अभ्युदय वॉल्यूम 2
रिव्यू – Read more
प्रस्तुत भाग में युद्ध 1 और युद्ध 2 उपन्यास शामिल है | प्रस्तुत किताब का विषय चार मुख्य भागों में बांटा गया है जिसमें शामिल है – किष्किंधा का आंतरिक कलह , हनुमान जी का लंका पहुंचने तक का प्रयास , लंका की आंतरिक स्थिति और श्री राम – रावण युद्ध |
जैसा कि , हमने अभ्युदय वॉल्यूम वन के वीडियो में बताया था | उसी के अनुसार इस किताब के दूसरे भाग का रिव्यू और सारांश आपके लिए लेकर आए हैं और साथ में लेखक की जानकारी भी.. |
इसमें श्री रामजी , लक्ष्मण के अलावा हनुमानजी , बाली , सुग्रीव , अंगद , तार ,जामवंत और अनिंद्य मुख्य पात्र है | हनुमानजी , जो कि श्री रामजी के ऋश्यमुख पर्वत पर निवास के दौरान , उनके काफी घनिष्ठ बन गए थे | कुछ उनके पहले पराक्रम के कारण और कुछ अभी उनके स्वभाव के कारण | इन सब की अपनी एक चिंतन प्रक्रिया है उसे भी आप रूबरू हो पाएंगे कि यह लोग घटित घटनाओं और परिस्थितियों के बारे में क्या-क्या सोचते हैं क्या समझते हैं ?
किताब अगर खरीदना चाहते हैं तो लिंक डिस्क्रिप्शन बॉक्स में दिया है | इस बेहतरीन किताब के –
लेखक है – नरेंद्र कोहली
प्रकाशक है – डायमंड पॉकेट बुक्स
पृष्ठ संख्या है – 592
उपलब्ध – अमेजन पर
लेखक नरेंद्र कोहली इनका जन्म 6 जनवरी 1940 को ब्रिटिश भारत के सियालकोट पंजाब में हुआ | वह पौराणिक कथाओं को मॉडर्न वे से लिखने के लिए जाने जाते हैं | इस विषय के लिए उन्हें ट्रेंड सेटर के नाम से भी जाना जाता है |
उनकी लेखनी का हिंदी साहित्य पर अच्छा प्रभाव रहा है | इसीलिए शायद 1975 के बाद के काल को कोहली युग के नाम से जाना जाता है | उनकी जयंती को यानी के 6 जनवरी को हिंदी साहित्य जगत में साहित्यिक दिन या लेखक दिन से मनाया जाता है |
कोविड -19 के दौरान वेंटिलेटर पर रहते हुए ही 81 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हुई | वह दिल्ली में रहते थे | वह एक लेखक होने के साथ-साथ टीचर भी थे | उन्होंने एचडी की थी |
2012 में उन्हें व्यास सम्मान और 2017 में पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया | उपर्युक्त किताबों के साथ-साथ उन्होंने महाभारत पर आधारित “महासमर” यह उपन्यास लिखा है | यह पूरे नौ खंडों में विभाजित है | इसका भी रिव्यू और सारांश हम जल्दी लेकर आ रहे हैं |
क्या आप इन किताबों का रिव्यू जानने के लिए उत्सुक है | अगर हां !तो हमें कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें | अगर यह किताबें पड़ी है तो इसके बारे में अपने विचार भी जरूर बताएं | स्वामी विवेकानंद पर आधारित “तोड़ो कारा तोड़ो ” यह किताब भी काफी प्रचलित है | उसे भी वक्त मिले तो जरुर पढ़िएगा |
