महारानी
येसूबाई संभाजी भोसले
ज्ञानेश मोरे द्वारा लिखित
रिव्यु –
प्रस्तुत किताब छत्रपती शिवाजी महाराज की बहु और दुसरे छत्रपति शम्भु महाराज इनकी धर्मपत्नी , महारानी येसूबाई के जीवनकाल के दर्शन कराती है | प्रस्तुत किताब के लेखक है –
लेखक – ज्ञानेश मोरे ( मराठी वर्जन )
प्रकाशक – कुनाल मदन हजेरी चेतक बुक्स
पृष्ठ संख्या – 365
उपलब्ध – अमेज़न , किनडल
वह आठ साल की उम्र में भोसले घराने की बहु बनी और अपने 71 वर्ष की उम्र तक सिर्फ स्वराज्य हित के बारे में ही सोचती रही | उसी को अबाध रखने के लिए काम करती रही | शिवाजी महाराज ने बहुत सारे कष्ट उठाकर स्वराज्य को स्थापित किया तो इन्होने भी बहुत तकलीफे झेलकर स्वराज्य को संभाला | ऐसा इसलिए बता रहे है क्योंकि महारानी येसूबाई लगभग 30 साल तक मुगलों के कैद में रही |
अपने स्वराज्य को बचाने के लिए उन्होंने जब मुगलों की कैद स्वीकार की तो उनकी मदद के लिए ना तो जिजामाता थी ,ना तो शिवाजी महाराज और नाही तो उनके पति शम्भू महाराज ही थे क्योंकि यह तीनो तब तक स्वर्ग सिधार चुके थे | उनके पुत्र शाहू महाराज भी बच्चे ही थे | उन्होने स्वराज्य का हित देखते हुए अपने देवर राजाराम को राजगद्दी पर बिठाया | शम्भू महाराज के गुजरने के बाद अपना दुःख भुलाकर स्वराज्य का ध्यान रखा , प्रजा का ध्यान रखा | वे बहुत सारे गुणों से युक्त हस्ती थी | वे युद्ध कौशल मे पारंगत थी |
खासकर तलवारबाजी उन्हें बहुत अच्छे से आती थी | उनकी तलवारबाजी देखकर तो उन्हें गिरफ्तार करने आया मुग़ल सरदार भी डर गया था | वे अच्छी घुड़सवार थी ,उन्हें बहुत सारी भाषाए आती थी जब की उस ज़माने में बहुत ही कम महिलाये शिक्षित हुआ करती | वह एक प्रजावत्सल महारानी थी जो राज्यकारभार और पैसो के व्यवहार पर भी चोख नजर रखती थी | उनके दरबारी उनसे डरकर रहा करते | कब किसके साथ कैसा व्यवहार करना है वह बखूबी जानती थी इसलिए तो औरंगजेब की कैद में रहते हुए भी उन्होंने अपना असंतोष अपने मन में दबा कर रखा |
उन्होंने अपने और अपने बेटे के लिए सुरक्षा मांग ली | उन्होंने हिन्दू धर्म छोड़कर , मुस्लिम धर्म स्वीकार करने से मना कर दिया जब की औरंगजेब ने इस बात के लिए उन पर बहुत सख्ती की थी | उन्होंने अपने अच्छे व्यवहार से औरंगजेब की बेटी झिन्न तुन्निसा को अपनी पक्की सहेली बना लिया था | इसी बेगम की मदद से उन्होंने औरंगजेब के सारे मंसूबो को पानी में मिला दिया | उन्होने रिश्तो को शायद ज्यादा ही मान दे दिया था इसीलिए यह अपने फितूर भाई का वक्त पर इंतजाम ना कर सकी जिस वजह से उन्हें अपने पति शम्भू महाराज और मुह्बोले भाई कवी कलश को गवाना पड़ा |
जिस देशमुखी वतन के लिए महारानी येसूबाई के भाई गणोजी ने शम्भुमहाराज के साथ दगा किया | वही वतनदारी शम्भुमहाराज के बेटे शाहुमहाराज इन्होने शुरू की ताकि सारे लालची और षड़यंत्र करने वाले लोग शांत हो जाये | शायद उन्होंने इतिहास को दोबारा दोहराने से बचा लिया था | खैर……. उपन्यास बहुत अच्छा लिखा है सिर्फ कुछ – कुछ जगह एक ही बात को और एक जैसे शब्दों को बार – बार दोहराया गया है | जो पढ़ने में थोड़ी सी बोरियत लाती है | फिर भी ….. हमें उपन्यास अच्छा लगा क्योंकि यह एक महान व्यक्ति के बारे में बताता है |
हमने यह किताब इसलिए पढ़ी ताकि हम स्वराज्य के संरक्षक उन सब लोगो के बारे में जान सके जिन्होंने अपनी जान और अपना सर्वस्व इसपर न्योछावर कर दिया | हमने देखा की बहुत से लोगो की जानकारी सिर्फ माँ जिजाऊ , शिवाजी महाराज और उनके बेटे शम्भू महाराज तक ही सिमित है जब की माँ जगदम्बा ने उनके 27 पीढियों को सिंघासन दिया था | तो आप लोगो की जानकारी बढाने का यह हमारा एक प्रयास है | आशा है आप सब इसमें हमारा साथ देंगे | चलिए तो इसका सारांश देखते है _
सारांश –
कहानी शुरू होती है , महारानी येसूबाई के मायके जावली से ……… उनके पिता का नाम पिलाजी राव शिर्के था और भाई का नाम गणोजी था | इनके बचपन का नाम “राजाऊ” था | इनके नानाजी सुर्वे यह स्वराज्य के दुश्मन थे तो पिताजी स्वराज्य के उपासक ….| वह दिखने में बहुत गोरी और सुन्दर थी | उनका रूप और संस्कार देखकर माँ जिजाऊ ने ही उन्हें सबसे पहली बार अपने पोते शंभूराजे के लिए पसंद किया |
शम्भू राजे यह शिवाजी महाराज की पहली पत्नी सईबाई के बेटे थे | दस साल के शम्भू राजे की शादी आठ साल की राजाऊ के साथ हो गई तो उनके भाई गणोजी की शादी शंभूराजे की बहन नानीबाई के साथ हो गई | राजाऊ का नाम शादी के बाद बदलकर येसूबाई हो गया | महारानी येसूबाई और छत्रपति शम्भू महाराज इनके दो बच्चे थे | एक बेटी भवानी और बेटे शाहुराजे | जब यह दुल्हन बनकर राजगढ़ आई तो उनको माँ जिजाऊ , छत्रपति शिवाजी महाराज , रानी सोयराबाई , रानी पुतलाबाई इन सब का प्यार मिला | लेकिन परिस्थितिया तब बदल गई जब शिवाजी महाराज की दूसरी पत्नी सोयराबाई ने बेटे को जन्म दिया जिनका नाम “राजाराम” रखा गया |
रानी सोयराबाई चाहती थी की राजगद्दी , राजाराम को मिले | इसलिए उन्होंने शम्भू महाराज के खिलाफ षड्यंत्र रचाने आरम्भ कर दिए | जिससे की शम्भू महाराज की प्रतिमा , शिवाजी महाराज और प्रजा के मन में ख़राब हो जाये | क्यों न हो……. ? आखिर सोयराबाई पसंद भी शिवाजी महाराज की सौतेली माँ तुकाबाई की थी जो उन्ही के जैसी ईर्ष्यालु , झगडालू और बुरी थी जिसके कारण माँ जीजाऊ को अपने बेटे शिवबा के साथ और अपने पति से अलग पुणे में रहना पड़ा | लेकिन राजाराम और शंभूराजे में राम – भरत के जैसा प्यार था | जब यह बात सोयराबाई को समझ में आई तो उन्होंने आत्महत्या कर ली |
शिवाजी महाराज की तीसरी पत्नी का नाम “पुतलाबाई” था | वह एक सच्ची , निर्मल , प्रेम करनेवाली व्यक्ति थी | उन्होंने हमेशा शंभूराजे और येसूबाई को माँ का प्यार दिया | वह शिवाजी महाराज के देहांत के बाद उन्ही के साथ सती हो गई | जब सोयराबाई के षड़यंत्र चल रहे थे तब उन सारे चालो का जवाब महारानी येसूबाई अपने चतुराई से दिया करती और हमेशा शंभूराजे को बचा लिया करती | उन्होंने शम्भू महाराज को एक अच्छी पत्नी की तरह संभल रखा था | हमेशा उनका आधार बनी थी | शंभूराजे को हमेशा उनसे हिम्मत मिलती थी |
इनके ही सगे भाई गणोजी ने मुगलों के साथ मिलकर शंभूराजे और उनके मित्र कवी कलश को कैद करवाया | औरंगजेब ने शंभूराजे का सर धड से अलग करवाया और साथ में कवी कलश का भी……..क्योंकि शंभूराजे ने अपना हिन्दू धर्म छोड़ने से मन कर दिया था और साथ ही संधी करने से भी ….|
इसके कुछ दिनों बाद ही महारानी येसूबाई और शाहुराजे को कैद कर लिया गया | तब तक उन्होंने राजाराम को स्वराज्य का वारिस बनाकर उनकी पत्नी “ताराबाई” के साथ गुपचुप “जिंजी” भेज दिया था और उन्होंने खुद गनिमो की नजरकैद स्वीकार कर ली |
जब राजाराम की मौत के बाद शाहुराजे स्वराज्य में वापिस आये तो ताराबाई ने दगा करते हुए सिंघासन का अधिकार उन्हें देने से मना कर दिया |
तब शाहुराजे इन्होने सातारा मे स्वराज्य की नई गद्दी स्थापित कर ली | वे अपनी माँ महारानी येसूबाई को स्वराज्य में वापिस लाने में कामयाब रहे | अब महारानी येसूबाई राजमाता थी | उनकी देखरेख में स्वराज्य फलने – फूलने लगा……..शाहू महाराज के बाद स्वराज्य की कमान पेशवाओ ने संभाली | आनेवाले विडिओ मे हम इनके बारे मे जानेगे |
अगर महारानी येसूबाई के कर्तृत्व के बारे में जानना है तो यह किताब जरूर पढ़े |मिलतेहै और एक नई किताब के साथ तब तक के लिए
धन्यवाद !
Wish you happy reading…….