आल्हा – ऊदल की वीरगाथा
आचार्य मायाराम “पतंग |
रिव्यू –
आज हम देखेंगे इसका रिव्यू और सारांश |
लेखक ने अपनी प्रस्तावना में बताया है कि किसी टीवी Read more चैनल के कार्यक्रम “अर्धसत्य” में बताया था की “मेहर माता” के मंदिर में कोई अज्ञात व्यक्ति पूजा करने आता है | प्रातःकाल जब मंदिर के दरवाजे खुलते हैं तो माता के चरणों में पत्र ,पुष्प , जल अर्पित किए हुए मिलते हैं |
यह सब देखकर , पुजारी और आसपास के गांव के लोगों से पूछताछ करने पर इस बात की पुष्टि होती है की यहां आल्हा पूजा करने आता है | अब यह आल्हा कौन है ? क्या कहानी है इनके पीछे ? यह जानते हैं |
वैसे उपयुक्त कहानी महाभारत के अश्वत्थामा से भी जुड़ती है क्योंकि वह भी प्रातःकाल मंदिर में पूजा करने आते हैं | वह भी और लोगों से लंबे हैं |
वह भी वीरवेश धारण किए हुए हैं क्योंकि युद्ध में रहते हुए ही उनको भगवान श्री कृष्ण द्वारा श्राप दिया गया था | तो क्या आल्हा ही अश्वत्थामा है या फिर कोई और …. क्योंकि आल्हा की कहानी जिन ग्रंथों मे लिखी है |
उसके अनुसार दिल्लीपति पृथ्वीराज चौहान दुर्योधन का अवतार है और अश्वत्थामा , दुर्योधन के मित्र है | हमें तो आल्हा ऊदल की कहानी के बारे में नहीं पता था | इसी किताब के माध्यम से पता चला | क्या आपको पता था ? अगर नहीं ! तो “सारांश बुक ब्लॉग” के जरिए जानिए |
लेखक ने यह कहानी बचपन में सुनी थी लेकिन बड़े होते-होते वह यह कहानी भूल गए | उन्हे बड़ी खोजबीन के बाद “आल्हा छंद और वीर छंद ” यह दोनों किताबें मिली | किताबें बुंदेलखंडी भाषा में थी जो बहुत से लोग समझ नहीं पाते है |
काल के प्रवाह में कहीं यह कहानीयां गुम ना हो जाए | इसलिए लेखक ने इनका प्रचलित भाषा में या गद्य रूप में भाषांतर किया ताकि लोग वीर आल्हा – उदल की शौर्य गाथाओ से परिचित हो | लेखक का यह प्रयास सफल रहा |
प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – आचार्य मायाराम “पतंग”
प्रकाशक है – प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ संख्या है – 176
उपलब्ध है – अमेजॉन और किंडल पर
कहते हैं की आल्हा – उदल का महाभारत से नाता है | वह ऐसे की “परिमाल रासो” के रचयिता है , कवी जगनिक | उनके इस काव्य में आल्हा – ऊदल की वीरगाथा को युद्ध – रूप मे लिखा है | परिमाल रासो में बावनगढ़ के युद्ध का वर्णन है | यह युद्ध 12वीं शताब्दी में हुए थे | कवि जगनिक के अनुसार इसमें समाहित वीर महाभारत के पांडव , कौरवों का पुनर्जन्म थे |
बुंदेलखंड , मध्य प्रदेश , उत्तर प्रदेश और राजस्थान में उनकी गाथाए गांव – गाँव में गाई जाती है | उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ भागों में तो इनकी गाथाएं “रामचरितमानस” से भी अधिक लोकप्रिय है |
महाभारत के युद्ध में पांडव विजयी हुए | युधिष्ठिर युद्ध तो लड़े पर किसी महत्वपूर्ण वीर को नहीं मार सके | अर्जुन ने भी एक भी कौरव को नहीं मारा | सारे कौरवों को भीम ने ही मारा | तब पांडवों ने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि भगवान आपकी कृपा से हम युद्ध तो जीत गए लेकिन युद्ध की प्यास की तृप्ति नहीं हुई |
तब भगवान ने उन्हें कलयुग में पुनः योद्धा का जीवन देकर उनकी यह इच्छा पूर्ण कर दी | पांडवों की ऐसी सोच उनका अहंकार ही था | इसी अहंकार को मिटाने के लिए भगवान ने उन्हें लड़ने और हारने दोनों का अवसर दिया |
इसीलिए शायद पृथ्वीराज चौहान के सेना में लड़नेवाले चौन्डा राय ने भीम रूपी “उदल” का अंत कर दिया | इस बार भीम , दुर्योधन से हारा क्योंकि पृथ्वीराज चौहान दुर्योधन का अवतार लेकर आए थे |
हमें लगता है की कवी जगनिक एक महान कवि रहे होंगे जिन्होंने अपनी कल्पनाओं से इन सब पात्रों को रचा | यह ग्रंथ बहुत प्रसिद्ध हुआ होगा जो हर एक व्यक्ति इसके बारे में जानने लगा क्योंकि तब के लोग बहुत भोले हुआ करते थे |
इसीलिए सब बातों को सच मान लिया करते | इसीलिए तो इनके असल में होने का कोई पुख्ता सबूत नहीं मिलता |
बहुत से जगह जादुई चीजों का वर्णन मिलता है जो की कोई सामान्य बात नहीं होती जैसे की थोड़ी ही देर की पूजा पाठ के बाद देवी माँ प्रसन्न होकर उनको आशीर्वाद देती थी | अगर देवी माँ से मिलना इतना ही आसान होता तो ओम स्वामी को जीवन भर इतनी कड़ी तपस्या नहीं करनी पड़ती |
हमने 12 वीं शताब्दी के पहले हुए राजाओं का भी इतिहास पढ़ा है पर उसमें कोई जादुई घटनाएं नहीं थी | वह दौर ऐसा था जब बहुत से विदेशी आक्रमणकारी भारत पर हमला करते रहते थे पर इनमें से कोई भी वीर उनका सामना करते हुए नहीं दिखाई देता है |
सब युद्ध आपस में ही लड़े गए हैं | वह भी सिर्फ एक व्यक्ति माहिल की वजह से | तो एक चुगलखोर व्यक्ति का इतना सम्मान क्यों ? जिसकी वजह से इतने सारे युद्ध हुए | लाखों लोग स्वर्ग सिधार गए | क्यों नहीं इसे कारागार में डाला गया ? जिससे लाखों जीवन सुरक्षित हो सके |
आल्हा – उदल की कोई भी कहानी पढ़कर ऐसा तो नहीं लगता की कोई किसी का बहुत सम्मान करता होगा और इस सम्मान की खातिर उसकी इतनी गलतियां माफ की जाए |
लेखक ने सही बात कही की इन राजाओं में राष्ट्रीय एकता की भावना का अभाव था | वह अपनी जाति का अभिमान करते थे और बाकी जातियों को नीचा दिखाते थे | इसी वजह से वह बनाफर गोत्र के आल्हा – उदल को बार-बार नीचा दिखाते थे |
वह अपने राज्य के लिए सब कुछ करने के लिए तैयार थे | यहां तक की अपना बलिदान भी पर राष्ट्र के लिए नहीं | तब के लोग आज के मुकाबले 20 गुना ज्यादा ताकतवर होते थे पर उनमें सहेनशक्ति की कमी थी |
वह विवाह जैसे समारोहों के लिए युद्ध करते थे जिसमें बहुत सारे लोग मारे जाते थे | बौद्धिक स्तर पर उनकी व्यावहारिक समझ बहुत ही निन्म स्तर की थी | दिल्लीपति पृथ्वीराज चौहान ने माहिल जैसे कपटी व्यक्ति की बातों में आकर अपनी ही बेटी के ससुराल पर हमला किया |
उन्होंने अपने दामाद को मृत्यु के घाट उतारा | पत्नियों के होते हुए भी सिर्फ दिखावे के लिए संयोगिता का हरण किया | यह सारे कार्य , उनकी सोच किस तरह की थी | इसका परिचय देते हैं |
शब्द भेदी बाण की कला उन्होंने राष्ट्ररक्षा में उपयोग में न लाकर , अपने अंतिम दिनों में अपनी साख बचाने के लिए इस्तेमाल की | आल्हा – ऊदल की कहानीयां गर्व करने के लिए नहीं बल्कि सीख लेने के लिए है |
झूठी शान के लिए अमूल्य जीवन नष्ट नहीं करने चाहिए | यह सब राजा इतने बलवान और शूरवीर थे फिर भी उनकी आपसी फूट के कारण भारत देश पारतंत्र्य में चला गया |
पृथ्वीराज चौहान ने अपने हर पड़ोसी राज्य से दुश्मनी मोल ले रखी थी जबकि उन्होंने उनसे मित्रता करनी चाहिए थी | अपने दामाद का सम्मान करना चाहिए था | दामाद के राज्य की भी शक्ति को विदेशी शक्तियों से लड़ने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए था पर उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया |
लेखक की सलाह यही है कि व्यक्तिगत समस्याओं के परे जाकर राष्ट्रहीत को सर्वोपरि माने | उच – नीच का भेद भूलाकर सामाजिक समरसता में जीना सीखें |
चलिए तो अब आल्हा – ऊदल की कहानी पर वापस आते हैं | कवी जगनीक के ग्रंथ अनुसार इन पांच पांडवों ने कलयुग में जन्म लिया | इसके साथ उनसे जुड़े बाकी लोगों ने भी …
आल्हा युधिष्ठिर बने | उदल भीम हुए | ब्रह्मानंद अर्जुन , नकुल – लाखन और सहदेव ने मलखान का रूप धरा | अब बात करते हैं कौरवों की | दिल्लीपति पृथ्वीराज चौहान दुर्योधन हुए | दुशासन – धांधू हुए | कर्ण ने ताहर का जन्म लिया | ताहर , पृथ्वीराज के बेटे थे तो द्रोणाचार्य चौंडा ब्राह्मण हुए |
कवि जगनीक के अनुसार इन लोगों ने अपनी युद्ध की प्यास बुझाने के लिए यह जन्म लिया पर इस जन्म में भी ज्यादातर युद्ध भीम ने ही किए | आल्हा और ब्रह्मानंद तो न के बराबर लड़े | तो क्या अपनी युद्ध की प्यास बुझाने के लिए यह लोग और एक बार जन्म लेंगे ?
यह तो आपको किताब पढ़ कर ही पता चलेगा | ज्यादातर युद्ध विवाह के लिए किए गए हैं | हर राज्य में , प्रत्येक विवाह के वक्त , एक ही कहानी घटती थी | सिर्फ राज्य का नाम , राजा , राजकुमारी का नाम और दूल्हे का नाम अलग होता था | इसलिए कहानीयां कुछ वक्त के बाद बोअर होने लगती है | आईए अब जानते है इसका सारांश –
सारांश –
राजा चंद्रब्रह्म चंद्रवंशी थे | वे चंदेली नगर में राज्य किया करते थे | चंद्रदेवता ने उन्हें पारसमणी भेंट दी थी | उन्होंने इसका उपयोग अपनी प्रजा के कल्याण के लिए किया |
तोमरवंशी क्षत्रिय चिंतामणि उनके मंत्री थे | चंद्रब्रह्म के ही वंशज सूर्यब्रह्म हुए | इन्होंने सूर्यकुंड बनवाया | इसी वंश मे राजा परिमाल हुए | यह भी एक पराक्रमी राजा थे पर अपने गुरु अमरनाथ के कहने पर उन्होंने अपनी तलवार सागर को अर्पित कर दी और शस्त्र न उठाने की कसम खाई फिर इन्होंने अपने राज्य की रक्षा कैसे की होगी ? इसकी कहानी आगे देखेंगे |
एक बार राजा परिमाल ने महोबे पर आक्रमण किया | उन्होंने महोबे को जीत लिया | इस पर राजा माल्यवन्त ने अपनी अति सुंदर बेटी की शादी राजा परिमाल से कर दी | महोबे की राजकुमारी थी – मल्हना | उनके दो भाई थे , माहिल और भूपति |
शादी करके मल्हना चंदेली के महल में आई पर उसे वह महल पसंद नहीं आया | उसे महोबा के महल में ही रहना अच्छा लगता था | इसीलिए परिमाल ने माहिल और भूपति को उरई जाने का आदेश दिया | माहिल को यह व्यवहार भीतर तक घायल कर गया | अब वह परिमाल और अपनी बहन मल्हना से द्वेष करने लगा था |
मल्हना का दूसरा भाई भूपति जगनेरी दुर्ग का राजा बन गया | इसलिए इसका नाम जगनीक पड़ा | यह एक कवि भी था | अब यही वह व्यक्ती है क्या जिसने परिमल रासो रचा | यह पता नहीं लगता |
हम पहले बता ही चुके हैं की राजा परिमल ने अपने शस्त्रों का त्याग किया था | इस दौरान एक घटना घटी | दस्सराज , बच्छराज , रहीमल , टोडरमल यह चारों भाई थे | इनका पास ही बनारस में रहनेवाले ताल्हन परिवार के साथ विवाद हो गया | दोनों अपना विवाद निपटाने के लिए राजा जयचंद के पास कन्नौज जा रहे थे पर किसी राहगीर के कहने पर वह महोबे आ गए |
यहां उनके रहने – खाने का अच्छा इंतजाम हुआ | इस दौरान माण्डौगढ़ के करिया राय ने इस राज्य पर हमला कर दिया | यह चारों भाई और ताल्हन वीर भी थे और राज्य का खाना खाने के कारण राजा का अपने ऊपर उपकार भी मानते थे |
इसीलिए वह युद्ध में कूद पड़े | उन्होंने करिया राय को बुरी तरह हराया | इस युद्ध के बाद रानी मल्हना के कहने पर राजा परिमाल ने दस्सराज , बच्छराज और ताल्हन को महोबा में ही रख लिया |
ताल्हन को सेनापति बनाया | दस्सराज और बच्छराज को सेना में बड़े पदों पर रखा | मल्हना ने इनका विवाह भी अच्छे घरानों की राजपूत कन्याओं से करा दिया |
दस्सराज की पत्नी थी दीवला | इन दोनों का पुत्र आल्हा हुआ जो धर्मराज युधिष्ठिर का अवतार थे | बच्छराज की पत्नी थी ब्रह्मादे | इन दोनों का पुत्र मलखान हुआ जो सहदेव का पुनर्जन्म था | रानी मल्हना और राजा परिमाल के पुत्र ब्रह्मानंद थे जो अर्जुन का अवतार थे |
रतिभान की पत्नी थी तिलका | इन दोनों का पुत्र लाखन था जो नकुल का अवतार था | दस्सराज और दिवला के दूसरे पुत्र का नाम उदल था जो भीम थे | यह सब लोग महोबा के राजा परिमाल और रानी मल्हना के प्रति समर्पित थे |
कुछ वर्षों के बाद ताल्हन बनारस चला गया तो दस्सराज को सेनापति बनाया गया | इस दौरान माहिल ने करिया राय को भड़का कर महोबे पर फिर से आक्रमण करने के लिए उकसाया |
उसने आक्रमण कर के सोते हुए दस्सराज और बच्छराज को कैद कर लिया | उन्हें पकड़कर उनके सर काट डाले और मांडौगढ़ के राजमहल के बरगद के पेड़ पर लटका दिए | इसके पहले भी माहिल के भड़काने पर करिया राय ने रानी मल्हना का नौलखा हार लूटने के लिए महोबे पर आक्रमण किया था |
उदल जब किशोरावस्था तक उरई जाकर उधम मचाया करता था | तो माहिल राजा परिमाल से शिकायत करता था | इस शिकायत से उदल को उनके पिता और चाचा की हत्या के बारे में पता चला | ऊदल ने बदला लेने के ठानी | ऊदल ने अपने भाइयों और साथियों को साथ लेकर माण्डौगढ़ पर आक्रमण किया |
वहां उसकी मुलाकात , राजकुमारी विजया से हुई | उदल ने उसे विवाह करने का वचन दे दिया | ऊदल , उसके भाइयों और साथियों ने करिया राय को मारा साथ मे उसके बड़े भाई और उसके पिता जंबै को भी | अब राजमहल का शोकाकुल वातावरण देखकर राजकुमारी विजया पुरुष वेश बनाकर रणभूमि में गई |
उसने वहां सब पर जादू चलाया | उदल को मेढ़ा बनाया | जब ऊदल और उसके विवाह की बात आई तो उसे जादूगरनी कह के साथ न ले जाना तय हुआ | नहीं तो वह कभी भी बदला ले सकती थी | इसलिए आल्हा के कहने पर मलखान ने उसका अंत कर दिया |