उनकी और किताबों के लिए आप गूगल पर सर्च कर सकते हैं | आपने अगर उनकी लिखी कोई भी किताब एक बार पढ़ ली ! स्पेशली “राम कथा” तो आप उनके फैन हो जाओगे|
देखिए ! कहानी में जो है सो है | मेघनाथ मारा ही जाएगा | वह भी लक्ष्मण के ही हाथों .. | उसमें कोई फेरबदल नहीं होगा लेकिन बीच के जो प्रसंग रहते हैं उनमें थोड़ा बहुत ट्विस्ट होता है और यही चीज लेखक बड़े इंटरेस्टिंग तरीके से लिखते हैं |
उन्हें पढ़ना बेहद मजेदार होता है | रावण हमेशा अपनी और वानर सेना की परिस्थितियों को धन से आँकता है | वह हमेशा श्री रामजी को कंगला राजकुमार संबोधित करता है | जब वह पहली बार श्री रामजी को युद्ध क्षेत्र में देखता है तो उसके मन में फिर से यही ख्याल आता है कि , देखो बिना रथ के कैसे पीठ पर तूणीर बांधे खडा है | कमर में छुरा लटकाए है और कंधे पर धनुष टाँगे हैं और कवच भी कितना फटा पुराना पहना है ,
जबकि रावण के पास कवच धारी रथ है | उसके सारे आयुध रथ में रखे जा सकते हैं | | इस अभाव में भी यह लोग उसके साथ युद्ध कर रहे हैं फिर भी श्री रामजी ने युद्ध के लिए कभी किसी देवता की मदद नहीं मांगी | नहीं तो अयोध्या से ही मदद मँगवाई |
उन्होंने दिखा दिया कि जीतने के लिए धन पर्याय नहीं | जन संगठन ज्यादा आवश्यक है | इसीलिए तो सामान्य लोग इसे अपनी लड़ाई मानकर अपने आप इसमें शामिल होते गए और राम जी की सेना बढ़ती गई | इस न्याय अन्याय की लड़ाई में सब ने अपनी तरह से पूरा सहयोग दिया | चाहे वह नल, नील ,जांबवंत , सुग्रीव , तार , अंगद या फिर हनुमान जी ही क्यों ना हो ! नल , नील और हनुमानजी के समंदर के ज्ञान ने श्री रामजी को सेतु बनाने में कैसी मदद ? की यह आप किताब में जरूर पढ़ें |
आइए अब जानते है इसका –
सारांश –
पिछले भाग में मंदोदरी ने मायावी का जिक्र किया है | जब रावण सीता जी के अपहरण का स्पष्टीकरण मंदोदरी को देता है | वह कहता है कि श्री राम और लक्ष्मण ने शुर्पनखा का अपमान किया | उसका बदला लेने के लिए उसने सीताजी का अपहरण किया |
इस पर मंदोदरी कहती है कि , रावण ने बाली से भी अपने अपमान का बदला क्यों नहीं लिया ? जबकि बाली ने उसके भाई मायावी का वध किया | अब बाली ने मायावी की हत्या क्यों कि ? क्योंकि मायावी ने अलका नाम की लड़की को लेकर बाली के साथ छल किया जबकि बाली मायावी को अपना अच्छा मित्र मानता था |
मायावी का वध करने के लिए बाली किष्किंधा के घने जंगलों में चला जाता है | वह एक वर्ष तक वापस नहीं लौटता है | तब सब लोगों के कहने पर सुग्रीव किष्किंधा का सम्राट बन जाता है |
अब हम यह तो जानते हैं की बाली और सुग्रीव के युद्ध में बाली को श्री रामजी अपने तीर से मार देते हैं | क्यों इन दोनों भाइयों का युद्ध होता है ? इस घटना के पीछे क्या कारण है ? और बाली के सम्राट होते हुए भी श्री राम सुग्रीव की मदद क्यों लेते हैं ?
जबकि सुग्रीव तो राज्य से निष्कासित युवराज है | वह कैसे श्री राम जी की मदद करेंगे ? इसके लिए हमें किष्किंधा में व्याप्त परिस्थितियों को जानना होगा | बाली और सुग्रीव के स्वभाव को जानना होगा | बाली का शारीरिक बल बहुत है | वह बहुत ताकतवर है | उसे शिकार करने का बड़ा शौक है | शिकार पाते ही वह खुशी से उछल पड़ता है |
सम्राट पद के गरिमा को छोड़कर , अकेले ही शिकार करने निकल पड़ता है | वह शरीर से जितना ताकतवर है , बुद्धि से उतना ही पैदल .. | अच्छे और बुरे व्यक्ति को परखने की क्षमता उसमे नहीं | इसीलिए तो वह मायावी जैसे राक्षस को अपना मित्र बना लेता है जबकि मायावी किष्किंधा में ऐसा व्यवसाय करता है जिससे स्त्रियों का अपहरण बढ़ जाता है | गरीब और श्रमिक लोगों पर अत्याचार बढ़ जाते हैं |
किष्किंधा में कोई भी स्त्री सुरक्षित नहीं रह पाती | किष्किंधा का पैसा मायावी के जरिए लंका में जाने लगता है | बाली पूरी तरह विलास में डूब जाता है | इसमे मायावी उसकी मदद करता है | किष्किंधा में अराजकता फैल जाती है |
इसके विपरीत सुग्रीव प्रजा का भला चाहने वाले व्यक्ति है | इसीलिए बाली के अनुपस्थिति में जब वह सम्राट बनते है तो राज्य और प्रजा के भविष्य के लिए अच्छे-अच्छे कदम उठाते है | जब बाली वापस आकर फिर से सम्राट पद ग्रहण करता है तो सुग्रीव का दुश्मन बन जाता है | क्योंकि बाली के हिसाब से सुग्रीव से एक गलती हो गई | वह यह की सुग्रीव ने अलका को उसके पिता के घर सुरक्षित भेज दिया जिससे अलका बाली से दूर हो गई |
अब बाली सुग्रीव को सोते हुए ही गिरफ्तार कर उसे मारना चाहता है | लेकिन बाली के पुत्र अंगद की वजह से बच निकलता है | अंगद अपने चाचा के विचारों का समर्थक है | अंगद शिल्पी द्वारा सुग्रीव को खबर भेजता है | सुग्रीव ऋश्य मुख पर्वत पर छिप जाते है | इसमे उनका साथ देते है – बाली की पत्नी तारा के पिता सुषेण , भाई तार , जांबवान अंगद और हनुमानजी , जो की किष्किंधा के एक सामंत के पुत्र है | जिन्हे यूथपती भी कहाँ जाता है | वे सुग्रीव के सचिव और मित्र दोनों है |
इधर श्रीरामजी के आश्रम मे रावण के हाथों मुखर और जटायु की मौत हो जाती है | खोजबीन के बाद सब सबूतों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जाता है की सीताजी का अपहरण रावण ने किया है क्योंकि उसी के पास कवचधारी रथ है और बहुतों ने एक कवचधारी रथ और एक राजपुरुष को एक अत्यंत सुंदर युवती को ले जाते हुए देखा है |
वह किष्किंता की तरफ गया है | अब सीताजी की खोज के लिए श्री राम लक्ष्मण अपनी जनसेना वाहिनी के दो दो मुख्य लोगों को साथ में लेकर किष्किंधा की ओर चल देते हैं | अब आप सोचेंगे कि श्री रामजी के पास तो जनसेना वाहिनी थी फिर क्यों उन्हें सुग्रीव के सेना की मदद लेनी पड़ी |
क्योंकि , जनसेना वाहिनी के लोग उनके गांव के लोकल लोग थे | अगर वह सेना के रूप में श्री रामजी के साथ जाते तो पीछे से राक्षस उनके खाली पड़े गांव और खेतों पर कब्जा कर लेते | वहां फिर से राक्षसों का आतंक गहरा जाता | खेतों में उत्पादन न करने की वजह से खाने पीने की किल्लत हो जाती | और इतनी बड़ी सेना के भरण पोषण का भी सवाल खड़ा हो जाता |
इसीलिए श्री रामजी जहां जाते थे | वहां नई सेना खड़ी करते थे | सीता जी की खोज के दरम्यान उनका सामना “कबंध” राक्षस से होता है | जो क्रौंच वन मे रहता है | वही श्री रामजी को सुग्रीव से मिलने का परामर्श देता है | फिर उनकी यात्रा किष्किंधा की तरफ शुरू हो जाती है |
ऋश्यमुख पर्वत पर सुग्रीव भयभीत है | एक तो बाली ने सुग्रीव की प्रिय पत्नी रूमा का अपहरण कर लिया है | उसे छुड़ाने के लिए वे बाली से द्वंद युद्ध भी नहीं कर सकते क्योंकि बाली सुग्रीव से कहीं ज्यादा शक्तिशाली है | वह तो एक ही वार में सुग्रीव को चित कर देगा और दूसरा बाली ने सुग्रीव की हत्या करने के लिए लोगों को हायर किया है |
इसीलिए सुग्रीव और उनके सहकर्मी उनकी सुरक्षा को लेकर सजग रहते हैं | इसी चिंता के कारण वह ऋश्य मुख पर्वत पर आने वाले हर एक व्यक्ति को शक की निगाह से देखते हैं | ऐसे में उनकी मुलाकात श्री रामजी , लक्ष्मण और उनके सहायको से होती है |
श्री रामजी सुग्रीव को मित्र मान उनकी मदद करने का वचन देते हैं | यह शायद इसीलिए भी क्योंकि सुग्रीव और श्री रामजी दोनों ही की पत्नियों का अपहरण हुआ है | दोनों एक ही दुख से पीड़ित है | दोनों की पत्नियों का अपहरण करने वाले मित्र है | प्रजा का शोषण करनेवाले अन्यायी सम्राट है |
सुग्रीव भी श्री रामजी से एक वचन लेता है कि वह कभी भी बाली के सामने नहीं आएंगे क्योंकि सुग्रीव को लगता है की बाली ही श्री राम जी से मित्रता कर लेगा और इन दोनों शक्तियों को हराना उनके लिए नामुमकिन हो जाएगा |
बाली के मरने के बाद सुग्रीव सम्राट बन जाते हैं | अब आपको लग रहा होगा कि सुग्रीव के सम्राट बनते ही सारी परिस्थितियों सुखद हो जाएगी लेकिन ऐसा नहीं | क्योंकि अभी भी राज्य में ऐसे यूथपती है जो बाली के समर्थक है | वह सुग्रीव की सोची हुई योजनाओं मे उनका साथ नहीं देना चाहते क्योंकि इससे उनकी आय में कमी आएगी |
उन्हें श्रमिकों को समानता का अधिकार देना होगा | उन्हें अपने उत्पादन में से हिस्सा देना होगा | यह वह कभी भी नहीं चाहते | इसलिए उनका सुग्रीव के नीतियों को विरोध है | अब सुग्रीव इनकी बात नहीं मानेंगे तो जब कभी किष्किंधा पर कोई आक्रमण होगा तो सुग्रीव अकेले पड़ जाएंगे |
सिर्फ राज्य की सेना अकेले युद्ध करके जीत नहीं पाएगी | जीतने के लिए उन्हें यूथपतियों के सेना की भी आवश्यकता होगी | सुग्रीव का मन इस उधेड़बुन में फंसा रहता है | उन्हें समझ में नहीं आता कि वह क्या करें ? ऐसे में उन्होंने खुद को पूरी तरह विलासिता मे डुबो दिया |
वह हमेशा प्रसाद में ही पड़े रहते | उनकी सारी योजनाएं धरी की धरी रह जाती | इससे उनके सहायकों की शक्ति बिना कारण ही नष्ट हुए जा रही थी | उधर ऋश्य मुख पर्वत पर श्री रामजी सुग्रीव के मदद की राह ही देखते रह गए थे |
अब तो 4 महीने की बारिश भी खत्म हो गई थी | बारिश से गीले हुए रास्ते भी सुख गए थे | इन्हीं दिनों श्री रामजी को पता चलता है कि , सुग्रीव की शिथिलता के कारण उनके यूथपती असिगुल्म ने निर्णय लिया है कि , उनकी सेना राज्य की सेना पर हमला कर , उसका खात्मा कर देगी|
यह किष्किंधा का गृह युद्ध था | लेकिन यह खबर श्री रामजी के लिए अच्छी नहीं क्योंकि इससे वानर सेना का ही नुकसान होगा फिर वह रावण से लड़ने के लिए कौनसी सेना ले जाएंगे ?
अब यह सब रोकने के लिए सुग्रीव को सक्रिय करना जरूरी है | इसके लिए श्री राम जी लक्ष्मण को भेजते हैं क्योंकि वह खुद किसी भी नगर में प्रवेश नहीं कर सकते | अब सुग्रीव को कार्यान्वित करने के लिए लक्ष्मण जी क्या करते हैं ? यह किताब में पढ़ लीजिएगा |
इसके बाद सुग्रीव एक के बाद एक आदेश देते हैं | इन आदेशों में एक आदेश सीताजी की खोज करना भी शामिल है | वह चार ग्रुप बनाकर चारों दिशाओं में भेजते हैं |
दक्षिण की तरफ जाने वाली टुकड़ी में 20 लोग हैं जिनका मुखिया अंगद है | इस टुकडी में शामिल है – हनुमानजी , जांबवान , गंधमादन ई. इस टुकडी में खोजी लोग भी शामिल हैं जिनको दक्षिण के जंगलों के रास्ते पता है | इसी यात्रा में उन्हे संपाति मिलता है जो जटायु का बड़ा भाई है | आगे चलकर उन्हें मंदोदरी के पिता का गुप्त स्थान भी दिखाई देता है |
उसके बाद सर्व सम्मति से हनुमानजी को लंका भेजना तय होता है | सबको ऐसा लगता है कि सिर्फ वही समुद्र को संतरण कर याने के तैर कर पार कर सकते हैं |
सिर्फ हनुमानजी ही ऐसे हैं जो ना कभी थकते हैं ना कभी हतोत्साहित होते हैं | उनकी समुद्र तैरकर जाने की यात्रा भी बड़ी अद्भुत है | एक अलग दृष्टिकोण से इसे लिखा गया है | वह उड़कर नहीं तैरकर सागर पार करते हैं |
बहेरहाल , वह सागर पार कर दो दिनों तक सितमाता की खोज खबर लेते हैं | एक बार उनको लगता है कि , रावण ने कहीं उन्हें मार तो नहीं दिया | फिर वह उनकी खोज कैसे करेंगे ? या हो सकता है कि, उन्होंने रावण की बात मान ली हो और वह राजमहल में या नगर में कहीं उनके सामने आई भी हो और उन्होंने उन्हें पहचाना भी नहीं हो ! क्योंकि हनुमानजी ने तो उन्हे कभी देखा ही नहीं था |
2 दिन की खोज खबर के बाद , वह सीताजी का पता लगाने में कामयाब हो जाते हैं | उनके साथ संवाद का आदान-प्रदान करने में कामयाब हो जाते हैं | हनुमानजी उनको श्री रामजी की अंगूठी देते हैं तो सीताजी भी हनुमानजी के पास कैकेयी की दी चूड़ामणि देती है | यह वही चूड़ामणि है , जो इंद्र की पत्नी शची ने कैकेयी को दी थी |
सीता माता की खोज करने तक हनुमानजी भूखे रहते हैं | अपना कार्य पूर्ण होते ही वह अशोक वाटिका के केले के पेड़ों को नष्ट करना आरंभ कर देते हैं | इसी वजह से वह पकड़े जाते हैं | पकड़े जाने के बाद उनके साथ घटने वाली घटनाओं की लंबी फेहरिस्त है |
वह अपनी जलती पूछ से लंका में बहुत से जगह पर आग लगाकर हा- हा कार मचा देते हैं | इस चक्कर में वह छूटकर समंदर में छलांग लगा देते हैं | वह तैरकर अपने साथियों के पास वापस आ जाते हैं | सीताजी को खोजने के लिए पूरे 20 लोगों की टीम जाती है |
सीताजी की खोज के लिए बंदरों ने श्री रामजी की बहुत मदद की थी | इसीलिए शायद श्री कृष्ण जन्म में कृष्णजी बचपन में अपने माखन का बहुत बड़ा हिस्सा वानरों को दे दिया करते थे क्योंकि वे जानते थे कि श्री राम जन्म में इन लोगों ने उनकी बहुत मदद की थी और दूसरा यह की श्रीकृष्ण जन्म मे वे एक राजकुमार रहते हुए भी जांबवान की बेटी जाबवती से विवाह करते हैं क्योंकि सीताजी की खोज के लिए गई टीम में जांबवान भी शामिल होते हैं |
श्रीराम जी को खबर मिलते ही वह लंका पर आक्रमण के लिए कुच कर देते हैं | अब तक श्री राम की जान – वाहिनी सेना सिर्फ रक्षात्मक युद्ध लड़ती थी | वह भी उनके लिए अनुकूल जगह पर .. | इसके विपरीत अब वह लंका पर आक्रमण करने जा रही थी और मैदानी इलाकों में लड़ने वाली थी |
लंका के सैनिकों ने आज तक सिर्फ आक्रमण किया था | जीतने के बाद वह लूटपाट कर जीवित वापस आते थे | वह सुविधा पूर्ण परिस्थितियों में लड़ाई करने के आदि थे | उन पर आक्रमण होने का यह पहला ही मौका था |
युद्ध होने के पहले लंका के आंतरिक परिस्थितियों को जानना बहुत जरूरी है क्योंकि यही स्थितियां तय करती है कि रावण जीतेगा या हारेगा | रावण ने राक्षसों को छोड़कर बाकी सारी जातियो को कमतर आँका | उसने वानरों को तो खाने में उपयोग में ले जाने वाले पेड़ – पत्ती के बराबर भी नहीं समझा | वह समझता था कि यह लोग और श्री रामजी उनके साथ युद्ध करने के बराबर भी नहीं है |
इनके पास शस्त्र तक तो नहीं | दिव्यास्त्र की बात ही क्या ? उसके पास इंद्र को जीतने वाला बेटा मेघनाथ है | उसी के जैसा शक्ति संपन्न कुंभकरण है | बाकी लोगों के साथ-साथ ब्रह्मा की शक्ति और महादेव भी उसी के पक्ष में है | इसी घमंड में वह सोचता था कि वही जीतेगा |
उसने अपनी शक्ति के दंभ में श्री रामजी , सुग्रीव , हनुमानजी की शक्ति का आकलन कभी नहीं किया | उसके इसी घमंड के कारण उसके गुप्तचर उसे सही खबर कभी नहीं देते थे | इसका पता गुप्तचर विभाग के मुख्य शार्दुल को तब लगा जब उसने लंका के सागर तट पर उतरे वानर सेना की सही खबर रावण को दी और रावण उससे नाराज हो गया | रावण के नाराज होने का मतलब तो जानते है न.. |
“प्रहस्त ” जैसे चाटुकार मंत्रियों ने रावण को घेर रखा था | वे रावण को वही सुनाते थे जो वह सुनना चाहता था | मेघनाथ जैसे शक्तिशाली पुत्र ने उसका विरोध करने के बजाय उसका साथ देकर उसे मृत्यु की ओर धकेल दिया |
रावण ने विभीषण जैसे हितेषी भाई को और उसके सहकर्मियों को लंका से निष्कासित कर दिया और विभीषण की पत्नी सरमा और बेटी कला को नजर बंद कर दिया | बाद में उनकी हत्या का प्रयत्न भी किया लेकिन कामयाब न हो सका |
रावण के परिवार में ही आंतरिक कलह ने जोर पकड़ लिया था | लंका को वैभव संपन्न जान उसमें रोजगार ढूंढने आए वानरों ने और बाकी लोगों ने श्री रामजी का पक्ष लिया | वे उनसे जाकर मिल गए | विभीषण भी उनसे जाकर मिला इस शर्त पर की लंका के प्रजा को कोई नुकसान न पहुंचाया जाए |
श्री रामजी ने भी वचन दिया कि सिर्फ उन्ही सैनिकों के साथ युद्ध होगा जो युद्ध क्षेत्र में आएंगे और इसी के साथ उन्होंने विभीषण को लंका पति भी घोषित कर दिया | कुंभकरण रावण के जैसा ही बुद्धिमान और शक्तिशाली था | इसलिए वह कुंभकरण को एक विरोधी शक्ति के रूप में देखा था | उसने इस युद्ध को एक अच्छा मौका मान उससे छुटकारा पाना चाहा और साथ में उन पुत्रों से भी जो अपनी माता का पक्ष लेकर रावण के खिलाफ खड़े होते थे |
सिर्फ मेघनाथ को उसने बचा कर रखना चाहा | मेघनाथ ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग उन वानर सैनिकों पर किया जो सिर्फ पत्थर और लकड़ी से युद्ध कर रहे थे | ब्रह्मास्त्र के उपयोग से श्रीरामजी के पक्ष के सारे सेनापति और बहुत सी सेना घायल हो गई थी | मेघनाथ दूसरे दिन अपने दिव्यास्त्र से सबको मार डाले इसके पहले ही लक्ष्मणजी ने उसका अंत युद्ध भूमि के बाहर ही कर दिया |
रावण जब युद्ध भूमि में आता था तो चाहता था की श्री राम के पक्ष के मुख्य लोगों के बेहोश शरीरों को अपने साथ लंका ले जाए ताकि उनका सर कलम कर उनके मृत्यु की पुष्टि कर सके |
लेकिन जब मेघनाथ ने श्रीराम और लक्ष्मण के बेहोश शरीर के साथ यह करना चाहा तो तेजधर और उसकी टुकड़ी ने उनके शरीरों का रक्षण करने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी |
अब लंका में सब लोग रावण के खिलाफ हो चुके थे | मंदोदरी के साथ-साथ उसकी बाकी पत्नियां और सौतेली माताए ,उसको उनके पुत्रशोक के कारण कोस रही थी | अब उसके पास लड़ने के लिए ना तो सेना बची थी और ना ही तो कोई सेनापति .. |
इसलिए फिर उसने जबर्दस्ती हर एक घर से युवक को लेकर उसे सैनिक बना दिया | जिसने उसकी बात नहीं मानी , उन्हें मृत्युदंड दिया गया | इससे भी लंका का हर एक घर चीत्कार कर उठा | आखिर में थोड़े से सैनिकों के साथ वह युद्ध क्षेत्र में आया लेकिन राम जी के समक्ष टिक न सका और मारा गया |
इंद्रदेव भी इनडायरेक्टली इस युद्ध में श्री रामजी की मदद करते हैं | कभी गरुड़ देव के हाथों अमूल्य औषधीयां भेज कर , कभी शस्त्र सज्जित रथ भेज कर .. क्योंकि अहिल्या के कारण श्री रामजी इंद्र से नाराज है | अब यह युद्ध इंद्र के लिए क्यों मायने रखता है ? यह आप किताब में पढ़ लीजिएगा | युद्ध के बाद बाकी सब लोग अपने – अपने गंतव्य की ओर अग्रेसर होते है | बिभीषण से इस वचन के साथ की वह लंका मे एक खुशहाल समाज का निर्माण करेगा |
इसी के साथ मिलते है , नई किताब के साथ तब तक के लिए धन्यवाद !
One thought on “ABHYUDAYA VOLUME 2 BOOK REVIEW IN HINDI”