VISHAKANYA BY SHARMA BOOK REVIEW HINDI

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विषकन्या

ओमप्रकाश शर्मा द्वारा लिखित

रिव्यू –

“विषकन्या” इनके बारे में थोड़ा बहुत तो आप लोग जानते ही होंगे | यह ऐसी लड़कियां होती थी जिन्हें बचपन में ही थोड़ा – थोड़ा जहर दे कर बड़ा किया जाता था | एक परिपक्व विषकन्या इतनी जहरीली होती थी कि अगर उसे अत्यंत जहरीला नाग डस ले तो वह भी तुरंत मर जाए | यह अप्सराओ जैसी सुंदर होती थी | इन्हें विरोधी राजाओं का खात्मा करने के लिए उपयोग में लाया जाता था |

यह एक प्रकार की जासूस ही होती थी | विषकन्या तैयार करने का चलन मौर्य साम्राज्य में अमात्य राक्षस और चाणक्य ने शुरू किया था | चाणक्य ने देश के हित को सर्वोपरि माना | इसलिए उनके लिए यह चीजें गौण थी कि विषकन्या बनने के कारण , उन लड़कियों की जिंदगी बर्बाद हो जाती है | इसीलिए शायद सालों बाद महामंत्री बननेवाले अविनाश ने पाटलिपुत्र में विष कन्याओं के बनाने पर रोक लगा दी थी |

वर्तमान में उपस्थित जो विषकन्याये थी | उनको उपचार द्वारा एक सामान्य कन्याओं में परिवर्तित कर , उनका पुनर्वसन किया ताकि वह भी एक अच्छी जिंदगी जी सके | इसी विषय पर आधारित है – प्रस्तुत किताब | जैसा कि हमने कहा विषकन्या एक प्रकार की जासूस ही होती थी | इसीलिए किताब का विषय भी जासूसों पर आधारित ही है |

किताब में नए जमाने के जासूस , मौर्य काल के जासूसों की कहानी लोगों को सुना रहे हैं | अब क्यों सुना रहे हैं ? यह हम सारांश मे देखेंगे | कहानी का नाम विषकन्या जरूर है लेकिन वह मुख्य पात्र नहीं | अलबत्ता वह चाल का मुख्य प्यादा जरूर है जिसके कारण पूरी बाजी ही पलट जाती है | जिसे जासूसों के शिरोमणि शंकर मिश्र ने बिछाया था और यही शंकर मिश्र इस कहानी के मुख्य किरदार है |

शंकर मिश्र जो भी काम करते हैं | बड़ा ही सोच – समझकर करते हैं | उनके द्वारा किया गया कोई भी कार्य बेतुका और टाइम पास करने वाला नहीं होता | वह अपने समय का भी पूरा पूरा सदुपयोग करते हैं | अगर वह किसी राज्य की अश्वशाला से घोडा लेते हैं तो उसे काम होने पर बेच भी देते हैं | फिर उसी पैसों से अपने अगले काम का खर्चा निकालते हैं |

अब वह अपने असली भेस में कहीं जा तो नहीं सकते | इसीलिए वह हर बार नया अवतार धारण करते हैं | उनके पास कुछ अजीब – अजीब चूर्ण और दवाइयां है जो उनकी आवाज और शारीरिक रंग में बदलाव कर सकती हैं | इसी तरह वह हर बार भेष बदलकर अपने चालों को अंजाम देते हैं और वह अपने राजा और राज्य को बचाने में मदद करते हैं |

अब हमने कभी भी पाटलिपुत्र के जासूसों के बारे में नहीं पढ़ा लेकिन बहिर्जी नाईक के बारे में जरूर पढ़ा है जो छत्रपति शिवाजी महाराज के जासूस खाते के शिरोमणि थे | कहते हैं कि वह भी हर बार नया भेस बनाकर महाराज से मिलते थे | पर महाराज और उनमे ऐसा कौनसा ऋणानुबंध था कि महाराज उन्हें हर बार पहचान जाते थे |

खैर , बात करते हैं – इस किताब की .. | किताब की भाषा प्रसिद्ध उपन्यास चंद्रकांता की याद दिलाती है जो देवकीनंदन खत्री द्वारा लिखित है | यह आप को उसी जमाने में लेकर जाता है | जासूसों की भी एक अलग ही दुनिया होती है | इसे जानने के लिए किताब जरूर पढिए | इस ऐतिहसिक जासूसी उपन्यास के –

लेखक है – ओम प्रकाश शर्मा

प्रकाशक – नीलम जासूस कार्यालय

पृष्ठ संख्या है – 117

उपलब्ध है – अमेजन और किन्डल पर

आईए अब थोड़ा सा लेखक के बारे में जान लेते हैं | लेखक ओमप्रकाश शर्मा एक जनप्रिय लेखक रहे है | वह रोमांच और क्राइम की दुनिया का साहित्य के महान और धुरंधर लेखक थे | जिनकी तुति 40 सालों तक बोलती रही | बहुत से उभरते हुए लेखकों ने उन्हें अपना गुरु माना | उन्होंने न सिर्फ जासूसी साहित्य में लेखन किया बल्कि सामाजिक और ऐतिहासिक उपन्यास भी लिखे |

यही कारण था कि वह मौलिक लेखक होने के साथ-साथ साहित्यकारों के बीच में भी काफी प्रसिद्ध थे | नीलम जासूस कार्यालय तीस सालों के बाद , उनके सभी उपन्यासों को धीरे-धीरे पाठकों के सामने दोबारा प्रकाशित कर रहा है | ओम प्रकाशजी के उपन्यासों में राजेश , चक्रम , गोपाली इत्यादि मुख्य चरित्र थे जिनको लेकर उन्होंने बहुत सारे उपन्यासों की रचना की |

लेखक के बारे में और भी बहुत कुछ है बताने के लिए लेकिन वह हम अगले किताब के लिए रखते हैं | आइए , जानते हैं इस किताब का सारांश …. |

सारांश –

केंद्रीय खुफिया विभाग के प्रसिद्ध जासूस राजेश और उनका मुख्य सहयोगी जयंत किसी तरह छुट्टियाँ निकालकर श्रीनगर आए थे | वह “श्रीनगर शोभा” नामक होटल में रुके थे | पिछले एक दो दिनों से भारी वर्षा होने के कारण सब का जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया था |

यातायात के साधन ठप्प हो गए थे | होटल के सारे यात्रियों के साथ वह दोनों भी वही अटक गए थे | होटल के सभी यात्री जब डायनिंग हॉल में एक दूसरे से मिले तो कुछ लोगों ने राजेश को पहचान लिया और बातों ही बातों में उन्हीं को उनका कारनामा बताने के लिए कहा | उन्होंने सोचा इन्हे अपने कारनामे के बजाय , किसी महान जासूस की कहानी सुनानी चाहिए | फिर उन्होंने जासूस शिरोमणि शंकर मिश्र की कहानी शुरू की |

शंकर मिश्र अयोध्या के जासूस थे | किसी कारण उन्हे अयोध्या और काम दोनों छोड़ना पड़ा | वह काशी जा पहुंचे | वहाँ उन्हें पाटलिपुत्र के महामंत्री अविनाश ने पहचान लिया और उन्हें अपने साथ पाटलिपुत्र ले आए |

पाटलिपुत्र के महाराज समरसेन ने अपने भाई विरसेन को रूपनगर का सामंत बना दिया था | वह उसे बहुत प्रेम भी करते थे | वह उनके खिलाफ कुछ सुनना भी पसंद नहीं करते थे | इसके विपरीत वीरसेन पाटलिपुत्र के महाराज समरसेन को धोखे से मारकर पाटलीपुत्र का सम्राट बनना चाहता था | इसका एहसास महामंत्री अविनाश को हो गया था लेकिन उनके पास इसका कोई सबूत नहीं था |

ऐसे में उन्हें राज्य और महाराज को छोड़कर कर्नाटक जाना पड़ रहा था तो वह इसकी जिम्मेदारी शंकर मिश्र पर छोड़ते हैं | शंकर मिश्र अपना काम बखूबी निभाते हैं | सबसे पहले वह एक साधु का रूप लेकर वीरसेन के नगर में पहुंचते हैं | वह उसको अपने जाल मे फसाते है यह कहेकर की वह सम्राट बनेगा और कटक से आने वाली लड़की से विवाह करेगा तो उसकी आनेवाली पीढ़ीयां भी सालों तक राज करेगी |

फिर साधु का वेश उतारकर , वह एक सपेरे का भेष लेते हैं तो उनकी मुलाकात विषकन्या से होती है | इस मुलाकात का ब्योरा आप जरूर पढे | ऐसे ही भेस बदल-बदल कर वह अपने प्लान के लिए आवश्यक चीजें जुटाते जाते हैं | चाहे वह वीरसेन की राजमूद्रित अंगूठी हो या फिर राजकीय अतिथिशाला की चाभी |

हम तो सोच रहे थे कि , इन साधु बाबा ने तो बोल दिया कि कटक से आने वाली लड़की से शादी करना लेकिन लड़की आएगी कहां से ? इसका इंतजाम शंकर मिश्र विषकन्या को ही कटक की राजकुमारी बनाकर करते है | वह विषकन्या को वीरसेन के पास भेज देते हैं | जब की इस विषकन्या का इंतजाम वीरसेन ने समरसेन के लिए किया रहता है | इसके बाद विषबाधा होने की वजह से वीरसेन तड़प – तड़प कर मर जाता है | यह कहावत यहा सच हुई की “जैसा बोओगे , वैसा काटोगे ” |

अब इन सारी चालों को और मोहरों को अकेले शंकर मिश्र अपने काबू मे कैसे करते है ? यह तो आपको ही किताब पढ़कर जानना होगा | और हाँ , इस अभियान के दौरान उन्हे उनकी मिश्राइन भी तो मिलती है | कहानी सचमुच बहुत अच्छी है | आप एकबार पढ़ना शुरू करेंगे तो किताब को रखने की इच्छा नहीं होगी | जरूर पढिए | मिलते है , एक और नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….

धन्यवाद !!

Wish you happy reading …….!!

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