ASTITVA BOOK REVIEW SUMMARY IN HINDI

अस्तित्व

सुधा मूर्ति द्वारा लिखित

रिव्यु –

    यह कहानी दूरदर्शन पर प्रसारित हुई है और खासी प्रचलित भी हुई है | इसी कहानी का हिंदी अनुवाद “द्वंद्व” नाम से हुआ है तो द्वंद्व और अस्तित्व एक ही कहानी की बुक है | सुधा मूर्ति द्वारा लिखित कहानियाँ अच्छी ही होती है | बहुत बार ,उनकी कहानिया पास से जीवन का वास्तविक दर्शन भी कराती है | ऐसी यह कहानी मुकेश और उसके अस्तित्व के बारे में है | जिसे मराठी में अनुवादित किया है – प्रा. ए. आर. यार्दी इन्होने |

प्रकाशक – मेहता पब्लिशिंग हाउस

पृष्ठ संख्या – १०४

मुकेश का अस्तित्व उससे बचपन में ही कही खो गया और अब मुकेश के बड़े होने के बाद उसके सामने बड़ा सा प्रश्न लेकर खड़ा है | बस्स…… इसी प्रश्न के जवाब को खोजने के लिए किये गए प्रयत्नों की यह कहानी है | तो चलिए जानते है इस किताब का सारांश……….

सारांश –

     मुकेश यह रावसाहेब का बेटा है | रावसाहेब एक अमीर व्यक्ति है | इसलिए मुकेश की साधारण सी नौकरी होने के बावजूद वह सुखसुविधाओ में जीता है | उसके पिता के अचानक निधन के बाद ,उसकी जिंदगी पूरी तरह बदल ही जाती है | मुकेश के जीजाजी को , उसके पिता के लॉकर में एक पुरानी तस्वीर मिलती है जो मुकेश की जिंदगी में बदलाव लाने का कारण बनती है |

       अब जब मुकेश के पिता को पता है की यह तस्वीर मुकेश के जिंदगी में तूफ़ान ला सकती है तो मुकेश के पिता इस तस्वीर को इतना सहेजकर क्यों रखते है ? क्यों नहीं वक्त रहते उस तस्वीर को नष्ट कर देते है ताकि उनके बेटे का भविष्य सुरक्षित रह सके | मुकेश की बहेण का पति एक चालाक लोम्बडी दिमाग व्यक्ति है जो मुकेश को सब लोगो से और जायदाद से दूर कर देता है | जब मुकेश को पता चलता है की वह रावसाहेब का बेटा नहीं है तो वह अपने असली माता – पिता को ढूंढने निकल पड़ता है | वह पंजाब में पहुँच जाता है |

अपने असली माँ को बूढी और नौकरों का काम करते देख उसकी आँखे भर आती है | अपनी माँ से बाते कर के उसे पता चलता है की वह भी उसकी असली माँ नहीं है | तो आखिर वह है कौन ?

सबसे जानकारी जुटाते – जुटाते आखिर वह अपने जन्म के असली राज तक पहुँच ही जाता है | उसकी जिंदगी में सहारा देनेवाले लोगो को वह अपने तरह से मदद कर के उनकी जिंदगी खुशहाल करने की एक छोटी – बड़ी कोशिश करता है ताकि वह अपने ऋण से मुक्त हो सके जो तकलीफे उन लोगो ने उसके लिए सही थी | इन सब के बावजूद वह यह फैसला अपने पत्नी पर छोड़ता है की वह उसे उसके असली अस्तित्व के साथ स्वीकारे या नहीं ?

किताब पढ़कर जरूर जानिये की असलियत में मुकेश है कौन ? उसकी पत्नी उसे स्वीकारती है या नहीं ? वह उसके ऊपर हुए संस्कारो का मान रख पाता है या नहीं ? यह वैसा ही है जैसे कृष्ण जी भलेही देवकीनंदन हो वह हमेशा ही यशोदा माँ के लाडले रहते है | उसी तरह मुकेश के लिए उसकी माँ कोई भी हो वह हमेशा ही रावसाहेब और उनकी पत्नी का लाडला बेटा रहेगा | कहानी बहुत – बहुत अच्छी है | वक्त मिले तो किताब जरूर पढियेगा |

धन्यवाद !

Wish you happy reading …………….

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *