थी और उनके घर के पुरुष और बूढ़ी स्त्रिया इस रूढ़ी को बदलने के लिए तैयार नहीं थी |
बालविवाह और प्रसूति की ऐसी परिस्थितियों के कारण जच्चा और बच्चा मृत्यु दर बढ़ गए थे | राजा राम मोहन राय ने सती बंदी के खिलाफ लड़ाई लड़ी | महर्षि धोंडो केशव कर्वे इन्होंने भारतीय समाज मे विधवा पुनर्विवाह व स्त्री शिक्षा के लिए प्रयास किए और पुना मे फरग्युसण कॉलेज की स्थापना की | डॉ. बाबासाहब आंबेडकर शूद्रों के हक के लिए लड़े | कैथरीन मेयो बताती है की ब्रिटिशो ने भारत मे बहुत से सुधार किए | पर कोई भी सुधार करने के लिए उन्होंने कभी हस्तक्षेप नहीं किया क्योंकि वह जानते थे की इससे भारत मे क्षुब्धता व्याप्त हो जाएगी और इससे उनकी सत्ता जाती रहेगी |
धन्यवाद !
Wish you happy reading………….