चंद्रकांता संतति – पार्ट 2
बाबू देवकीनंदन खत्री द्वारा लिखित
रिव्यू –
“चंद्रकांता संतति” , “चंद्रकांता और वीरेंद्रसिंह” के बच्चों की कहानी है साथ मे चंद्रकांता और वीरेंद्रसिंह के अय्यार और अय्यारा के बच्चों की भी | हर एक राजकुमार और राजकुमारी के पास एक न एक अय्यार जरूर होता था | वैसे ही चंद्रकांता के बेटे इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह के पास भी एक-एक अय्यार है |
इंद्रजीतसिंह के अय्यार का नाम भैरोंसिंह है जो तेजसिंह और चपला के बेटे है तो आनंदसिंह के अय्यार का नाम तारासिंह है जो देवीसिंह और चंपा के बेटे हैं | चंपा और चपला चंद्रकांता की अय्यारा थी | वही तेजसिंह और देवीसिंह , वीरेंद्रसिंह के अय्यार है | यह कहानी नई पीढ़ी की है | पहले की पीढ़ी के लोग भी इस भाग में शामिल है पर चंद्रकांता प्रायः नदारद ही है |
वीरेंद्रसिंह ने चुनारगढ़ जीत लिया है और अब सब लोग यही रहते हैं | इसीलिए घटनेवाली बहुत सी घटनाएं यहीं पर घटती है | प्रस्तुत उपन्यास मे राजकुमार और राजकुमारी है तो प्रेम कहानी भी होगी | तो वह भी यहां है लेकिन इन प्रेम कहानियों में कहीं भी फूहड़पना नहीं है बल्कि गरिमा है |
अय्यारो की चपलता , फुर्ती और चालाकी के दर्शन होते हैं तो राजकुमारो की बहादुरी भी दिखाई देती है | तिलिस्म तोड़ने की जद्दोजहद है तो रहस्य से भरी मुश्किलों को पार करना भी है | नए किरदार जुडते जाते है तो साथ में उनकी कहानी भी पता चलते जाती है |
इसीलिए किताब छोड़ने की इच्छा ही नहीं होती | किताब पन्ना दर पन्ना नए रहस्य खोलते जाती है | ऐसे रहस्य और रोमांच से भरी तिलिस्मी दुनिया में ले जानेवाली किताब के –
लेखक – बाबू देवकीनंदन खत्री
प्रकाशक – फिंगरप्रिन्ट पब्लिकेशन
पृष्ठ संख्या – 288
उपलब्ध – अमेजन और किन्डल पर
सारांश –
धनपत की लगाई हुई चिता पर से किशोरी को “अग्निदत्त” बचा लेता है | अब “अग्निदत्त” के किशोरी को लेकर क्या इरादे हैं ? यह आपको “चंद्रकांता संतति – पार्ट वन” में पता चल जाएगा | अग्निदत्त , वीरेंद्रसिंह के सिपाहियों के हाथों से छूट जाता है और रोहतासगढ़ के आसपास मंडराने लगता है | इसी से वह किशोरी को बचा पाता है |
वह किशोरी को एक गुफा मे ले जाकर रखता है | जैसा कि आप जानते है , लेखक की किताबों में गुफाओं ,कन्दराओ और खोह इन सब का बहुतायत में वर्णन है क्योंकि लेखक को जंगलों , पहाड़ों , गुफाओं और खंडहरों में घूमना अच्छा लगता था और इन्हीं सारी चीजों के वर्णनों को उन्होंने अपने कहानियों में इस्तेमाल किया है |
दूसरे बयान में यहां बताया गया है कि कुमार इंद्रजीतसिंह तालाबवाले तिलिस्मी मकान में है | इस मकान की मालकिन कमलिनी है | पहले कुमार उसे अपना दुश्मन समझते थे लेकिन उसकी बातों और हरकतों से पता चलता है कि वह उनकी मददगार है | उसने अपनी “तारा” नाम की अय्यारा को “किशोरी” का पता लगाने के लिए भेजा है |
कुमार ने कमलिनी से “लाली और कुंदन” का भेद भी पूछा है | यह दोनों तो आपको याद ही होगी | यह किशोरी के साथ रोहतासगढ़ में थी | कमलिनी उनकी मददगार है | इसका विश्वास जब कुँवर को होता है तब वह कई दिनों तक कमलिनी का मेहमान बनकर रहते हैं | वह इन दिनों मे उस तिलिस्मी मकान का राज भी जान जाते हैं | कमलिनी के सिपाही “माधवी” को गिरफ्तार कर के उसी तिलिस्मी मकान में लेकर आते है |
कमलिनी को यह भी पता चलता है की ,रोहतासगढ़ का तहखाना तिलिस्मी है और अब उस पर वीरेंद्रसिंह के अय्यारो का राज है | कमलिनी को उसके सिपाहियों से यह भी पता चलता है कि रोहतासगढ़ के तहखाने में जाने का एक रास्ता वहां के कब्रिस्तान से भी होकर जाता है | जहां उसके सिपाहियों को धनपति के तीन लोग दिखे थे जिनमें से दो आदमी और एक महिला थी जिसका नाम “चमेली” था |
उसी तहखाने में एक खून हुआ जिसे शायद चमेली ने किया और इल्जाम माधवी की अय्यारा तिलोत्तमा पर लगाया | वह भी इसी तहखाने से बाहर निकली थी जिसे वीरेंद्रसिंह के “अय्यार पंडित बद्रीनाथ” ने गिरफ्तार कर लिया था | इसी तहखाने में “माधवी” भी थी | अब कमलिनी , तारा और कुंवर इंद्रजीतसिंह को लेकर किशोरी को बचाने के लिए वहां से चल पड़े |
तभी देवीसिंह , अय्यार शेरसिंह को रोहतासगढ़ से साथ में लेकर कुंवर इंद्रजीतसिंह को छुड़ाने के लिए तालाबवाले मकान पर पहुंचे | वहीं इन दोनों की मुलाकात कमलिनी , तारा और इंद्रजीत से हुई | साथ में आते वक्त यह दोनों “लाली और कुंदन” का असली हाल जानने के लिए दिमाग भी लडाते रहे | यह पांचो मिलकर उस जगह पहुंचे जहां धनपति ने किशोरी को जलाने की कोशिश की थी |
वहां से वह “अग्निदत्त” के ठिकाने पर पहुंचे | जहां उन्होंने अग्निदत्त को मरा हुआ पाया | वहां से एक चिट्ठी के सहारे , वह पांचों एक मकान में पहुंचे जहां की छत से सब लोग छलांग मारकर उस मकान में कूद गए | सिर्फ कमलिनी और तारा को छोड़कर ….
इधर रोहतासगढ़ में महाराज दिग्विजयसिंह ने महाराज वीरेंद्रसिंह के साथ धोखा किया | एक साधु बाबा के कहने पर वीरेंद्रसिंह और उनके साथियों को कैद कर लिया लेकिन सिर्फ आधे साथियों को क्योंकि वीरेंद्रसिंह की आधी सेना कीले के नीचे थी जिसमें दो सेनापति थे | महाराज सुरेंद्रसिंह और जीतसिंह के इशारे पर वीरेंद्रसिंह और उनके अय्यारों को छुड़ाने की कोशिशे जारी होती है | कमला , किशोरी की अय्यारा है | कमला ने रोहतासगढ़ में दो औरतों को देखा जिनका नाम “गौहर और गिल्लन” है |
इन्हे एक आदमी मिला जिसे देखकर यह दोनों बहुत डर गई | इसी आदमी को देखकर कमला भी डर गई थी | यही आदमी उसके चाचा “शेरसिंह” से मिलने भी आया था और यही आदमी “भूतनाथ” था | इस पात्र पर भी लेखक ने दो भागों की किताबें लिखी है | उनका भी रिव्यू और सारांश हम जल्दी ही लेकर आएंगे |
गौहर , आनंदसिंह से बदला लेना चाहती है क्योंकि आनंदसिंह ने उसके प्यार को ठुकरा दिया | यह वही लड़की है जिसने आनंदसिंह को अगवा कर अपने गुप्त स्थान पर रखा था | कमला , उस कब्रस्तान मे पहुंच जाती है जहां से रोहतासगढ़ के तहखाना में जाने के लिए रास्ता है | वही उसके सामने राक्षसी जैसी औरत आती है जिसके हाथ में बिजली जैसा करंट पैदा करनेवाली कोई चीज है | इस औरत को देखकर कमला डर जाती है | उसे बचाने के लिए भैरोंसिंह बीच मे ही कुद पड़ते हैं क्योंकि वे उससे प्रेम करते हैं | वह राक्षसी जैसी औरत कमला , भैरोंसिंह , रामनारायण , चुन्नीलाल को बेहोश कर के राजमहल के पीछे रख देती है |
कामिनी जो की दीवान अग्निदत्त की बेटी थी | उसे कमला के चाचा शेरसिंह ने अपने एक मित्र के घर रखा लेकिन उनके मित्र का बेटा कामिनी को प्रेम करने लगा | इससे डरकर कामिनी वहां से भाग गई क्योंकि वह कुंवर आनंदसिंह से प्रेम करती थी | भाग कर वह उसी जगह गई जहां कमला के चाचा शेरसिंह रहा करते थे | उसको लगा कि यह एक आम सी जगह है और यहां कोई नहीं आएगा लेकिन वह गलत थी |
जब उसने किशोरी को वहां कैद पाया और बाकी सिपाहियों की वजह से तीन दिन तक खुद को भी एक कोठरी में कैद कर रखा | जिन सिपाहियों की वजह से कामिनी कोठरी में कैद रहती है | उन सिपाहियों को दो साधुओं ने मारकर भगाया और उनके संदूक पर कब्जा कर लिया |
दरअसल यह दोनों भैरोंसिंह और तारासिंह थे | इन दोनों ने उस संदूक में कुंवर इंद्रजीतसिंह की लाश देखी थी जबकि वह बेहोश थे न की मरे हुए पर इन दोनों ने उन्हे मरा हुआ समझ कर विलाप करना शुरू किया | इनका विलाप सुन कामिनी कोठरी से बाहर आई | तब तक और सिपाहीयो के साथ एक साधु बाबा भी इस मकान की तरफ आए |
दरअसल , यह मकान तिलिस्मी था जिसकी मालकिन साधु बाबा की मालकिन , महारानी मायारानी थी | यह वही साधु बाबा था जिसने रोहतासगढ़ के महाराज दिग्विजयसिंह को महाराज वीरेंद्रसिंह को गिरफ्तार करने के लिए कहाँ था | यह साधुबाबा इस तिलिस्म को अच्छे से जानता था | इसलिए फिर उसने इस तिलिस्म का मुख्य दरवाजा ही बंद कर दिया ताकि अंदर फंसे लोग बाहर ना आ सके |
यह सब काम करने के बाद वह तारासिंह द्वारा फैलाए हुए बेहोशी के धुएं से बेहोश हो गया और वीरेंद्रसिंह के सिपाहियों के हाथों गिरफ्तार हो गया क्योंकि तब तक वीरेंद्रसिंह , कमला के मार्गदर्शन में अपनी सेना के साथ वहां पहुंच चुके थे |
उन लोगों ने तिलिस्म में फंसे लोगों को निकालने के लिए कई तरह के उपाय किए लेकिन कामयाब ना हो सके | इतनी में ही उन्हें शिवदत्त और उसके सैनिकों ने आकर घेर लिया लेकिन एक अय्यार ने जो खुद को “रूहा” बुलाता था | शिवदत्त को अपने कब्जे में कर लिया | राक्षसी जैसी दिखनेवाली उस औरत ने तिलिस्म का दरवाजा सिर्फ एक घंटे के लिए खोल दिया |
अब आप ही पढ़कर यह जानिए की क्या वीरेंद्रसिंह , तेजसिंह और बाकी अय्यार इस एक घंटे में कामयाब हो पाते हैं या नहीं ? वीरेंद्रसिंह, तेजसिंह , आनंदसिंह , कमला और तारासिंह भी इस तिलिस्म में उतरे लेकिन तेजसिंह और महाराज को छोड़कर सब गायब हो गए |
वीरेंद्रसिंह रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए तो तेजसिंह अपनी तफतीश के लिए अलग चले गए | “गौहर” के पीछे-पीछे भूतनाथ भी रोहतासगढ़ चला गया | भूतनाथ भी खतरनाक अय्यार है | इसमें कोई शक नहीं कि उसने तहखाने से महाराज और उनके अय्यारो को छुड़ाया होगा | वीरेंद्रसिंह के अय्यारो ने रोहतासगढ़ में घुसकर इतना उधम मचाया की रोहतासगढ़ ही तबाह हो गया और रोहतासगढ़ के महाराज ने आत्महत्या कर ली |
कमलीनी ने भूतनाथ और नानक को शपथ खाकर अपना भाई मान लिया | नानक का जिक्र “चंद्रकांता संतति – भाग एक” में आ चुका है | उसने इन दोनों को अपने स्पेशल तिलिस्मी खंजर भी दिए | इसी घटना के बाद “मनोरमा” नाम की औरत “भूतनाथ” को कमलिनी की हत्या के लिए उकसाती है पर प्रॉब्लम यह है कि भूतनाथ इस महिला की बात को टाल भी नहीं सकता क्योंकि उसके पास भूतनाथ के हाथ के लिखे कुछ ऐसे दस्तावेज है जिससे भूतनाथ की बहुत बदनामी हो सकती है |
भूतनाथ , मनोरमा को बेहोशी की हालत में कमलिनी के पास ले जाता है | इस समय कमलिनी कालि कलूटी राक्षसिनी के भेस मे है और तारा , कमलिनी के भेस मे ….
इसीलिए कमलिनी , मनोरमा का भेद जानने में कामयाब हो जाती है | वह बदले हुए भेस में ही मनोरमा के घर “गया” में आ जाती है | वहीं उसे एक आदमी के पास बेहोश “कमला” मिलती है | कमलिनी , मनोरमा की सहेली “नागर” के पास जाती है और ऐसा जाल फैलती है कि नागर , मनोरमा को बचाने के लिए कमलिनी की बताई हुई जगह पर चली जाती है | नागर के घर मे कमलिनी को बहुत सी अद्भुत बातें पता चलती है |
“नागर” को भूतनाथ रास्ते में ही गिरफ्तार करता है ताकि वह उससे वह कागज ले सके जो उसके बदनामी का सबब बन सकते हैं | “मायारानी” जमानिया की महारानी है | तेजसिंह अपनी अय्यारी से बिहारीसिंह की शक्ल बनाकर मायारानी के गुप्त सुरंग का हाल पता कर लेते हैं | वह इसी तहेखाने में तारासिंह को पाते हैं लेकिन अफसोस असली बिहारीसिंह के आ जाने से पकड़े जाते हैं और गिरफ्तार कर लिए जाते हैं |
“नागर” मायारानी के लिए काम करती है | नागर और भूतनाथ का पति – पत्नी जैसा संबंध है | इसीलिए नागर के कहने पर “भूतनाथ” कमलिनी और उससे जुड़े लोगों को धोखा देने के लिए तैयार हो जाता है | कमलिनी से जुड़े लोगों में शामिल है – मायारानी का पति गोपालसिंह , मायारानी की सबसे छोटी बहन लाडली | कमलिनी भी मायारानी की ही छोटी बहन है लेकिन मायारानी बुराई के साथ है और कमलिनी अच्छाई के साथ.. |
अब चूंकि किशोरी और कामिनी , नागर के कब्जे में है तो उनको छुड़ाने के लिए गोपालसिंह के साथ भैरोंसिंह और देवीसिंह आते हैं | वह भी भूतनाथ पर विश्वास कर के……
अब देखना यह है की क्या भूतनाथ इन लोगों का साथ देगा या उनके साथ दगा करेगा | मायारानी के राज्य “जमानिया” में एक तिलिस्म है जो कुंवर इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह के नाम पर बंधा है | अब इस तिलिस्म का टूटना तय है क्योंकि इन दोनों का जन्म हो चुका है लेकिन मायारानी यह नहीं चाहती की यह तिलिस्म टूटे क्योंकि तिलिस्म मे छुपी अनगिनत दौलत और नायाब चीजों के बदौलत वह एक ताकतवर रानी में गिनी जाती है जिसको न करने की हिम्मत चाहकर भी कोई नहीं कर पाता |
अगर , यह तिलिस्म टूँट जाता है तो उसकी यह ताकत भी जाती रहेगी | इसलिए उसने यह सब जाल फैलाया | देखना है की इस लड़ाई मे मायारानी जीतती है की कमलिनी |
इसके आगे की कहानी “चंद्रकांता संतति – पार्ट 3” में दी गई है | इसलिए हमारे आनेवाले ब्लॉग जरूर पढे | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !!