GUNAHO KA DEVTA BOOK REVIEW IN HINDI

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गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती द्वारा लिखित

रिव्यू –

बहुत सुना था इस किताब के बारे में .. | इसलिए इसको पढ़ डाला | लेखक धर्मवीर भारती द्वारा लिखित रोमांटिक उपन्यास “गुनाहों का देवता ” पिछले कई सालों से लोकप्रिय रहा है | इस उपन्यास की लोकप्रियता के कारण , इसकी कहानी पर एक सीरियल भी बन चूंकि है |- जिसका नाम है – “एक था चंदर , एक थी सुधा ” |

सबसे बेस्ट हिन्दी नोवेल्स मे “गुनाहों का देवता “रोमांटिक की श्रेणी मे सबसे आगे है | कहानी संपूर्ण रूप से मन जीत लेती है | यह 1949 में प्रकाशित हुआ उपन्यास है जिसे ब्रिटिश राज के दौरान लिखा गया था | उपन्यास आप को प्रेम की सच्ची परिभाषा समझाता है | कहानी मे प्रेम , भावनाओ का अच्छा संतुलन बनाया गया है | किताबे पढ़नेवालों के लिए यह एक अच्छा मास्टरपीस है | किताब 100 से ज्यादा भाषाओ मे भाषांतरित हो चूंकि है |

यह धर्मवीर भारती का सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है | इस उपन्यास ने उन्हे समकालीन युवाओ मे प्रशंसा का पात्र बना दिया था | इसके के लिए उन्हे कई पुरस्कार प्राप्त हुए | इसके साथ ही वह मुंशी प्रेमचंद के बाद हिंदी साहित्य में सबसे अधिक मान्यता प्राप्त नामों मे से एक बन गए |

धर्मवीर भारती का जन्म 25 सितंबर 1926 को इलाहाबाद में हुआ | वह लेखक के साथ – साथ कवि भी थे | उन्होंने एम. ए. हिंदी मे और पीएचडी की थी | वह प्रसिद्ध साप्ताहिक पत्रिका “धर्मयुग” के मुख्य एडिटर भी रहे हैं | गुनाहों का देवता , सूरज का सातवा घोडा और अंधा युग यह उनकी कुछ प्रसिद्ध किताबे है | 1972 मे उन्हे “पद्मश्री सम्मान” से नवाजा गया | इसके साथ उन्हे और भी सम्मान प्राप्त हुए | “सूरज का सातवा घोडा ” किताब पर बनी फिल्म को “नैशनल फिल्म अवार्ड ” भी मिला | जिसे प्रसिद्ध निर्देशक श्याम बेनेगल द्वारा बनाया गया था |

किताब के बारे में बेहद उत्सुकता जागी थी | पढ़ने के बाद पता चला कि यह एक प्रेम कहानी के साथ-साथ आदर्शवादी उपन्यास है | उपन्यास में कहानी कम और आदर्शवाद ज्यादा है जो आजकल के लोगों को शायद ही हजम हो |

फिर भी कुछ तो आदर्शवादी लोग होंगे , जो सच्चा प्रेम करना जानते हो | जिनको सच्चे प्रेम के मायने जानने है | उन्हें यह किताब जरूर पढनी चाहिए | क्योंकि चंदर के प्रेम की खातिर सुधा अपने आपको मिटा देती है लेकिन चंदर से कोई शिकायत नहीं करती |

उपन्यास मे उस दौर में प्रचलित प्रथाओ का बोलबाला दिखाई पड़ता है | जैसे कि सुधा के पिता चंदर को मानते तो अपना बेटा ही है फिर भी वह हमेशा चौके के बाहर ही खाना खाता है | सुधा की सहेली चंदर से पर्दा करती है | सुधा और चंदर का प्रेम इतना पवित्र बताया है कि उन दोनों को पता ही नहीं चलता कि वह एक दूसरे से प्रेम करते हैं |

जब सुधा , शादी करके चंदर से दूर जाती है तब उसे अपने जीवन में आए खालीपन का एहसास होता है | उसकी सहेली पम्मी और उसका भाई बर्टी उसे एक अलग ही आदर्शवाद बताते है | कुछ देर के लिए ही सही

चंदर अपने प्रेम की पवित्रता की ऊंचाई को भूलकर ओछे विचारों से ग्रसित हो जाता है | इसी धुन मे वह सुधा और विनती को ठेस पहुंचाता है | चंदर , उन दोनों को ठेस पहुंचाकर बहुत बड़ा गुनाह करता है जबकि उन दोनों ने चंदर को अपने मन में देवता की जगह पर बिठाया होता है | इसीलिए शायद इस किताब का नाम है – “गुनाहों का देवता ” | इस अप्रतिम और प्रसिद्ध किताब के –

लेखक है – धर्मवीर भारती

प्रकाशक है – भारतीय ज्ञानपीठ

पृष्ठ संख्या – 258

उपलब्ध – अमेजन पर

आईए , इसी के साथ देखते है इस किताब का सारांश –

सारांश –

कहानी इलाहाबाद याने के आज के प्रयागराज में घटित होती है | यह शहर इसलिए पावन है क्योंकि यहाँ दो महान नदिया गंगा और यमुना का संगम होता है | लेखक ने इसे एक रोमांटिक शहर भी कहाँ है | किताब की कहानी का नायक चंदर अपनी सौतेली मां से झगड़ा कर के ईलाहाबाद आता है |

