NARENDRA MOHINI BOOK REVIEW IN HINDI

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नरेंद्र मोहिनी

बाबू देवकीनंदन खात्री द्वारा लिखित

रिव्यू –

यह 1920 मे लिखा – दो खंडों मे प्रकाशित हुआ उपन्यास है | यह 1920 मे लिखा गया है | इसका मतलब अभी हम 102 साल पुरानी किताब पढ़ रहे है | तब इसकी कीमत मात्र १ रुपये थी | यह किताब तब दो खंडों मे प्रकाशित हुई थी जो अब एक ही किताब बन चुकी है | यह किताब बहुत ही ख्याति प्राप्त लेखक द्वारा लिखी गई है | शायद , आप उन्हे उनकी लिखी किताब की वजह से जान पाए | जी हाँ , यह मशहूर किताब “चंद्रकांता” के लेखक श्रीमान देवकीनंदन खत्री है | इनकी यह किताब इतनी प्रसिद्ध हुई की इसे पढ़ने के लिए बहुत सारे लोगों ने देवनागिरी भाषा सीखी थी | अभी तक किताब अलग – अलग साल मे बहुत बार प्रकाशित हो चुकी है | इसपर 90 के दशक मे धारावाहिक भी बना था जो दूरदर्शन पर अच्छा – खासा प्रचलित हुआ था | चंद्रकांता किताब क रिव्यू और सारांश भी हमारे वेबसाईट पर उपलब्ध है | उसे भी आप एक बार जरूर देखे |

नरेंद्र मोहिनी की कहानी आज से लगभग 500 साल पहले बसे पटना , गया और पुनपुना नदी पर आधारित है | नरेंद्र जो बिहार के राजा का बेटा है और मोहिनी एक बड़े जमीदार की …. |

कहानी हमे तब के समाज मे प्रचलित परंपराए रीति – रिवाज बताती है | स्त्रियो के लिए समाज मे प्रचलित जो कड़े नियम थे | उसका बयान करती है | हालाँकि , लेखक उनके वक्त से 300 से 400 साल के आगे की कहानी बताते है फिर भी कहानी मे , लेखक के वक्त मे प्रचलित सामाजिक बंदिशे देखने को मिलेगी क्योंकि आज से 102 साल पहले भारत मे प्रचलित प्रथाए कैसी थी यह बहुत सारे लोग जानते ही होंगे | किताब का नाम पढ़कर सबसे पहले हमे तो लगा यह कोई भूत – चुड़ैल की कहानी होगी लेकिन यह तो एक प्रेमकहानी निकली | इसमे नायिका मोहिनी नहीं .. फिर भी उसका नाम नायक के साथ क्यों ? इसका जवाब पाने के लिए , आप को यह किताब पढ़नी होगी | लेखक खुद को बीच – बीच मे उजागर भी करते है | वह पाठकों की ओर से सवाल करते है और उसका जवाब भी देते है | वह कहानी के हर एक मुद्दे पर प्रकाश डालते है | उनकी कहानियाँ कमीयो से सराबोर किसी फीचर फिल्म जैसी नहीं होती | वह अपनी कहानी का हर एक मुद्दा कव्हर करते है | हमे तो सारी पुरानी किताबे एक धरोहर के जैसे ही लगती है | इसलिए यह सारी किताबे अप्रतिम है | इस अप्रतिम किताब के

