NIGHT TRAIN AT DEOLI BOOK REVIEW HINDI

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रिव्यू –

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प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – रस्किन बॉन्ड
प्रकाशक है – राजपाल एंड संस
हिन्दी अनुवाद किया है – ऋषि माथुर इन्होंने
पृष्ठ संख्या – 199
उपलब्ध है – अमेजॉन और किंडल पर

रस्किन बॉन्ड की कहानियों में एक ताजगी होती है | भारतीय जनजीवन और निसर्ग का वर्णन शायद ही किसी और लेखक ने इतनी आत्मीयता से किया हो !
कहानी में पूरे 17 अध्याय है जिसमे पहले तो किताब का टाइटल नेम ही है | उसके बाद है “पतंगवाला , मंदार का पेड़ , पहले जैसा मान , इन्स्पेक्टर लाल की जांच – पड़ताल , बचपन के वो दिन इत्यादि |
रस्किन बांड जन्म से ब्रिटिश है और मन से भारतीय .. | उनका पालन पोषण देहरादून , मसूरी में हुआ है | अंग्रेजों के आने के पहले हिमालय की तलहटी वाले इन जगहों में मनुष्य नहीं बसा करते | वह तो अंग्रेज कोलकाता और मद्रास के गर्मी को झेल नहीं पाए तो उन्होंने मसूरी और देहरादून में अपनी वसाहत बनाई |
यहां उन्हें इंग्लैंड जैसा लगता था | अब क्योंकि रस्किन भी ब्रिटिश थे तो वह भी यही पले – बढ़े |इन जगहों से , यहां के लोगों से , उन्हें प्यार हो गया | परिणामतः वह पूरे भारतीय हो गए |
उनकी हर किताब में निसर्ग से जुड़ी बातें होती है , चाहे वह पेड़ हो , जंगल हो , उसमें बसने वाले अलग-अलग पंछी हो , जानवर हो ,कल – कल बहती नदिया हो ! या इन जंगल और गांव में बसने वाले अलग-अलग लोग हो ! उनके पास इन सब से मिलती-जुलती कोई ना कोई कहानी जरूर है |
उनकी हर एक किताब में उनकी पिछली किताबों की एक दो कहानीयां जरूर रिपीट होती है | शायद वह अपने किसी भी कहानी को उनके पाठकों के मन से भूलने नहीं देना चाहते | रस्किन बॉन्ड को लोगों की कहानी सुनने का बड़ा शौक है | कभी-कभी तो वह पैसे देकर लोगों की कहानी सुनना पसंद करते है |
वह हमेशा ट्रैवलिंग करते रहते है और अलग-अलग जगह रहते है | इसी वजह से उनका अलग-अलग लोगों से वास्ता पड़ते रहता है | वह उनकी जिंदगी में आनेवाले लोगों से शायद ही दोबारा कभी मिले हो ! प्रस्तुत किताब में उनके जीवन से जुड़े ऐसे ही कुछ किस्से है जिसमें पहले है – नाइट ट्रेन टू देओली |
देओली एक बहुत ही छोटा स्टेशन है जो देहरादून के कुछ ही पहले पड़ता है | वहां रस्टी की मुलाकात एक लड़की से होती है जो बुनी हुई टोकरिया बेचती है | उस लड़की की आंखों में अजीब सा आकर्षण है |
रस्टी उसे दिल्ली ले जाना चाहता है लेकिन वह कहीं नहीं जाना चाहती | इन सब बातों मे ही गाड़ी शुरू हो चुकी थी | एक साल कॉलेज की पढ़ाई करने के बाद रस्टी फिर से वहां गया लेकिन वह लड़की उसे नहीं मिली |
रास्ते में दो-तीन बार स्टेशन पर देखा , पर वह लड़की वहां नहीं थी | रस्टी ने भी स्टेशन से बाहर बसे गांव में जाकर उसकी तहकीकात करना जरूरी नहीं समझा क्योंकि उसे अपना सफर जारी रखना था |
रस्टी को हमेशा ही हैरत रही की स्टेशन की दीवार के उस पार क्या-क्या होगा ? बहेरहाल ,रस्टी का सफर जारी रहा और अगला अध्याय आ गया जो की है – “पतंग वाला” | एक बूढ़े पतंग वाले की कहानी है जिसके दिन अब लद चुके हैं |
वह पुराने दिनों को याद कर कर के जी रहा है | उसके खुशी की बस एक ही किरण है | उसका पोता | रस्टी जब अपने दादाजी के बंगले को बेचकर नई जगह जाने की तैयारी में था तब उसे वहां एक लड़की दिखाई दी जो आंगन में लगे मंदार के पेड़ के फूल तोड़ने आई थी |
थोड़े वक्त के लिए ही सही रस्टी की उसके साथ दोस्ती हो गई | वह पूरी दुनिया घूमना चाहती थी | टांगे के आने तक रस्टी ने पेड़ पर चढ़कर एक-एक फूल उसकी तरफ फेंका और उसने वह जमा किए |
अगली कहानी में रस्टी को मिला एक चोर जो जमाने के लिए तो बुरा था पर रस्टी के लिए अच्छा .. | वह रस्टी को अपना अच्छा दोस्त मानता था पर इसका मतलब यह नहीं कि वह रस्टी के साथ अच्छा ही व्यवहार करे |
रस्टी ही उसके हर व्यवहार में अच्छाई ढूंढा करता था | फिर भी उसने अपनी चोरी की आदत नहीं छोड़ी | चोर ने अपने ऊपर ऊपकार करने वाले रस्टी के ही पैसों की चोरी की और फरार हुआ |
इस हालात मे उसके भीतर छुपी थोड़ी सी अच्छाई ने उसको यह करने से मना कर दिया | वह वापस आया | पैसे भी वापस जगह पर रख दिए | रस्टी ने भी सब – कुछ पता रहते हुए भी ना पता रहने का नाटक किया और अपनी दोस्ती कायम रखी |
“पहले जैसा मान ” एक पहलवान की कहानी है जिसे अपनी जिंदगी में अच्छी शोहरत और मान – सम्मान मिला लेकिन एक रानी के फेर में पड़कर अपना पहलवानी का गुण खोता रहा |
रानी के मरने के बाद उसके पास जीवनयापन का दूसरा रास्ता नहीं रहा और वह भीख मांगने पर मजबूर हुआ | उसकी मौत जिस बत्तर हालात में हुई | उस हालात में रस्टी ने उसे पहचानने के बाद भी न पहचाना ताकि लोग उसे उसके अच्छे रूप में ही याद रखें |
लेखक हमेशा अपनी किताबों में मसूरी ,देहरादून और उसके आसपास बसे इलाको के ब्रिटिश परिवारों का वर्णन करते हैं | ऐसे ही एक ब्रिटिश बूढी महिला की यह कहानी है | वह अब अकेली रहती है | उसे बागवानी का बड़ा शौक है | उसके गार्डन में , वही के एक महंगे स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा पहाड़ी से फिसलता हुआ आता है |
बच्चे को भी फूल – पौधों में बड़ी दिलचस्पी है | बच्चा जब छुट्टियों में अपने घर जाने वाला होता है तो मिस मैकेंजी उसे फूल – पौधों से रिलेटेड बहुत सारी किताबें देती है जो अभी बहुत ही दुर्लभ है और कीमतों मे महंगी है |
बच्चा जब पूछता है कि ,”वह यह किताबें उसे क्यों दे रही है ? ” तो वह कहती है कि,” शायद उसके लौट आने तक वह वहाँ न रहे | ” बच्चा तो आखिर बच्चा है | जीवन – मृत्यु के चक्र को समझ नहीं पाता |
वही होता है | सर्दियों में मिस मैकेंजी इस दुनिया को छोड़ कर चली जाती है लेकिन अपनी विरासत सही हातो में छोड़ कर | “आंखों ही आंखों में ” कहानी का नायक देख नहीं सकता | जब वह ट्रेन में सफर कर रहा होता है तो एक लड़की भी उसके साथ सफर करने लगती है | उसकी आवाज बड़ी ही सुमधुर है | ट्रेन में चढ़े एक तिसरे शख्स से पता चलता है कि वह लड़की बेहद खूबसूरत थी लेकिन आंखों से अंधी थी |
“बैंक का निकला दीवाला” – यह कहानी हमें सबसे मजेदार लगी और साथ में बहुत संजीदा भी .. | कभी – कभी लोग अपनी बेवकूफी के चलते एक साधारण सी बात को बहुत तूल देकर अच्छी – खासी स्थिति को बेकार बना देते हैं |
इसका उमदा उदाहरण यह कहानी ही है | इसे आप ही पढ़ लीजिएगा | आपको पढ़ने में आनंद आएगा | “सीता और नदी” कहानी शायद इस किताब की सबसे लंबी कहानी है | इसमें टापू पर रहनेवाली एक लड़की सीता की , नदी में आई बाढ़ के दरम्यान अपने आप को बचाने की जद्दोजहद बताई है |
इसके बाद एक इंस्पेक्टर की ऐसी कहानी जिसने मुजरिम को पहचानने के बाद भी केस सॉल्व नहीं किया | साथ मे अपना प्रमोशन भी खो दिया | रस्किन के इसके पहले की किताबों में भी हमने बताया है कि , वे निसर्ग के कुछ ज्यादा ही करीब रहते थे |
यह देन शायद उन्हें उनके दादाजी और पिताजी से मिली | उनको पेड़ – पौधों से ज्यादा लगाव था | बरसात के मौसम में वह बीज और कलमों को ले जाकर जंगल में लगा आते ताकि उनसे और पेड़ पौधे बन सके | ऐसे ही उनके और उनके पिता के द्वारा लगाए पेड़ों को ढूंढने रस्किन बहुत सालों बाद निकले |
उन्हें यह देखकर बड़ी खुशी हुई कि , वह पौधे अब फलते-फूलते पेड़ थे | ऐसे ही रस्किन जब देहरादून में अपने दादाजी के बंगले के पास घूम रहे थे तो उन्हें एक फेरीवाला दिखा जो बहुत सी छुटपुट चीजे बेच रहा था |
रस्टी के दादाजी के घर की तरफ देखकर वह रस्किन के दादा – दादी और छोटे बच्चों की बातें कर रहा था | उसे क्या पता था कि उन्ही बच्चों में से एक अब उसकी बातें सुन रहा है |
वह बच्चा अभी बड़ा हो गया है | उस फेरीवाले को अब जरूरत से ज्यादा जीने का मलाल है क्योंकि उसके दोस्त एक-एक कर के सब चले गए हैं | रिश्तेदार और बाल – बच्चे भी .. यहां तक की उसकी उम्र के पेड़ भी कहीं गायब हो गए हैं | उसको अपनी इस लंबी उम्र का अफसोस है ! फिर भी पता नहीं क्यों ? लोग अमर होने का सोचते हैं | अपनों के बगैर जीना कैसा ?
लंदन से वापस आने के बाद रस्किन देहरादून घूमने गए | जहां उन्होंने अपना बचपन बिताया था | अब वह अपने पुराने दिनों को याद करने लगे और उन पुराने लोगों को ढूंढने निकल पड़े जिन्हें वे कभी जानते थे |
“बचपन के वो दिन” में वह अपनी इन्हीं यादों को ताजा करते हुए दिखेंगे | इन्ही पुराने लोगों मे से उन्हे सीताराम मिल जाता है | हमारी वेबसाईट “सारांश बुक ब्लॉग ” पर रस्किन बॉन्ड द्वारा लिखित और भी किताबों के रिव्यू है | उसी मे से एक मे आप को सीताराम के बारे जानने को मिलेगा | जरुर चेक करे |
सबसे आखरी वाली कहानी में एक 14 साल की लड़की 30 साल के रस्टी को और 23 साल के रवि को अपने प्यार मे घुमाती है | यह दोनों ही सुशीला से शादी करना चाहते हैं लेकिन हो सकता है की उसके बालिग होने तक वह एक बैंक में नौकरी करनेवाले लड़के से शादी कर ले जिसके पास कार हो ! क्योंकि वह एक ऐसे ही लड़के को जानती है |
तो पढ़कर जानिए की किसके साथ शादी करेगी सुशीला ? प्यार करने वाले 30 साल के अंकल रस्टी से ? या रवि से ? या बैंकवाले से ? लेखक के साथ इन सारी कहानियों का मजा जरूर लीजिए | तब तक पढ़ते रहिए ! खुशहाल रहीए ! मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !

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