सत्तान्तर
व्यंकटेश माड़गुलकर द्वारा लिखित
रिव्यू –
सत्तान्तर यह एक प्रसिद्ध मराठी किताब है जो अलग पृष्ठभूमि पर लिखी गई है | कहते है की बंदर मनुष्य के पूर्वज थे | लोगों को शायद बंदरों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है | प्रस्तुत किताब में जिन बंदरों की कहानी बताई गई है | वह “हनुमान लंगूर” है | यह किताब लिखने के पहले लेखक ने बहुत सारे प्राणी वैज्ञानिको के रिसर्च का अध्ययन किया |
रिसर्च के अनुसार बंदरों की सोलह जातियां होती है | “हनुमान लंगूरों” में दूध पीते बच्चों को , उन्हीं के ग्रुप के बड़े बंदरों द्वारा मार दिया जाता है | इन लंगूरों पर सबसे पहले रिसर्च “ब्रिटिश प्राकृतिक वैज्ञानिकों” ने शुरू की | जिस ग्रुप में सिर्फ बंदर थे | उन्होंने ऐसे ग्रुप पर हमला किया जिसमें बंदरिया , बच्चे , बूढ़े और किशोर बंदर थे | उस टोली के मुखिया का पराभव होता है और “सत्तान्तर” होता है |
उसी की कहानी इस किताब में है | बंदरों के जीवनशैली की सिलसिलेवार पढ़ाई “चार्ल्स मैकन” ने की | इन्होंने इस पर डिटेल रिसर्च करके एक रिपोर्ट बनाई | प्रस्तुत किताब की कहानी काल्पनिक नहीं बल्कि ऐसा सचमुच घटते हुए वैज्ञानिक लोगों ने देखा है |
जैसे एक राजा को मारकर , दूसरा राजा उसके राज्य पर अधिकार कर लेता है और उसके जनानखाने को अपना लेता है | भविष्य में राज्यों पर हक दिखानेवाले राजकुमारों को मार देता है | यही सेम चीज “हनुमान लंगूरों” की टोलियो मे भी होती है | अब किन-किन वैज्ञानिक लोगों ने बंदरों के जीवनशैली का अभ्यास किया | उसकी पूरी डिटेल आपको किताब की शुरुआत में पढ़ने को मिलेगी |
लेखक को जानवरों पर किताब लिखनी थी | पर उन्हे “पंचतंत्र” और हितोपदेश” के फॉर्मेट में कहानी को नहीं लिखना था | इसलिए उन्होंने बकायदा , बंदरों को उनके शरीर की विशेषताओ के अनुसार नाम दिए | इससे कहानी बहुत ही इंटरेस्टिंग बन गई |
प्राणी वैज्ञानिक भी जानवरों को ऐसे ही नाम देते हैं | “नेशनल जिओग्राफिक चैनल” पर तो आपने देखा ही होगा | बंदरों के हाव-भाव इंसानों के जैसे ही होते हैं | वह अलग – सा आवाज निकालकर एक दूसरे को खतरे से आगाह भी करते हैं | हमें लगता है कि बंदर शाकाहारी होते हैं पर ऐसा नहीं |
वह पंछियों के अंडे भी खाते है | यह जानकारी “रहमान” नामक वैज्ञानिक के निरीक्षण से पता चली | जब दो बंदर नायकों का युद्ध होता है तो वे जख्मी भी होते हैं | इसके निशान ,जख्मों के रूप में उनके शरीर पर होते हैं | ऐसा वैज्ञानिकों ने रिसर्च में पाया | बंदरों के साथ – साथ बाकी जंगली जानवरों की जीने के लिए जद्दोजहद भी आप को प्रस्तुत किताब मे पता चलेगी | इस अवॉर्ड विनिंग किताब के –
लेखक है – व्यंकटेश माड़गुलकर
प्रकाशक है – मेहता पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ संख्या है – 88
उपलब्ध है – अमेजॉन और किंडल पर
सारांश –
बंदरों को जब भी धोखे की सूचना लगती है | वह बड़े पेड़ों के सबसे ऊंची डाली पर जा बैठते हैं | ऐसे ही पांच बंदरों की टोली ने जंगल में उधम मचाया तो जिस टोली में बूढ़े , बच्चे और बंदरिया रहती थी | उसमें खलबली मच गई | इनमें सबसे बुजुर्ग बंदरिया “बोथरी” थी | इसने धोखे का इशारा दिया तो इस टोली का मुखिया “हुप्या” जो जबरदस्त योद्धा था | भारी डीलडौलवाला था | इसके पहले के युद्ध के घाव जिसके शरीर पर थे |
वह पेड़ से निकलकर बाहर आया | उसने अपने हाव – भावों से नई टोली के मुखिया को भगा दिया | इसका असल नाम “मुडा” था | “मुड़ा” ने अपने राज्य की सीमा तय कर रखी थी | इसी में उसका परिवार रहता था | यह राज्य उसने अपने बलबूते पर कमाया था पर उसे शांत बैठकर चलनेवाला नहीं था क्योंकि नए-नए बच्चे जन्म लेते थे |
वह बड़े होते थे जैसा कि पहले बताया | नया राजा आने के बाद नर बच्चों को मार डालता था या फिर उन्हे ग्रुप से हकाल दिया जाता था | फिर यह लावारिस बच्चे एक साथ रहकर बड़े होते थे और बूढ़े राजा पर हमला कर अपना राज्य फिर से वापस पाने की कोशिश करते थे | उनका यह प्रयास कभी सफल होता था | कभी नहीं | पर यह लड़ाई निरंतर जारी रहती थी |
