SHARE MARKET GUIDE BOOK REVIEW IN HINDI

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शेयर मार्केट गाईड

रिव्यू –

प्रस्तुत किताब शेयर मार्केट के बारे में जानकारी देती है | किताब हिंदी में लिखी गई है ताकि यह देश के अनगिनत हिंदी पाठको तक अपनी पहुँच बना सके | यह किताब उनके लिए है जो वित्तीय क्षेत्रो की जानकारी चाहते है जिससे उनके प्रश्नों के उत्तर उन्हे मिल सके | प्रस्तुत किताब की –

लेखिका है – श्रीमती सुधा श्रीमाली

प्रकाशक है – प्रभात पेपरबैक

पृष्ठ संख्या है – 239

उपलब्ध है – अमेजन पर

लेखिका अनेक वर्षो से फ्रीलान्स पत्रकार है | वह पिछले कुछ वर्षो से नवभारत टाइम्स के लिए लिख रही है | वह अर्थशास्त्र विषय पर लेख – आलेख लिख रही है | शेयर मार्केट , म्यूच्यूअल फण्ड , इन्शुरन्स ,पर्सनल इन्वेस्टमेंट , आर्थिक विकास आदि विषयो पर उनके लेख प्रकाशित हो चुके है | जब यह किताब प्रकाशित हुई थी तब वह नवभारत टाइम्स ( मुंबई ) में वरिष्ठ प्रतिसम्पादक एवं संवाददाता के पद पर कार्यरत थी |

यह किताब लेखिका ने युवा निवेशको के लिए ही लिखी है | जिससे उनको शेयर मार्केट में निवेश के सारे गुर पता चल जाये और वह अपना योगदान भारत की अर्थव्यवस्था की प्रगति में दे सके | आइये अब देखते है इसका सारांश –

सारांश –

किताब मे उन्होंने बताया की शेयर क्या है ? किसी कंपनी के शेयर खरीदने का मतलब है कि खरीदने वाला व्यक्ति उस कंपनी का आंशिक हिस्सेदार बन रहा है | इसका और एक मतलब है की शेयर किसी कंपनी में आंशिक भागीदारी प्राप्त करने का तरीका है |

आपने जिस कंपनी के शेयर खरीदे हैं उस कंपनी को अगर फायदा हुआ तो आपके शेयर की कीमत बढ़ेगी और आपको भी फायदा होगा | अगर कंपनी को नुकसान हुआ तो आपके शेयर की कीमत घटेगी और आपको नुकसान होगा | शेयर खरीदने के बाद खरीदनेवाला व्यक्ति उस कंपनी का शेयर होल्डर कहलाता है |

शेयर को इक्विटी और स्क्रिप्ट भी कहते हैं | आप उन्हीं कंपनियों के शेयर बेच या खरीद सकते हैं जो एक्सचेंज मे लिस्टेड है | शेयर में निवेश करने वाला व्यक्ति , ब्रोकर के माध्यम से शेयरो की खरीद और बिक्री कर सकता हैं |

आप सीधे कंपनी से भी शेयर खरीद सकते हैं तब जब कंपनी इनिशियल पब्लिक ऑफर जारी करती है | इसी को आईपीओ कहते हैं | यह कंपनी के हिस्से के कुछ शेयर हो सकते हैं या कंपनी ने जारी किए नए शेयर हो सकते हैं |

अब जानते है की , शेयर क्यों जारी किए जाते हैं ? जब कंपनी को अपना व्यवसाय बढ़ाने के लिए बहुत सारे पैसों की आवश्यकता होती है तब कंपनी अपना कॉर्पोरेट स्ट्रक्चर बनाकर बड़ी संख्या में लोगों को शामिल कर उन्हें शेयर बेचती है और धन हासिल करके अपने उद्देश्यों को पूरा करती है |

हमेशा किसी सूचीबद्ध पब्लिक लिमिटेड कंपनी के शेयरों को ही खरीदना चाहिए | यह आपके लिए अच्छा चुनाव साबित होगा | जब तक आप शेयर होल्ड करते हैं तब तक आप शेयर पर दिए गए डिविडेंड के अधिकारी होते हैं | यदि कोई कंपनी अपना व्यापार समेटती है तो सारे कर्जे चुकता करने के बाद ही वह शेयर धारकों को भुगतान करती है | अमूमन ऐसा होता है की सारी देनदारियां देने के बाद कंपनी के पास कुछ भी नहीं बचता तब शेयर होल्डर को कुछ नहीं मिलता | अब देखते है कि शेयर कितने प्रकार के होते है और उनके क्या -क्या फायदे है |

शेयर दो प्रकार के होते हैं –

1- इक्विटी शेयर

2. प्रेफरेंस शेयर

निवेशक इक्विटी शेयर को प्राइमरी या सेकेंडरी मार्केट से खरीद सकता है | निवेशक को कंपनी की नीति बनाने वाली जनरल मीटिंग में वोट देने का अधिकार होता है | इस प्रकार के शेयर में कंपनी अपनी सारी देनदारियां चुकता करने के बाद ही इनका भुगतान करती है |

