गावकड़च्या गोष्टी
व्यंकटेश माड़गुलकर द्वारा लिखित
रिव्यू –
लेखक एक उत्कृष्ट मराठी साहित्यकार है | वह अपने लेखन से गांव का वास्तविक दर्शन कराते हैं | वहां के पात्र देहाती भाषा बोलते हुए दिखाई देते है | दूर से , हम शहरवालों को गाँव आकर्षित करता है | वहां के लोग हमें भोले – भाले और सीधे – सरल दिखाई देते हैं लेकिन गांव के अंदर भारी पॉलिटिक्स चलती है |
वहां एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या और जलन है | मन में चोरी और धोखाधड़ी का भाव है | वहाँ गुंडागर्दी भी है तो ईगो भी बड़ा मसला है | प्रस्तुत किताब भी एक ही गांव के अलग-अलग व्यक्तियों की कहानी बताती है | हर एक के जीवन में अलग घटनाएं घटती है पर सबका रिजल्ट सिर्फ हनुमानजी जिन्हें मराठी में “मारुति” कहते हैं | उनके मंदिर में लगता है |
गांव में जाति – व्यवस्था का विशेषता से दर्शन होता है | गांव के व्यक्ति का परिचय पहले उसके जाति और उसके बाद उसके एक व्यक्ति के तौर पर होता है | ऐसी शोचनिय जाति व्यवस्था को लेखक बड़ी ही करीबी से दिखाते हैं क्योंकि लेखक ने यह काल देखा है | इसलिए उन्होंने अपनी हर किताब में इसी सामाजिक ढांचे का उपयोग किया है |
उनका जन्म ब्रिटिश काल में हुआ और निधन स्वतंत्रता के बाद | तो उनके जीवन काल में हुई प्रगति को लेकर वह काफी खुश रहे होंगे | उनकी लिखी इस किताब के गांव में एकता भी नहीं है | किसी भी बात को , पर्सनल और जातीय झगड़ा बनाकर लड़ पड़ते हैं | गांव में जादू – टोना , भूत – प्रेत इन पर भी विश्वास किया जाता है |
इसीलिए इस पर भी आधारित कहानीयां आपको यहां मिलेगी | जैसा कि हमने बताया था लेखक की और जानकारी आप को उपलब्ध कराएंगे | तो आईए जानते है – लेखक ने अपने लेखन की शुरुआत कविताओ से की |
इसमें भी उनको समाधान नहीं मिला | फिर उन्होंने पत्रकारिता की | इसमें भी उनको समाधान नहीं मिला | जब उन्होंने कहानी लिखना आरंभ की | तब उनको लगा कि उन्हें यही काम करना चाहिए | उनकी कहानी अलग-अलग साप्ताहिक और मासिक पत्रिकाओं में छपने लगी और प्रसिद्ध भी हुई |
प्रस्तुत किताब ऐसा ही एक कथा संग्रह है | सारी कहानियाँ ग्रामीण परिवेश और गाँव के छोटे – बड़े संघर्षों पर आधारित है | लेखक ने ग्रामीण जीवन की अलग – अलग कहानियों को विभिन्न पात्रो के माध्यम से दिखाया है | इसीलिए कहानी मे एक अलग विषय ,एक अलग समस्या प्रस्तुत की गई है | लेखक की लिखी कहानियां आप को सोचने और महसुस करने पर मजबूर करती है |
यह प्रसिद्ध मराठी किताब होने के साथ – साथ बेस्ट सेलर भी है | किताब ग्रामीण महाराष्ट्र की जीवनशैली और संस्कृति का सजीव चित्रण प्रस्तुत करती है |
उनके द्वारा लिखित “वावटल” इसका भी अंग्रेजी में अनुवाद हो चुका है | किताब की हर एक कहानी में एक न एक मनोभाव के दर्शन होते हैं | किताब में पूरी सोलह कथाएं है जिनके नाम क्रमशः बोजा ,सोन्याची माड़ी , मारुतराया , गुप्त धन , भूताचा पदर , करणी इत्यादि है | प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – व्यंकटेश माड़गुलकर
प्रकाशक है – मेहता पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ संख्या – 144
उपलब्ध – अमेज़न और किन्डल पर
सारांश –
गांव में रहनेवाला “नेवरा” कर्ज के निचे दबा जा रहा था क्योंकि उसकी माँ और पत्नी अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च करती थी | ऐसे में गांव का ही एक आदमी जो शहर रहकर आया है | गांववालों के मुकाबले ज्यादा होशियार है | वह है “गणा चलपत्या” | वह नेवरा को सलाह देता है की जमीन का एक टुकड़ा बेचकर वह अपना कर्ज उतार ले !
अपने पूर्वजों द्वारा संचित जमीन को बेचना नेवरा को गवारा नहीं पर पत्नी और माँ के व्यवहार से दुखी वह जमीन बेचने के लिए तैयार हो जाता है | गणा चलपत्या जानबूझकर उसे जमीन बेचने के लिए उकसाता है ताकि वह उसकी जमीन खरीद सके | इसके लिए वह नेवरा को 100 रुपये भी देता है |
जैसे ही यह बात नेवरा की माँ और पत्नी को पता चलती है | वह घर में तांडव कर देती है | बेचारा नेवरा , दोनों के सामने हार जाता है | वह अपना सौदा कैंसिल करना चाहता है पर गणा चलपत्या ऐसा कैसे होने दे ?
आखिर कर्जे में डूबे नेवरा को और 500 रुपये गणा चलपत्या को देने पड़ते हैं | वह और कर्ज में डूब जाता है | बेचारा , अब ज्यादा मेहनत करने के लिए खेतों पर ही रहने लगा है लेकिन उसकी इस हालत से उसकी माँ और पत्नी को कोई लेना देना नहीं | वह अपनी पहले जैसी जिंदगी खुशी से जी रही है |
दूसरी है – “सोन्याची माड़ी” इस कहानी में “ईर्ष्या भाव” है | इसमें “सोन्या” गाँव का ही एक व्यक्ति है | कभी पूरी तरह बर्बाद हुए कुलकर्णी लोगों ने फिर से नए महल बनवाए | अपनी जिंदगी फिर से खुशहाल बनाई |
इसलिए सोन्या में बहुत ईर्ष्या भर गई | अब वह भी महल ना सही , दो मंजिला मकान तो बनवाना ही चाहता है ताकि कुलकर्णियों की बराबरी कर सके ! घर बनाने के लिए वह कर्ज लेता है | कारागीर और कामगारों पर जरूरत से ज्यादा पैसा खर्च करता है फिर भी उसका घर नहीं बनता |
आखिर और कर्जा लेकर वह घर का निर्माण पूरा करता ही है | इतनी जिद से पूरे किए गए मकान को बेचने भी निकालता है | क्योंकि घर बनाने के लिए लिया गया कर्जा , घर बेचकर ही तो चुकाना है |
“झोंबी” और “कुत्री” कथाओं में एक कॉमन पात्र है – “बाबू म्हात्रे ” | वह एक प्रकार से गांव का गुंडा है | उसके खिलाफ गए किसी को वह बख्शता नहीं | उसने अपने बेटे को खिला-पिलाकर पहलवान बना दिया है | वह सोचता है उसके बेटे को कोई नहीं हरा सकता .. पर गांव में रहनेवाले “मोमिन” का दामाद उसे हरा देता है |
ऊपर से गाली भी देता है | इस बात को लेकर गांव में बहुत हल्ला होता है | अब यह बात बाबू म्हात्रे कैसे सहन कर सकता है ? मोमिन के दो बेटे मुंबई से गांव में आए थे | उनमें से एक बेटे को बाबू म्हात्रे ने बहुत मारा | इसके पहले मोमिन ने अपने जवाई को गांव के पीछेवाले रास्ते से सुरक्षित भेज दिया |
अब बाबू म्हात्रे के डर से मोमिन और उसके बेटे अपना घर , खेत -खलिहान बेचकर मुंबई जाना चाहते हैं पर बाबू के डर से गांव का कोई भी व्यक्ति उनकी संपत्ति खरीदने को तैयार नहीं | बेचारा मोमिन अपनी जान बचाकर बेटों के साथ मुंबई चला जाता है | उसकी सारी जायदाद पर बाबू म्हात्रे कब्जा कर लेता है |
दूसरी एक कहानी में , गांव का ही एक लड़का रात के अंधेरे में कुत्ते को मारता है क्योंकि वह उसकी कुत्ती को परेशान कर रहा था और उसके घर में भी घुसने की कोशिश कर रहा था | सुबह उसको पता चला की , यह बाबू म्हात्रे का कुत्ता है | तो .. वह बेहद डर गया |
बाबू के डर से वह जंगल में बहुत दूर जानवरों को चराने के लिए लेकर गया | उसके साथ उसकी प्यारी कुत्ती भी थी | जब तक वह घर वापस आएगा तब तक उसकी माँ बाबू म्हात्रे से बात करने का आश्वासन देती है परंतु होता इसका उल्टा है |
बाबू म्हात्रे ही जंगल मे उसके पास पहुँच जाता है | वह उसकी प्यारी कुत्ती को बड़े प्यार से पुचकारता है | उसके बाद वह बड़े ही विभत्स तरीके से कुत्ती को मार देता है | यह देखकर वह लड़का डर के मारे वहां से भाग जाता है | वह कुत्ते के बदले कुत्ती की जान लेता है |
बाबू अपने इस कृत्य से लोगों के मन में अपना डर कायम रखने में कामयाब होता है | “करणी” और “भुताचा पदर” यह भूत – प्रेत , जादू – टोना विषयों पर आधारित कहानीयां है |
“मारुतराया” कहानी में – गांव में आए बंदर को हनुमानजी का अवतार मानकर अनेक प्रकार का खाना उसे दिया जाता है | वह खाना – खाने के बहाने लोगों के हाथों को जख्मी कर देता है | अब गांव के युवक उसका पीछा करके मार देते हैं | तो गांव के बुजुर्ग उसकी समाधि बनाकर पूजा करते हैं |
उनकी देखा- देखी अब दूसरे आने – जानेवाले लोग भी उसकी पूजा करने लगते हैं | अब यह दो जनरेशन की सोच का अंतर है या फिर कोई मानसिक विकृति ..की पहले पाप करो , क्रूरता दिखाओ | बाद में उसी बात को लेकर दया दिखाओ ! आपको क्या लगता है ? खुद ही पढ़ कर सोचिए |
हमें सबसे अच्छी कहानी “न्याय” लगी जिसमें “सता” नाम के व्यक्ति के खेत में कोई अपनी गाय चराकर चला जाता है | इसकी शिकायत लेकर सता , “नामज्या” के पास आता है क्योंकि गांव की और खेतों के रखवाली करना उसका काम है |
वह अपनी सूझबूझ से असली गुनहगार का पता लगाता है | कैसे ? सबसे पहले तो वह खेतों में जाता है | वहां उसे सिर्फ गाय के पैरों के निशान मिलते हैं | इसका मतलब की गाय का मालिक उसके साथ नहीं था | उसने खेतों के बाहर रहकर ही गाय को आवाज दी | अब आवाज देने पर अपने मालिक के पास आनेवाली गाय सिर्फ हरया के पास है |
नामज्या को तहकीकात में खेतों के बाहर चप्पलों के निशान भी मिलते हैं | वह चप्पलों के निशान और गाय के मुंह से गिरे हुए ज्वार के दानो का पीछा करते हुए हरया के घर तक पहुंचता है | इन सारे सबूतो के आधार पर हरया को गांव के चौपाल में बुलाया जाता है |
अब आप पढ़कर जानिए की “हरया” अपना गुनाह कबूल करता है या नहीं ? गांववाले ऐसा कौनसा न्याय करते हैं जिससे सब खुश हो जाते हैं | गाँव के वास्तविक रंग दिखाती इस किताब को जरूर पढिए | किताब आप के दिल को छूएगी |
तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ..
धन्यवाद !!
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