पावनखिंड
रणजीत देसाई द्वारा लिखित
रिव्यु और सारांश –
पावनखिंड का नाम पहले घोडखिंड था | बाजीप्रभु देशपांडे इन्होने शिवाजी महाराज के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी | उनके इसी शौर्य के कारण घोड़खिंड का नाम छत्रपति शिवाजी महाराज इन्होने , पावनखिंड कर दिया | इस नाम से अमेज़न प्राइम पर मराठी में फिल्म भी आनेवाली है | बाजीप्रभु देशपांडे, उनके बड़े भाई फुलाजी देशपांडे और 300 मावलो की वीरगाथा बतानेवाली इस किताब के लेखक है – रणजीत देसाई
प्रकाशक – मेहता पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ संख्या – 164
लेखक के बारे में जानकारी आप हमारे वेबसाइट पर उपलब्ध “मेख – मोगरी” इस ब्लॉग में पढ़ सकते है |
बाजीप्रभु पहले बांदलो के दीवान थे | बांदल मुग़ल सल्तनत के लिए काम करते थे | राजे बाजीप्रभु के बारे में जान गए थे की वह एक वीर योद्धा है | उन्हें राजे स्वराज्य में लाना चाहते थे | जैसे की सब जानते है राजे में एक अलग ही सम्मोहन था जो अपनी बातो और वीरता से सबको अपना बना लेते थे | एक किले की लड़ाई के दौरान आखिर राजे ने बाजीप्रभु और फुलाजी इनका मन जीत ही लिया | उन्हें अपना बना लिया | जैसे ही इन दोनों भाइयो ने राजे को अपना मान लिया तब से ही वह राजे की परछाई बन गए | बडे होने के नाते दोनों भाई राजे को पुत्रवत प्रेम करते थे | यह किताब शिवाजी महाराज के जीवन के उस हिस्से के बारे में बताती है जहाँ उन्होंने अपने कुछ अजीजो को खो दिया था |
बात तब की है जब सिद्धि जौहर ने “पन्हाला” किले को घेरा डाला हुआ था | इससे बचकर जाने के लिए बाजी ने दो पालखिया मंगवाई | एक में राजे को बिठाया और और दूसरी में राजे के प्रतिरूप “शिव न्हावी” को | गर्व की बात यह है की शिवा को पता था की उसको मौत मिलनेवाली है फिर भी उसके चेहरे पर शिकन तक नहीं थी बल्कि अपने राजे के लिए कुछ कर गुजरने का जूनून और समाधान था | धन्य है वे सारे लोग…….. उन्हें हमारा शत – शत नमन !
बाजी- फुलाजी उनके ६०० साथी लोगो के साथ पैदल चलते हुए आखिर पन्हाला से भागने में सफल हो जाते है | जब राजे पालखी में बैठे थे और सब पैदल चल रहे थे तब महाराज का दिल टूटकर बिखरा जा रहा था क्योंकि उन्हें लग रहा था की उनके कारण उन सबको बहुत तकलीफ हो रही है | उन्हें अपने लोगो से बेहद प्यार था चाहे वह स्वराज्य का अद्नासा सिपाही ही क्यों न हो…….?
जब सिद्धि को उसके साथ हुए छल का पता चलता है तो वह मसूद और अफजल खान के बेटे फाजलखान को सेना लेकर राजे के पीछे भेजता है | रातभर के भूके – प्यासे और लगातार चलकर थकेहारे बाजी – फुलाजी को जब यह पता चलता है तो वह 300 मावलो के साथ राजे को विशालगढ़ की ओर भेज देते है और खुद दोनों भाई बचे 300 लोगो के साथ घोड़ खिंड का रास्ता रोके खड़े रहते है ताकि मसूद और फाजल खान की सेना वहां से आगे न जा सके | बाजी घायल होने के बाद भी तब तक लड़ते रहते है जब तक विशालगढ़ से तोफ की आवाज नहीं आती क्योंकि विशालगढ़ से तोफ की आवाज आना मतलब उनके राजे का सुरक्षित वहां पहुँचना……
बाजी और फुलाजी का अंतिम दर्शन गढ़ पर सबको रुला देता है | अपने इन प्यारे लोगो को खोने के बाद राजे भी अपने आसू रोक नहीं पाते |
पढ़ते – पढ़ते हमारे भी आँखों से आंसू सहज ही निकल जायेंगे | पृथ्वी पर घटित इन सत्य घटनाओ को जरूर पढ़े | खुद भी इतिहास जाने और अपने अगले पीढ़ी को भी जरुर बताये | किताब जरुर पढ़े |
धन्यवाद !