DULHAN MANGE DAHEJ REVIEW SUMMARY HINDI

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दुल्हन मांगे दहेज
वेद प्रकाश शर्मा द्वारा लिखित
रिव्यू –
वेद प्रकाश शर्मा जासूसी उपन्यासों के साथ-साथ सामाजिक उपन्यास भी लिखा करते | उनके लिखे उपन्यासों के तहत एक उपन्यास है जिसका नाम “बहू मांगे इंसाफ” है जो बहुत ही प्रसिद्ध हुआ था जिसमें दहेज प्रथा और इसके होनेवाले दुष्परिणामो पर प्रकाश डाला गया है |
दहेज प्रथा भारतीय समाज पर एक कलंक की तरह है जिसके तहत युवा दुल्हनों की जिंदगी बर्बाद हो जाती है | बहुत बार इसकी परिणति उनके मृत्यु में होती है क्योंकि वह और उसके मायकेवाले उसके ससुरालवालों की लालच पूर्ण करने में सक्षम नहीं होते |
अभी तो दहेज मांगना भी अपराध की श्रेणी में आ गया है पर फिर भी कितने परिवारवालों ने इस बात को एक्सेप्ट किया होगा ? पता नहीं | दहेज के कारण की गई हत्याओं के ज्यादातर मामले 70 और 80 के दशक में दर्ज किए गए |
यह ऐसे मामले थे जिनमें संबंधित बहू को उसी के ससुरालवालों ने जलाकर मार डाला था और उसे रसोई घर में जलकर मरने का बहाना बताया था क्योंकि विवाह के बाद अपने पूरे परिवार के लिए खाना बनाना बहू का कर्तव्य माना जाता था |
इस दहेज प्रथा की बलि चढ़ी नवविवाहितों का जिक्र प्रसिद्ध लेखिका और इन्फोसिस की सीईओ सुधा मूर्ति मैडम ने उनकी प्रसिद्ध किताब “वाइज एंड अदरवाइज” में भी किया है पर उनके किताब की सारी घटनाएं काल्पनिक नहीं वास्तविक है | इस किताब का भी रिव्यू और सारांश हमारी वेबसाइट “सारांश बुक ब्लॉग” पर उपलब्ध है | आप उसे भी जरूर पढे |
यह तो हो गया सिक्के का एक पहलू | इसके दूसरे पहलू के बारे में हम आज के उपन्यास में बात करनेवाले हैं जिसका नाम है “दुल्हन मांगे दहेज” | इस उपन्यास की नायिका ने ही दहेज के नाम पर अपने पिता से पैसे मांगे जबकि उसके ससुरालवालों ने तो उसे पलकों पर बिठाकर रखा था |
दहेज का नाम लेना भी उस घर में जुर्म माना जाता था | फिर क्यों ? सूची नामक युवती ने अपने ही पिता को ससुरालवालों के खिलाफ पत्र लिखा जिसमें उन्हें दहेज का लालची बताया गया और इसी एक पत्र ने उसके ससुराल के एक-एक सदस्य की जिंदगी बर्बाद कर दी |
यही सिक्के का दूसरा पहलू बताने के लिए कहानी के नायक “हेमंत” ने लेखक को “मेरठ” पत्र लिखकर “बुलंदशहर” बुलाया ताकि वह लोगों को उनकी कहानी सुना सके | आपको जानकर आश्चर्य होगा परंतु प्रस्तुत कहानी असली है | और पात्रों के नाम भी वास्तविक है फिर भी लेखक ने लिखा है की कहानी और उसके पात्र काल्पनिक है |
पढ़कर आप ही जाने की वास्तविकता क्या है ? हो सकता है कि यह परिवार आपकी जान – पहचान का निकल जाए | प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – वेद प्रकाश शर्मा
प्रकाशक है – रवि पॉकेट बुक्स
पृष्ठ संख्या है – 202
उपलब्ध है – अमेजॉन पर

सारांश –
कहानी “बुलंदशहर” में घटित होती है | इस कहानी के केंद्र में है -“बिशमबर गुप्ता” और उनका परिवार | “बिशमबर गुप्ता” रिटायर्ड जुडिशियल मजिस्ट्रेट है | वह बुलंदशहर के “कोठीयात मोहल्ले” में रहते हैं | वह अपने जमाने में पूरी तरह ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ रहे हैं | इसीलिए अभी तक उनके पास सिर्फ एक छोटा सा मकान है और कुछ नहीं |
हाँ , उन्होंने बैंक के सहारे लोन लेकर अपने बड़े बेटे “हेमंत” को एक ताले की फैक्ट्री लगवा दी है जिसके भरोसे पूरे परिवार का पालन – पोषण हो रहा है | इसी हेमंत से सूची की शादी हुई है और इसी सूची ने “हापुड़” में रहनेवाले अपने पिता को दहेज के नाम पर 20,000 मांगनेवाला पत्र लिखा है जबकि हेमंत उससे बहुत ही ज्यादा प्यार करता है |
उसने कभी भी पैसे की मांग नहीं की | हेमंत को एक छोटा भाई है जिसका नाम “अमित” है | इन दोनों की एक छोटी बहन है जिसका नाम “रेखा” है | अमित और रेखा भी अपने भाभी को बहुत प्यार करते हैं |
वह जिद करके अकेले ही अपने पिता के घर जाती है | चिट्ठी के अनुसार बीस हजार रुपये भी लाती है |
मायकेवालों को यह कसम देकर कि वह इस बारे में उसके ससुरालवालों से कुछ भी नहीं पूछेंगे | अब सूची अपनी सहेली की शादी के लिए हापुड़ जाना चाहती है | वह भी अकेले ..
फिर भी उसके परिवारवाले जबरदस्ती “अमित” को उसके साथ भेज देते हैं | अब अमित साथ आएगा तो उसका सारा प्लान फेल हो जाएगा | इसीलिए वह बहाना बनाकर , जिद कर के आधे रास्ते में ही अमित से पीछा छुड़ा लेती है |
बेचारा अमित ! अपने भाभी पर विश्वास कर बैठता है और वापस चला जाता है | अमित , हापुड़ पहुंचकर सूची के बारे में पूछताछ करता है तो सूची के पिता दीनदयाल जो पहले से बौखलाए हुए हैं | सूची के गायब होने से उनका गुस्सा फूट पड़ता है | वह और मोहल्लेवाले अमित को बहुत मारते हैं | तभी अमित को सूची के उस पत्र के बारे में पता चलता है | लोग उन्हें दहेज का लालची और सूची का हत्यारा कहते है जिसे सुन अमित सकते मे आ जाता है |
वह जैसे – तैसे जान बचाकर घर आता है | सारी बातें घरवालों को बताता है | सब की डर की वजह से हालत खराब हो जाती है | अब तो उनको बेडरूम में सूची की लाश भी मिलती है | उसी वक्त इंस्पेक्टर गोडास्कर और पुलिस को लेकर सूची के पिता दीनदयाल उनके घर आते हैं |
अब तक उनके परिवार की खबरें पूरे बुलंदशहर में फैल चुकी है क्योंकि यह परिवार अच्छा खासा प्रसिद्ध है | इसीलिए लोगों की नकारात्मक प्रतिक्रिया भी इनको झेलनी पड़ती है | इन सब बातों से इनको पता चलता है कि कोई भी उनकी बात पर विश्वास नहीं कर रहा है कि वह लोग बेकसूर है |
तभी अमित फैसला करता है की वह किसी को सच्चाई नहीं बताएगा क्योंकि उनके पास उनके बेगुनाही का कोई सबूत नहीं है | इसीलिए वह बनावटी सबूत बनाने की कोशिश करता है | इसी के साथ शुरू होता है झूठी घटनाओ का सिलसिला ..
आखिर खुद को बचाने के लिए प्लांट किए गए सबूत ही उनके खिलाफ गवाही देने लगते हैं | पूरे परिवार को गिरफ्तार करने पुलिस उनके घर पहुंचती है | इन चारों घटनाओं के दरम्यान सूची का भाई मनोज , रेखा का चेहरा तेजाब से जला देता है |
वह अंधी भी हो जाती है | पुलिस गिरफ्तारी के दरम्यान अमित की भी मौत हो जाती है | सूची की मौत के कारण किसी भी व्यक्ति की सहानुभूति उनके साथ नहीं है | इसलिए लोगों के डिमांड पर “बिशमबर गुप्ता ” उसकी पत्नी और बेटे हेमंत को गधे पर बिठाकर मुंह पर कालिख पोतकर जुलूस निकाला जाता है |
अपने इज्जत का ऐसा जनाजा देखकर बिशमबर गुप्ता को गधे पर बैठे-बैठे ही दिल का दौरा पड़ता है | वह वहीं समाप्त हो जाते हैं | अदालत पहुंचने के पहले , यह देखकर हेमंत की मां पागल हो जाती है | हेमंत जेल में भेज दिया जाता है | वहीं पर लेखक को बुलाकर वह अपनी कहानी सुनाता है |
हमें पूरी कहानी भर लगता रहा कि बिशमबर गुप्ता मजिस्ट्रेट है तो अब कुछ करेंगे , अब कुछ करेंगे | लेकिन वह तो अपने बेगुनाही के सबूत तक इकट्ठा नहीं कर पाए | यहाँ तक की अपने बेटे को सही सलाह भी नहीं दे पाए | क्या कोई उनके जैसे प्रोफेशन मे होकर भी इतना सीधा हो सकता है ?
“सूची” पर ज्यादा भरोसा ही गुप्ता परिवार को ले डूबा | सूची अच्छे परिवार की कद्र नहीं कर पाई | उसके एक झूठ के कारण पूरा परिवार बर्बाद हो गया | गलती सूची की थी और भुगतना पड़ा बेचारे उसके परिवार को ! आपको कहानी पढ़ कर क्या लगता है ? कौन सच्चा है ? कौन झूठा ? या फिर सचमुच यह एक दहेज हत्या है ?
अगर हेमंत और उसका परिवार बेकसूर है तो फिर सूची का हत्यारा है कौन ? सूची का ऐसा करने के पीछे क्या कारण हो सकता है ? पढ़कर जरूर जानिए | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ..
धन्यवाद !

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