KARMA-3 BOOK REVIEW SUMMARY IN HINDI

saranshbookblog mahabharat hindibooks

कर्म
नरेंद्र कोहली द्वारा लिखित

रिव्यू –
यह किताब नरेंद्र कोहली द्वारा लिखित “महासमर” सीरीज की तीसरी किताब है जो दुनिया की सबसे लंबी कविता महाभारत पर आधारित है | महासमर के पूरे “नौ” भागों मे संपूर्ण महाभारत बताई गई है | महाभारत को कविता के रूप में शायद कुछ ही लोगों ने पढ़ा हो क्योंकि इसके बहुत से पात्रों पर किताबें लिखी जा चुकी है |
प्रस्तुत किताब में सबके कर्मों के बारे में लिखा गया है | स्पेशली पांडवों के बारे में .. | दुर्योधन की ईर्ष्या के चलते युधिष्ठिर हस्तिनापुर का राज्य त्यागना चाहता है ताकि दुर्योधन खुश रह सके लेकिन उसके राज्य में अधर्म की अधिकता होगी |
युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का राजा बनना होगा क्योंकि वह उसके पिता का राज्य है और युधिष्ठिर धर्मावतार है | इसीलिए उसका राज्य धर्मराज्य होगा | अतः युधिष्ठिर को अपना राज्य पाने के लिए कर्म करना होगा | वह इस राज्य को त्याग कर नहीं जा सकता | प्रजा का धर्मपूर्वक पालन करना उसका कर्तव्य है |
उन्हें उनका अधिकार दिलाने के लिए ही तो कुंती यहां लेकर आई थी ताकि वह क्षत्रिय राजकुमारों का जीवन जी सके | ना कि ब्राह्मण ऋषियों का ..
इस भाग मे युधिष्ठिर हस्तिनापुर का युवराज बन चुका है | इस भाग में ज्यादातर भीम को हाईलाइट किया गया है | फिर वह चाहे हिडिंबवन में हिडिंब का वध करना हो ,एकचक्रा नगर में बकासुर का वध हो या फिर द्रौपदी के स्वयंवर में बिना शस्त्रों के राजाओ से युद्ध करना हो !
पांडवों के पराक्रम और पहले अज्ञातवास की घटना का लेखक ने बड़ी ही खूबसूरती के साथ वर्णन किया है जैसे युधिष्ठिर को छोड़कर चारों पांडवों का दिग्विजय करके लौटना , उसके पश्चात धृतराष्ट्र की आज्ञा पर वारणावत जाना ,वहां के षड्यंत्र से बच निकलकर हिडिंबवन मे जाना | प्रस्तुत किताब मे पांडवों का शालिहोत्र मुनि के आश्रम मे जाना , देव प्रसाद ब्राह्मण के घर रहना , कंपिल्य में कुंभकार के घर आश्रय लेना और फिर द्रुपद के जामाता बनने का सफर रेखांकित किया गया है |
इन सारे अज्ञातवास के दौरान महर्षि वेद व्यास और द्वारकापति श्रीकृष्ण उनके संरक्षक बने रहे | जैसे एक घटना के कारण बाकी हजार घटनाएं घटित होती है वैसे ही हर एक घटना पर प्रस्तुत भाग में सम्मिलित व्यक्तियों की क्रिया – प्रतिक्रिया दर्शायी गई है |
गुरु द्रोण के प्रतिनिधित्व में पांडव और कौरव युद्धविद्या में पारंगत हो चुके हैं | हालांकि, द्रोण ने अपने पुत्र अश्वत्थामा को सबसे ज्यादा ज्ञान दिया | अपनी गुप्त विदयाए सिखाई | फिर भी वह हमेशा अर्जुन से पीछे ही रहा | परिणाम ! अर्जुन ही सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बना |
प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – नरेंद्र कोहली
प्रकाशक है – वाणी प्रकाशन
पृष्ठ संख्या है – 386
उपलब्ध है – अमेजन और किंडल पर

इसी भाग में अर्जुन अपनी धनुर्विद्या दिखाकर द्रौपदी को जय कर लेता है | इसी भाग में कुंती को अहेसास होता है की उसके पुत्र युवक हो गए हैं | वह बच्चे नहीं बल्कि पूर्ण योद्धा बन चुके हैं | तभी तो भीम ने अकेले ही हिडिंब और बकासुर का वध किया |
अर्जुन ने अपना पराक्रम दिखा कर द्रौपदी को जीता | अर्जुन और भीम ने मिलकर द्रौपदी के स्वयंवर में आए आतातायी राजाओ से युद्ध कर उन्हें हराया | पांडव जब वारणावत गए थे | तब वह पराक्रमी तो थे लेकिन राजशक्ति के आगे असहाय थे जबकि दुर्योधन के पास राजशक्ति थी |
उसके आधार पर वह कहीं भी फिर से षड्यंत्र कर उनका खात्मा कर सकता था | इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण और वेदव्यास चाहते थे कि अपना अधिकार पाने वह पूरी शक्ति के साथ हस्तिनापुर वापस लौटे ताकि दुर्योधन उनका बाल भी बांका न कर सके !
इधर पितामह भीष्म सोचते थे कि वारणावत में पांडवों के साथ हादसा हुआ तो उन्होंने खुद को मृत घोषित क्यों किया ? क्यों वह इतने दिन अज्ञातवास में रहे | वह सीधे हस्तिनापुर ही क्यों नहीं लौट आए |
बबद मे पितामह भीष्म को इसका उत्तर मिलता है | वैसे ही महाभारत के जिज्ञासु लोगों को इसका उत्तर प्रस्तुत किताब में मिल जाएगा | बहेरहाल , द्रौपदी से विवाह के बाद पांडवों का हस्तिनापुर लौटना ऐसा था जैसे कोई सम्राट यात्रा कर रहा हो ! दुर्योधन की इतनी दुष्टता के बावजूद भी भीष्म तटस्थ है |
वह अभी भी कुरुवंश को सहेज कर एकता के सूत्र में बांधे रखना चाहते हैं | उन्होंने कुरुवंश का मोह नहीं त्यागा | नाही तो राज्य का ही .. वे हमेशा ही शांति चाहते थे | इसीलिए उन्होंने कभी नाहीं तो धृतराष्ट्र को दंडित किया और नाहीं तो दुर्योधन पर ही कोई लगाम कसी |
इसीलिए उनके राज्य में अच्छे और सत्य पर चलनेवाले लोग परेशान हो गए | अंत में उन्हें युद्ध का सहारा लेना पड़ा | परिणाम ! उनका कुरुराज्य भी संगठित नहीं रह सका | शांति के लिए इसका विभाजन ही अंतिम उपाय रह गया था और इस भाग की समाप्ति भी कुरु राज्य के विभाजन से ही होती है |
देखा जाए तो इन सारी परिस्थितियों के लिए पितामह भीष्म ही जिम्मेदार है | इसका स्मरण उन्हे भगवान कृष्ण , कुरुक्षेत्र के रणभूमि मे कराते है | अपनी इन गलतियों के लिए वह स्वेच्छामरण भी स्वीकारते है | पांडवों की यात्रा जारी रहेगी अगले भाग “धर्म” मे भी – आईए , अब देखते है इसका सारांश –
सारांश –
इस तीसरे भाग में कौरवों की तीसरी पीढ़ी बड़ी हो चुकी है तो उधर श्रीकृष्ण , बलराम और उनके साथी भी .. इस भाग मे भारी राजनीतिक उथल -पुथल देखने को मिलती है |
इसकी शुरुआत मथुरा में कृष्ण द्वारा कंस के वध के साथ शुरू होती है | तब धरती पर मौजूद हर एक राज्य या तो परस्पर सहयोग से चल रहे थे या तो एक दूसरे से दुश्मनी निभा रहे थे जैसे कि कंस को मारने से जरासंध बौखला गया | क्यों ? क्योंकि उसकी एक नहीं दो -दो बेटियां कंस के साथ ब्याही थी |
इस नाते कंस जरासंध का दामाद था | जरासंध तब धरती का सबसे शक्तिशाली राजा था | जरासंध भी मथुरा को नेस्तनाबूत करने के लिए हर राज्य में अपने दूत भेजकर , उनको अपना सहयोगी बनाना चाहता था |
इधर श्रीकृष्ण भी “मथुरा” की ताकत बढ़ाने के लिए राज्य – राज्य भेट देकर सहयोग प्राप्त करना चाहते थे ताकि जरासंध जैसे शक्तिशाली राजा से यादवों की रक्षा हो सके | कृष्ण जब हस्तिनापुर जाकर मथुरा वापस चले गए तब अर्जुन और भीम उनकी मदद के लिए मथुरा जाना चाहते थे लेकिन धृतराष्ट्र सोचता था कि अब कभी भी पांचाल नरेश “ध्रुपद” हस्तिनापुर पर हमला कर सकता है तब उसका सामना अर्जुन और भीम करें ना कि दुर्योधन , कर्ण और अश्वत्थामा क्योंकि पांचाल से दुश्मनी अर्जुन और भीम ने ली थी |