2. प्रेफरेंस शेयरों में कंपनी निवेशकों , प्रोमोटरों तथा मित्र निवेशको को नीतिगत रूप से प्रेफरेंस शेयर जारी करती है | इन शेयरों की कीमत मे और साधारण शेयरों की कीमत में फर्क हो सकता है | इनको जनरल मीटिंग में वोट देने का अधिकार नहीं मिलता | जब कभी कंपनी अपना व्यापार समेटती है तो भुगतान करने के मामले में इनको पहले रखा जाता है | प्रेफरेंस शेयर धारकों को लाभ में से सबसे पहले भुगतान किया जाता है |

प्रेफरेंस शेयर 4 तरह के होते हैं –

1. नॉन – कम्युलेटिव प्रेफरेंस शेयर

2. कम्युलेटिव प्रेफरेंस शेयर

3. रिडीम्ड कम्युलेटिव प्रेफरेंस शेयर

4. कन्वर्टिबल प्रेफरेंस शेयर

कंपनी के वार्षिक रिपोर्ट मे यानी के बैलेंस शीट में शेयरो से जुड़े बहुत से शब्द होते हैं | आईए , देखते हैं की वह कौन – कौन से हैं ?

1. ऑथराइज्ड शेयर कैपिटल – कंपनी के मेमोरेंडम में कंपनी के उद्देश्यों के साथ ही उस कंपनी की ऑथराइज्ड कैपिटल पहले से तय होती है | यह कंपनी की कुल पूंजी का वह हिस्सा है जो कंपनी शेयर जारी करके अर्जित कर सकती है |

2. इश्यूड शेयर कैपिटल – मतलब बैलेंस शीट बनाते समय तक कंपनी कितने शेयर जारी कर चुकी है |

3. सब्सक्राइब कैपिटल – मतलब कंपनी ने जारी किए शेयरों में से जो भाग निवेशको द्वारा लिया जाता है |

4. पैडअप शेयर कैपिटल – का मतलब है कि जारी किए गए शेयरों के तहत , बैलेंस शीट बनाते समय तक , कंपनी को कितनी शेयर कैपिटल मिल चुकी है |

बोनस और राइट शेयर ,शेयरधारकों को मुफ्त में जारी किए जाते हैं | बोनस शेयर कब जारी किए जाते हैं ?

जब कोई कंपनी अपने व्यवसाय के दौरान वित्तीय वर्ष में प्रॉफिट कमाती है तब कंपनी अपने नियमित खर्चे निकाल कर ,देनदारियां देकर ,अपना प्रॉफिट निकाल कर , बचे हुए पैसे भविष्य में विस्तार के लिए रिजर्व रखती है | साल दर साल इस तरह कंपनी का प्रॉफिट जमा होकर रिजर्व के रूप में कंपनी के पास रहता है तब कंपनी बोनस इश्यू जारी करती है |

इससे कंपनी के शेयरधारकों को उनके शेयर के अनुपात में बोनस शेयर जारी किए जाते हैं | इससे शेयरधारकों को काफी लाभ होता है | कोई भी व्यक्ति शेयर बाजार में निवेश कर भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था में भागीदार हो सकता है |

सरकारी एजेंसी जैसे सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड यानी सेबी की निगरानी में सभी एक्सचेंज कार्य करते हैं | अगर आप शेयर मार्केट से पैसा कमाना चाहते हैं और गवाना नहीं तो आपको शेयर बाजार की कार्य प्रणाली को पूरी तरह समझना होगा |

आपको शेयर बाजार में निवेश करना है तो , सबसे पहले डिमैट अकाउंट खुलवाना होगा | यह बहुत ही जरूरी है |

अब फिर से शेयरों की जानकारी देखते है |

जब कंपनी शेयरों की कीमत फेस वैल्यू से ऊपर रखकर जारी करती है तो इसे प्रीमियम इशू कहते हैं |

इसके पीछे बहुत से कारण काम करते हैं | वह आपको किताब में ही पढ़ना होगा | दूसरा है – ओवर सब्सक्राइब इशू – जब कंपनी लिमिटेड मात्रा में शेयर जारी करती है तो उस कंपनी के शेयरों को पाने के लिए कंपनी के पास जरूरत से ज्यादा आवेदन पत्र आते हैं | इसी को ओवर सब्सक्राइब इशू कहते हैं |

ऐसे समय में कंपनी लॉटरी सिस्टम से निवेशको का चुनाव करती है | जब शेयर बाजार का अच्छा दौर चल रहा होता है तब प्रसिद्ध कंपनियों के शेयर ओवर सब्सक्राइब हो जाते हैं | ऐसे में शेयर पाने का अच्छा तरीका यह है कि आप ज्यादा शेयरों के लिए आवेदन करें | ऐसे निवेशको की शेयर प्राप्त करने की संभावनाएं ज्यादा होती है |

जब कोई अनलिस्टेड कंपनी शेयर बाजार में शेयर जारी करने के लिए आती है या फिर कोई कंपनी अपने शेयर पहली बार आम जनता के लिए प्रस्तुत करती है तो इस प्रक्रिया को आईपीओ यानी इनिशियल पब्लिक ऑफर कहते हैं | आईपीओ की प्रक्रिया पूर्ण करने के बाद वह कंपनी शेयर मार्केट में लिस्टेड कर ली जाती है | कंपनी दो तरीके से आईपीओ जारी करती है |

1. बुक बिल्डिंग रूट

2. फिक्स प्राइस रूट

पब्लिक इश्यू की कार्य प्रणाली भी इनिशियल पब्लिक ऑफर की तरह ही होती है बस फर्क सिर्फ इतना है कि पब्लिक इश्यू लाने वाली कंपनी पहले से सेबी में लिस्टेड होती है |

