BAGI BALIYA BOOK REVIEW SUMMARY HINDI

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बागी बलिया

सत्य व्यास द्वारा लिखित

रिव्यू –

हमने सत्य व्यास द्वारा लिखित “चौरासी 84” पढ़ी | किताब हमे इतनी अच्छी लगी की हमने उनकी लिखी और भी किताबे पढ़ने का फैसला कीया | इसी फैसले के तहत उनकी तीसरी किताब पढ़ी | जिसका नाम है – “बागी बलिया”

राजनीति पर आधारित है – लेखक सत्य व्यास का प्रस्तुत उपन्यास बागी बलिया | इस उपन्यास मे उन्होंने दोस्ती , धोका , प्यार इन सारे मानवीय मूल्यों को और छात्र संघ चुनाव , भरपूर राजनीति से जुड़े हुए प्रसंगों को बहुत ही अच्छे से बताया है | पूरे उत्तर भारत मे , राजनीतिक क्षेत्र मे युवाओ की भूमिका को प्रदर्शित करती यह किताब है |

किताब आप को राजनीतिक हिंसा और कॉलेजों की वास्तविक दशा से भी रूबरू कराती है | इसमे मे देहाती भाषा का भरपूर उपयोग हुआ है | किताब के कुछ प्रसंग आप को खूब हसाते है तो कुछ आप को गंभीर होने पर मजबूर कर देते है | उन्होंने सारे किरदारों जैसे की संजय , रफिक , उजमा , झुन्नु भैया , अनुपम राय इन सबको पाठकों के सामने अच्छे से रेप्रिज़ेन्ट कीया है | कहानी काफी रोचक है | अंत तक आप को किताब से बांधे रखती है | पढ़ते वक्त आप एक भी पन्ना मिस नहीं करना चाहेंगे और किताब पढे बगैर नीचे रखने की इच्छा भी नहीं होगी | बहुत ही अच्छी किताब , जरूर पढे |

लेखक का कहानी लिखने का अंदाज बहुत ही अच्छा है | उनकी कहानियां पहले तो सामान्य होती है जो विनोदी रंग लिए हुए हल्की-फुल्की और मजेदार होती | बाद में वह एक सीरियस मोड़ ले लेती है | प्रायः यह कोई सामाजिक मुद्दा ही होता है | उनकी कहानियां युवाओं पर आधारित होती है |

लगता है की उन्होंने ने बहुत पढ़ाई के साथ- साथ पवित्र धर्म ग्रंथों का भी अध्ययन किया है | उनके रचित किरदारों से यह पता चलता है | उन्हें शायद शेरो शायरी और कविताओं का भी बहुत शौक है क्योंकी उनकी किताबों में अध्यायों के नाम कविता या शायरी में होते हैं | हमें उनकी लिखी किताबें बहुत अच्छी लगी | इसलिए तो एक के बाद एक उनकी ही किताबें पढे जा रहे हैं | लेखक सत्य व्यासजी आज के युवाओं को बहुत अच्छे से रेप्रिज़ेन्ट करते हैं |

किताब की कहानी कॉलेजों में होने वाले चुनावों पर आधारित है | चुनाव राजनीति का एक अंग है | यही राजनीति संजय और रफीक के जिंदगी का बहुत कुछ छिन लेती है | यह दोनों इमानदारी से चुनाव लड़ते हैं | मगर इनके दुश्मन इनकी हर एक चाल पर और प्यादे पर अपनी नजर रखते हैं |

वह इन्हीं के प्यादों को चलकर ऐसी बिसात बिछाते हैं कि दोनों दोस्तों की जिंदगी बर्बाद हो जाती है | फिर भी यह दोनों अपनी बची – खुची हिम्मत बटोर कर चुनाव लड़ते हैं | पर अब की बार दोनों मित्रों का कार्यक्षेत्र अलग – अलग है |

यह सब होता है डाक साहब की वजह से जो हमेशा एक ही ऐतिहासिक कहानी को बार-बार दोहराते रहते है | लोग उन्हे पागल समझ कर छोड़ देते हैं लेकिन जब इनकी कही बातें संजय को समझ में आती है तो वह हारी हुई बाजी जीत जाता है |

इस बेहतरीन किताब के –

लेखक है – सत्य व्यास

प्रकाशक है – हिन्द युग्म

पृष्ठ संख्या – 187

उपलब्ध है – अमेजन पर

आईए , इसी के साथ देखते है इस किताब का सारांश –

सारांश –

संजय और रफीक बलिया शहर में रहते हैं | बलिया शहर जिसकी रग – रग मे राजनीति बसी हुई है | बलिया एक शहर ही नहीं बल्कि एक चरित्र के जैसे उपस्थित है | संजय और रफीक के घरों मे पहले मित्रता थी | देश मे हुए विस्फोटों ने दोनों के घरों और लोगों को एक दूसरे से दूर कर दिया | संजय और रफीक पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा | मजहब उनकी दोस्ती के आड़े कभी नहीं आया | उनकी मित्रता वक्त के साथ और गहरी होती चली गई | संजय एक गंभीर इंसान है तो रफीक एक मस्तमौला व्यक्ति है |

संजय अपना पोलिटिकल करियर शुरू करने के लिए , कॉलेज का चुनाव लड़कर छात्र संघ अध्यक्ष बनना चाहता है | इसमे रफिक उसका पूरा सहयोग देता है | कॉलेज का चुनाव जीतने के लिए उन्हे जरूरत है उन्ही के क्षेत्र के विधायक “झुन्नु भईया ” के समर्थन की क्योंकि उनके समर्थन के बगैर कोई चुनाव नहीं जीत सकता | इसलिए उनका समर्थन पाने के लिए संजय और रफीक उनके पास जाते है |

इस साल वह अनुपम राय को अपना समर्थन देना चाहता है | इसलिए वह संजय को अपना नाम पीछे लेने के लिए कहता है | इस बात पर रफीक के साथ उसकी कहासुनी हो जाती है | पर वह विधायक है – इनसे ऊंचे पद वाला | वह इन दोनों का अपमान करता है | अपमान का घूंट पीकर दोनों वापस आते हैं |

इस दौरान रफीक की मुलाकात उसी की कॉलेज में पढ़ने वाली “उजमा” से होती है | उजमा , संजय और रफीक की बहन ज्योति के क्लास मे पढ़ती है | दोनों पक्की सहेलियां है | एक ऐतिहासिक कहानी जिसे डाक साहब वक्त वक्त पर दोहराते रहते है जो संजय और रफीक के जीवन पर सटीकता से बैठती है |

इसी कहानी के तहत जब दिल्ली के बादशाह कमजोर होने लगे तब दिल्ली की कमान मराठों ने अपने हाथ मे ली | उन्होंने हुकूमत करने के बजाय राजनीति करने का फैसला किया | वैसे ही डाक साहब के हिसाब से अध्यक्षपद का चुनाव रफीक ने लड़ना चाहिए और राजनीति संजय ने करना चाहिए |

ऐतिहासिक कहानी मे जब गुलाम कादिर खान दिल्ली के लाल किले मे आता है तो की उसकी सुंदरता पर बहुत सारी शाही महिलाये मोहित हो जाती है | यह बादशाह को बहुत नागवार गुजरता है | इसीलिए फिर बादशाह उसका बार-बार अपमान करता है | गुलाम कादिर खान हर बार अपमान का घूंट पीकर रह जाता है कि वह आगे जाकर सबका बदला लेगा | वह यह करता भी है | इसलिए वह शहजादियों को अपने जाल मे फँसाकर बादशाह से बदल लेता है |

अब संजय और रफीक के जिंदगी मे गुलाम कादिर खान है – अनुपम राय | वह भी दिखने मे बहुत सुंदर है | बादशाह की तरह ही रफीक भी अनुपम राय का हमेशा अपमान करता है | अनुपम राय भी अपमान की आग मे सुलगता रहता है | रफीक के जिंदगी मे दो शहजादियाँ है | एक है उसका प्यार – उजमा और दूसरी उसकी और संजय की बहन ज्योति | अब रफीक के जिंदगी की वह शहजादी कौन है ? जिसे मोहरा बनाकर और उसकी जिंदगी तबाह कर अनुपम राय अपना बदला लेता है | यह तो आप को किताब पढ़कर ही जानना होगा |

डाक साहब पागलपन मे ही सही संजय को सही राजनीति सिखाते हैं | राजनीति के चक्कर में अनुपम राय उजमा के नाबालिक भाई के हाथों रफीक के मित्र की भी हत्या करवा देता है | खैर , इन सबके बावजूद रफीक चुनाव जीत जाता है क्योंकि अभी बाजी पलट चूंकि है | बादशाह तो रफीक है लेकिन राजनीति संजय के हाथ मे | इसके बाद घटनाये बहुत तेजी से आगे बढ़ती है और नए – नए राज खुलते जाते है |

अब आप को पढ़कर यह भी जानना होगा की क्या अनुपम राय के साथ भी वही होता है जो महादजी शिंदे गुलाम कादिर खान के साथ करते है | अनुपम राय का इन सारे कुकर्मों मे साथ देनेवाले झुन्नु भैया का क्या होता है ? जैसे गुलाम कादिर खान को शैतान कुत्ता गायब करता है | वैसे ही अनुपम राय को गायब करनेवाली गाड़ी मे कौन बैठा है ? अनुपम राय उस गाड़ी मे जींदा है या मुर्दा ? कहानी का अंत ऐसा है जो किताब पढ़ने के बाद भी बहुत देर तक आप को सोचने के लिए मजबूर कर देगा | बहुत ही बढ़िया किताब जरूर पढिए | मिलते है एकऔर नई किताब के साथ .. तब तक के लिए .. |

धन्यवाद !

Wish You Happy Reading …….

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