इतिहास – पोखर मे बुद्ध नहान
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा लिखित
रिव्यू –
लेखक ने यहाँ उन जगहों के बारे मे बातें की है जहां किसी न किसी रूप मे बौद्ध अवशेष उपस्थित है | या फिर उन्हे लगा की जहां बौद्ध अवशेषों की उपस्थिति को कही दूसरे विचारों की तरफ मोड दिया गया है | वहाँ पर लेखक ने अपनी राय बताई है |
लेखक आंतरराष्ट्रीय ख्यातीप्राप्त भाषा वैज्ञानिक तथा इतिहास मर्मज्ञ है | इसीलिए उन्होंने किताब मे पुराने और नए शब्दों का विवरण बहुत अच्छे से दिया है | शब्दों की बात करे तो उन्होंने कौनसे शब्द से नया शब्द बना और उसका मूल रूप मे क्या अर्थ था ? इसका विवरण दिया है
उन्होंने बहुत सारी कीताबे लिखी है जिनका विवरण आप को किताब के अंत मे मिल जाएगा और साथ मे उनसे संपर्क करने का पता भी ……| लेखक को बिहार सरकार की तरफ से डॉ. गियर्सन पुरस्कार (2016 -2017) से सम्मानित किया गया है | वे मूल रूप से बिहार के रहने वाले है | वहाँ वे S. P.
JAIN COLLEGE मे स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग मे प्रोफेसर है | उनकी लिखी किताबों मे बिहारी भाषा का टच मिलता है | किताब मे पूरे 12 अध्याय है | किताब के प्रकाशक और पृष्ठ संख्या के बारे मे कोई जानकारी नहीं लेकिन किताब किन्डल पर उपलब्ध है और इतिहास से जुड़े तथ्यों को लेकर आप को अगर कोई दुविधा है तो वह क्लीयर करने मे सक्षम है |
किताब अपने आप मे इतनी बहुमूल्य जानकारी समेटे हुए है की आप को इसका हर एक पृष्ठ मूल्यवान लगेगा | इसीलिए शायद हमे भी हर दो पृष्ठ के बाद बुक मार्क लगाना पड रहा था | आइए इसी के साथ देखते है इस किताब का सारांश ……
सारांश –
किताब मुख्यतः सिंधु घाटी सभ्यता के बारे मे और वहाँ मिले बौद्ध अवशेषों के बारे मे बात करती है | अब आप सोचेंगे की सिंधु घाटी सभ्यता तो भारत की सबसे पहली सभ्यता थी और बुद्ध तो इसके कई सालों बाद हुए फिर यहाँ बौद्ध अवशेष कैसे ? इसी का सविस्तर जवाब हमे यह किताब देती है |
बुद्ध के भी पहले 28 बुद्ध हो चुके | उनमे से चौथे दीपंकर बुद्ध थे | उनका बोधिवृक्ष पीपल था | खुदाई मे मिली प्रीस्ट किंग की जो मूर्ति है वह 1900- 2000 ईसा पूर्व की है | दीपंकर बुद्ध भी उसी समय हुए थे | छठी शताब्दी ईसा पूर्व मे गौतम बुद्ध हुए | दीपंकर बुद्ध उनसे 24 पीढ़ी पहले हुए | सिंधु घाटी सभ्यता पर बोधिवृक्ष पीपल का प्रभाव दिखाई देता है जो दीपंकर बुद्ध के कारण था | सिंधु घाटी सभ्यता के लोग बौद्ध धर्म के उपासक थे | वे बलि – प्रथा को मानते थे , तावीज पहनते थे , पुनर्जन्म पर विश्वास करते थे | इसका चित्रांकन उत्खनन मे मिले सीलों पर मिला है | भगवान गौतम बुद्ध ने इन्ही पाखंडों पर प्रतिवाद जताया | बुद्ध ने सिर्फ धर्म मे थोड़ा फेरबदल किया | न की उसकी “स्थापना”.. |
सिंधु घाटी सभ्यता बुद्ध की उपासक थी | इसीलिए यहाँ पीपल के पेड़ का महत्व दिखाई देता है | यहाँ पूर्व कालीन बुद्ध की दो मूर्तिया भी मिली है जिन्होंने बुद्ध के जैसा वेश धारण किया है |
ऋग्वेद मे भी स्तूपों का जिक्र है | यह हमे ऋग्वेद मे वर्णित हिरन्यस्तूप ऋषि से पता चलता है | बगैर स्तूप के हिरण्य स्तूप नाम नहीं पड सकता | सिंधु घाटी सभ्यता और सम्राट अशोक की लिपि मे 10 अक्षर एक जैसे है | खुद सम्राट अशोक ने अपने शिलालेखों मे कहाँ है की वह धम्म लिपि है लेकिन विद्वान जबरस्ती उसे ब्राह्मी लिपि कहते है | इसी कारण उनके लिखे शिलालेखों को पढ़ने मे देर हो गई | और भी कई कारणों से लेखक ने वाचकों को अवगत कराया है | इसके प्रमाण के लिए लेखक ने डॉ. भोलानाथ तिवारी द्वारा लिखित “भाषा – विज्ञान” किताब का उदाहरण दिया है |
सम्राट अशोक ने किसी धर्म को नहीं बल्कि धम्म को अपनाया था | अब यह धम्म क्या है ? इस के लिए आप को दूसरी किताब पढनी पड़ेगी | महाभारत के एरक पर्व मे जो एरक नाग का उल्लेख है वह भरहुत स्तूप का एरपत नाग है | वह एक बौद्ध नागवंशीय राजा थे | आवला नवमी जो दीपावली के नववे दिन मनाई जाती है | वह फुस्स बुद्ध के कारण है | उन्हे आवला वृक्ष के नीचे ज्ञान मिला था | इससे संबंधित चित्रांकन अजंता की गुफा न. 17 मे मिलता है | फुस्स बुद्ध , भगवान गौतम बुद्ध के 500 साल पहले अस्तित्व मे थे | वाकाटक नरेश बौद्ध धर्मी थे | नागौद के पास वाकाटकों का स्मृति स्तम्भ है जिस पर धम्मचक्र अंकित है | यह उनका राजचिन्ह था | इसके लिए उन्होंने डॉ. नवल वियोगी की प्रसिद्ध पुस्तक , “नागाज : द एनशीयन्ट रुलर्स ऑफ इंडिया” किताब पढ़ने की सलाह दी है |
लेखक को जातिव्यवस्था से बहुत घृणा है क्योंकि यह आदमी को आदमी से घृणा करना सिखाती है | इतिहासकार नंदों और मौर्यो के वर्ण खोज रहे है | जब की तब वर्ण व्यवस्था थी ही नहीं | बुद्ध ने विश्व गुरु बनकर आषाढ़ – पूर्णिमा को पहली बार गुरु पद से सारनाथ मे ज्ञान दिया | इसीलिए इस पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते है | यह जुलाई के महीने मे आती है | इसीलिए भारत के विश्वविद्यालयों मे जुलाई से पढ़ाई का नया वर्ष प्रारंभ करने का रिवाज बुद्धिष्ट परंपरा का रहा है | संत कबीर बुद्ध के विचारों के प्रभावित थे | वे उन्ही के विचारों का प्रचार किया करते | कबीर के पुरखे कोली थे | गौतम बुद्ध की शादी कोलियों के घर हुई थी |
रैदास का बेगमपुरा और कबीर की अमरदेसवा इन दोनों की परिकल्पना बुद्ध के सिद्धांतों पर की गई है |
सिंधु घाटी सभ्यता शांति की उपासक थी जैसा की सब जानते है बुद्ध धर्म याने शांती और अहिंसा का धर्म……| ऐसे मे इस सभ्यता के पास कोई भी युद्ध हत्यार नहीं थे | जो भी हत्यार उत्खनन मे मिले वह उनके रोजमर्रा के काम करने के अवजार थे जिनसे वह उपजीविका कमाते थे | ऐसे मे आर्यों ने उनपर हमला किया और उनको हरा दिया | आर्यों ने द्रविड़ों को अनार्य कहाँ जबकी आर्य अद्रविड हुए क्योंकि वह द्रविड़ों के देश आए थे न की द्रविड उनके देश गए |
मगध के पूर्व सम्राट और सम्राट अशोक के बारे मे भी किताब अच्छी जानकारी देती है | इसी तरह की और रोचक जानकारी से अवगत होने के लिए यह किताब आप जरूर पढे |
धन्यवाद !
Wish you happy reading…………..
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