यह विचार तो धृतराष्ट्र का था लेकिन बोल युधिष्ठिर के थे क्योंकि अब वह युवराज था और महाराज के विचार के अनुरूप चलना उसका कर्तव्य था | अंत में युधिष्ठिर को छोड़ चारों भाई राजकोष के लिए धन अर्जित करने युद्ध पर चले जाते हैं |
चारों भाइयों के जाते ही युधिष्ठिर राज्यसभा में अकेले पड़ जाता है | इन्हीं दिनों दो शराबी राज्य में दंगा और हिंसा भड़काने का कारण बनते हैं | मामला राज्यसभा में आता है | युधिष्ठिर कहता है कि सारे शराबखाने और जुआखाने बंद कर देने चाहिए क्योंकि यही इस झगड़े की जड़ है |
अब दुर्योधन युधिष्ठिर के विरुद्ध न बोले ऐसे कैसे हो सकता है ? उसके अनुसार शराबखानों और जुआखानों से राज्य को बहुत आय होती है | इनके बंद होने से , लोगों से उनके मनोरंजन के साधन दूर हो जाएंगे जिनसे लोग गुस्सा हो जाएंगे लेकिन सच तो यह है कि इन दुकानों में से बहुत सारी दुकाने दुर्योधन , उसके मंत्री, मित्र और राज्यसभा के लोगों की थी |
अगर यह दुकाने बंद हो गई तो लोग दुर्योधन से नाराज हो जाएंगे | राज्यसभा से उसका बहुमत कम हो जाएगा | फिर वक्त पड़ने पर वह लोग उसका साथ नहीं देंगे | इसीलिए राज्यसभा में यह मामला अनुत्तरीत ही रह गया | यह सारी जानकारी सीधे सरल युधिष्ठिर को मंत्री विदुर से मिली | इस जानकारी से युधिष्ठिर अभी तक अनभिज्ञ था |
कंस वध के कारण जरासंध ,यादवों को नष्ट करने के लिए उन पर बार-बार आक्रमण कर रहा था | तो दूसरी तरफ से जरासंध का मित्र “कालयवन” भी मथुरा पर हल्ला करने वाला था | इसीलिए सारे यादवों को बचाने के लिए कृष्ण उन्हें द्वारका ले गए |
द्वारका , हस्तिनापुर से बहुत दूर है | पांडवों को जब भी कृष्ण की मदद लगेगी | वह जल्दी से हस्तिनापुर पहुंच नहीं पाएंगे | इसी का फायदा उठाकर धृतराष्ट्र , उसके बेटों और मंत्रियों ने फिर से एक बार कुंती को , उसके बेटों के साथ हस्तिनापुर से निष्कासित करने का साहस किया क्योंकि युधिष्ठिर को युवराज बनाने के पीछे यादवों की शक्ति काम कर रही थी |
धृतराष्ट्र ने हमेशा की तरह अपने अंधे होने का फायदा उठाकर भीष्म से पांडवों को “वारणावत” भेजने की आज्ञा ले ली | इस प्रकार उसने दुर्योधन की इच्छा पूरी की | कुंती और पांडवों को उनके खिलाफ किए जानेवाले षड्यंत्र का थोड़ा-थोड़ा आभास होने लगा था लेकिन उनके पास कोई पुख्ता सबूत नहीं थे |
इसलिए उन्होंने “वारणावत” जाना ही ठीक समझा | वह भी सावधानी के साथ क्योंकि षड्यंत्र का आभास विदुर को भी हो गया था | इसीलिए विदुर ने भी उन्हें आगाह किया था | वहां जाकर एक-एक घटना का , व्यक्ति का बारीकी से विश्लेषण करने के बाद उन्हें पूरी तरह यकीन हो गया कि उन्हें लाक्षागृह में जलाकर मार डालने की योजना दुर्योधन ने बनाई है और इसे पूरी करने के लिए “पुरोचन” वारणावत आया है |