राइट इश्यू में कंपनी अपने शेयर होल्डरों को उनकी शेयर संख्या के अनुपात में नए शेयर खरीदने के लिए प्रस्ताव रखती है | शेरहोल्डर अपनी इच्छा के अनुसार इसे स्वीकार अथवा अस्वीकार कर सकते हैं या फिर कंपनी के इस प्रस्ताव के लिए किसी और शेरहोल्डर को नामांकित कर सकते हैं |

राइट इश्यू जारी होने से पहले की कीमत शेयरों की ‘कम राइट प्राइस ‘ होती है और राइट इश्यू के तहत शेयर जारी होने के पश्चात शेयरों की बाजार कीमत ‘एक्स राइट प्राइस ” कहलाती है |

जिन कंपनियों की छवि निवेशकों में अच्छी होती है | उन कंपनियों के शेयर असली कीमत से ऊंचे आँके जाते हैं | ऐसे शेयर “ओवरवैल्यूड शेयर ” कहलाते हैं | जब शेयर इंडेक्स को झटका लगता है तो सबसे पहले ऐसे शेयरो की ओवर वैल्यू गायब हो जाती है और उनकी असली कीमत के आसपास आ जाती है | ब्लू चिप कंपनियों के शेयर खरीदने का यही सही समय होता है |

लीड मर्चेंट बैंकर – वे लोग होते हैं जो किसी भी कंपनी ने शेयर जारी करने के पहले उस शेयर की सारी तकनीकी जानकारी , उसकी वैधता तथा संभावना का गहराई से अध्ययन करते हैं | पब्लिक इश्यू लाने वाली कंपनी उनके साथ “एम. ओ. यू . यानी कि मेमोरेंडम आफ अंडरस्टैंडिंग का करार साइन करते हैं |

यह लोग जारी किए शेयरो की कीमत पहले से तय करते हैं | इसी कीमत पर यह बचे हुए शेयरो को खरीदते हैं |

कंपनियां अमोटाइजेशन व्यवस्था को अपनाती है | क्योंकि कंपनी भविष्य में नवीनीकरण हेतु निश्चित धन जमा करती है ताकि वह नवीनीकरण का खर्च झेल सके | इसे सिंकिंग फंड कहा जाता है | इसी व्यवस्था को अमोरटाइजेशन कहते हैं |

बुक क्लोजर , बुक वैल्यू , डिविडेंड के मायने , डिविडेंड कवर , डिविडेंड यील्ड , कम बोनस , कम डिविडेंड , एक्स – बोनस , डिप्रिसीएषण ऐसे बहुत सारे शब्द है जिनके बारे में एक – एक , दो – दो लाइन की जानकारी दी है | उसे भी आप पढ़ लीजिएगा |

साथ में मर्चेंट बैंक क्या होती है और लिस्टेड शेयर के फायदे भी आपको पढ़ने को मिलेंगे |

अब देखते हैं कि म्यूचुअल फंड क्या होते हैं ? आप इनमें कैसे निवेश कर सकते हैं ? आजकल म्युचुअल फंड में इन्वेस्ट करने की धूम मची हुई है | इनके बारे में सोशल मीडिया पर एडवर्टाइज भी चलते रहती है | सोशल मीडिया ने उनके बारे में जानकारी प्राप्त करना आसान बना दिया है | आज से 10 -20 साल पहले शायद सामान्य जनता को उनके बारे में पता नहीं था |

नहीं तो उन्होंने तब इन्वेस्ट किया होता तो आज उनको अच्छी खासी रकम मिलती क्योंकि लंबी अवधि वाले म्युचुअल फंड अच्छा रिटर्न देते हैं |

म्युचुअल फंड का यह फायदा है कि जिन लोगों को शेयर मार्केट की जानकारी नहीं है या फिर जानकारी निकालने का समय नहीं है | वे लोग म्युचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं |

इसके साथ ही आकर्षक डिविडेंड और संतोष जनक रिटर्न मिलता है |

यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत में म्युचुअल फंड तेजी से निवेशको के बीच लोकप्रिय हो रहा है | इसलिए जरूरी है कि आप इसके कार्य प्रणाली को ठीक तरह से समझे ताकि निवेश करते समय आप बेहतर फंड का चुनाव कर सके |

इसके लिए जानते हैं कि म्यूचुअल फंड कैसे काम करता है ?

म्युचुअल फंड एक कॉरपोरेट संस्था होती है जो सेबी द्वारा रजिस्टर्ड होती है | यह संस्था निवेशको के धन को एकत्रित कर शेयर , डिबेंचर सरकारी प्रतिभूतियों , बॉन्ड आदि में निवेश करती है | इस एकत्रित किए धन को सही तरह से निवेश करने के लिए फंड मैनेजर नियुक्त किए जाते हैं | यह फंड मैनेजर शेयर बाजार के अनुभवी खिलाड़ी होते हैं |

इसीलिए यह लोग निवेशको के धन को इस तरह निवेश करते हैं कि निवेशक को उनके धन से ज्यादा से ज्यादा रिटर्न मिल सके | यहां निवेदक का पैसा कुशल हाथों में होता है | फंड मैनेजर निवेशको की पूंजी को डायवर्सिफाई कर बाजार में लगाते हैं |

भारत में तकरीबन 200 म्युचुअल फंड है और अमेरिका में 3000 से भी ज्यादा | अगर आप इक्विटी फंड में निवेश करते हैं तो , शेयर बाजार से शेयर खरीदने का काम आप नहीं करते बल्कि आपके लिए यह काम म्युचुअल फंड की कंपनी करती है और इक्विटी के माध्यम से आपका पैसा किन-किन इक्विटी शेयरों में लगाया जाएगा और उसे कब बेचा जाएगा | इसका निर्णय भी फंड मैनेजर लेते हैं |

इससे यह फायदा होता है कि निवेशको का पैसा विविध सेक्टरों के अच्छे प्रदर्शन कर रहे शेयरो में डायवर्सिफाई कर लगाया जाता है | इससे रिस्क कम हो जाता है जबकि डायरेक्ट शेयर मार्केट में इन्वेस्ट करने से रिस्क बढ़ जाता है |

यहां यह चॉइस है कि आप अपनी पसंद के अनुसार किसी सेक्टर स्पेसिफिक फंड में निवेश कर सकते हैं | म्यूचुअल फंड की अलग-अलग स्कीम होती है | हर स्कीम के अलग-अलग उद्देश्य होते हैं जैसे कोई स्कीम 100% शेयर बाजार में निवेश करती है | वहीं कुछ फंड स्कीम , थोड़ा इक्विटी और थोड़ा डेप्ट में निवेश करती है |

सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान – म्युचुअल फंड में निवेश करने की सरल विधि है | यह रिकरिंग डिपॉजिट अकाउंट की तरह ही काम करता है | म्युचुअल फंड के माध्यम से आप अपनी बचत को महीना ,त्रैमासिक यानी 3 महीने के , 6 महीने के आधार पर निवेश कर सकते हैं | आप यहां किसी भी स्तर पर निवेश कर सकते हैं | सीप किस तरह काम करती है यह आपको किताब में दिए उदाहरण से समझ में आ जाएगा |

S.I.P.का एक और फायदा यह है कि आपको एंट्री लोड नहीं देना पड़ता है | सेबी ने लोगों को म्युचुअल फंड से जोड़ने के लिए एंट्री लोड को हटा दिया है | यह तभी हो सकता है जब आप सीधे म्युचुअल फंड हाउस से फंड में निवेश करें | अगर आप फिर भी ब्रोकरों द्वारा इसमें निवेश करते हैं तो आपको 2.25% का एंट्री लोड देना होगा | अगर आप 1 साल तक ओपन इंडेक्स स्कीम में बने रहते हैं | उसके बाद अपने यूनिट्स बेचते हैं तो आपको एग्जिट लोड नहीं देना पड़ेगा |

आजकल सभी म्युचुअल फंड यूनिट्स की स्थिति की जानकारी समय-समय पर निवेशक को भेजते रहते हैं |

कर लाभ टैक्स बेनिफिट

मध्यम वर्गीय नौकरी पेशा व्यक्ति हमेशा पब्लिक प्रोविडेंट फंड , एम्पलाई प्रोविडेंट फंड , पोस्ट ऑफिस बचत योजना जैसी पारंपरिक निवेश योजना में बचत करता था | म्युचुअल फंड की इक्विटी लिंक सेविंग स्कीम यानी (ELSS) के रूप में निवेश करने पर आयकर धारा 80c के तहत पूरा एक लाख रुपये का टैक्स बेनिफिट मिलता है और नौकरी पेशा लोगों को इस स्कीम से अच्छा खासा रिटर्न भी मिलता है | पारंपरिक विकल्पों में जहां 7 से 8% रिटर्न में ही संतोष करना पड़ता था |वहां म्युचुअल फंड में यह टैक्स बेनिफिट के साथ लगभग हर साल 15 से 40 परसेंट के बीच रिटर्न देता है लेकिन रिटर्न के परसेंटेज शेयर बाजार की स्थिति पर डिपेंड करते हैं |

म्युचुअल फंड स्कीमों को दो प्रकार के भागों में वर्गीकृत किया जाता है |

1. स्ट्रक्चर के आधार पर

2. उद्देश्यों के आधार पर

स्ट्रक्चर के आधार पर म्युचुअल फंड फिर से दो भागों में डिवाइड होता है | 1. ओपन एंडेड फंड

2. क्लोज एंडेड फंड

ओपन एंडेड फंड – स्कीम सालों साल चलती रहती है | इसकी कोई टाइम लिमिट नहीं होती | यह तभी बंद होती है जब फंड खुद इसे बंद करना चाहता है | इसमे निवेशक कभी भी निवेश कर सकता है | निवेशक को स्कीम के यूनिट की उतनी ही कीमत चुकानी होगी जो मार्केट में चल रही है | भले ही स्कीम के लॉन्च होते समय उसकी कीमत कितनी भी रही हो |

क्लोज एंडेड फंड स्कीम की अवधि निश्चित होती है | इसमें निवेशक तभी निवेश कर सकता है जब इसका नया फंड ऑफर बाजार में उपलब्ध हो | ऑफर पीरियड का समय खत्म हो जाने पर आप उस फंड में निवेश नहीं कर सकते | अगर आपको पैसों की जरूरत है तो आप एग्जिट लोड चुका कर स्कीम से बाहर आ सकते हैं |

म्यूचुअल ग्रोथ फंड निवेश के उद्देश्यों के आधार पर फिर 7 फंडों में विभाजित होते हैं |

1. ग्रोथ फंड

ग्रोथ फंड का ज्यादा भाग शेयर में इन्वेस्ट होता है | शेयरों से जुड़ा होने के कारण इसमें रिस्क बहुत ज्यादा है लेकिन यह अच्छा रिटर्न देता है |

2. इनकम फंड – इसमे सारा पैसा सरकारी प्रतिभूतियों में लगाया जाता है | जहां रिटर्न का प्रतिशत काफी कम है लेकिन यहां से नियमित इनकम मिलती रहती है |

3. संतुलित फंड या डाइवर्सिटी फाइड फंड

इस फंड मे आधा पैसा इक्विटी में और आधा पैसा सरकारी प्रतिभूतियों में लगाया जाता है |

4. मनी मार्केट फंड

इस फंड को शॉर्ट टर्म फंड भी कह सकते हैं क्योंकि इसे कम समय के लिए पैसा लगाने का बेहतर माध्यम माना जाता है |

5. गिल्ट फंड

यहाँ पैसा सरकारी प्रतिभूतियों में लगाया जाता है | यह सेफ है पर रिटर्न कम देता है |

6. सेक्टर फंड – यहाँ एक ही सेक्टर की कंपनियों में निवेश किया जाता है | यह जोखिम ज्यादा है |

7. इंडेक्स फंड

इस फंड मे BSE में लिस्टेड 30 कंपनियों और NSE में लिस्टेड 50 कंपनियों में निवेश किया जाता है |

जब आप किसी फंड में निवेश करते हैं | तो आपको तीन ऑप्शन मिलते हैं |

1. ग्रोथ ऑप्शन

यहाँ वक्त के साथ आपके फंड के यूनिट्स बढ़ते जाएंगे और जब आप इसे बेचेंगे तो मार्केट प्राइस के हिसाब से आपको आय प्राप्त होगी |

2. डिविडेंड ऑप्शन

यह ऑप्शन उनके लिए ठीक है जिन्हें वक्त – वक्त पर पैसे की जरूरत होती है |

3. डिविडेंड रिइन्वेस्टमेंट प्लान

इसमें आपको मिलने वाले डिविडेंड के पैसों से फिर से फंड की यूनिट खरीदी जाती है | यह यूनिट आपको कम कीमत पर मिलती है |

निवेश के उद्देश्यों के आधार पर म्युचुअल फंड का वर्गीकरण किया जाता है | उसका चार्ट किताब में दिया है | उसे आप एक बार जरूर देख लीजिएगा |

डेट फंड को चार भागों में विभाजित किया जाता है |

1. लिक्विड फंड

2. शॉर्ट टर्म फंड

3. इंनकम फंड

4. गिल्ट फंड

दूसरा बड़ा फंड है – इक्विटी फंड

1. डायवर्सिफाइड इक्विटी फंड

इसको भी आगे चार भागों में डिवाइड किया जाता है |

1. लार्ज कैप डायवर्सिफाइड इक्विटी फंड

2. मिड कैप फंड

3. फ्लेक्सि फंड

4. मल्टीकैप फंड

ब्रोकर कौन होते है ?

यह स्टॉक एक्सचेंज के लायसेन्सधारी सदस्य होते है | जो खुद के लिए और अपने क्लाइंट के लिए शेयरों की खरीदी और बिक्री करते हैं | यह पूरे सौदे पर कमीशन चार्ज करते हैं | अगर यह ब्रोकर पूरे समय आपके लिए काम करते हैं तो यह आप के शेयरो की निगरानी भी रखते हैं |

ग्राहकों को निवेश संबंधी सलाह भी देते हैं | ग्राहक के पोर्टफोलियो का प्लान कर उसका प्रबंधन करते हैं | उन्हें मार्जिन पर खरीदारी की सुविधा भी देते हैं |

ब्रोकर के बारे मे जानकारी के साथ ही आप सक्रिय बाजार , सक्रिय शेयर नर्वस मार्केट ,आधारभूत विश्लेषक , आधारभूत विश्लेषण , वित्तीय अनुपात , रिटेंड अर्निंग , विक्री अनुपात इन सारे शब्दों का मतलब आप जान पाएंगे |

प्राइस अर्निंग मल्टीपल और आय बनाम इक्विटी अनुपात को कैलकुलेट करने के सूत्र भी आपको किताब मे मिल जाएंगे | तकनीकी विश्लेषक शेयरों की कीमतों का अध्ययन करते हैं | इनका अध्ययन निवेशको की मानसिकता तथा कीमतों के प्रदर्शन पर आधारित होता है | ना कि किसी कंपनी की आधारभूत मजबूती या कमजोरी पर .. |

जब बाजार में लंबे समय तक शेयरों की कीमतों में गिरावट का दौर रहता है तो ऐसे में मार्केट को “बियर मार्केट” कहते हैं | किताब में हर दो चार लाइन के बाद आपको एक नया शब्द मिलेगा | उसकी डेफिनेशन या मतलब मिलेगा | इतने सारे शब्द और उनके मतलब को बता पाना मुश्किल है |

इसलिए अगर आप शेयर मार्केट या म्यूचुअल फंड में सही तरह से इन्वेस्ट करना चाहते हैं तो इस किताब को खरीद कर अपने पास रखें ताकि जरूरत पड़ने पर आप इसे पढ़ सके | भले ही आपको इन चीजों का शून्य ज्ञान हो ! यह आपकी अच्छा निवेश करने में काफी मदद करेगी जैसे हमारी की है |

निवेशक शेयर मार्केट की आधारभूत जानकारियां लिए बगैर इसका खिलाड़ी बनना चाहते हैं | ऐसे में वह हताशा का शिकार हो जाते हैं | हर कोई चाहता है कि उनका निवेश किया गया पैसा बढ़े लेकिन यह अज्ञानता और अधूरी जानकारी के आधार पर मुमकिन नहीं | इसलिए सही जानकारी समझ और जागृति होना बहुत जरूरी है |

इसलिए शेयर बाजार में निवेश करने के पहले आगे दी गई बातों पर खुद को जांच ले |

1. क्या आप मे जोखिम उठाने की क्षमता है क्योंकि बाजार में देर कभी भी नहीं होती | इसके लिए मार्केट की रिसर्च करना जरूरी है | शेयर मार्केट में अस्थिरता हमेशा बनी रहती है | इसलिए बुरा झेलने के लिए तैयार रहे | हमेशा खुद फैसला ले | जोखिम कम करने के लिए वैल्यू स्टॉक और ग्रोथ स्टॉक में निवेश करें |

उन कारणों का विश्लेषण कीजिए कि आप निवेश क्यों करना चाहते हैं ? और अंत में अपने बचत के पैसों से ही निवेश करें | शेयरो की ट्रेडिंग कैसे होती है ? इस अध्याय में आप स्टॉक एक्सचेंज की कार्य प्रणाली आपको पता चलेगी | शेयरो की खरीदारी और बिक्री के लिए दो तरह के ऑर्डर होते हैं |

1. लिमिट ऑर्डर

2. मार्केट ऑर्डर

लिमिट ऑर्डर में आप किसी शेयर की कीमत में खरीदी की बिक्री के लिए लिमिट लगा सकते हैं |

जब ब्रोकर के कंप्यूटर स्क्रीन पर देखे गए बाजार के भाव पर आप अपने शेयर खरीदना या बेचना चाहते हैं | तब मार्केट आर्डर का उपयोग करें | बाजार में बहुत चढ़ाव उतार के समय और किसी बड़े सौदे के लिए इसका उपयोग न करें | इस आर्डर का उपयोग आप तभी करें जब आपको जल्दी में कोई शेयर खरीदना या बेचना हो |

3. स्टॉप लॉस ऑर्डर

जो निवेशक अपना नुकसान सीमित रखना चाहते हैं या पहले से सोचे गए स्तर पर लाभ कमाना चाहते हैं | उनके लिए स्टॉप लॉस ऑर्डर एक बेहतर विकल्प है | इसे डे – ट्रेडिंग करने वालों ने तो उपयोग में लाना ही चाहिए | स्टॉप लॉस आर्डर का उपयोग करके आप अपने नुकसान की सीमा तय कर सकते हैं | यह आप ही के हाथों में होता है |

लिवाली – बिकवाली , शेयर खरीदने की प्रक्रिया , सेटलमेंट साइकिल ,और एक्सचेंज के इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम कैसे शेयर खरीदने और बेचने में निवेशको की मदद करते हैं ? यह भी आप को इस किताब मे पढ़ने को मिलेगा |

अध्याय 8 है – ऑनलाइन शेयर ट्रेडिंग |

इस अध्याय में लेखिका ने बताया कि

की शेयरों की ऑनलाइन ट्रेडिंग कैसे होती है ? इसके फायदे और नुकसान क्या है ? और साथ ही पारंपरिक तरीकों के फायदे और नुकसान क्या है ? यह आप को इस अध्याय मे जानने को मिलेगा |

शेयर मार्केट में इन्वेस्ट करने के लिए , इंडेक्स क्या होता है ? यह आपको जानना बहुत जरूरी है | इंडेक्स बाजार की स्थिति को दर्शाने वाला पैमाना है | यह बाजार के रुझान को दर्शाता है | इनमें वह कंपनियां शामिल होती है जिनकी लिक्विडिटी भरपूर हो और जिनका केपीटलाइजेशन बड़ा हो |

भारत में शेयरों की ट्रेडिंग के लिए दो मुख्य स्टॉक एक्सचेंज है |

1. B.S.E. ( बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज )

2. N.S.E (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज)

. B.S.E. के इंडेक्स को सेंसेक्स कहते हैं | इसमें 30 बड़ी कंपनियां लिस्टेड होती है | N.S.E के इंडेक्स को निफ्टी कहते हैं | इसमें 50 कंपनियां लिस्टेड होती है | स्टॉक एक्सचेंज में जिन कंपनियों का कारोबार हो रहा है उनकी सामान्य स्थिति को दर्शाने के लिए एक औसत निकाला जाता है जिसे सेंसेटिव इंडेक्स कहते हैं |

सेंसेक्स भारतीय शेयर बाजार का सबसे लोकप्रिय व सटीक बैरोमीटर माना जाता है | जब सेंसेक्स ऊपर उठता है तो यह बाजार की अच्छी स्थिति दर्शाता है | सेंसेक्स के नीचे गिरने का मतलब है कि शेयरों के भाव में गिरावट |

आज का भारतीय शेयर बाजार ग्लोबल हो चुका है | आज यहाँ खरबों रुपये विदेशी संस्थागत निवेशकों के लगे हुए हैं | इसलिए ग्लोबल कारणों का भी असर शेयर मार्केट पर दिखाई पड़ता है | ऐसा पाया गया है कि सेंसेक्स नीचे गिर गया क्योंकि ग्लोबल कारक नकारात्मक थे जबकि भारतीय कंपनियों की स्थिति मजबूत अवस्था में थी | किताब 2015 में लिखी गई है तब ऑनलाइन का इतना बोलबाला नहीं था | अब तो ऐसी बहुत सी ऐप निकल गई है जिनके द्वारा आप खुद ही अपने शेयरों को खरीद और बेच सकते हैं | इसके लिए आपको किसी पर्सनल शेयर ब्रोकर की जरूरत नहीं | फिर भी शेयर ब्रोकर का चुनाव कैसे करें यह अध्याय आप जरूर पढ़ें |

स्टॉक टेबल को समझने में बहुत से लोगों को परेशानी आती है लेकिन लेखिका ने बड़े ही सरल शब्दों में यहाँ उसे पढ़ने का तरीका बताया है | च लिए जानते हैं वह क्या है ?

प्रत्येक शेयर सूची में दो प्राइस कोटेशन होते हैं | इसमें से पहले बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के लिए होता है और दूसरा नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के लिए होता है | . B.S.E. में लिस्टेड शेयरो की संख्या ज्यादा है | स्टॉक टेबल में सबसे पहले कंपनी का . B.S.E. और एनएससी कोड दिखाई देता है | यदि कंपनी का बीएससी और एनएससी कोड आपको पता है तो आप उससे कंपनी के बारे में पूरी जानकारी पा सकते हैं |

कंपनी के नाम के आगे कंपनी के . शेयर पांच रुपो में लिखा होता है | Open , High , Low , Close और पिछले दिन का क्लोज |

यह आँकड़े शॉर्ट टर्म निवेशक और डे – ट्रेडिंग करने वालों के लिए निर्णय लेने के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण होते हैं | और दो आंकड़े जैसे की “वॉल्यूम “और “खरीद- फरोख्त” के सौदों की संख्या भी स्टॉक टेबल में दर्शाई जाती है जो की महत्वपूर्ण होती हैं |

प्राइस अर्निंग रेशियों , कंपनी का मार्केट केपीटलाइजेशन और शेयरो की पिछले साल की ज्यादा और कम कीमत भी दर्ज होती है | इसके अलावा भी स्टॉक टेबल में अन्य बातें मेंशन होती है | स्टॉक टेबल में अलग-अलग कंपनियों के शेयरो के लिए अलग-अलग श्रेणियां बनाई गई है | किसी व्यक्ति को अगर स्टॉक टेबल में किसी शेयर के बारे में जानकारी देखनी है तो इन्हीं श्रेणियां के तहत शेयरो की सूची में तलाश करना चाहिए |

स्टॉक टेबल में सबसे पहले पी कैटेगरी के शेयर और उसके बाद बाकी श्रेणियां के शेयर प्रदर्शित किए जाते हैं | स्टॉक टेबल में दर्ज शेयरो की कीमत को प्रभावित करने वाले बहुत से कारण होते हैं | जैसे की मांग और आपूर्ति , किसी विशेष संस्था की रुचि , कंपनी से जुड़े कारण , कंपनी का प्रदर्शन , कंपनी का अधिग्रहण तथा विलय ,यह सब ऐसे कारण है जिनके वजह से शेयरो की कीमत मे उछाल और गिरावट आते रहती है |

शेयर बाजार में पैसा लगाने से पहले आपको कुछ बातों का विश्लेषण कर लेना चाहिए जैसे कि आप कंपनी के लाभ हानि – खाते पर एक नजर डाल सकते हैं | कंपनी की बैलेंस शीट को भी देख ले | कंपनी ने कहां-कहां निवेश किया है | कंपनी का कैश फ्लो स्टेटमेंट और सबसे महत्वपूर्ण है ट्रेडिंग वॉल्यूम , इसके साथ भी और छोटी बड़ी बातें हैं जिन पर आपको ध्यान देना चाहिए ताकि आपका निवेश आपको अच्छा रिटर्न दे सके |

शेयर बाजार में सफल होने का फार्मूला यह है कि आप टिप्स पर नहीं बल्कि अपने विवेक के आधार पर निर्णय ले | ज्यादा अवधि के लिए निवेश करें | हमेशा किसी की देखा देखी या भावनाओं में बहेकर निवेश न करें | निवेश में समय का बहुत महत्व होता है | मार्केट में आए तेजी और मंदी का फायदा उठाएं | रोजाना अपने शेयरो के नफे नुकसान की गणना न करे |

किताब का तीसरा बड़ा विषय है – कमोडिटी मार्केट

कमोडिटी मार्केट की दुनिया या मार्केट प्रायः अनाज मंडियों में देखा जाता है | जहां सामान की डिलीवरी और पैसे का भुगतान वही जगह पर या फिर सौदे के 11 दिन के भीतर ही हो जाता है |

इसलिए इसे “स्पॉट ट्रेडिंग” कहते हैं | जब यही सौदा 11 दिन बाद होता है तो इसे “फॉरवर्ड ट्रेडिंग” कहते हैं | फॉरवर्ड ट्रेडिंग में सामान का भाव उसी दिन तय होता है सिर्फ सामान की डिलीवरी और पैसों का लेनदेन किसी सुनिश्चित तारीख को करना तय होता है |

