द्रौपदी की महाभारत
चित्रा बैनर्जी दिवकरूणी द्वारा लिखित
रिव्यू –
द्रौपदी का जन्म प्रतिशोध की अग्नि से हुआ था | इसी प्रतिशोध के कारण नियति ने उसे महाभारत के युद्ध का कारण बनाया था | शायद इसीलिए किताब के पहले और आखिरी चैप्टर का नाम “अग्नि” है | दोनों अग्नि के उद्देश्य अलग-अलग है | पहली अग्नि ने द्रौपदी को जन्म दिया तो दूसरी अग्नि ने उन लोगों को अग्नि मे स्वाहा किया जो “कुरुक्षेत्र” युद्ध की भेंट चढ़ चुके थे |
महाभारत का युद्ध सिर्फ एक साधारण युद्ध नहीं था | युद्ध कभी साधारण होते भी नहीं | कुरुक्षेत्र का युद्ध एक युग के खत्म होने का परिचय भी देता है | महाभारत का युद्ध दो भाइयों के बीच लड़े गए भीषण युद्ध की गाथा है जो उनके मध्य हुए ईर्ष्याजनित रक्तपात को दर्शाता है |
छल , अपमान और उसके फलस्वरूप उत्पन्न प्रतिशोध के भावो को भी अत्यंत प्रखरता से उजागर करता है | इस उपन्यास के माध्यम से लेखिका ने “पांडवों” की पत्नी और “पांचाल नरेश द्रुपद” की पुत्री “पांचाली” के माध्यम से महाभारत की कथा को अत्यंत सजीव और रोचक ढंग से उकेरा है |
महाभारत की पृष्ठभूमि को , उसके पात्रों को नारी के नजरिए से देखने – समझने का नया दृष्टिकोण मिलेगा | पांचाली के आसपास के माहौल का उस पर क्या प्रभाव पड़ता है ? वह इसके बारे में क्या सोचती है ? इन पर उसका क्या रिएक्शन होता है ? उसके इस प्रतिक्रियाओं के कारण घटनाओं के चक्र कैसे चल पड़ते हैं ? यही इस किताब मे बताया गया है |
कहानी में द्रौपदी के भाई दृष्टद्युम्न , द्रुपद , पांडव , कर्ण और कुंती के चरित्रों को प्रबलता से दिखाया गया है तो जगत के पालनहार कृष्णरूपी भगवान श्री विष्णु द्रौपदी के जीवन में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में मौजूद है |
बीच-बीच में त्रिकालदर्शी वेद व्यास भी द्रौपदी से मिलने आते रहते हैं | द्रौपदी के जीवन में उसकी दाई माँ का भी महत्वपूर्ण स्थान है | यह कहानी द्रौपदी के नजरिए से ही बताई गई है | इसलिए उसने अपने बारे में सिर्फ अच्छी बातें ही बताई | ऐसा नहीं है .. बल्कि उसने अपने मन की हर एक भावना को जैसे ईर्ष्या , घृणा , आनंद इन सबको उड़ेल कर रख दिया है |
इसीलिए कभी-कभी हमें उस पर गुस्सा भी आता है तो कभी वह बहुत अच्छी लगती है | उसने हमेशा ही खुद के लिए पुरुषों के बराबर अधिकार चाहे फिर वह शिक्षा प्राप्त करने के लिए हो ! या युद्ध कौशल के लिए .. लेकिन उसके परंपरावादी पिता के लिए यह सब आसान नहीं था फिर भी अपने लाडले पुत्र “दृष्टद्युम्न” के कहने पर द्रौपदी को परदे के भीतर रहकर राजकरण की शिक्षा लेने का अधिकार मिल ही गया |
उसे अन्य लड़कियों के जैसे फालतू के नखरे करने में , चित्रकारी करने में या सण – त्यौहार के दिन आंगन में रंगोली बनाने में कोई रुचि नहीं थी | ना ही तो वह पूजा – पाठ ही करती थी | वह सोचती थी कि वह ऐसा क्या करें ? जो इतिहास बनाने में उसकी मदद करें क्योंकि ऐसी ही भविष्यवाणी उसके जन्म के वक्त हुई थी |
इसलिए वह कुछ अलग करना चाहती थी | कुछ अलग सीखना चाहती थी | जब महर्षि व्यास से उसकी मुलाकात होती है तो वह उसके भविष्य में घटनेवाली बुरी बातों के बारे में बताते हैं | वह उसे कुछ परिस्थितियों में अपने जुबान पर कंट्रोल रखने के लिए भी बताते हैं | तो हो सकता है कि उसका बुरा भविष्य टल जाए फिर भी द्रौपदी वही करती है जो उसे नहीं करना चाहिए | आखिर “महर्षि व्यास” उसे बताते हैं कि वह सिर्फ नियति के हाथ का खिलौना है | वह चाहकर भी कुछ नहीं बदल सकती |
स्त्री को हमेशा ही कमजोर समझा जाता था | समाज की अवधारणा को बदलने के लिए या फिर शायद खुद को महत्व का स्थान देने के लिए वह अपने पतियों के साथ वनवास जाती है जबकि उसके बच्चे छोटे-छोटे हैं | उनको उसकी जरूरत है | वनवास भोगना उसे जरूरी भी नहीं है | इसी कारण शायद वह अपने दाई माँ से भी उसके आखिरी दिनों में मिलने के लिए नहीं जाती |
नियति उसको पांच पांडवों की पत्नी बनाती है फिर भी वह सिर्फ कर्ण को ही प्रेम करती है | इसी अपराध के कारण वह सशरीर स्वर्ग जानेवाली यात्रा में सबसे पहले मृत्यु को प्राप्त होती है | जन्म भर वह जिस युधिष्ठिर को बेवकूफ समझती रही | आखिर में , उसे पता चलता है कि शांत रहनेवाले युधिष्ठिर को सबके मन की , सब बातें पता है | यहां तक के लोगों के मन की बातें भी ….
इसी कारण वह जानता है की द्रौपदी किस वजह से सबसे पहले मृत्यु को प्राप्त हुई ! जब भीम उससे पूछता है तो वह द्रौपदी की सच्चाई छिपाकर कुछ और ही कारण उसे बता देता है | इससे “युधिष्ठिर” , “द्रौपदी” की नजरों में महान बन जाता है |
“कुंती” और “द्रौपदी” के रिश्ते कैसे हो सकते हैं ? यह पहली बार हमने इसी किताब में पढ़ा | पांडवों पर हुकूमत रखने के लिए दोनों में हमेशा “टग ऑफ वॉर ” होते रहती है | द्रौपदी को अपने घर से विशेष लगाव बताया गया है क्योंकि वह उस घर की स्वामिनी है | वहां सिर्फ उसकी मर्जी चलती है | वह उसके अस्तित्व का ही एक भाग बन गया है |
“द्रुपद” के राज्य में एक राजकुमारी के तौर पर रहते हुए वह एक ऐसे महल में रहती थी जिसमें दूर-दूर तक सिर्फ जमीन ही जमीन थी | न तो एक फूल का पौधा और नाही तो एक हरा भरा पेड़ ही …. तभी उसने सोच लिया था कि वह अपने घर को किस तरह सजाएगी | इसलिए उसका “मायामहल” उसके लिए इतना मायने रखता था | इसीलिए शायद इस किताब का अंग्रेजी में नाम है “पैलेस ऑफ इल्यूजन” यानी के “मायामहल ” |
चलिए तो जानते हैं “द्रौपदी की महाभारत” को सारांश में ..
इस अप्रतिम किताब की –
लेखिका है – चित्रा बैनर्जी दिवाकरुणी
अनुवाद किया है – आशुतोष गर्ग इन्होंने
प्रकाशक है – मंजुल पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ संख्या है – 300
उपलब्ध है – अमेजॉन पर
चित्रा बैनर्जी दिवाकरुणी एक इंडियन – अमेरिकन ऑथर है | वह लेखिका होने के साथ-साथ एक कवियत्री और शिक्षिका भी है | वह अवॉर्ड विनिंग लेखिका हैं | उनकी उल्लेखनीय किताबों में शामिल है “मिस्ट्रेस ऑफ़ स्पाइसेज, सिस्टर ऑफ़ माय हार्ट , ओलीयंडर गर्ल ,बिफोर वि विजिट द गॉडेस और पैलेस ऑफ इल्यूजन या द्रौपदी की महाभारत ” |
अभी तक हमने उनकी लिखी यही एक किताब पढ़ी है | इसलिए हमें पता नहीं की लेखन में उनकी क्या विशेषता है ? हमें उनकी यह किताब बहुत पसंद आई | हालांकि , हमने ओरिजिनल महाभारत भी पढ़ी है | इसी से हम जानते हैं की किताब के रूप में यह उनकी विशेष उपलब्धि है | अभी देखते हैं इसका –
सारांश –
द्रौपदी के पिता और गुरु “द्रोण” बचपन में एक ही आश्रम में पढ़ते थे | वह द्रोण के पिता का ही आश्रम है | वहां रहते हुए वह दोनों एक दूसरे के पक्के मित्र बन जाते हैं | बिछुड़ते वक़्त एक दूसरे को वक्त पड़ने पर मदद करने का आश्वासन देकर अपने-अपने घर चले जाते हैं | दोनों का सामाजिक परिवेश उनका व्यक्तित्व ढालता है |
इससे बचपनवाले द्रुपद में और राजा बने द्रुपद में बहुत परिवर्तन आता है | जब द्रोण , राजा द्रुपद के पास मदद के लिए जाते हैं तो द्रुपद उनका अपमान करते हैं | अपने अपमान को साथ में लेकर आचार्य द्रोण कुछ वर्षों के लिए कहीं चले जाते हैं |
एक दिन अचानक “हस्तिनापुर” के सारे युवराज द्रुपद पर हमला कर उसे हरा देते हैं | उसमें से एक युवक बहुत ही पराक्रमी और कुशल धनुर्धर है | वही द्रुपद को बंदी बना लेता है | उस राजकुमार को देखकर द्रुपद सोचता है कि , “काश मेरा इसके जैसा पराक्रमी बेटा होता !” तभी द्रुपद को पता चलता है कि यह आक्रमण द्रोण के कहने पर हुआ है |
अब इन राजकुमारों ने द्रुपद का आधा राज्य , अपने गुरु द्रोण को “गुरुदक्षिणा” में देकर उन्हें इसका स्वामी बना दिया है | अब गुरु द्रोण के मन से तो अपमान का कलुष धूल जाता है लेकिन द्रुपद के मन में वह समा जाता है | द्रोण से बदला लेने के लिए उसे एक समर्थ पुत्र की आवश्यकता है | इसके लिए वह एक यज्ञ करता है | यह द्रुपद के प्रतिशोध का यज्ञ है | इस यज्ञ से उसे एक समर्थ पुत्र मिलेगा और उसे वह “दृष्टद्युम्न” के रूप में मिलता भी है | साथ में देवता उसे प्रसन्न होकर एक पुत्री भी देते हैं |
ध्रुपद को ना चाहते हुए भी उस बच्ची को स्वीकार करना पड़ता है क्योंकि उसके जन्म के वक्त हुई भविष्यवाणी के अनुसार वह इतिहास बदल देगी और यही बच्ची द्रौपदी है | अपनी इस बेटी के स्वयंवर में द्रुपद ऐसी शर्त रखता है जिसे सिर्फ अर्जुन ही पूरी कर पाए | अर्जुन को अपने दामाद के रूप में पाकर द्रुपद , गुरु द्रोण की शक्ति को कम करना चाहते है |
स्वयंवर के पहले द्रौपदी तक अर्जुन के पराक्रम की बहुत सारी खबरें पहुँच गई थी | स्वयंवर के कारण बहुत से राजकुमारों की तस्वीरे उसके पास आने लगती है | इसी में दुर्योधन की तस्वीर के साथ कर्ण की भी तस्वीर आती है | द्रौपदी उसी को अर्जुन समझती है | जब उसे उस युवक के बारे में पता चलता है तो वह जान जाती है कि वह कर्ण है |
वह कर्ण को पसंद करने लगती है लेकिन न चाहते हुए भी पता नहीं क्यों ? स्वयंवर के वक्त वह अपने शब्द बाणों से कर्ण को आहत कर देती है | एक अज्ञात युवक यह प्रतियोगिता जीतकर , उससे शादी कर लेता है | बाद में उसे पता चलता है कि वही अर्जुन है | उसके अज्ञातवास के दौरान कुंती उसको हमेशा यही जताती रहती है कि उसके बच्चे हमेशा उसी की बात मानते हैं |
वही उनके लिए प्रथम स्थान पर है और द्रौपदी दूसरे स्थान पर …. जब वह अज्ञातवास से हस्तिनापुर जाते हैं तो कुंती वहां पर भी अपना वर्चस्व दिखाती है क्योंकि वह उसका महल है | वह वहां की साम्राज्ञी रह चुकी है |
जब वह “इंद्रप्रस्थ” जाते हैं तो कुंती इस बात से आहत है कि अब उसके बच्चे उसके बगैर जी सकते हैं | उसके बगैर द्रौपदी अब उन पर अपना सर्वाधिकार स्थापित करेगी | अब से वह पांचो उसी की बात माना करेंगे | ईसी कारण द्रौपदी खुश है लेकिन कुंती को द्रौपदी की यह खुशी बर्दाश्त नहीं | इसीलिए वह द्रौपदी की माँ जैसी आया को अपने पास रख लेती है |
“इंद्रप्रस्थ” पहुंचकर “द्रौपदी” को अपना घर “मायामहल” के रूप में मिलता है | यहाँ की स्वामिनी द्रौपदी है | यहां की हर एक चीज उसके के मतानुसार सजाई गई है | ऐसा घर किसी के पास भी नहीं | जब तक वह और उसके वंशज इस घर में रहेंगे | तब तक यह घर सुरक्षित है |
यह घर उनकी रक्षा करेगा लेकिन “मायामहल” को बनानेवाला “मय दानव” उसके साथ एक चेतावनी भी देता है की इस घर के भीतर किसी भी पराए व्यक्ति को मत बुलाना | नहीं तो ! इस घर के लिए उस व्यक्ति की ईर्ष्या सब कुछ तबाह कर देगी | इस बार भी द्रौपदी , मय दानव के इस वार्निंग को अनसुना कर देती है |
राजसुय यज्ञ के लिए आए मेहमानों के तौर पर वह दुर्योधन , उसके भाइयों और कर्ण को घर देखने के लिए बुला लेती है | कर्ण को एक नजर देखने की लालसा में द्रौपदी अपनी दासियो के साथ इन लोगों से थोड़ी ही दूरी पर खड़ी रहती है |
दुर्योधन जब “मायामहल” के माया में फंसकर पानी में गिरता है तो द्रौपदी की दासी उसका मजाक उड़ाती है | इस पर वह आगबबूला हो जाता है | कर्ण को भी लगता है की द्रौपदी के कहने पर ही यह सब कुछ हो रहा है | इसलिए वह भी गुस्सा हो जाता है | द्रौपदी को उसके गुस्से से बहुत फर्क पड़ता है | वह जाकर उससे माफी भी मांगना चाहती है | सारी स्थिति ठीक करना चाहती है लेकिन फिर मौका चूक जाती है |
यही वाक्या दुर्योधन की ईर्ष्या को भड़का देता है | वह इंद्रप्रस्थ और मायामहल को हासिल करना चाहता है | वह सारे पांडव और द्रौपदी को “हस्तिनापुर” बुलाता है | इस बार कुंती उसे मना करती है लेकिन द्रौपदी अपने अहं के कारण उसकी बात मानने से इनकार कर देती है | कुंती भी ज्यादा दबाव नहीं डालती क्योंकि उसे पता है की यहाँ की स्वामिनी द्रौपदी है | उसका यहाँ कोई अधिकार नहीं |
हस्तिनापुर जाने के बाद , दुर्योधन , पांडवों को द्यूत में हराकर क्या-क्या करता है ? यह तो आप सबको पता है | द्रौपदी जब रक्षा के लिए सभा में उपस्थित एक-एक व्यक्ति के पास गुहार लगाती है तो कर्ण चाहता है की वह उससे मदद मांगे | अगर द्रौपदी कर्ण से मदद मांगती तो शायद स्थिति और होती ….
इस बार भी द्रौपदी वही करती है जो उसे नहीं करना चाहिए | वह कर्ण से मदद नहीं मांगती | इसके बाद जब वह वनवास के लिए जाते हैं तो कर्ण भी जमीन पर कुश की शैय्या पर सोता है क्योंकि वह जानता है कि द्रौपदी भी ऐसा ही कठिन जीवन जी रही होगी | युद्ध के समय भीष्म जब मृत्युशैय्या पर पड़े रहते हैं तब वह छिपकर कर्ण और भीष्म की बातें सुन लेती है |
उसी से उसे पता चलता है कर्ण भी उससे प्रेम करता है | जब उसे कुंती और कर्ण के रिश्ते की सच्चाई पता चलती है तब उसे यह भी पता चलता है की कुंती ने कर्ण को यह ऑफर दिया था कि पांडव होने के नाते द्रौपदी तुम्हारी भी पत्नी होगी | द्रौपदी को कुंती के इस स्वार्थी स्वभाव पर बड़ा गुस्सा आया की उससे पूछे बगैर कुंती ने यह निर्णय कैसे ले लिया ? क्या वह कोई वस्तु है जो वह सबको बांटती फिरे |
लड़ाई खत्म होती है और पांडव जीत जाते हैं | दोनों पक्षों का बहुत नुकसान हुआ | स्पेशली द्रौपदी का …. जैसे की “वेद व्यास” ने उसे बताया था | यही उसके जीवन में घटनेवाली बुरी बातें थी | प्राणों से बढ़कर उसपर ममतामई प्रेम करनेवाला भाई , पिता , पाँच पुत्र , आत्मीय रहे पितामह भीष्म , उसे छोड़कर चले जाते हैं | साथ में भाई शिखंडी भी …. अभी मायके के नाम पर द्रौपदी के पास कोई नहीं |
कुछ सालों बाद “हस्तिनापुर” का साम्राज्य “उत्तरा पुत्र परीक्षित” को सौंपकर वह अपने पतियों के साथ सशरीर स्वर्ग पहुंचनेवाली यात्रा पर निकल पड़ती है | आज तक कोई भी स्त्री इस यात्रा पर नहीं निकली लेकिन द्रौपदी यही तो चीज करना चाहती है जो आज तक किसी भी स्त्री ने नहीं की |
वह अपने लिए वही अधिकार चाहती है जो समाज पुरुष को देता है | पतियों के साथ यात्रा का अधिकार उसे मिलता है | वह सब कुछ छोड़कर इस आखिरी और कठिन यात्रा पर निकल पड़ती है | सबसे पहले वही मृत्यु को प्राप्त होती है | इसका कारण युधिष्ठिर को पता है जैसा कि हमने वीडियो की शुरुआत में बताया | जब उसकी आत्मा स्वर्ग तक पहुंचती है तो उसे युधिष्ठिर के अलावा बाकी सब लोग भी दिखाई देते हैं |
वहाँ हर एक व्यक्ति स्वतंत्र है | किसी का किसी के साथ कोई रिश्ता नहीं | तभी कर्ण की आत्मा वहां आकर द्रौपदी का हाथ पकड़ लेती है | दोनों एक दूसरे में खोए हुए अनंत ब्रह्मांड में चले जाते हैं | चलो मृत्युलोक में न सही ! स्वर्ग में तो वह लोग मिल पाए |
वहाँ न जाति का बंधन है | न दोस्ती , दुश्मनी , ना अमीरी , गरीबी का…. द्रौपदी के ना चाहते हुए भी वह वही चीजे करती गई जो उसे नहीं करनी चाहिए थी और इस तरह उसकी नियति बनती गई | ठीक ही कहते हैं ज्ञानी लोग , के नियति पर किसी का बस नहीं ..
हमें किताब अच्छी लगी | महाभारत की पुनरावृत्ति नहीं | द्रौपदी आपको उसकी महाभारत सुनाएगी | उसके दृष्टिकोण से .. किताब को पढ़िएगा जरूर | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !
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