गोली
आचार्य चतुरसेन द्वारा लिखित
रिव्यू –
यह कहानी ऐसी जनजाति के बारे मे है जो राजा – महाराजाओ ने अपने स्वार्थ के लिए निर्माण की | उनको जन्म से ही अपना दास घोषित कर उन्हें ताउम्र दासत्व के अंधेरे में धकेल दिया | यह समाज का वह अनदेखा पहलू है जिसके बारे मे ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं था | इसलिए लेखक ने उस वक्त के समाज का यह घिनौना चेहरा दिखाने के लिए यह किताब लिखी | अब आप सोचेंगे की लेखक को इन लोगों के बारे में कैसे पता ?
तो बताए देते हैं कि , लेखक आचार्य की डिग्री लेने के बाद दिल्ली में प्रैक्टिस करने लगे | उसी दौरान उनके राज परिवारों के लोगों के साथ अच्छे संबंध बने | लेखक का राजपरिवारों मे जाना – आना शुरू हुआ | वह लोग इनसे चिकित्सकीय सेवाये लेते थे |
लेखक हिंदी भाषा के महान उपन्यासकार थे | वह ज्यादातर ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित लेखन करते थे | इनके उपन्यास बहुत ही रोचक और दिल छूने वाले होते है | प्रस्तुत उपन्यास में राजस्थान के रजवाड़ा और उनके रंग महलों की भीतरी जिंदगी का बड़ा ही मार्मिक रोचक और मनोरंजक चित्रण किया है | उसी परिवेश की बदनसीब “गोली” की यह करूण कहानी है | यह किताब खरीद कर ही पढे | फ्री किताब में छपाई बराबर नहीं | कुछ-कुछ पन्ने भी मिसिंग है |
इस किताब के
लेखक है – आचार्य चतुरसेन
प्रकाशक – राजपाल एण्ड संस
पृष्ठ संख्या – 192
उपलब्ध – अमेजन , किन्डल
प्रस्तुत उपन्यास लेखक ने उनके 66 की उम्र मे लिख डाला | किताब लिखते समय उनकी 66 वे साल की शुरुवात थी | वह इन दिनों प्रायः बीमार रहते थे फिर भी 12 से 18 घंटे अपने मेज पर झुके काम करते रहते थे | भगवान ने इस बुढ़ापे में उनको एक बेटी का पिता बना दिया था | उनकी बेटी का नाम “मुन्नी” था | अब उनके जीवन के दो आधार थे _ एक उनकी पत्नी और दूसरे उनकी बेटी | उनकी बेटी को अपने पिता का प्यार ज्यादा दिनों तक नहीं मिला क्योंकि उनका देहांत 68 वर्ष की उम्र मे हो गया था |
जब “गोली” किताब का साप्ताहिक हिंदुस्तान में धारावाहिक रूप में शुरू हुआ तो उन्हें ढेर सारे पत्र आते रहे | उन्होंने इन सारे पत्रों के जवाब भी दिए | जिनमे से कुछ प्रशंसा करने वाले थे तो कुछ आलोचना करने वाले | कुछ ने तो कहा कि ,” आप राजा महाराजाओं से घुस लेना चाहते हैं |” क्योंकि लेखक ने राजा महाराजाओं को मिलने वाले पेंशन पर सवाल उठाया था | उनका कहना था कि जब सब को अपना जीवन यापन करने के लिए इतनी मेहनत करनी पड़ती है तब इन राजाओं को पेंशन क्यों ?
उन्होंने राजस्थान में उपस्थित 60 हजार महिला और पुरुष के नायक और नायिकाओ के रूप मे चम्पा और किसुन को प्रस्तुत किया है | चम्पा – एक ऐसी नारी है जो साधारण नारियों से हर एक मामले में अलग है | वह रानी जैसा जीवन जीती है लेकिन रानी नहीं | उसके बच्चों को वह माँ का प्यार भी नहीं दे सकती | उसकी शादी तो हुई है लेकिन उसके पति का उस पर कोई अधिकार नहीं | वह अपने पति के घर जाकर घर गृहस्ती नहीं संभाल सकती बल्कि उसका पती ही उसकी मालकिन जैसी देखभाल करता है |
उसके बच्चे राजा के है लेकिन उन्हें राज पाठ में हक नहीं | राजकुमार या राजकुमारी होने का हक नहीं | चंपा के बच्चों को एक पिता की जरूरत है इसलिए उसका ब्याह “किसुन” के साथ कर दिया जाता है | “किसुन” पूरी तरह से एक पिता और पती का फर्ज निभाता है | उसकी यही बात देखकर चम्पा उसे देवता मानती है |
राजा की सेवा करना उसका धर्म तो है लेकिन वह मन से पती सिर्फ किसुन को ही मानती है | वह भी तो एक राजा की ही बेटी है फिर भी उसे राजकुमारी का हक नहीं बल्कि उसे राजकुमारी के ब्याह मे राजा की बिनब्याहता स्त्री के रूप मे राजकुमारी के साथ भेज दिया जाता है | राजा कि जब तक मर्जी उसे राजमहल मे या अपनी जिंदगी मे रखेगा या अपनी जिंदगी से निकाल बाहर फेकेगा | यह बात राजकुमारी भी जानती है | पढ़कर कुछ अजीब लगा ना .. |
यही अजीब कहानी इस गोली की है जो वास्तविकता लिए हुए हैं | कई लोगों ने असलियत में ऐसा जीवन जिया है | वह तो शुक्र है कि हमें स्वतंत्रता मिली जिससे हमारे देश में कई सुधार हुए | उसमें से एक यह है कि माननीय श्री. सरदार वल्लभभाई पटेल इन्होंने रजवाड़ों का गणराज्य में विलय करवाया | जिससे चम्पा और किसुन के जैसे बहुत से गोली , गोलो का जीवन सुधर गया | उन्हे राजा के दासत्व से मुक्तता मिली | उनके बच्चे समाज के सम्मानित नागरिक बनकर अपना जीवन यापन करने लगे |
राजा रानियों के सनकी दिमाग और चित्र – विचित्र आदतों की यह कहानी है | कहानी वास्तविकता के धरातल पर लिखी गई है | जिसमें राजा और राज्य का नाम छुपाया गया है और चंपा का असली पता भी | चंपा यह नाम भी असली नहीं | फिर इस गोली ने अपनी आप बीती सुनाई क्यों ? जब की इनके मुह और आत्मा पर दासता के बंधन पड़े थे |
चंपा ने पूरे 21 साल राजा के रंगमहल मे बिताए थे | इस वजह से वह राजा के साथ बहुत बार विदेश जा चुकी थी | वहाँ से वह स्त्री की स्वतंत्रता और उसके अस्तित्व के विचार अपने साथ लेकर लौटी थी | बहुत सारी किताबे पढ़कर सयानी और दबंग बन गई थी | फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने लगी थी |
भारत में स्त्रियों की ऐसी दशा देखकर , उसकी खुद की ऐसी दुर्गति देखकर उसका मन स्त्री के मान -सन्मान के लिए कराह उठता था | इस कारण जब उसे अपना मन लेखक के सामने हल्का करने को मिला तो अपने दबंग स्वभाव के कारण अपनी आप बीती बताई होगी ताकि बाकी लोगों को भी उनके नारकीय जीवन के दर्शन हो जाए | चम्पा ने स्वतंत्र पूर्व भारत मे दुख भी सहे और स्वतंत्र भारत मे सुख के दिन भी देखे | जिन सरदार वल्लभभाई पटेल के कारण उनको राजाओ के दासता से मुक्तता मिली | उनका एक शानदार पुतला उसने अपने कोठी के आँगन मे बनवाया है | स्वतंत्र भारत ने उसे बहुत ही सुख के दिन दिखाए है | यह उसका अपनी कृतज्ञता प्रकट करने तरीका है शायद…. |
इसमें बहुत सारे अध्याय है जैसे कि -जन्मजात कलंकिनी , नजर बाग में ,नाम नहीं बताऊंगी , विगत इतिहास , मेरी मां , चारणों का प्रभाव | यह कहानी है चम्पा नाम के गोली और किसुन नाम के गोले की | यह राजा की अवैध संताने हुआ करती थी | लड़कियों को गोली और लड़कों को गोला कहा करते थे | यह लोग जन्म जात गुलाम थे | इनका न तो अपनी संतानों पर कोई अधिकार था , नाही यह कोई निजी संपत्ति रख सकते थे | उन्हें भेड़ बकरियों की तरह खरीदा और बेचा जाता था | दहेज में दान दिया जाता था | हर एक राजा या ठिकानेदार की बेटी की शादी में 10 से 100 तक गोलियां दहेज में दी जाती थी |
यह राजपूत कन्या के पति की उपपत्नियाँ कहलाती थी | पर रहती थी यह दासी ही थी | इनको राजा के मरने पर सती भी होना पड़ता था | जब राजपूतों और मुगलों का संबंध बढ़ा तो इनमे रोटी बेटी का व्यवहार होने लगा | इनके संस्कृति का प्रभाव मुगल दरबार में कार्यरत राजपूतों पर भी पड़ा | इसी से फिर इस जाति का जन्म हुआ | ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यक्तिगत स्वाधीनता का अधिकार स्वीकार किया और व्यवहार में लाया | यह कानून उस जगह प्रचलित नहीं हुआ जहां देशी राजाओं के अधिकार थे | राज्य की प्रजा अशिक्षा के कारण इस अधिकार से वंचित रही |
आइए , अब देखते है इस किताब का सारांश –
सारांश – चंपा एक गोली थी जो थी तो एक थानेदार की बेटी लेकिन उसे राजकुमारी का अधिकार नहीं था क्योंकि उसकी मां भी गोली ही थी | यह चम्पा उसी ठिकानेदार की बेटी की शादी मे दहेज के तौर पर राजा को दे दी जाती है | उसे राजकुमारी के साथ भेज दिया जाता है | यह कैसी विटम्बना की एक ही पिता की संतान एक राजकुमारी है तो दूसरी दासी | चम्पा राजमहल आ जाती है | उसे भेजा ही जाता है राजा की सेवा के लिए | यह बात राजकुमारी भी जानती है |
चंपा राज महल में पूरे 21 साल रानी के जैसा जीवन व्यतीत करती है लेकिन उसे रानी के जैसा दर्जा प्राप्त नहीं | राजा से उसे चार संताने होती है | उसके संतानों को पिता का नाम देने के लिए और उन्हें संभालने के लिए इसका का विवाह किसुन के साथ कर दिया जाता है जो उसी का एक चाकर है | किसुन अपना पति धर्म और पिता धर्म बहुत अच्छे निभाता है | चंपा के लिए किसुन एक देवता है | राजा लहरी स्वभाव का स्वामी था | कभी अच्छा तो कभी बुरा | एक बार उसकी बात ना मानने के कारण उसने चंपा को चाबुक से बहुत मारा था | यही हिमाकत राजा अपनी रानी के साथ नहीं कर सकता था | चम्पा की चीखे सब लोग सुनते रहे लेकिन उसे बचाने कोई नहीं आया क्योंकि उनके आत्मा पर गुलामी के बंधन जकड़े हुए थे | व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के बारे में उन्हें पता ही नहीं था | खैर , उसके बाद चम्पा ने कभी मार खाने की नौबत आने ही नहीं दी |
चंपा रहती तो थी रानी की तरह लेकिन वह रानी नहीं थी | इस कारण राज महल की ऊंचे ओहदे के लोग उसके साथ दासी के जैसे ही पेश आते थे | ऐसे ही चंपा की खवास के साथ अकारण ही शत्रुता हो गई थी | खवास को चम्पा एक आँख नहीं भाती थी | इसी खवास ने चम्पा के खिलाफ राजा के कान भरे | इस कारण राजा ने चंपा को मारने का प्लान बनाया | इसका जिम्मा राजा ने खवास और उसके लोगों को दे दिया और खुद विदेश चला गया | यह खवास ड्योढ़ियों का रखवाला था | यह ड्योढ़ी चम्पा के रंगमहल के पीछे ही थी लेकिन दोनों जगहों का जीवन एकदम विपरीत था |
इन ड्योढ़ियों में वह लड़कियां थी जिन पर राजा की नजर पड़ी थी | इनमें वह बाल विधवा भी हुआ करती जिन्हें उनके घर के लोग ही वहां नारकीय जीवन जीने के लिए भेजा करते थे | इस जगह जो लड़की एक बार जाती कभी जिंदा वापस लौट कर नहीं आती | चम्पा ने उसके बारे मे सुना रहता है | अब चम्पा के बुरे दिनों के चलते वह वहाँ पहुँचा दी जाती है तब के उस वर्णन को सुनकर आप दंग रह जाओगे क्योंकि ऐसी जगह सचमुच अस्तित्व मे थी |
इन 21 सालों में राजा ने उसकी बहुत अच्छे से देखभाल की रहती है | उसके साथ वह बहुत बार विदेश जा चुकी होती है | पढ़ाई लिखाई भी की होती है | इसी होशियारी के कारण वह खुद को बचा लेती है | उसपर होने वाले जानलेवा हमले का मुकदमा न्यायालय में चलता है तो वह राजा को बचा लेती है | अब इस उपकार के बदले राजा उसके साथ कैसा व्यवहार करता है ? यह तो आपको किताब पढ़कर ही पता चलेगा |
चंपा को बचाने से लेकर तो उसका न्यायालय में केस खड़ा करने तक, ब्रिटिश शासन उसकी मदद करता है लेकिन यही ब्रिटिश शासन उसकी ड्योढ़ियों से मुक्तता नहीं करवा पाता क्योंकि वह राज परिवारों के मामले में तो दाखल देता था परंतु राजा के निजी जीवन में नहीं | यहाँ सब अधिकार राजा के पास थे | अंग्रेजी सरकार को राजा भी चाहिए था और राज्य भी | वह राजा के जरिए जनता पर काबू रखती थी | वैसे भी राजा के पास तो कोई कामकाज रहता नहीं था क्योंकि राज्य का सारा कारभार अंग्रेजी सरकार देखा करती थी | राजा उसके हाथों की कठपुतली था | यही कठपुतली राजा अपने ही गरीब , असहाय , अशिक्षित प्रजा पर अत्याचार करने मे पीछे नहीं हटता था |
जैसे चम्पा के शत्रु खवास और उसके साथीदार थे | वैसे ही वासुदेव महाराज चम्पा के हितैषी थे | जब – जब उसे सहारे की जरूरत पड़ी वह ढाल बनकर उसके सामने खड़े रहे | प्रस्तुत पुस्तक में राजा के , उसके रिश्तेदारों और रानियों के भी अजब-गजब किस्से है |
जरूर पढ़िएगा | आपको आश्चर्य होगा कि ऐसे भी कभी होता था | खैर , वक्त बीतता गया और चम्पा के एक – एक साथी बीछूड़ते चले गए | चंपा का बुरा दौर शुरू हो चुका था | इस बुरे दौर में उसने अपने बच्चों को गोला और गोली बनने से कैसे रोका ? अपने बच्चों को शिक्षा दिलाकर एक सम्मानित जीवन कैसे दिलाया ? अपने बच्चों के लिए किसुन ने और किसुन के लिए चम्पा ने कितनी यातनाये झेली ? क्या आखिर मे चम्पा और किसुन पती – पत्नी बनकर जीवन बीता सके ? यह आप पढ़कर जरूर जाने |
धन्यवाद !
Wish you happy reading …..
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