इसलिए “मुड़ा” को भी चौकन्ना रहना था | इस युद्ध के अलावा उन्हें भयानक जंगली जानवरों से , आकाश में उड़नेवाले बाज और गिद्धों से भी खुद की रक्षा करनी थी | आज “मुड़ा” की फैमिली में पूरे 16 लोग थे | सात बंदरिया , तीन छोटे नर बच्चे , चार बच्चे और दो युवती बंदरिया थी | “मुड़ा” की पटरानी “तरणी” थी | यह गर्भवती थी | इसके बाद नंबर लगता था “लांडी , उनाड़ी , थोटी , काणी , लाजरी , बोकांडी इसका |
यह सारी बंदरियाँ एक दूसरे से हमेशा लड़ते रहती थी जैसे एक ही राजा की बहुत सारी पत्नियाँ .. | “मुड़ा” के परिवार के हर एक सदस्य का स्वभाव कैसा था ? यह आप किताब में ही पढ़ लीजिएगा | “बोथरी” का जंगली कुत्ते कैसे शिकार करते हैं ? इसकी हृदयद्रावक कहानी भी जरूर पढ़िएगा |
ऐसा ही और एक ग्रुप था जिसका नायक “लालबुडया” बंदर था | “लालबुडया और मुड़ा” दोनों पड़ोसी थे | दोनों ग्रुप मिलजुलकर रहते थे | “लालबुडया” के पत्नियों के नाम थे -” झिप्री , जाड़ी , भूली ” | एक दिन “लालबुडया” अचानक गायब हो जाता है | एक दो दिन दोनों ग्रुप उसकी राह देखते हैं |
अब “लालबुडया” के परिवार की जिम्मेदारी उसके पटरानी की थी पर टोली के संरक्षण के लिए उन्हें एक योद्धा बंदर चाहिए था | “मुड़ा” इस टोली का भी राजा बनना चाहता था पर उसके परिवार की औरतें इसके लिए राजी नहीं थी क्योंकि उनकी आबादी बढ़ने से सर्वाइवल में प्रॉब्लम होती | खाने – पीने की किल्लत होती | सबसे बड़ी बात सुरक्षा की थी |
अब 6 नर बंदरोवाली टोली ने इस स्थिति का फायदा उठाना चाहा | सबसे पहले “मोगा” ने लालबुडया की टोली पर कब्जा जमाना चाहा पर “मुड़ा” ने उसका पीछा करके उसे भगा दिया | “मोगा” भी भाग गया क्योंकि “मुड़ा” के मुकाबले वह और उसके पाँच साथी अपरिपक्व थे |
“मोगा” टोली पर कब्जा करने के लिए अपने साथियों को नहीं लेकर जाना चाहता था | नहीं तो वह लोग बंदरियों को देखके आपस मे ही लड़ पड़ते पर “मोगा” ने सोचा “मुड़ा” जैसे योद्धा से टक्कर लेनी है और सत्ता हथियानी है तो उसे इन लोगों की मदद लेनी ही होगी |
यह अकेले का काम तो है नहीं | अब फिर इन छह लोगों ने दोनों टोलियों पर हमला बोल दिया | “मोगा” ने “मुड़ा” को हराया | “मुड़ा” जख्मी होकर जंगल के अंदर भाग गया | “मुड़ा” के टोली पर “मोगा” का कब्जा हो गया | वैसे ही “लालबुडया” के टोली पर उसके दोस्तों ने कब्जा किया | इन पांचों मे से भी जो बलवान निकला | वह इस टोली का राजा हुआ | बाकी चारों को उसने भगा दिया |
जब भी सत्तान्तर होता है | भयंकर विनाश होता है | इसका सामना दोनों टोलियों ने किया | “मोगा” ने “मुड़ा” के सारे वारिस कहेलानेवाले बच्चों को मार दिया | अपने बच्चे को बचाने के चक्कर मे “थोटी” जंगल मे दूर तक भाग गई | पर अकेले कब तक बच पाती | इसलिए वह डरते – डरते वापस आई और “लालबुडया” के परिवार मे आश्रय लिया | इस टोली के राजा ने भी उसे कुछ नहीं कहा | आखिर उसके राज्य का वारिस “थोटी” का बच्चा नहीं था |
कल के लावारिस आज “सत्ताधारी” हो गए थे | अब यह अच्छे पड़ोसी बन के रहते है की एक दूसरे को खाने के लिए दौड़ते है | यह तय होना बाकी था | “मोगा” ने राज्य संभालने के बाद अपना पहला भूपकार किया | अपना अस्तित्व घोषित किया | उसकी दखल ली गई थी | सत्तान्तर जब चल रहा था तब “तरणी” गर्भवती थी |
वह “मुड़ा” की पटरानी थी | अब वह माँ बन गई थी | उसे बेटा हुआ | यह “मुड़ा” का बेटा था | यह राज्य उसके पिताजी का था | यह अगर जिंदा बचा तो अगले 6 वर्षों में बड़ा होकर “मोगा” को हरानेवाला था |
फिर से “सत्तान्तर” होनेवाला था ….
क्या “मुड़ा” और “लालबुडया” वापस आते है ? वापस आकर क्या अपना अधिकार पाते है ? क्यों चला गया लालबुडया अपनी टोली को छोड़कर ? “मोगा” , “मुड़ा” की ही टोली पर क्यों कब्जा जमाना चाहता है ? ऐसे ही सवालों के जवाब पाने के लिए पढिए – “सत्तान्तर” | “साहित्य अकादमी पुरस्कार” से सम्मानित किताब ….
जरूर पढिए | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते है और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ..
धन्यवाद !!