वह वहाँ के कॉलेज में दाखिला लेता है | उसी कॉलेज में प्रोफेसर हैं -डॉ. शुक्ला | वह उसे पढ़ाई में मार्गदर्शन करते हैं | मार्गदर्शन के साथ वह कब उसके अभिभावक बन जाते हैं | उनको भी पता नहीं चलता | चंदर एक बुद्धिमान युवक है और पढ़ाई में होशियार भी | इसलिए डॉक्टर शुक्ला चाहते है कि वह अपनी पीएचडी पूरी कर के केंद्र में नौकरी पर लग जाए |वैसे डॉक्टर शुक्ला एक बड़ी हस्ती है जिनका राजनीतिक लोगों के साथ उठना बैठना है |

अपने इन सभाओं के दौरान वह चंदर को भी अपने साथ रखते हैं | इसलिए शुक्ला के सर्कल के लोग चंदर को भी जानते हैं | प्रोफ़ेसर शुक्ला का इलाहाबाद में एक प्रशस्त बंगला है | ज्यादातर कहानी इसी बंगले में घटित होती है | प्रो. शुक्ला की एक बेटी है जो उनकी छोटी बहन के पास गांव में रहती है क्योंकि सुधा की माँ बचपन मे ही गुजर गई थी |

वह बड़ी हो गई तो प्रोफ़ेसर शुक्ला ने उसे अपने पास बुला लिया | वह थोड़ी सी अल्हड़ और भोली है | उसके व्यवहार में थोड़ा जंगलीपन है | अब वह चंदर के अनुशासन में बड़ी होती है | चंदर की एक डांट पर सहम सी जाती है | चंदर से बिना पूछे वह कुछ भी नहीं करती |

वह चंदर को देवता की तरह पूजती है और उस पर बहुत विश्वास करती है | यह बात आपको किताब में दिए बहुत से प्रसंगों से पता चलेगा | उस में से एक यह है कि जब सुधा के सहेली गेसू , उसे चिढ़ाती है कि तुम्हे प्यार हो गया है | तब सुधा इनकार मे सिर हिलाती है |

उसके बाद वह चंदर से पूछती है की ,”बताओ मुझे कभी प्यार हुआ है या नहीं ? हो सकता है कि तुम्हें याद हो और मैं भूल गई | ” इस वाकया से पता चलता है की सुधा , खुद से ज्यादा चंदर को मानती है | कुछ दिनों में सुधा की गॉंववाले बुआ की बेटी – बिनती भी इलाहाबाद वाले बंगले में आ जाती है |

बिनती भी इन दोनों के जीवन का एक हिस्सा बन जाती है | चंदर उसे भी स्नेह और दुलार तो देता है लेकिन सुधा की जगह नहीं | इन तीनों की हंसी – ठिठोली , एक दूसरे को चिढाना – रूठना मनाना , उनके इन प्यार भरे दिनों का गवाह वह बंगला बन जाता है | अब जैसे ही बिनती के ब्याह की बात चलने लगती है तो यह बात उठती है कि बड़ी होने के नाते सुधा की शादी पहले कर दी जाए |

सुधा की शादी के लिए वही लड़का पसंद कर लिया जाता है जिसने एक राजनीतिक दंगे मे शुक्ला और चंदर की जान बचाई थी | इसको पसंद करवाने का काम भी चंदर पर ही आ जाता है | चंदर को अभी तक इस बात का एहसास ही नहीं कि सुधा उसकी आत्मा है | सुधा के बगैर वह अधूरा है |

या यह भी हो सकता है कि डॉ. शुक्ला उसे बेटे की तरह मानते हैं तो वह उनके विश्वास की लाज रखना चाहता हो | समाज के तानों से उन्हें बचाना चाहता हो | यह चंदर की एक और अच्छी बात बताई है कि अपने आप को संयत रखकर अपने पर उपकार करने वाले के विश्वास को कायम रखना | चंदर वही करता है | वह एक बेटे का फर्ज पूरा करता है |सुधा की शादी हो जाती है |

सुधा अपने पती कैलाश को नाही तो स्वीकार कर पाती है | नाहीं तो उसको दूर धकेल पाती है | इसी अहेसास मे वह घुटकर रहे जाती है क्योंकि उसकी आत्मा तो चंदर की है | कुछ दिनों के बाद डॉक्टर शुक्ला की वजह से बिनती की शादी टूट जाती है | अब डॉक्टर शुक्ला चाहते हैं कि चंदर और बिनती की शादी हो जाए क्योंकि अब उनके बिरादरी में तो बिनती को दूसरा लड़का मिलने से रहा |

अब उनको अंतरजातीय विवाह से कोई फर्क नहीं पड़ता | उनको अब सिर्फ बिनती की चिंता है | यह वही डॉक्टर शुक्ला है जो सुधा की शादी के वक्त अपने सामाजिक प्रथाओ के कड़े समर्थक थे | अगर चंदर इस वक्त सुधा का हाथ मांगता तो क्या वह हाँ कह देते ? क्या उन दोनों के रिश्ते में वही विश्वास कायम रहता जो अब है ?

खैर , यह किताब इतने सालों से बेस्टसेलर बनी हुई है तो कुछ तो होगा इस किताब में .. जिसने लोगों के दिलों को छुआ | हो सकता है कि हम ही वह बात आप को बता न पाए हो | तो आपको ही इस किताब को पढ़ना होगा | पढ़कर यह जानना होगा कि क्या चंदर बिनती के साथ शादी कर के सुधा को भी अपनी शादी में खुश रहने की सलाह देता है ? या फिर किताब का अंत कुछ और है ? पढ़कर जरूर जाइए और अपने विचार कमेंट में हमें जरूर बताइए |

धन्यवाद !!

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