सात चिरंजीवी
रमेश सोनी द्वारा लिखित
रिव्यू –
प्रस्तुत किताब के –
लेखक – रमेश सोनी
प्रकाशक – प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ संख्या – 72
उपलब्ध – अमेजॉन पर
श्री हनुमानजी , महर्षि वेदव्यास , कृपाचार्य , परशुराम , विभीषण ,राजा बलि , अश्वत्थामा यह वही सात चिरंजीवी है जिनका जिक्र प्रस्तुत किताब मे किया गया है |
इस पुस्तक में सम्मिलित सातों पात्र रामायण और महाभारत काल से संबंध रखते हैं | यह दोनों ग्रंथ हमारे देश के महान ग्रंथ है | इन दोनों ग्रंथों में बड़े ही अद्भुत और रहस्यमई चरित्रो का समावेश है | कहते हैं कि ,उनके पास कई रहस्यमय शक्तियां है | तो क्या ? वह इन शक्तियों के आधार पर अमर हो सकते हैं |
हालांकि , देखा जाए तो वे लोग अमर नहीं है | बस वह इस कल्प के अंत तक जीवित रहने वाले हैं | वैसे भी इतनी सारी शक्तियों के होते हुए इतने सालों तक जीवित रहना उनके लिए मामूली बात है क्योंकि पॉल ब्रण्टन की किताब “गुप्त भारत की खोज ” में उन्होंने ऐसे योगियों का जिक्र किया है जो हजारों सालों से जिंदा है |
सिर्फ अपनी योग शक्ति के बल पर | जब वे लोग कलयुग में ऐसा कर सकते हैं तो यह लोग तो भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन कर चुके हैं | क्या इनमें वह शक्तियां नहीं होगी | इसीलिए शायद यह किवदंतियाँ प्रसिद्ध है कि उपर्युक्त सारे लोग अमर है |
पर यह सातों लोग ही क्यों अमर है ? बाकी लोग क्यों नहीं ? क्या यह सवाल आपके मन में नहीं आया ? क्योंकि इनका धरती पर अभी भी कुछ काम शेष है , जैसे जब भगवान नारायण कल्कि अवतार धारण करेंगे तो भगवान परशुराम उन्हें युद्ध कौशल सिखाएंगे |
हनुमान जी को तो भगवान श्री राम ने ही धरती पर रुकने के लिए कहा था | अश्वत्थामा को तो शाप ही मिला है | वैसे लेखक ने इन सातों के बारे में जो जानकारी दी है वह आप को रामायण और महाभारत के ग्रंथों में मिलेगी | अगर आपको इसके बारे में नहीं पता तो हम संक्षिप्त में आपको बता देते हैं |
भगवान हनुमान जी के बारे में सबको पता ही होगा कि वे श्री राम जी के सबसे बड़े भक्त है | राम जी की सेवा के लिए ही उनका जन्म हुआ था | माता सीता को खोजने में और रावण के साथ हुए युद्ध में उन्होंने श्री राम जी की खूब सहायता की थी | श्री राम जी जब अपना अवतार समाप्त करके बैकुंठ जाने लगे तो भगवान ने उन्हें यही धरती पर रहने का आदेश दिया और तब से लेकर अब तक वह इस पृथ्वी लोक पर ही निवास कर रहे हैं |
दूसरे है – विभीषण | यह रावण के भाई थे और धर्म के मार्ग पर चलते थे | इसीलिए इन्होंने रावण का साथ छोड़ श्री राम जी का साथ दिया |
तीसरे है – है महर्षि वेदव्यास | वह माता सत्यवती की संतान थे | सत्यवती का जन्म मछली के पेट से हुआ था | इसलिए उनके शरीर से मछली की दुर्गंध आती थी | वह मछुआरों के मुखिया की बेटी थी | वह धर्मार्थ नाव चलाती थी | यानी ऋषि मुनियों को फ्री में नाव की सवारी करवाती थी |
एक दिन ऋषि पराशर उसकी नाव पर आए | उन्होंने उससे पुत्र प्राप्ति की इच्छा जाहिर की | वह मान गई | ऋषि पराशर से सत्यवती को यमुना नदी के द्वीप पर एक पुत्र प्राप्त हुआ | यही महर्षि वेदव्यास है | द्वीप पर जन्म होने के कारण इनको “द्वैपायण ” कहा जाता है |
इन्होंने वेदों को अलग-अलग किया | इसलिए उन्हे वेदव्यास कहते हैं | पुराणों के सार को लेकर इन्होंने महाभारत की रचना की | महर्षि वेदव्यास त्रिकाल दर्शी थे | अपनी दिव्य दृष्टि से उन्होंने जान लिया था कि कलयुग में धर्म में आस्था की कमी के कारण मनुष्य नास्तिक और अल्पायु हो जाएगा |
इतनी कम उम्र के कारण वह इतने विशाल वेदों का अध्ययन कर ही नहीं पाएगा | इसीलिए फिर उन्होंने वेदों को चार भागों में डिवाइड कर दिया | उनकी पत्नी का नाम आरुणि और पुत्र का नाम शुकदेव है |
श्रीमद्भागवद्गीता विश्व के सबसे बड़े महाकाव्य महाभारत का ही एक भाग है | रामनगर के किले में और व्यास नगर में वेदव्यास के मंदिर है | वहां माघ महीने के प्रत्येक सोमवार को मेला लगता है | व्यासपूरी काशी से पांच मील की दूरी पर स्थित है |
वेदव्यास जी ने काशी को श्राप दिया था | इस कारण भगवान भोलेनाथ ने उन्हें वहां से निष्कासित कर दिया | तब से वह “लोलार्क मंदिर” के आग्नेय कोण मे गंगाजी की पूर्वी तट पर स्थित हुए | पुराणो और महाभारत को लिखने के बाद उन्होंने “ब्रह्मसूत्र” की रचना की | इस सारे वृतांत के बाद नारदजी की पहले जन्म की कथा है | उसमें बताया कि वह कैसे भगवान नारायण के भक्त बने ? जरूर पढ़िए |
इसके बाद कृपाचार्य का वर्णन है | कृपाचार्य अश्वत्थामा के मामा है | कृपाचार्य की बहन कृपी है जिनका विवाह आचार्य द्रोण के साथ हुआ था | कृप और कृपी जुड़वा भाई – बहन है | एक बार जंगल में यह दोनों बच्चे , हस्तिनापुर के सम्राट , महाराज शांतनु को मिले |
वह उन्हें हस्तिनापुर लेकर आए | तब से उनका पालन पोषण राजमहल में ही होने लगा | कृपाचार्य अपने पिता शरद्वान गौतम के जैसे ही धनुर्विद्या में पारंगत थे | असलियत मे उनके पिता शरद्वान , गौतम ऋषि के पुत्र थे | उनका जन्म ही बाणों के साथ हुआ था |
वह प्रसिद्ध कवि थे और तपस्या के बल पर उन्होंने कई शक्तियां और सिद्धियां भी हासिल कर ली थी | कृपाचार्य धनुर्विद्या में पारंगत थे इस वजह से वह कौरवों और पांडवों के आचार्य थे | महाभारत के युद्ध में वह कौरवों की तरफ से लड़े थे |
वह अश्वत्थामा को बेहद प्यार करते थे | अश्वत्थामा और उनकी बहन ही उनका परिवार था | कुरुक्षेत्र युद्ध के आखिरी दिनों में कृपाचार्य ने दुर्योधन को पांडवों के साथ संधि करने के लिए कहा लेकिन वह नहीं माना और मारा गया |
कृपाचार्य इस युद्ध में जीवित बच गए और कहते हैं कि वह आज भी जीवित है | भगवान परशुराम का नाम जन्म के समय राम था | उन्होंने भगवान शिव की तपस्या करके उनका परशु धारण करने का वर मांग लिया | इसीलिए फिर वह परशुराम के नाम से विख्यात हुए |
भगवान परशुराम ऋषि जमदग्नि के पुत्र थे | इन्होंने अपने पिता के कहने पर अपनी माता और तीन भाइयों की हत्या कर दी थी | बाद में उनके पिता जब शांत हुए तब उन्होंने परशुरामजी से वर मांगने को कहा | उन्होंने अपनी माता और भाइयों को जीवित करने का वर मांगा और साथ में बीती हुई बातें भी भुला दी |
क्षत्रिय राजाओं के पापचारी होने के कारण , उन्होंने 21 बार इस धरती से क्षत्रियों का संघार किया | बाद में धरती माता के कहने पर , उनके पूर्वजों ने उनसे यह नरसंघार रोकने के लिए कहा | उसके बाद उन्होंने अपनी संपूर्ण संपत्ति ब्राह्मणों को दान दे दी | अपने अस्त्र-शस्त्र गुरु द्रोण को देकर , उन्हें उनका उपयोग करना सिखाया , उनका रहस्य बताया और फिर वह कठोर तपस्या करने चले गए | विभीषण के बारे में तो सबको को पता है | इसलिए इनके इनका वर्णन स्किप कर देते हैं |
छठे चिरंजीवी राजा बलि है | वह असुर कुल के है और भक्त प्रल्हाद के पौत्र है | भक्त प्रहलाद के बारे में तो जानते हैं न.. | राजा बलि भगवान विरोधी थे | वह जानते थे कि ब्राह्मणों के पास रहस्यमय विदयाए है | वह नीति शास्त्र में पारंगत है | वहीं उनकी रक्षा कर सकते हैं क्योंकि वह तब भगवान इंद्र के दास थे |
इसीलिए फिर उन्होंने भृगु वंशीय ब्राह्मणों की सेवा कर उन्हें हर प्रकार से संतुष्ट किया | फिर इन ब्राह्मणों से उन्होंने अनेक रहस्यमय विदयाए सीखी और सैनिक शक्ति के रहस्य भी पता कर लिए | इस कारण वह बहुत शक्तिशाली और सामर्थ्यवान हो गए | उन्होंने देवराज इंद्र को हराकर परास्त कर दिया |
अब देवराज इंद्र और बाकी सारे देवता भगवान विष्णु के पास गए | भगवान विष्णु ने उन्हें सलाह दी की राजा बलि बहुत शक्तिशाली है | इसीलिए अब आप स्वर्ग छोड़कर कहीं और चले जाए | देवताओं की माता अदिति से यह सब देखा नहीं गया |
देवताओं के पिता महर्षि कश्यप के कहने पर देवताओं के साथ-साथ माता अदिति ने भी भगवान विष्णु की आराधना की | इस आराधना के कारण स्वयं भगवान विष्णु ने माता अदिति के गर्भ से जन्म लिया | वे देखते ही देखते वामन अवतार में परिवर्तित हो गए |
तभी राजा बलि नर्मदा नदी के तट पर “भृगुकच्छ” नाम के सुंदर स्थान में अश्वमेघ यज्ञ कर रहे थे | तभी वहाँ वामन रूपी भगवान विष्णु पधारे | राजा बलि ने उनका स्वागत किया और कहा कि वह जो भी दान में मांगेंगे | वह अवश्य देंगे |
इस पर जब भगवान ने उनसे तीन पग भूमि मांगी तो , वह उन पर हंसने लगे | राजा बलि भगवान के सामने संपत्ति के गर्व से भरी बातें कर रहे थे | जब उन्होंने दान देने का संकल्प करने के लिए जल का पात्र उठाया तब असुरों के गुरु शुक्राचार्य ने उन्हें रोक दिया क्योंकि वे जान गए थे कि वामन अवतार में भगवान विष्णु है |
शुक्राचार्य के बार-बार वार्निंग देने के बाद भी जब राजा बलि नहीं माने तो शुक्राचार्य ने ही उनको को श्राप दे दिया कि उनका सारा धन छिन जाएगा | इतना होने पर भी राजा बलि अपने वचनों पर कायम रहे | भगवान ने यकायक अपना आकार बढ़ना शुरू किया | पहले पग में उन्होंने पूरी धरती नाप ली | दूसरे पग में पूरा स्वर्ग | इसके बाद राजा के पार्षद और भगवान में युद्ध होने लगा क्योंकि उन्होंने जान लिया था कि यह कोई मायावी है |
पर राजा बलि ने उन्हें समझा – बुझाकर “रसातल” में भेज दिया | भगवान विष्णु के कहने पर “पक्षीराज गरुड़” ने राजा बलि को “वरुणपाश ” में बांध दिया | इसके बाद भगवान राजा बलि से बोले कि ,” तुम्हें अपने धन पर बड़ा घमंड था कि तुम कुछ भी दे सकते हो ! परंतु अभी दो पग में ही मैंने त्रैलोक्य को नाप लिया है | बताओ अब मैं तीसरा पग कहां रखूं ? “
इस पर राजा बलि शर्मिंदा होते हुए बोले कि ,” आप तीसरा पग मेरे सिर पर रख लीजिए | इस पर भगवान प्रसन्न हुए और उन्होंने राजा बलि को “सुतल लोक” का अधिकारी बना दिया | और उन्हे साल मे एक दिन ओणम के दिन धरती पर आने की अनुमति भी दी |
उनका धन और बल देवताओं से भी बढ़कर है | इससे यही समझ में आता है कि , जो भी भगवान मे अपनी आस्था प्रकट करता है | भगवान उसे निश्चित रूप से सुख समृद्धि प्रदान करते हैं | सातवे चिरंजीवी है – अश्वत्थामा .. इन पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है | इसलिए उनकी जानकारी भी आप किताब में ही पढ़ लीजिएगा | और ज्यादा जानकारी के लिए आप आशुतोष गर्ग द्वारा लिखित “अश्वत्थामा” इस किताब पर बना विडिओ भी हमारे यू ट्यूब चैनल “सारांश बुक ब्लॉग ” पर देख सकते है |
तब तक पढ़ते रहिए ! खुशहाल रहिए | मिलते है और एक नई किताब के साथ तब तक के लिए ..
धन्यवाद !