90’S WALA PYAR BOOK REVIEW IN HINDI

saranshbookblog lovestory booksummaryinhindi

                    90’s वाला प्यार – नए हिन्दी किताबों की शृंखला

               शरद त्रिपाठी द्वारा लिखित (कहानी – संग्रह )
रिव्यू –

Read more 

नए हिन्दी किताबों की शृंखला मे यह पाँचवी किताब है | प्रस्तुत किताब में 90 के दशक का वर्णन किया है | इस दशक में जिन भी लोगों को प्यार हुआ | उनको टेक्नोलॉजी की कमी के चलते किन-किन मुश्किलों से सामना करना पड़ा | यह बड़े ही रोचक तरीके से बताया गया है |
फिर भी कहानी के पात्रो को इन सीमित उपकरणों के साथ भी , वह दिन अपने जीवन के सुनहरे दिन लगते हैं | इसका बहुत ही मनोरंजक वर्णन लेखक ने किया है | 90 का वह दौर जब टीवी पर सिग्नल आने के लिए एंटीना को आडा – तिरछा घुमाना होता था |
रंगोली , शक्तिमान , चंद्रकांता , चित्रहार का जमाना था | जहां इक्का – दुक्का लोगों के घर ही टीवी हुआ करता था और हर संडे को टीवी बाहर निकाल कर मोहल्ले के सारे लोगों के साथ फिल्म देखी जाती थी | डी डी मेट्रो नया-नया ही आया था |
घर में लैंडलाइन फोन आ गए थे फिर भी फोन करने के लिए पी. सी. ओ. थे | लड़कियों के घर लड़कों का फोन करना अलाउड नहीं था | इंटरनेट भी नया-नया ही आया था | इसलिए कहीं-कहीं इंटरनेट कैफे दिखाई पड़ते थे | जिनका दर 80 रुपए प्रति घंटा हुआ करता था | बाद में वक्त के साथ यह दर कम होता गया |
यह वही दौर था जब इंटरनेट आने की वजह से “याहू मैसेंजर” का बोलबाला था | नवयुवक और नवयुवतियाँ खुद का ईमेल बनाकर आपस में प्रेम संदेशों का आदान-प्रदान किया करते थे | इससे इंटरनेट कैफे और पी . सी. ओ. वालों की कमाई भी बढ़ जाया करती थी |
यह वही दशक था जब डी डी एल जे के शाहरुख खान के बाद में हृतिक रोशन एक सुपरस्टार के रूप में उभरे | इन दोनों की जादू से सब उभरते , तब तक रामलीला पिक्चर में आए रणवीर सिंह ने ततर-ततर कर के सब के दिलों में खलबली मचा दी |
प्रस्तुत किताब में इसी दौर की वह सुनहरी कहानीयां है जिन्हें लेखक ने काल्पनिक कहा है | बस , उदासी वाली एक बात है कि कोई भी प्रेम कहानी पूर्णत्व को प्राप्त नहीं हुई | सारी ही प्रेम कहानीया अधूरी रह गई |
इन प्रेम भरी कहानियों को उनकी ही जुबानी सुने | किताब की सारी कहानियां उत्तर प्रदेश के शहरों में ही घटित हुई है | May be लेखक इन सारे प्रदेशों को अच्छे से जानते हो !
प्रस्तुत किताब के –
लेखक – शरद त्रिपाठी
प्रकाशक है – हिंदी युग
पृष्ठ संख्या है – 118
उपलब्ध है – अमेजॉन और किंडल पर

सारांश –

प्रस्तुत किताब में कुल आठ अध्याय है जिसमे शामिल है – लोटा परेड , हमारी रंगोली वाला संडे , मुन्ना भाई का सर्किट | यह कहानीयां हमें बेहद पसंद आई | इसी कहानीयों के कुछ अंश हम आपको बताएं देते हैं | बाकी की कहानीयां आप ही किताब मे पढ़ लीजिएगा | लेखक ने इतनी मेहनत से जो लिखी है |
सबसे पहले बात करते हैं “लोटा परेड” की | ऐसे गांव की कहानी है जहां शौचालय नहीं है | इसीलिए वहाँ की महिलाओ और लड़कियों को उजाला होने के पहले अंधेरे में ही अपने नित्य – कर्म निपटाने होते हैं | इसके लिए गांव की सारी औरतें एक साथ ही जाती है | जहां वह अपनी सारी बातें एक दूसरे के साथ शेयर करती है |
वह औरतें हैं | इसीलिए उन्हें जल्दी जाना पड़ता है | उन्हें अपनी लाज का ख्याल जो रखना है | मर्द रहती तो कभी भी जा सकती थी | ऐसे इस गांव में तीन सहेलियां है | वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान है | उनके माता – पिता को कभी लड़कों की जरूरत महसूस नहीं हुई |
इन तीन सहेलियों मे से एक , मीनू को गांव के ही राकेश नाम के लड़के से प्यार हो जाता है | मीनू पढ़ाई मे भी अच्छी है | वह अपने माता-पिता की उम्मीद पर भी खरी उतरती है | बहुत अच्छी पढ़ाई कर के वह 12 वी बोर्ड में टॉप करती है |
अब राकेश उससे पूछता है कि , क्या वह उससे शादी करेगी ?मीनू कहती है कि ,”उसे और पढ़ना है” | इस पर राकेश कहता है ,”कर तो लिया 12वीं में टॉप | अब क्या कलेक्टर बनेगी ? “यह बात सीधे मीनू के दिल पर लग जाती है |
साथ में उसे राकेश की सोच कितनी छोटी है | इसका भी एहसास होता है | वह उस से ब्रेकअप कर लेती है | पूरे 15 सालों बाद मीनू अपने ही गांव में कलेक्टर के रूप में लौटती है | देखती हैं कि राकेश ने शादी कर ली है | तीन बेटियों के बाद भी बेटे के लिए राह देख रहा है |
साधारण लेखपाल की नौकरी कर रहा है | अपनी छोटी सी बेटी को घर के काम में लगा दिया है जबकि वह पढ़ाई में बहुत होशियार है | बेटी को लेकर भी राकेश के वही विचार है जो बरसों पहले मीनू को लेकर थे | मीनू को और उसकी सहेलियां रधिया और कटोरी मिश्रा को यह सोच कर बड़ा सुकून मिलता है कि बरसों पहले मीनू ने राकेश से मुंह मोड़ लिया और उसका यह फैसला गलत नहीं था |
“इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है” में तन्वी 11वीं मे पढ़ने वाली लड़की है जिसकी कमीनी नेहा बेस्ट फ्रेंड है | ऐसे इस तन्वी का दिल अपने ही क्लास के रोहन बोस पर आ जाता है | रोहन बोस की पर्सनालिटी ही ऐसी है कि तन्वी का दिल उसे देखकर बागी हो जाता है |
तन्वी स्कूल ट्रिप में रोहन के साथ जाकर खुशियां बटोरना चाहती है पर महीने के उन दिनों के कारण जा नहीं पाती | कहानी का फ्लैशबैक वहां खत्म होता है जहां तन्वी डॉक्टर बनकर प्रेगनेंसी के बारे में फैले हुए मीथ पर सेमिनार कर रही है |
तन्वी की पूरी कहानी असली है सिर्फ उसके पात्रों के नाम काल्पनिक है क्योंकि रोहन के जगह रजत से शादी करने वाली तन्वी से रोहन एक बाइक एक्सीडेंट की वजह से बिछड़ जाता है | वह डॉक्टर भी इसलिए बनी क्योंकि रोहन की यही इच्छा थी |
90 के दशक में हर संडे सुबह “रंगोली” कार्यक्रम आता था | इस कहानी के नायिका का नाम भी रंगोली ही था | इसके करीब आने के लिए नायक ने बहुत पापड़ बेले | इनका प्यार परवान चढ़ने के पहले ही रंगोली के पापा का ट्रांसफर किसी और शहर में हो गया |
फिर नायक और नायिका की बातें पहले रोज , फिर हफ्तों , फिर महीनों और फिर कभी नहीं में तब्दील हो गई | दोनों अपनी-अपनी जिंदगी में मसरूफ हो गए | रंगोली शादी कर के ऑस्ट्रेलिया शिफ्ट हो गई | आज भी कहानी के नायक को वीकेंड पर इस रंगोली वाले संडे की याद आती है क्योंकि दोनों संडे की रंगोली साथ मिलकर देखा करते थे |
“मुन्ना भाई का सर्किट ” कहानी मे बताया गया है की जैसे मुन्ना भाई एमबीबीएस फिल्म में सर्किट सपोर्टिंग रोल में रहता है | वैसे ही इस कहानी के नायक को भी सब लोग सपोर्टिंग की तरह ही लेते है | इसके बावजूद सर्किट के बगैर पिक्चर की कहानी और मुन्ना भाई की जिंदगी दोनों ही अधूरी है |
कहानी का नायक अमीर लड़की के चक्कर में अपने शहर और परिवार से पराए हो जाता है | मुंबई में आकर 5 साल स्ट्रगलिंग के बाद भी उसे ढंग का ऑफर नहीं मिलता |
एक दिन जब उसे आशा मिलती है कि उसे पिक्चर में मुख्य रोल मिलेगा | लगभग तभी कास्टिंग डायरेक्टर बोलता है कि , “इसे सपोर्टिंग कैरेक्टर में ले लो ! लड़की के भाई के रोल में यह अच्छा जँचेगा” |
हमें किताब बहुत अच्छी लगी | सभी कहानियां फ्लैशबैक में चलती है जिनके सारे पात्र इस दौर में जी रहे हैं | उनके अभी के सुखी चेहरों के पीछे पुराने दुख छिपे हुए हैं |
वह कहते हैं ना खुशी के आंसुओं के पीछे गम छुपा होता है | वैसे वाली कहानीयां |
जरूर पढ़िएगा | अगर आप उस दौर के हैं तो अपनी यादों को ताजा कीजिएगा | तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहिए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए..
धन्यवाद !

Check out our other blog post 84 CHAURASI

Check out our youtube channel

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *