ययाति
वि. स. खांडेकर
रिव्यू – किताब विष्णु सखाराम खांडेकर द्वारा लिखित है जिन्हे हम वि. स. खांडेकर के नाम से भी जानते है | उन्हे भारतीय ज्ञानपीठ का साहित्य पुरस्कार मिला है | वह मराठी लेखकों मे अग्रगणी रहे है | ययाति उनकी बेहतरीन रचनाओ मे से एक है | प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – विष्णु सखाराम खांडेकर
प्रकाशक है – मेहता पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ संख्या – 432
उपलब्ध – अमेजन और किन्डल पर
हमे हमेशा से यह किताब पढ़ने की इच्छा थी | जब भी हम किसी दुकान जाते | इस किताब को जरूर ढूंढते | आखिर हमे यह ई. बुक के तौर पर मिल ही गई | यह किताब हमे बहुत अच्छी लगी | मानव जो मृत्यु के सामने बेबस है | वह इस धरती पर उपलब्ध सारी सुख – सुविधाओं का उपयोग मरते दम तक करना चाहता है |
वह मृत्यु या बुढ़ापा पास आनेपर भी अपनी यह वृत्ती छोड़ना नहीं चाहता | मनुष्य के इसी विचार पर आधारित यह किताब है | धरती पर अगर “संजीवनी विद्या” थी जिससे मरे हुए व्यक्ति को जीवित कर सकते थे तो वह विद्या अभी कहाँ है ?
इस प्रश्न का उत्तर भी आपको इस किताब में मिलेगा | हर व्यक्ति जैसे अलग-अलग होता है वैसे ही उसके विचार भी अलग होते हैं | एक ही स्थिति में दो व्यक्तियों के विचार अलग-अलग हो सकते हैं | इन्हीं विचारों की विविधता के कारण और अपने गुस्से पर काबू न पाने के कारण शुक्राचार्य ने वर्षों की कड़ी तपस्या से मिली “संजीवनी विद्या” खो दी | कैसे ? यह हम आपको सारांश में बताएंगे |
जैसे कि हमने बताया कि दो लोग एक ही स्थिति को अलग-अलग दृष्टिकोण से देख सकते हैं | वैसे ही अलग -अलग लेखको का महाभारत की इन कहानियों को देखने का नजरिया भिन्न हो सकता है | लेखक ने उनके नजरिए से कहानी को और पात्रो को प्रस्तुत किया है | चलिए तो देखते हैं , पांडवों और कौरवों के पूर्वजों के बारे में बताती हुई इस किताब का सारांश .. उम्मीद है आपको पसंद आए |
सारांश –
“ययाति” यह “कौरव और पांडवों” का पूर्वज है जिसके पिता “नहुष’ है | “नहुष” ने “इंद्र” को हराकर “पृथ्वी और स्वर्ग” पर अपना दरारा कायम किया | पर जितने के बाद जैसे लोग अभिमान में आ जाते हैं | वह भी आ गया और “इंद्राणी”जो की इंद्र की पत्नी है | उसे पाने की लालच में अपना सब कुछ गवां बैठा | हुआ यू की “इंद्राणी” ने शर्त रखी कि जब “नहुष महाराज” पूरे संसार के रत्नों से सजी डोली में बैठकर ऋषियों के कंधे पर सवार होकर उस तक पहुंचेंगे , तो वह उसे स्वीकार कर लेगी | नहुष ने वैसा ही किया पर ऋषियों की चाल धीमी थी |
उसे लगा वह कब “इंद्राणी” के पास पहुंचेगा | गुस्से में उसने अपने सामनेवाले ऋषि के सर पर लात मारी | वह “अगस्त्य ऋषि” निकले | उन्होंने नहुष को श्राप दिया कि तुम और तुम्हारी संतान कभी सुखी नहीं रहेगी | बस ! तब से राजा की बुद्धि जगह पर आ गई | मरते वक्त उसकी बहुत सी इच्छाए अधूरी रह गई | वह अपनी विजय मुद्रा देख नहीं पाया जिसपर उसका नाम लिखा हुआ था जो उसने “इंद्रविजय” के बाद प्राप्त की थी |
इतने बड़े प्रतापी राजा को मृत्यु के सामने विवश देखकर “ययाति” का मन बड़ा दुखी हुआ | मृत्यु का दुख भुलाने के लिए उसे हमेशा अलग-अलग लड़कियों का सहारा लेना पड़ा | ययाति के जीवन में आनेवाली लड़कियों में से पहली लड़की है “अलका” जिसके बाल सुनहरे थे |
वह उस दासी की लड़की थी जो बचपन में ययाति की आया थी | ययाति की माँ के बदले उसी ने उसको पूरी तरह संभाला था क्योंकि ययाति की माँ एक रानी थी और रानी को प्रायः सौन्दर्यवती रहना पड़ता था ताकि वह राजा को अपने वश में रख सके | इससे उसका राजमहल में दबदबा बना रहता था | राज परिवारों के बच्चों को अक्सर ऐसी आया ही संभाला करती |
“नहुष” की मृत्यु हुई तो “ययाति” सिर्फ सोलह साल का था | तब तक वह राजा बनने के लिए पूरी तरह तैयार था | 16 साल की उम्र में उसकी मुलाकात “देवगुरु बृहस्पति” के बेटे “कच” से होती है | “कच” एक शांत , सुस्वभावी और होशियार लड़का है जो हमेशा दुनिया में शांति चाहता है | ऐसा ही एक यज्ञ वह कर रहा था जिसमें वह प्रमुख ऋषि था | राक्षसों से यज्ञ को बचाने के लिए ययाति वहाँ गया |
यज्ञ के समय इन दोनों में मित्रता हो जाती है | बाद में पता चलता है कि देव और दानवों का युद्ध शुरू हो चुका है | जो थमने का नाम ही नहीं ले रहा | क्यों ? क्योंकि दैत्य गुरु शुक्राचार्य के पास “मृतसंजीवनी विद्या” है जिससे वह मरे हुए दैत्यों को पुनः जीवित कर देते हैं | इसलिए देवताओं को लगता है की उनकी हार निश्चित है |
इसलिए “कच” ने तय किया की वह “दैत्यलोक” जाकर , “शुक्राचार्य” का शिष्य बनकर “संजीवनी विद्या” हासिल करेगा | वैसा करने में वह सफल भी हो जाता है पर इस दौरान “शुक्राचार्य” की बेटी “देवयानी” को कच से प्यार हो जाता है | इस प्रेम के चलते वह “कच” को तीन बार अपने पिताजी द्वारा जीवित करवाती है |
जब राक्षस तीसरी बार कच को मारकर , उसकी राख मदिरा में मिला देते हैं और शुक्राचार्य को पीला देते है तो राख शुक्राचार्य के हृदय तक पहुंच जाती है | इससे कच को संजीवनी विद्या प्राप्त हो जाती है | देवयानी फिर से अपने पिता को अनुरोध करती है की वह कच को जीवित करें | शुक्राचार्य अपनी बेटी को बहुत प्यार करते हैं | इसी के चलते वह कच को फिर से जीवित करते हैं लेकिन इस बार कच ,शुक्राचार्य के पेट में है और पेट फाड़कर कच जब बाहर निकलेगा तो शुक्राचार्य मारे जाएंगे |
ऐसा ही होता है | इस बार “कच”, “संजीवनी विद्या” से शुक्राचार्य को जीवित करता है | अब कहानी में ट्विस्ट यह है कि संजीवनी विद्या , कच के पास है और शुक्राचार्य अपनी विद्या खो चुके हैं | हमने “एपिक चैनल” पर एक कार्यक्रम मे देखा था | उसमें जासूस लोगों की कहानीयां दिखाते थे | उसके अनुसार कहते हैं की “कच” पृथ्वी का “पहला जासूस” था जो राक्षसों के राज्य में जासूसी करने गया था |
कच जिस जगह जाता है वह वर्तमान में “सीरिया” नाम से जाना जाता है | इस बात का जिक्र आचार्य चतुरसेन द्वारा लिखित “वयं रक्षामः ” इस किताब में मिलता है | इसका रिव्यू भी हमारी वेबसाईट ‘सारांश बुक ब्लॉग” पर उपलब्ध है | इसे भी आप एक बार जरूर पढे |
जब कच जाने के लिए निकलता है तब देवयानी अपने प्रेम का वास्ता देकर उसे रोकना चाहती है | कच उसके प्रेम को अस्वीकार कर देता है | यह कहकर कि वह अब उसका प्रेमी नहीं बल्कि भाई है क्योंकि उसने शुक्राचार्य के पेट से जन्म लिया है | देवयानी इन सारे मिथकों में नहीं पढ़ना चाहती | यही वह प्रसंग है जहां आपको दो लोगों के विचारों में भिन्नता देखने को मिलेगी |
“देवयानी” गुस्से में आकर “कच” को श्राप देती है की उसकी यह विद्या सफल नहीं होगी | कच भी देवयानी को श्राप देता है की उसकी शादी ऋषिपुत्र के साथ नहीं होगी क्योंकि वह एक ऋषिकन्या है | तब के लोग आज के जैसे ओपन माइंडेड नहीं थे | वर्ण – व्यवस्था बड़ी कड़ी थी | अपने ही वर्ण में विवाह होना मान – सम्मान की बात थी | किताब का एक प्रसंग आपको बता रहे हैं जो कहानी में सम्मिलित हर एक पात्रों की जिंदगी बदल देता है |
वह इस प्रकार है की , “शुक्राचार्य” का आश्रम “राक्षसराज वृषपर्वा” के राजमहल में ही है | इसलिए राजकुमारी “शर्मिष्ठा” जो की राक्षसराज वृषपर्वा की बेटी है और देवयानी दोनों साथ-साथ पली बढ़ी है | दोनों का 36 का आंकड़ा है | जब दोनों जंगल मे जलक्रीड़ा करने जाती है तो “शर्मिष्ठा” गलती से “देवयानी” के कपड़े पहन लेती है जो उसे “कच” ने दिए थे |
इस बात पर दोनों का जमकर झगड़ा होता है | “देवयानी” गुस्से में जंगल के अंदर दौड़ते हुए जाती है | “शर्मिष्ठा” उसके पीछे दौड़ती है | “देवयानी” कुए पर जाकर खड़ी होती है | “शर्मिष्ठा” उसे बचाना चाहती है लेकिन “देवयानी” कुएं में गिर जाती है | रात तक उसी कुएं में रहती है | भाग्य के चलते “ययाति” वहां आता है | जब वह देवयानी को कुएं से बाहर निकलता है तो उसके सौंदर्य पर मोहित हो जाता है |
कुएं से बाहर निकालने के लिए “ययाति” को “देवयानी” का हाथ पकड़ना पड़ता है जिससे अब उसे देवयानी संग शादी करनी पड़ेगी | देवयानी उससे शादी के लिए पूछती है तो वह हाँ कर देता है | अब तक वहां पर “शुक्राचार्य और राक्षसराज वृषपर्वा” आ जाते है |
देवयानी उन्हें सब कुछ बता देती है | शुक्राचार्य गुस्सा हो जाते हैं | वृषपर्वा को लगता है कि बिना शुक्राचार्य के वह लोग अनाथ हो जाएंगे | इसलिए वह उनके पैर पड़कर रोकता है और साथ में यह भी कहता है कि वह शर्मिष्ठा को जो देवयानी कहे वह सजा देगा | देवयानी शर्मिष्ठा को जीवनभर याद रखनेवाली सजा देना चाहती है | इसलिए वह उसे जीवनभर के लिए अपनी दासी बना लेती है और अपने साथ “हस्तिनापुर” लेकर जाती है |
शुक्राचार्य नई सिद्धि प्राप्ति के लिए वन चले जाते हैं | ययाति हस्तिनापुर का राजा है | देवयानी हस्तिनापुर की रानी है | जब शर्मिष्ठा को देवयानी के कुविचार के बारे में पता चलता है तो वह बहुत दुखी होती है | राजकुमारी होने के कारण उसे दासीवाले कामों की आदत नहीं |
देवयानी उसे शादी की इजाजत देगी तो ,उसकी शादी होगी | नहीं तो उसको अपने सारे सपने भुलाने होंगे | एक लड़की के लिए यह सब करना बड़ा मुश्किल होता है | उसके सारे सपने अब स्वाहा होनेवाले थे | तो दूसरी तरफ अगर शुक्राचार्य उसके पिता के राज्य को छोड़कर जाते हैं तो उनका राज्य बर्बाद हो जाएगा |
इस पर वह अपने सारे सपने भुलाकर , अपने पिता के राज्य को बचाने का निर्णय लेती है | शर्मिष्ठा , हस्तिनापुर चली जाती है | ययाति की माँ को शर्मिष्ठा ज्यादा पसंद आती है क्योंकि वह उसी के जैसी क्षत्रिय है और देवयानी एक ऋषिकन्या है |
ययाति को एक भाई भी है जिसका नाम “यति” है | बचपन में वह उसके पिता को मिले श्राप के बारे में सुनता है और सुख की तलाश में जंगल की ओर भाग जाता है | “यति” अपना बिस्तर कांटों की लताओं का बनाता है | खाने के लिए कड़वे फल इस्तेमाल करता है क्योंकि उसे लगता है की “मीठी चीजे” और “स्त्री” इस दुनिया में होनी ही नहीं चाहिए जिसके कारण उसके पिता को श्राप मिला था |
इसलिए वह अभी इसी चक्कर में है कि स्त्री को पुरुष में कैसे बदला जाए ? इसी कारण वह पागल भी हो जाता है | इस स्थिति में वह “कच” के साथ “ययाति और देवयानी” के सामने दरबार में आता है | वह वहां से भी भाग जाता है | “देवयानी” एक घमंडी , स्वार्थी पत्नी के रूप में सामने आती है जो है तो अप्सरा जैसी सुंदर .. पर मन से उतनी ही काली | अपने पति के मन से कभी जुड़ ही नहीं पाती | इसलिए “ययाति और शर्मिष्ठा” गंधर्व विवाह कर लेते हैं |
देवयानी को एक पुत्र है और शर्मिष्ठा को भी .. | जब देवयानी को यह पता चलता है तो वह शर्मिष्ठा और उसके बेटे को तयखाने में बंद कर देती है | यह वही तयखाना है जिसमे ययाति के बचपन की सहेली “अलका” को जहर देकर मारा गया था | इसकी भी एक अलग कहानी है | आप किताब पढ़ेंगे तो आपको पता ही चल जाएगा |
उसे जब यह पता चलता है तो वह डर जाता है | “ययाति” उनको वहां से बाहर निकालता है | उसका एक बेस्ट फ्रेंड है “माधव” | “माधव”, शर्मिष्ठा और उसके बेटे को रथ मे बिठाकर नगर के बाहर छोड़ देता है | तब भयंकर बारिश होती रहती है | बीजलियाँ कड़कते रहती है | “माधव” बीमार पड़ जाता है | उससे “वातरोग” जकड़ लेता है |
“माधव” की मृत्यु हो जाती है | “माधव” की होनेवाली पत्नी “माधवी” भी तालाब मे कूदकर अपनी जान दे देती है | इसकी मौत का जिम्मेदार भी “ययाति” ही है | “माधवी” जिसने कभी “माधव” के साथ मिलकर सपने देखे थे की शादी के बाद जब महाराज उसके बड़े देवर बनकर उनके घर खाना खाने आएंगे तो वह खाने में क्या-क्या बनाएगी ? और तारका .. “तारका” को तो “ययाति” ने तब से देखा रहता है जब से वह बोबडे बोल बोला करती थी |
इस “तारका” की मृत्यु का जिम्मेदार भी “ययाति” ही है | यह सब पढ़ कर “ययाति” हमें एक खलनायक जैसा ही प्रतीत हुआ | यह सब “मंदार और मुकुलीका” कर रहे हैं | “मंदार” वही आदमी है जो “अलका” की मृत्यु के लिए जिम्मेदार है | अभी वह ढोंगी साधु बनकर आश्रम चलाता है | “मुकुलिका” ययाति की ही दासी है जो बीस साल बाद वापस आई है | ययाति की माँ ने उसे देश निकाला दिया था |
“मंदार और मुकुलीका” दोनों मिलकर लोगों को फँसाते हैं | ययाति , देवयानी से दूर होकर मंदार और मुकुलिका के भरोसे विलासपूर्ण जीवन जीता रहता है | इतने सालों के बाद “शुक्राचार्य” भगवान शिव से वरदान पाकर अपनी बेटी से मिलने “हस्तिनापुर” आते हैं | “ययाति” को वहाँ न पाकर उसके बारे में बार-बार पूछते हैं तो “देवयानी” उनको सब कुछ बता देती है |
“शुक्राचार्य” गुस्से से आग बबूला हो जाते हैं | वह उससे मिलने “ययाति” के महल में जाते हैं | उनकी आवाज सुनकर ययाति के पैर डर के मारे थर – थर कांपने लगते हैं क्योंकि वह श्राप देने के लिए प्रसिद्ध है और ऐसा ही होता है | “शुक्राचार्य”, “ययाति” को तुरंत बुड्ढा होने का श्राप देकर वहां से हमेशा के लिए चले जाते हैं |
जब तक “शुक्राचार्य” तपस्या करते हैं तब तक कच भी तपस्या करता है | शुक्राचार्य की गलती को सुधारने के लिए .. क्योंकि उसे पता है की शुक्राचार्य तपस्या कर रहे हैं तो कोई नई विद्या पाकर ही रहेंगे | वह विद्या कोई भी हो सकती है | उससे इस संसार में न जाने क्या उत्पाद मैच जाएगा ? “कच” एक विवेकशील व्यक्ति है | इसलिए “शुक्राचार्य” की बिगाड़ी हुई स्थिति को ठीक करने के लिए वह उससे भी कड़ी तपस्या करते हैं |
अब आपको किताब पढ़कर यह जानना है की क्या “कच” अपने मित्र “ययाति” की बिगड़ी हुई परिस्थितियों को ठीक करता है या “देवयानी” से रुष्ट हो , वहां से चला जाता है | वक्त बीतते जाता है और ययाति , देवयानी बुढ़ापे की ओर अग्रसर होते हैं | “देवयानी” का बेटा बड़ा हो जाता है तो क्या “शर्मिष्ठा” का बेटा भी बड़ा हो गया होगा ? या फिर वह दोनों माँ – बेटे हालातो का शिकार हुए होंगे |
पढ़कर जरूर जानिए | ययाति का जीवन प्रवाह ..
“पुरू” वही है जिससे हस्तिनापुर का वंश आगे बढ़ा लेकिन यह “पुरू” है कौन ? देवयानी पुत्र “यदु” से यदुवंश शुरू हुआ | जहां आगे जाकर देवकीनंदन “श्रीकृष्णजी” का जन्म हुआ | इसमें बहुत सारे पात्रों का समावेश है और हर एक की अलग कहानी है | सब की कहानी जानने के लिए किताब जरूर पढ़ें |
कहानी आपको कहीं जाने नहीं देगी | जरूर पढिए | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते है और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ..
धन्यवाद !!