“पुरोचन” का काम पूर्ण होने से पहले ही पांडवों ने उनके महल में सुरंग खोदना आरंभ कर दी थी | इसके बाद मंत्री विदुर के भेजे हुए “खनक” ने उनकी मदद की | इसी सुरंग के सहारे पांडव गंगा नदी के तट तक पहुंचे | वहां से विदुर के भेजे हुए नाविक ने उन्हें “हिडिंबवन” में भेजा |
विदुर ने उन्हें जंगल के बहुत भीतर वास करने के लिए कहा ताकि दुर्योधन का कोई भी गुप्तचर उन तक न पहुंच सके | उन्हें अपने आप को तब तक छिपाए रखना था जब तक विदुर उनकी सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम न कर ले | उनकी सुरक्षा का दायित्व वही ले सकता है जो दुर्योधन से डरता ना हो क्योंकि दुर्योधन शक्तिशाली राज्य हस्तिनापुर के राजा का बेटा था |
इसीलिए बहुत से राजा उससे भय खाते थे | उसके खिलाफ जाकर कोई पांडवों की मदद नहीं करना चाहता था | इसलिए विदुर ऐसे व्यक्ति की खोज में थे जो पांडवों की शक्ति बने | उन्हें ऐसा व्यक्ति पांचाल नरेश द्रुपद के रूप में मिला लेकिन उसे पांडवों की शक्ति बनाने का काम किया श्रीकृष्ण ने .. कैसे ? यह आप को किताब पढ़कर पता चलेगा |
यह विचार कृष्ण के मन में तब आया जब वह पांडवों की मृत्यु का शोक मनाने हस्तिनापुर आए लेकिन विदुर से उन्हें पांडवों की जीवित होने का समाचार मिला | जैसा की विदुर ने महर्षि वेदव्यास को भी बताया था |
“कृष्ण” हस्तिनापुर में ज्यादा दिन रह न सके क्योंकि विलाप करती सत्यभामा वहां पहुंच चुकी थी | द्वारका में उसके पिता “सत्यजीत” की हत्या “शतधन्वा” ने की थी | उसने सत्यजीत से उसकी “स्यमंतक मणि” भी छीन ली थी | सत्यजीत की हत्या मे उसकी मदद अक्रूर और कृतवर्मा ने की थी | अक्रूर वही व्यक्ति है जिसके दबाव में आकर धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर को युवराज बनाया था लेकिन बढ़ते धन के लोभ ने इन लोगों के व्यक्तित्व को ही बदल दिया था |
यह समाचार सुनते ही कृष्ण , बलराम के साथ द्वारका रवाना हुए | वहां उनके पहुंचते ही शतधन्वा वहां से भाग खड़ा हुआ | उसका पीछा करते हुए कृष्ण , बलराम के साथ मिथिला पहुंच गए | वहां कृष्ण ने शतधन्वा को मार दिया और वापस बलराम के पास आ गए | बलराम को लगा की कृष्ण ने स्यमंतक मणि को छिपा लिया है और अब उनसे झूठ बोल रहे हैं |
इस बात से बलराम , कृष्ण से नाराज हो मिथिला चले गए | इस नाराजगी का फायदा दुर्योधन ने उठाया | वह बलराम का शिष्य बन गया | उनसे नजदीकियाँ बढ़ाई | यह सोचकर की कृष्ण से नाराज यादव उसके पक्ष में आ जाए या फिर कम से कम वह पांडवों के मददगार ना बने |
अबतक पांडव अपने अज्ञातवास के दिन “हिडिंबवन” के आसपास गुजारते रहे | यहाँ कुंती को अपनी पहली पुत्रवधू “हिडिंबा” के रूप में मिली | वह भीम की पत्नी है | इन दोनों के पुत्र का नाम “घटोत्कच” रखा गया है | पूरी तरह वनवासी , नगरों से अनभिज्ञ और मनुष्य संस्कृति से दूर हिडिंबा अपने पति को वचन देती है कि वह अपने पुत्र को उसके पिता के जैसा वीर योद्धा बनाएगी |
ना कि पेड़ पर लटकनेवाला और नरमाँस खानेवाला राक्षस.. क्योंकि उसका बेटा एक आर्य राजकुमार है | कौरवों से बदला लेने के लिए द्रुपद उतावला हुआ जा रहा है | इसलिए वह अपने दामाद के रूप में सर्वश्रेष्ठ योद्धा चाहता है जो “द्रोण” से बदला ले सके |
“द्रोण” धनुर्विद्या जानते हैं | इसलिए उसका दामाद भी धनुर्विद्या में पारंगत होना चाहिए | ऐसे सिर्फ कुछ ही व्यक्ति है | उनमे शामिल है -कृष्ण ,अर्जुन ,कर्ण और एकलव्य | एकलव्य का तो अंगूठा द्रोण ने कटवा लिया है | अर्जुन की वारणावत में मृत्यु हो चुकी है |
कर्ण सूतपुत्र है | तो क्या कृष्ण द्रौपदी के स्वयंवर में भाग लेंगे | द्रुपद चाहता है कि कृष्ण , उनके दामाद बने ताकि वह द्रोण को आश्रय देनेवाले कौरवों से बदला ले सके |
इस पर कृष्ण कहते हैं कि अगर उनका और द्रौपदी का रिश्ता हो जाएगा तो जरासंध और कालयवन उनके भी शत्रु हो जाएंगे और हो सकता है कि यह लोग दुर्योधन के साथ भी संधि कर ले ! तो फिर कौरव ज्यादा ताकतवर हो जाएंगे और द्रुपद कमजोर ..
इसलिए कृष्ण की योजना यह है कि वह अपना वास्तविक परिचय पाने के आतुर पांडवों के साथ द्रौपदी का रिश्ता कर दे | ताकि पांडवों को द्रुपद का संरक्षण मिले और द्रुपद को वीर योद्धा दामाद लेकिन अभी यह योजना कृष्ण के मन में ही है |
इसे वास्तविकता प्रदान करने के लिए यह लोग द्रौपदी का स्वयंवर आयोजित करते हैं | उधर वारणावत से जीवित बचे पांडव हिडिंबवन में प्रवेश करते हैं | यहां से उनके सुरक्षा की जिम्मेदारी भगवान वेदव्यास लेते हैं | वह वक्त – वक्त पर अपने शिष्यों के आश्रमों और घरों में पांडवों को आश्रय प्रदान करते जाते हैं ताकि उनका और पांडवों का संपर्क भी रहे और पांडव बाकी लोगों के लिए अज्ञात भी रहे |
वह हिडिंबवन के आगे “शालिहोत्र” मुनि के आश्रम में रुकते हैं | वहां से आगे “एकचक्रा नगर” में | इस नगर में पूरी तरह अराजकता व्याप्त है | यहां के लोग “बकासुर” से भयभीत है | भीम बकासुर का भी अंत कर देता है | इसी “एकचक्रा” नगर में पांडव “देवप्रसाद” के घर आश्रय लेते हैं | उसकी पत्नी नकुल को अपना जामाता बनाकर अपने साथ रखना चाहती है | कुंती उसे मना कर देती है | यह कहकर की बड़े भाइयों के अविवाहित रहते वह नकुल की शादी नहीं कर सकती |
हिडिंबा की संस्कृति में और आर्यों की संस्कृति में जमीन आसमान का फर्क था | इसलिए कुंती , हिडिंबा को भीम की पत्नी के रूप में तो स्वीकार कर पाई लेकिन “कुरुकुल” की पुत्रवधू के रूप में नहीं | हिडिंबा भी सिर्फ अपने पति के ही बारे में सोचती थी | तभी कुंती ने निश्चय किया कि उसके पुत्रों को अलग-अलग करनेवाली बहूओ को वह कभी स्वीकार नहीं करेगी |
सुरक्षित रहने के लिए उसके पुत्रों का संगठित रहना बहुत जरूरी है | नहीं तो ! दुर्योधन एक-एक करके सबको खत्म कर देगा | भगवान वेद व्यास पांडवों को आज्ञा देते हैं कि उन्हें अज्ञात रहते हुए ही द्रौपदी के स्वयंवर में भाग लेना है | जब दुर्योधन अपना पराक्रम दिखाने में असफल हो जाए तब उन्हें अपना पराक्रम दिखाना है ताकि बाकी राजपुरुषों की नजर में उनका प्रभुत्व बढ़े |
वह उन्हें अपना मित्र बनाना चाहे | इससे उनकी शक्ति बढ़ेगी और फिर दुर्योधन अपनी राजशक्ति का उपयोग कर उन्हें नुकसान पहुंचाने के पहले दस बार सोचेगा | तभी वह दुर्योधन से सुरक्षित रह सकेंगे | महर्षि वेदव्यास के साथ कुंती की भी आज्ञा थी कि वह द्रौपदी के स्वयंवर में पराक्रम दिखाएं परंतु वह पांचो भाई एक दूसरे के प्रतिस्पर्धी ना बने |
स्वयंवर की शर्त सिर्फ अर्जुन ही पूरी कर सकता था | इसलिए बाकी सारे पीछे हट जाते हैं | अब युधिष्ठिर के अविवाहित रहते द्रौपदी की शादी अर्जुन के साथ नहीं हो सकती | अगर होती है तो ! वर वधु दोनों के माता-पिता को नरक भोगना पड़ेगा |
इसी के साथ बाकी सारे विचार विनिमय से पांचालो मे प्रसिद्ध प्राचीन बहुपतित्ववाली प्रथा अपनाकर पांचाली का विवाह पांचों पांडवों के साथ कर दिया जाता है | विवाह में आने के पहले पांडवों को लगता है कि द्रुपद , अर्जुन को अपना शत्रु मानता है | कहीं वह पांडवों पर आक्रमण न कर दे ! तो दूसरी तरफ दुर्योधन , कर्ण और अश्वत्थामा है | यह भी उनके प्राण लेने का प्रयत्न न करें |
लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं होता क्योंकि वासुदेव कृष्ण , बलराम , सात्यकी और नारायणी सेना उनकी सुरक्षा के लिए तैयार है | द्रौपदी से शादी के बाद इन सारे लोगों के साथ ही , द्रुपद की सेना ,उनके सहयोगी राजा और राजकुमार दृष्टद्युम्न भी पांडवों की रक्षा के लिए उनके साथ हस्तिनापुर आए है क्योंकि भीष्म तो उनकी सुरक्षा कर नहीं सके | विदुर कर नहीं सकते | नहीं तो दुर्योधन को पता चल जाएगा और उन पर कहर बरसा देगा |
आचार्य द्रोण तो राज्यसभा में युवराज युधिष्ठिर के विचार जानकर ही अपना वरदहस्त उनके मस्तक पर से उठा देते हैं | अब वह थोड़े ही सही लेकिन वारणावत में पांडवों की मृत्यु के षड्यंत्र में शामिल हैं |
अब आप पढ़कर यह जरूर जानिए कि पांडवों को उनका अधिकार मिलता है या नहीं ? यह अधिकार पाने के लिए उन्हें कौन – से कर्म करने होंगे ? इसके अगले भाग “धर्म – महासमर 4” में देखेंगे पांडवों की आगे की कहानी ..
तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ..
धन्यवाद !!!!

Read next part of this book MAHASAMAR-4 DHARM

Watch out ASHWATTHAMA on our youtube channel

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *