रिव्यू –
जैसा कि हमने इसके पहले के ब्लॉग “बकुला” में बताया था कि हम सुधा मूर्ति मैम द्वारा लिखित और एक किताब “तीन हजार टांके” का रिव्यू लेकर आएंगे | इस वादे के तहत हम आपके लिए लेकर आए हैं उस किताब का रिव्यू और सारांश |
“बकुला” के ब्लॉग में हमने उनके समाजकार्य और उनको मिले सन्मान के बारे में बताया था | आज और थोड़ी ज्यादा जानकारी उनके बारे में बताएंगे | उस ब्लॉग का लिंक इस ब्लॉग के आखिर मे जोड़ रहे है | जैसा कि हम जानते हैं प्रस्तुत पुस्तक कोई कथाओं का संग्रह नहीं बल्कि यह उनके संस्मरण और अनुभवो की किताब है जिसे उन्होंने ग्यारह अध्यायों के रूप में लिखा है |
वह एक ऐसी अमीर व्यक्ति है जो अपनी समाजसेवा के लिए जानी जाती है | उन्हें अपने काम के सिलसिले में हमेशा देश-विदेश की यात्रा करनी पड़ती है | इन यात्राओं के दौरान उन्हें तरह-तरह के लोग मिलते हैं | अलग – तरह की परिस्थितियों का अनुभव आता है | इन यादों को उन्होंने इस किताब में साझा किया है |
इनमें कुछ कहानियां पर्सनल और कुछ प्रोफेशनल पार्श्वभूमि से ताल्लुक रखती है | इसमें उनके जीवनी की भी कुछ-कुछ झलक देखने को मिलती है | उन्होंने हर एक अध्याय को इतना सही और सटीक शीर्षक दिया है की कहानी पढ़ने के बाद आपको उसकी महत्ता समझ में आएगी कि कैसे उस छोटे से शीर्षक में वह पूरी कहानी फिट बैठती है |
उनकी मातृभाषा कन्नड़ है | वह कन्नड़ में किताबें लिखना ज्यादा पसंद करती है | इसमें वह ज्यादा सहज महसूस करती है | जाहिर है अपनी मातृभाषा को लेकर यह सब के साथ होता है फिर भी किताब की प्रस्तावना में बताएं अनुसार श्रीमान टी. जे. एस. जॉर्ज से प्रेरणा लेकर उन्होंने अंग्रेजी में लिखना शुरू किया |
पुस्तक भी उन्होंने श्रीमान जॉर्ज को ही समर्पित की है | किताब में वर्णित कहानीयां असली है | इसमे से कुछ कहानियां आपको निराशा के अंधकार से बाहर निकाल कर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती है | पुस्तक में वर्णित प्रत्येक घटना हमें मुसीबत से भागने के बजाय उनसे लड़ने के लिए प्रेरित करती है |
किताब मूलत अंग्रेजी में लिखी गई है | हमें किताब के अनुवादक को धन्यवाद देना चाहिए क्योंकि उन्होंने किताब के मूल भाव को बदले बगैर जैसे के वैसा हमारे सामने रखा | किताब में अलग-अलग घटनाएं हैं | हर घटनाओ के अलग पात्र है | उन पात्रों की अलग-अलग समस्याएं हैं तो लेखिका के इससे जुड़े अलग-अलग अनुभव है | एक तरफ “देवदासी समाज” है जो सामाजिक शोषण सहता हुआ गुजर – बसर करता है | तो दूसरी तरफ ऐसे लोग हैं जो विदेश की ओर दौड़ लगाते हैं | फिर वही के कुचक्र में फंस जाते हैं | वह अपने घर और अपनों से मिलने के लिए छटपटाते रहते हैं | सुधा मूर्ति मैम एक बहुत अच्छी लेखिका भी है | उनकी यह किताब आपको जरूर प्रभावित करेगी | इसे एक प्रेरणादाई पुस्तक भी कहा जा सकता है | यह उनके द्वारा लिखी गई किताबों में सर्वश्रेष्ठ किताब है | इसलिए शायद उन्होंने इसे हमारे देश के महान कॉमेडियन “कपिल शर्मा” को भेंट दी होगी |
बहरहाल , इस अप्रतिम किताब की –
लेखिका है – सुधा मूर्ति
अनुवादक है – लीना सोहोनी
प्रकाशक है – प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ संख्या है – 185
उपलब्ध है – अमेजन और किंडल पर
आईए , इसी के साथ देखते हैं इसका –
सारांश –
सुधा मूर्ति मैडम इन्होंने तीन हजार वारंगनाओ का पुनर्वसन किया | यह काम करने के लिए उन्हें अनेक कठिनायां आई | उन्होंने अपने साहस और अथक परिश्रम से इन तीन हजार स्त्रियों के जीवन को एक नई दिशा दी | उसके बाद जब यह स्त्रियाँ और उनके बच्चे अच्छा सामाजिक जीवन जीने लगे तो उन्होंने सुधा मूर्ति मैडम का एक “क्विल्ट” जिसे मराठी में “गोदड़ी” भी कहते हैं | देकर सम्मान किया जिस पर उन महिलाओं ने तीन हजार टांके बुने थे |
इसलिए फिर इस किताब का नाम लेखिका ने “तीन हजार टांके” रखा | सुधा मूर्ति मैडम और उनके पिता शायद ऐसे व्यक्ति है जिन्होंने सामाजिक फ़्लो के मुताबिक ना जाते हुए अपने लिए लीक से हटकर प्रोफेशन चुने | लेखिका अपने इंजीनियरिंग कॉलेज में इकलौती महिला विद्यार्थी थी | वहाँ सिर्फ पुरुषों का ही वर्चस्व था | इसलिए उन्हे बहुत परेशानी और ताने झेलने पड़े |
उन्होंने अपने सहपाठियों को मुहजोरी कर के नहीं बल्कि अपनी बुद्धिमानी और मेहनत से हराया | बाद मे उनके सहपाठी उनके साथ अच्छे से व्यवहार करने लगे | उन्होंने अच्छे नंबरों से पास होकर यह दिखा दिया कि महिलाएं हर क्षेत्र में आगे जा सकती है और अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर सकती है | यह उन्होंने “लड़कों को कैसे परास्त करें ?” इस अध्याय में साझा किया है |
कहते हैं – हम जैसा खाते हैं | वैसे ही हमारे विचार होते हैं | इस अध्याय में उन्होंने सादे खाने का महत्व समझाया है | जिन सब्जियों को हम अभी तक भारतीय समझते आए हैं | वह असल में विदेशी है | यह जानकारी लेखिका को , उनकी सहेली के पिताजी से मिलती है जो एक “वनस्पति विज्ञानी” है |
“त्रयांजली नीर” इस अध्याय मे उन्होंने अपनी बनारस यात्रा के अनुभव को साझा किया है जो उन्होंने 1996 में की थी | “बनारस” जो कि भगवान शिव की नगरी है | वहां उन्होंने पवित्र गंगा नदी का जल अपने अंजुलियों में भरकर , सूर्य को साक्षी मानकर , तीन बार अर्पण करते हुए अपनी पसंदीदा चीज का त्याग किया है | यह अध्याय पढ़कर आपको ऐसा लगेगा कि क्या ऐसा संभव है ? क्या कोई ऐसा कर सकता है ? ऐसा संकल्प हमारे मन को कहीं बहुत अंदर तक झकझोर देता है |
“इन्फोसिस फाउंडेशन में एक दिन” इस अध्याय में आपको पता चलेगा कि वह अपने जीवन में कितनी व्यस्त रहती है | उनको एक दिन में कितने ही मेल आते हैं और कितने ही लोग मिलने के लिए आते रहते हैं | अपनी समाज सेवा से उन्होंने लोगों का जीवन स्तर ऊंचा उठाने में बड़ी मदद की है |
“कैटल क्लास” ऐसे व्यक्तियों की कहानी है जो लोगों को उनके कपड़ों और गहनों के हिसाब से जज करते हैं | दूसरों को भेड़ – बकरी की तरह समझनेवाले यह लोग खुद उस क्लास से बिलॉन्ग करते हैं | यह उन्हें कौन समझाए ? ऐसे ही महिलाओं की यह कहानी है जो दिखावे की जिंदगी जीती है |
जैसा कि हमने आपको बताया सुधा मूर्ति मैम और उनके पिताजी ने हमेशा समाज में प्रचलित उलट प्रोफेशन खुद के लिए चुना | उनके पिता “गाइनोकोलॉजिस्ट” थे जबकि इस क्षेत्र में महिलाओं का दबदबा था | लेखिका के पिता का एक ऐसे निर्जन जगह पर तबादला हुआ | जहां शेरनी अपने बच्चों के साथ आंगन में बैठा करती और सांप रस्सी के जैसे छत से लटका करते |
ऐसे विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने एक बड़ा काम किया | इस बात का पता उन्हें बरसों बाद तब चला जब उन्होंने एक नर्सिंग होम के प्लेट पर अपना नाम देखा | लेखिका के पिताजी ने विपरीत परिस्थितियों में भी लोगों की हर संभव मदद करने की कोशिश की | यह घटना आपको “एक अलिखित जीवन” में पढ़ने को मिलेगी |
“अपने घर जैसा सुकून और कहीं नहीं” | यह बात सौ – फी – सदी सच है | यह उन पीड़ित महिलाओं के बारे में है जो अपनी निर्धनता कम करने के लिए और अपने घर – परिवार का खर्च चलाने के लिए विदेश जाती है | बाद में उन्हें पता चलता है कि वह रेगिस्तान में मौजूद “मरीचिका” के जैसे धोखे मे फंस गई है |
वहां जाकर उनका जीवन अत्याचार सहते हुए नरक यातना भोगे जैसा हो जाता है | वह वहां से निकलने के लिए छटपटाती रहती है | तब उनको अपना देश और उसमें बसा अपना घर दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह महसूस होता है | ऐसे ही महिलाओं की कहानी “घर जैसी कोई जगह नहीं” | इस अध्याय में बताई गई है | यह महिलाएं सुधा मूर्ति मैडम की मदद से अपने घर सुरक्षित पहुंच पाई थी |
“एक शक्तिशाली राजदूत” यहाँ राजदूत की भूमिका में बॉलीवुड है | देश-विदेश के लोग बॉलीवुड फिल्मों को बहुत पसंद करते हैं | फिल्मों के माध्यम से वह हमारी संस्कृति को , पहनावे को जानते हैं | इसीलिए जब हम उनके देश जाते हैं तो उनसे हमारा कोई रिश्ता ना होते हुए भी एक अनजाना रिश्ता बॉलीवुड की वजह से बन जाता है |
किताब के आखिर में एक वाक्य लिखा है | “आशा सदैव विद्यमान है” किताब खत्म करने के बाद जब आप यह वाक्य पढ़ते हैं तो मन में जैसे विचारों का सैलाब आ जाता है | किताब की हर घटना में वर्णित हर पात्र , अपनी लड़ाई तो हार जाता है लेकिन एक आशा की किरण के बदौलत वह अपने जिंदगी का युद्ध जीत जाता है |
वैसे ही यह वाक्य आपको भी जीवन के हर परिस्थिति में निराशा के भंवर से निकालकर जीत की ओर लेकर जाएगा | यह आपके मन को ऊर्जा से भर देगा और आपके हृदय पर एक अमिट छाप छोड़ देगा | किताब पढ़ते समय हमेशा हमारी भावनाओं का ग्राफ ऊपर नीचे होता रहेता है – “कभी खुशी – कभी गमवाला”….
इस किताब को पढे हमें बहुत वक्त बीत गया फिर भी हमें यह किताब याद है | “कपिल शर्मा शो” में “सुधा मूर्ति” मैम को देखकर इस किताब की यादें ताजा हो गई थी तो सोचा…. क्यों न इस किताब के बारे में आपको भी बता दे ! इस अविस्मरणीय किताब को जरूर पढ़िएगा | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !!
उत्तम 👍