ASHADH KA EK DIN BOOK REVIEW SUMMARY

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आषाढ़ का एक दिन 
मोहन राकेश द्वारा लिखित

रिव्यू –
“आषाढ़ का एक दिन ” मोहन राकेश द्वारा लिखित प्रसिद्ध कवि कालिदास के जीवन का किस्सा है | तब का जब वह प्रसिद्ध नहीं थे | यह उनकी और उनकी प्रेमिका मल्लिका की कहानी है | उनके काव्यो की नायिका हमेशा मल्लिका ही रही |
हिंदी नाटकों की यात्रा में आषाढ़ का दिन एक महत्वपूर्ण पड़ाव है | नाटक में तीन अंक है | हर अंक में बीते हुए वक्त के साथ कुछ बदलाव बताए हैं | इस प्रकार बीते हुए वक्त को नाटक के दृश्य में कुछ बड़ी रोचकता के साथ प्रस्तुत किया गया है | प्रस्तुत नाटक में कालिदास और मल्लिका के साथ “विलोम” भी एक पात्र है जिसे हम नाटक का खलनायक कहे सकते हैं |
यह पात्र लेखक “मोहन राकेश” की एक उत्कृष्ट रचना है क्योंकि इसके बिना नाटक अधूरा रह जाता या फिर नाटक में वह आनंद नहीं होता जो विलोम के होने से है |
यह कालिदास से भी अधिक विकसित पात्र है | नाटक में मल्लिका की मां अंबिका और कालिदास का मामा “मातुल” है | दोनों ही बुजुर्ग पात्र है | यह दोनों नाटक के दो तरुण पात्रों के अभिभावक है | दोनों ही अपने-अपने बच्चों से निराश है फिर भी दोनों एक दूसरे से विपरीत है |
यह उनके स्वभाव , व्यवहार , बोलचाल , भाषा , संस्कारो मे दिखाई देता है | ऐसी ही विरुद्धता मल्लिका और प्रियंगुमंजिरी के बीच में दिखाई देती है | इसी तरह रंगिणी – संगिनी और अनुस्वार – अनुनासिक इन दो जोड़ियां द्वारा नाटक में हास्य रंग जोड़ा गया है |
“आषाढ़ का एक दिन” पिछले कई वर्षों में देश के अनेक भाषाओं में बहुत बार खेला गया है | अभी भी उसका आकर्षण बरकरार है | शायद यह हिंदी का पहला यथार्थवादी नाटक है जिसमें बाहर के परिवेश के अती तामझाम पर ध्यान नहीं दिया गया बल्कि कहानी के मुख्य गाभा को प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने की कोशिश की गई |
लेखक ने नाटक के भाव और गहराई में जाने की कोशिश की है | इससे नाटक कई स्तरों पर प्रभावकारी सिद्ध होता है | इसमें अती नाटकीय स्थितिया भी रचने की कोई कोशिश नहीं की गई है | विदेश में जब इसका मंचन हुआ तो कालिदास और मल्लिका के भावों को पूरी तरह व्यक्त करना उन अभिनेता , अभीनेत्रियों के लिए भी बहुत कठिन रहा |
किताब के अंत मे सम्पूर्ण नाटक का विवेचन किया गया है और इसकी पढ़ाई करने वालों के लिए कुछ प्रश्न भी दिए गए हैं | प्रस्तुत नाटक के –
लेखक है – मोहन राकेश
प्रकाशक है – राजपाल एंड संस
पृष्ठ संख्या है – 128
उपलब्ध – अमेजॉन पर

अब थोड़ी जानकारी लेखक की भी जान लेते है –
लेखक मोहन राकेश हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक , नाटककार और उपन्यासकार थे | उनके द्वारा लिखित “आषाढ़ का एक दिन” हिंदी साहित्य का पहला आधुनिक नाटक माना जाता है | यह नाटक महाकवि कालिदास के व्यक्तिगत जीवन और उनके साहित्यिक संघर्षों पर आधारित है |
लेखक ने जीवन के जटिल प्रश्नों को नाटकों के माध्यम से प्रस्तुत किया है | उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था | उनका जन्म 8 जनवरी 1925 को अमृतसर पंजाब में हुआ और मृत्यु 3 जनवरी 1972 को न्यू दिल्ली में हुई | 1959 मे “आषाढ़ का एक दिन” को सर्वश्रेष्ठ नाटक के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला | आईए , अब जानते है | इस किताब का सारांश –

सारांश –
हिंदी पंचांग के अनुसार बारिश के दिन आषाढ़ के महीने में आते हैं जैसे अंग्रेजी महीने के जून और जुलाई में | ऐसा ही एक आषाढ़ का दिन है | बारिश हो रही है | इस दिन कालिदास और मल्लिका साथ है | मल्लिका , कालिदास के साथ बारिश में भीगने का आनंद उठाती है | वह सब तरह से संतुष्ट है | इसी आषाढ़ के दिन कालिदास को लेने राजमहल से लोग आते हैं | कालिदास का “ऋतु संहार” काव्य ग्रंथ बहुत प्रसिद्ध हुआ | इससे प्रभावित होकर उज्जैन के राजा उनको सम्मानित करना चाहते है |
उन्हें राजकवि बनाना चाहते है | उन्हें लेने के लिए राजमहल से आचार्य आते हैं पर कालिदास अपना गांव और यहां के लोगों को छोड़कर नहीं जाना चाहते | मल्लिका और उसकी मां अंबिका जानती है कि कालिदास एक बार राजमहल चला गया तो वापस लौटकर यहां नहीं आएगा |
मल्लिका भी यह जानती है फिर भी वह कालिदास को नगर भेजना चाहती है ताकि उसकी तरक्की हो ! वह जीवन में आगे बढ़े | लोग उसके काव्य से वंचित ना रहे |
विलोम , मल्लिका से विवाह करना चाहता है | अंबिका भी यही चाहती है लेकिन वह मल्लिका की जिद के आगे मजबूर है | जब कालिदास को लेने राजपुरुष आते हैं तो विलोम मल्लिका की कुटिया में आकर उसे कालिदास के बारे में जली – कटी सुनाता है कि वह स्वार्थी है | मल्लिका को लेकर वह साथ नहीं जाएगा | एक बार गया तो वापस नहीं आएगा |
मल्लिका उसे जाने के लिए कहती है क्योंकि कालिदास को वह पसंद नहीं | कालिदास मल्लिका से प्रेम तो करते हैं लेकिन विवाह के बंधन में नहीं बंधना चाहते | मल्लिका भी उनसे बहुत प्रेम करती है | वह कालिदास के नाम पर पूरी जिंदगी बिता सकती है |
मल्लिका के कहने पर और मातुल के आग्रह पर कालिदास उज्जैन के राजा के महल चले जाते है | वह वहां जाकर “कुमारसंभव , अभिज्ञानशाकुंतल ,रघुवंश , मेघदूत ” जैसे महान काव्यों की रचना करते है | मल्लिका के पास इन सब ग्रंथों की प्रतियां है जो उसने एक-एक पाई जोड़कर खरीदी हैं | उन व्यापारियों से जो उज्जैन आते – जाते थे |
कुछ दिनों बाद फिर राजपुरोहितों का काफिला कालिदास के गांव आता है | इस बार कालिदास का नाम “मातृगुप्त” हो गया है | राजकुमारी प्रियंगुमंजिरी से उसका विवाह हो गया है | उसे कश्मीर का राजा बनाया गया | कालिदास का राजमहल में मन नहीं लगता | वह रह – रहकर अपने अतीत की यादों में खो जाता है |
प्रियंगुमंजिरी उनके गांव से कुछ यादें अपने साथ ले जाना चाहती है | इसीलिए वह यहां आई है | वह मल्लिका से मिलने भी आती है | वह चाहती है कि मल्लिका उसकी परिचारीका बनकर उसके साथ रहे पर मल्लिका मना कर देती है |
मल्लिका को लगता है कि कालिदास उससे मिलने आएगा पर वह नहीं आता | इसका स्पष्टीकरण वह आखिर के अंक में देता है | उसके ना आने से मल्लिका निराश हो जाती है | वह कश्मीर चला जाता है |
वक्त गुजारते जाता है | परिस्थितियां बदलती है | और एक आषाढ़ का दिन आता है | इस दिन मल्लिका एक बेटी की मां है | उसकी कुटिया जर्जर अवस्था में है | उसकी मां अंबिका यह दुनिया छोड़ चुकी है |
कश्मीर में हमला होकर वहाँ अराजकता फैल जाती है | इसीलिए वह सब छोड़-छाड़ कर लंबी यात्रा कर के अकेले ही अपने गांव , अपनी मल्लिका के पास वापस आता है | फिर से कालिदास बनकर .. न की मातृगुप्त ….
इन परिस्थितियों में कालिदास बड़ी ही दिन – हीन अवस्था में उसकी कुटिया में वापस आता है | उसे लगता है की सारी चीजे और परिस्थितियां वैसे ही होगी जैसे वह छोड़ गए थे जैसे कि वक्त वहीं पर रुक गया हो ! पर वक्त किसी के लिए नहीं रुकता |

परिवर्तन ही इस संसार का नियम है | जब वह इस परिवर्तन को अंगीकार नहीं कर पाए तो , मल्लिका की कुटिया को छोड़कर अपनी नई यात्रा पर निकल पड़े ..
किताब को जरूर पढिए | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ..
धन्यवाद !!

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