लेखक है – बाबू देवकीनंदन खत्री

प्रकाशक है – लहरी प्रकाशन

पृष्ठ संख्या – 259

उपलब्ध है – अमेजन , किन्डल पर

सारांश –

राजकुमार नरेंद्रसिंह अभी शादी के लिए तैयार नहीं है | इसलिए वह शादी के मंडप से सीधे जंगल मे भाग जाते है | उन्हे वहाँ एक लड़की पेड़ पर उलटी लटकी मिलती है | जिसने ढेर सारे सोने और हीरे के गहने पहने हुए है | यह मोहिनी है जिसे बचाने के बाद , उसे देखकर नरेंद्रसिंह उसके प्यार मे पड जाते है क्योंकि वह बला की खूबसूरत है | उसी पेड़ के नीचे मोहिनी की बहन गुलाब को भी एक पेटी मे बंद करके दफनाया गया है | नरेंद्रसिंह उसे भी बचा लेते है | ऐसा कौन है जिसने इन दोनों का ऐसा हाल किया ? यह पता चलने के पहले ही मोहिनी और गुलाब का डाकुओ के द्वारा अपहरण हो जाता है जब नरेंद्रसिंह उनके लिए सुरक्षित जगह का इंतजाम करने उनसे दूर चले जाते है | साथ मे नरेंद्रसिंह का बचपन का दोस्त , जो भंगी है | भंगी याने के भंग घोंटकर लोगों को पिलाने वाला | किताब मे यह उसका प्रोफेशन बताया है | शायद .. पहले के जमाने मे यह भी एक प्रोफेशन रहा हो | भंगी जो उनको रास्ते मे मिला था | उसका भी अपहरण हो जाता है | भंगी के चरित्र का वर्णन लेखक ने ऐसा किया है की वह एक नजर मे बेवकूफ और दिखने मे कार्टून जान पड़ता है | वह नरेंद्रसिंह और उसके राज्य के लिए पूरी तरह ईमानदार है लेकिन यही भंगी नरेंद्रसिंह के दुश्मनो के लिए एक नंबर का चालाक और मक्कार बन जाता है | वह अपनी चालाकी से डाकुओ के चंगुल से भाग निकलता है | वह नरेंद्र सिंह और मोहिनी का पता भी लगा लेता है | वह नरेंद्रसिंह के भाई जगजीतसिंह को भी कूटसन्देश भेजकर सारी हकीकत बयान कर देता है | इससे जगजीत सिंह पुरी तैयारी के साथ अपने भाई को बचाने के लिए निकल पड़ता है |

इधर नरेंद्रसिंह , मोहिनी की तलाश करते – करते जंगल के बीचोंबीच एक हवेली मे पहुँच जाते है | वहाँ उन्हे मोहिनी मिलती है लेकिन उसके चेहरे मे कुछ बदलाव है | क्या यही मोहिनी है ? क्योंकि उसे मोहिनी और नरेंद्र सिंह की मुलाकात के बारे मे कुछ भी नहीं पता | उसकी भावभंगीमाएं भी अलग है | तो क्या यही असली मोहिनी है ? ऐसा क्या हुआ है इसके साथ की यह ऐसे हो गई ? वही पर नरेंद्रसिंह को पता चलता है की वह जिस शादी से भाग निकले थे | वह रंभा उन्ही को पती मानकर , उन्हे ढूँढने के लिए घर से बाहर निकली है | यह जानकर अब वह रंभा से भी प्यार करने लगते है | जब यह मोहिनी को पता चल जाता है तो वह अच्छे से बुरी बन जाती है | वह सोचती है की , नरेंद्रसिंह मेरे नहीं तो और किसी के भी नहीं हो सकते | इसीलिए वह उन्हे जहर दे देती है | जिसका ईलाज सिर्फ मोहिनि के पास है | यह चरित्रहीनता उसे उसकी माँ और बड़ी बहन केतकी से मिली है | किताब मे फ्लैश बैक मे जाकर मोहिनी के पिता , माँ और उसकी बड़ी बहन केतकी की कहानी बताई है | जिससे सारी घटनाएं समझ मे आ जाती है | अब मोहिनी ने नरेंद्रसिंह को जो जहेर दिया था | क्या उससे वह बच पाते है ? मोहिनी ने तो रंभा को भी मार दिया था लेकिन अंधेरे मे ? तो क्या वह रंभा को मारने मे सचमुच कामयाब हो पाती है ? क्या नरेंद्र सिंह और रंभा की शादी हो पाती है ? कहानी की समाप्ति सुखद है या दुखद ? अब इसके लिए आप को यह किताब पढ़नी होगी | मोहिनी की बड़ी बहन और माँ चरित्रहिन नारियां थी | कुछ सालों बाद मोहिनी भी उनके नक्शे कदम पर चल पड़ती है लेकिन उनकी तीसरी बहन गुलाब उसका पूरी कहानी मे ऐसा कोई वर्तन नही दिखाई पड़ता जिससे उसके चरित्र पर शक किया जा सके | फिर भी लोगों के डर से वह आत्महत्या कर लेती है | समाज की सोच उसपर इतनी हावी हो जाती है की , उसे अपने जीवन का भी कोई मोल नजर नहीं आता | जैसे एक ही माँ के सारे बच्चों का नसीब अलग – अलग होता है , क्या उसी तरह सारी बहनों का चरित्र अलग नही हो सकता ? फिर क्यों बेकसूर होते हुए भी गुलाब को अपनी जान गवानी पड़ती है ? लेखक ने यह बात कहानी मे ऐसे ही लिख दी लेकिन यह उस समय के जमाने की सोच को उजागर करती है | अप्रतिम .. बहुत ही अच्छी किताब .. | जरूर पढिए |

धन्यवाद !

Wish you happy reading…..

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