फ्यूचर ट्रेडिंग और स्पॉट ट्रेडिंग को लेखिका ने दो-तीन अच्छे उदाहरण देकर समझाया है जिससे आपको यह दोनों व्यवहार समझने में आसानी होगी | इस व्यवहार में फ्रॉड करने वाले लोगों के लिए सरकार ने क्या-क्या उपाय योजना की है ? यह भी आपको यहाँ जानने से मिलेगा |

फ्यूचर ट्रेडिंग सामानों की कीमतों के लिए इंश्योरेंस का काम करती है | इसको ही “हेजींग इंस्ट्रूमेंट ” कहते हैं | कमोडिटी ट्रेडिंग के फायदे क्या -क्या है ? वह आप को यह अध्याय पढ़कर पता चलेगा |

कमोडिटी एक ऐसा कारोबारी उत्पाद है जिसका उत्पादन , खरीद- बिक्री और उपयोग हो सकता है | उदाहरण के तौर पर बहुमूल्य धातु ,मसाले ,दलहन ,अनाज ,चीनी और कृषि वस्तुएं |

कमोडिटी मार्केट में उत्पादक ,ट्रेडर , किसान , निर्यातक और निवेशक भाग ले सकते हैं | बाकी फिर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी जानकारी आपको प्रस्तुत अध्याय में मिल जाएगी |

इसके अलावा डेरिवेटिव मार्केट भी होता है | अब इसकी क्या जरूरत है ? आइये , यह देखते हैं | स्पॉट मार्केट परंपरागत तरीका है | किसी – किसी को लगता है कि इससे गतिविधियां सीमित होती है | डेरिवेटिव मार्केट बहुत विशाल है | यह शेयर मार्केट का ही एक भाग है |

डेरिवेटिव सौदे कमोडिटी मार्केट में भी होते हैं | डेरिवेटिव मार्केट की पूरी जानकारी और उसमें उपयोग में ले जाने वाले शब्द जैसे कि डेरिवेटिव ,फॉरवर्ड ,फ्यूचर ,ऑप्शन ,वारंट ,स्वैप इत्यादि की जानकारी आपको इस अध्याय में मिलेगी |

शेयर बाजार से जुड़े अर्थव्यवस्था के कुछ महत्वपूर्ण पहलू जैसे की सकल राष्ट्रीय उत्पाद के बारे में लेखिका ने इस अध्याय मे बताया है | उन्होंने ” इन्फ़्लमेशन” के बारे में बताया है | कि ,उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में वृद्धि क्यों होती है ? इसके कारण जानने के लिए मुद्रास्फीति का आकलन किया जाता है | इसके लिए सरकार मॉनेटरी पॉलिसी लगती है जिसका उद्देश्य देश की आर्थिक और वित्तीय स्थितियों में सुधार लाकर मुद्रास्फीति यानी इन्फ़्लमेशन” को घटाना ,लंबे समय के उत्पादन मे बढ़ोतरी और दीर्घकालिक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को मजबूत बनाना होता है |

ऐसे ही फिसकल पॉलिसी , क्रेडिट पॉलिसी , रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट , कैश रिजर्व रेशियों कैसे काम करता है ? उसे भी आप जरूर पढ़िएगा | इसके बाद के अध्याय में उन्होंने शेयर मार्केट की बड़ी गिरावटों को दर्ज किया है | अब यह शेयर मार्केट की बुक है तो वारेन बफे का नाम ना आए | ऐसा कैसे हो सकता है ? जो शेयर मार्केट में निवेश करके दुनिया के अमीर इंसान बने |

इसलिए उन्होंने “विश्व में चर्चित कुछ लोकप्रिय निवेशक” इस अध्याय में उनका और उनके गुरु रहे बेंजामिन ग्राहम का जिक्र किया है | इसके बाद के दोनों अध्यायों में उन्होंने क्रमशः निवेश का तरीका कैसा हो और शेयरों के प्रकारों पर प्रकाश डाला है |

किताब के आखिरी के पन्नों में उन्होंने से SEBI , B.S.E. , N.S.E. के महत्वपूर्ण वेबसाइट के पते दिए हैं | जहां से आप शेयर मार्केट से रिलेटेड अपने प्रश्नों के उत्तर पा सकते है | बाद में आते उन सारे शब्दों के शॉर्ट टर्म जो शेयर मार्केट , डेरिवेटिव मार्केट और कमोडिटी मार्केट में उपयोग में लाए जाते हैं | कुल मिलाकर यह किताब सचमुच नाम की तरह ही शेयर मार्केट की गाइड है जैसे हम हमारे 10वीं 12वीं क्लास में किसी विषय में पास होने के लिए उस विषय की गाइड उपयोग में लाते थे | यह किताब भी आपको वैसे ही मार्गदर्शित करेगी |

ताकि आप शेयर मार्केट के विषय में पास हो सके और अपने निवेश को सुरक्षित रख सके साथ मे उसे वक्त के साथ बढ़ा सके | किताब की भाषा बहुत सरल है | उसे कोई भी समझ सकता है | लेखिका का बहुत-बहुत धन्यवाद जिन्होंने इतने जटिल विषय को इतना सरल करके बताया | इसे पढ़कर आप जरूर विश्वास के साथ शेयर मार्केट में उतरेंगे | आपकी आर्थिक उन्नति के लिए हमारी तरफ से बहुत-बहुत शुभकामनाएं | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ |

तब तक के लिए धन्यवाद !

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