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रिव्यू – 

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वेद प्रकाश शर्मा “पल्प साहित्य ” मे बहुत बड़ा नाम है | उनके लिखे उपन्यासों पर 90 के दशक में फिल्में भी बनी है | इसीलिए उनके उपन्यासों के नाम और 90 के दशक के फिल्मों के नाम मिलते – जुलते हैं जैसे कि “दहकते अंगारे , सुलगते शहर”| बॉलीवुड की बहुत सारी हस्तियों के साथ उनकी फोटोज भी है | आप उन्हें गूगल पर देख सकते हैं |
प्रस्तुत उपन्यास में कातिल की खोज उन्होंने “विभा जिंदल ” के साथ मिलकर की है | अब पता नहीं यह असली पात्र है या नकली क्योंकि लेखक लोग प्रायः ऐसे काल्पनिक पात्रों को असलियत का जामा पहना देते हैं |
प्रस्तुत उपन्यास एक रोमांचकारी उपन्यास है | यहां कहानी के बहुत से पात्र नाम बदलकर रह रहे हैं | यहाँ कातिल , लोगों को एक पहेली सुलझाने के लिए देता है अगर वह व्यक्ति वह पहेली साढ़े तीन घंटे मे नहीं सुलझा पाया तो कातिल उसे मार देता है |
यही साढ़े तीन घंटे उस व्यक्ति के जीवन – मरण को तय करते हैं | इसीलिए शायद लेखक ने इस किताब का नाम “साढे तीन घंटे” रखा है | हर बार जब भी हम कभी कोई जासूसी उपन्यास पढ़ते हैं तो वहां केस सॉल्व करने वाला कोई तेज तर्रार जासूस होता है |
इसके विपरीत यहां वैसे ही दिमाग से शातिर “विभा जिंदल” है जो लेखक की मित्र भी है | वह एक-एक कड़ियों को जोड़कर आखिर असली कातिल तक पहुंच ही जाती है | कातिल हमेशा से ही पाठकों के नजरों के सामने रहता है लेकिन वह आपके पकड़ में आता है या नहीं | यह तो आपको किताब पढ़ते वक्त ही पता चलेगा जैसा कि लेखक ने कातिल के पकड़े जाने के पहले पाठकों से कहा था |
कहानी बहुत घुमावदार है | हर एक पात्र के दो-दो नाम होने की वजह से कंफ्यूजन हो सकता है | या कहानी समझने के लिए दिमाग के पेंच भी ढीले हो सकते हैं |
वैसे कहानी वर्तमान में जरूर घट रही है लेकिन इसके सिरे अतीत से जुड़े हुए हैं | हमें लगता है की विभा जिंदल इस केस को सुलझाकर बाद में अच्छी जासूस जरूर बन गई होगी जैसा कि उनका सपना था |
वह जासूस बनाकर इन लोगों को उनकी गुनाहों की सजा देना चाहती है क्योंकि वह अपराधियों से नफरत करती है | उसके अनुसार अपराधी समाज में कोढ़ के रोग के रूप में होते हैं | अतः इनका निराकरण जरूरी है | इस अप्रतिम और रोमांचकारी , जासूसी उपन्यास के –
लेखक है – वेद प्रकाश शर्मा
प्रकाशक है – हिंद पॉकेट बुक्स
पृष्ठ संख्या है – 308
उपलब्ध है – अमेजॉन और किंडल पर

आईए , अब देखते हैं इसका –
सारांश –
विभा जिंदल “जिंदल परिवार” की बहू है | यह एक बहुत ही ज्यादा प्रतिष्ठित परिवार है जैसा कि आज के जमाने में टाटा और अंबानी | जिंदल परिवार ने ही “जिंदलपुरम” बसाया है | जिंदलपुरम में ही जिंदल परिवार का पुश्तैनी मकान है जिसका नाम “मंदिर” है |
सारी कहानी इस जिंदलपुरम में ही घटती है | लेखक हर साल अपनी शादी की सालगिरह के दिन अपनी पत्नी मधु को लेकर नई-नई जगह घूमने जाते हैं | इस बार वह जिंदलपुरम को चुनते हैं | यहां उनकी मुलाकात विभा और उसके पति अनूप से होती है | अनूप जिंदल परिवार का वारिस है |
वकालत की पढ़ाई करते वक्त लेखक विभा पर लट्टू थे क्योंकि वह बेहद खूबसूरत थी लेकिन लेखक का प्यार एक तरफा था | विभा जासूस बनना चाहती थी | अतः प्यार के चक्कर मे नहीं पड़ना चाहती थी |
लेखक और उनकी पत्नी को विभा जब अपने घर खाने पर बुलाती है तो इस दौरान अनूप साढ़े तीन घंटे के लिए अपने आप को एक कमरे में बंद कर देता हैं | जब वह पहेली सुलझा नहीं पाता हैं तो आत्महत्या कर लेता हैं | 4 साल पहले अनूप की बहन ने भी आत्महत्या कर ली थी |
दोनों भाई – बहनों के हत्या का कारण किसी को पता नहीं चल पाता | अनूप यह पहली छुड़ाने के लिए इसलिए मजबूर हो जाता है क्योंकि उसके पिता कातिल के कब्जे में रहते हैं | इसके लिए कातिल दीनदयाल का फ्लैट इस्तेमाल करता है | दीनदयाल की जिंदलपुरम मे दवाइयों की दुकान है |
जो व्यक्ति अनूप को उसके घर में संतरा दिखाकर डराता है | उसका नाम “जोगा” है | उसका भी कत्ल हो जाता है | उसकी लाश महेंद्र- सिंह सोनी के फ्लैट पर पाई जाती है | सोनी जिंदल परिवार की फैक्ट्री मे मैनेजर है |
विभा को तहकीकात करते-करते यह पता चलता है कि दोनों का फ्लैट इस्तेमाल करने वाला कोई उनका कॉमन फ्रेंड या रिश्तेदार हो सकता है जिसको इन दोनों की दिनचर्या मालूम हो ! कि यह दोनों कब फ्लैट पर रहते हैं और कब नहीं ?
ऐसा एक आम व्यक्ति विभा को मिलता है | उसका नाम है “इंस्पेक्टर त्रिवेदी” | छानबीन करनेवाली विभा , पुलिस विभाग के डीआईजी साहब , इंस्पेक्टर , जासूस और विभा के पर्सनल जासूसों को भी इंस्पेक्टर त्रिवेदी ही कातिल लगता हैं लेकिन अब तो इंस्पेक्टर त्रिवेदी भी मारा जा चुका है |
उसके जयपुर वाले पुश्तैनी मकान में उसकी लाश मिलती है | जबकि वह जिंदलपुरम में नौकरी करता है | जिंदलपुरम के उसके फ्लैट में विभा को , हात से ड्रॉ किए हुए पाँच लोगों के पेंसिल स्केच मिलते हैं | जिसमें से दो तो मर चुके हैं | पहले है – अनूप | दूसरा है – जोगा |
त्रिवेदी के फ्लैट की तलाशी मे विभा को “सुधा पटेल” मिलती है जो जिंदलपुरम में रजनी त्रिवेदी के नाम से रह रही है | कातिल के कहने पर ही सुधा , विभा को फोन करती है |
विभा सुधा के फ्लैट पर पहुंचती है तो , विभा को पता चलता है कि उसका अपहरण हुआ है | उसके बाद सुधा की कटी जीभ और कटी उंगलियां विभा तक पहुंचती है |
त्रिवेदी के फ्लैट में सुधा पटेल को देखकर सब लोग त्रिवेदी को ही कातिल मानते हैं | पर अब तो त्रिवेदी भी नहीं रहा | तो फिर कातिल है कौन ? विभा को जो स्केच मिलते हैं | उसमें से तीसरा स्केच सुधा का है |
चौथा है – बिरजू | बिरजू जिंदलपुरम में जगमोहन के नाम से रह रहा था लेकिन कातिल को उसके बारे में भी पता चल जाता है | वह उसे “टाइम डेथ ” नामक इंजेक्शन देकर मार देता है | जगमोहन , महेंद्र सिंह सोनी का मित्र है |
सुधा एक चरित्रहीन स्त्री है | उसका तीन-चार साल का सचिन नाम का बेटा है | उसके जोगा , बिरजू और टिंगू नाम के व्यक्तियों के साथ अवैध संबंध है | वह सब को “सचिन” उनका बेटा है | कहेकर सब से महीने के पाँच सौ रुपये लेती है |
इसी आशय के पत्र विभा को अनूप के लॉकर में भी मिलते हैं | एक पल के लिए तो विभा टूट जाती है | बाद में केस सॉल्व करते-करते अनूप बेकसूर साबित हो जाता है |
“टिंगु ” भी भेस बदलकर विभा से मिलने आता है | तब तो विभा उसे पहचान नहीं पाती फिर भी उसके दिमाग में एक बात घर कर जाती है कि इस आदमी को कहीं ना कहीं देखा जरूर है | उसे याद आने के बाद पता चलता है की पांच स्केच मे से एक स्केच टिंगू का है और अब मरने की बारी उसकी है |
उसे बहुत ढूंढा जाता है | आखिर उसकी लाश ही बरामद होती है | उसके पास से एक छोटी डायरी विभा को मिलती है जिसमें लिखी बातों से सारी कहानी साफ हो जाती है | उसके पहले विभा साढ़े तीन घंटे वाली पहेली मात्र आधे घंटे में सुलझा कर एक बैंक लॉकर तक पहुंच जाती है |
उस लॉकर में उसे 5 लाख के कीमती हीरे और एक कीमती नेकलेस मिलता है | हीरे तो महानगर के एक जाने-माने हीरा व्यापारी के है जो वर्षों पहले चोरी हो गए थे | इसी केस को डीआईजी साहब सॉल्व नहीं कर पाए थे और अपने करियर को दागदार बना गए थे |
इसी कारण उनका ट्रांसफर जिंदलपुरम में हुआ था | आज हीरो को देखकर उन्हे उनके पुराने दिन याद आ गए | साथ में चोरी में शामिल चोरों के बारे में जानकारी निकालते निकालते वह जोगा , बिरजू , सुधा , टिंगु और बंकिम तक पहुंच जाते हैं |
यह पांचों पहले जिंदलपुरम के बाहर चंदनपुर में रहा करते थे | बंकिम इन चारों का ही मित्र था और संतरे का बिजनेस किया करता था | जब बंकिम इन चारों का मित्र था तब इन लोगों ने उसके पूरे परिवार की हत्या क्यों की ?
और क्यों अनूप ने इन लोगों का साथ दिया ? इन पांच लोगों के स्केच की क्यों बनाए गए ? फोटो क्यों नहीं निकाली गई | बंकिम के भाई ने इन कातिलों से बदला लेने की ठानी और इसीलिए वह एक के बाद एक कत्ल कर रहा है |
बंकिम का भाई संतोष भी तो नाम बदलकर जिंदलपुरम में रह रहा है तो असल में संतोष है कौन ? क्यों वह सबको पहली सुलझाने के लिए देता है ? अनूप की बहन का कीमती नेकलेस उन हीरो के साथ कैसे मिला ?
वर्षों से अनसुलझे इन गुत्थीयों को विभा अपनी तेज अक्ल और सूझबूझ से ढूंढ ही लेती है लेकिन वह एक भी व्यक्ति को मरने से बचा नहीं पाती |
आखिर वह भी तो एक इंसान ही है | गलतियां इंसान से ही होती है | उसकी तहकीकात में खलल तब पड़ती है जब जिंदल परिवार का वफादार “सावरकर ‘अनूप का मास्क लगाकर खूनी को ढूंढने की कोशिश करता है |
इस चक्कर में विभा की तफतीश दूसरी दिशा में चली जाती है | फिर वह फेक कातिलों में उलझ कर रह जाती है | पर जल्दी ही सही इन्वेस्टिगेशन की तरफ बढ़ती है और कामयाब होती है | पढ़कर जरूर जानिए की कहानी का अंत क्या है ? आखिर अनूप की सच्चाई क्या है ? कहानी का अंत आप को हिलाकर रख देगा | बहुत ही उम्दा किताब है | जरूर पढिए | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ .. तब तक के लिए..
धन्यवाद !!

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