मरते वक्त विजया ने कहा की वह नरवरगढ़ की राजकुमारी फुलवा के रूप में दोबारा जन्म लेगी | तब इनकी भेट होगी | नैनागढ़ की लढाई आल्हा और सुनवा की शादी करने के लिए हुई | सुनवा भी जादू जानती थी | इसके पिता नैपाली सिंह थे और भाई थे जोगा , भोगा और विजय |
संभल तीर्थ पर पृथ्वीराज चौहान ने 100 मंदिर बनवाए | इनके दर्शन पानेवाले भक्त को कर के रूप में घोड़ा या धन देना होता था | जिस कारण श्रद्धालुओं के पास ब्राह्मणों को देने के लिए कुछ भी नहीं बचता था | इसके लिए पंडितों ने माँ जगदंबा की पुकार लगाई |
माँ ने सपने में मलखान को दर्शन देकर कर बंद करवाने का आदेश दिया | मलखान ने माँ का आदेश पूर्ण किया | इसके लिए उसे संभल तीर्थ पर तीन युद्ध करने पड़े |
मलखान और राजकुमारी गजमोतिन के विवाह के लिए पथरीगढ़ की लड़ाई की गई | गजराजसिंह गजमोतिन के पिता थे तो भाई था सूरजमल | दिल्लीपति पृथ्वीराज की बेटी का नाम बेला था | इसे कवि ने द्रौपदी का अवतार माना | इसके और मल्हना के पुत्र ब्रह्मानंद के लिए दिल्ली की लढाई हुई |
बौरीगढ़ की लड़ाई राजकुमार सूरजमल और परिमाल की बेटी चंद्रावली के विवाह के लिए हुई | विवाह के लिए युद्ध करने की बहुत ही बुरी परंपरा राजपूतों में थी | सिरसागढ़ जब पृथ्वीराज चौहान के कब्जे में था | तब उसने यह राज्य अपने भतीजे को दे रखा था |
मलखान को जब यह पता चला की सिरसागढ़ उसके पिता बच्छराज का था , तो उसने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया | वह सिरसागढ़ जीत गया | मलखान सिरसागढ़ का राजा बन गया |
अब तक राजकुमारी विजया नरवरगढ़ की राजकुमारी के रूप में जन्म ले चुकी थी | वह विवाह योग्य हो गई थी | ऊदल और फुलवा के विवाह के लिए नरवरगढ़ की लड़ाई लड़ी गई |
मलखान के छोटे भाई सूलीखान के विवाह के लिए कुमायूं की लड़ाई लढ़ी गई | इस ग्रंथ में बलख – बुखारा का जिक्र आया है और इन दोनों जगहो पर हिंदू राजा विराजमान दिखाए है पर इतिहास के अनुसार अकबर के पूर्वजों का राज बलख – बुखारा पर था |
जिसे पुनः पाने के लिए बाबर – हुमायूं – अकबर -जहांगीर ने प्रयत्न किए थे | पर सिर्फ शाहजहां , किशनगढ़ के महाराजा रूपसिंह राठौर के कारण इसमे कामयाब हुआ था |
धांधू के विवाह के लिए बुखारा की लड़ाई हुई | धांधू वैसे तो आल्हा – ऊदल – मलखान का भाई था पर भाग्य के चलते पृथ्वीराज के पास पहुंच गया था | कवि के अनुसार धांधू , दुःशासन का अवतार था | धांधू का केसर के साथ विवाह हुआ |
गंगा तट पर लगनेवाले मेले में बलख – बुखारे की राजकुमारी चित्रलेखा आई थी | उसने धांधू के विवाह में आल्हा के पुत्र इंदल को देखा था | वह इंदल से विवाह करना चाहती थी | इसीलिए उसने जादू के दम पर इंदल का अपहरण कर लिया |
इंदल के साथ ढेवा और उदल भी आए थे | साथ में माहिल भी | माहिल एक धूर्त और कपटी व्यक्ति था | उसने गंगा की कसम खाकर आल्हा को बताया की ऊदल ने इंदल की हत्या कर दी है | इस पर आल्हा – ऊदल के रिश्ते में दरार पड़ गई |
माता रानी की कृपा से उदल को इंदल का पता चला | इंदल के विवाह के लिए बलख – बुखारे का युद्ध हुआ | पथरीकोट के राजा ने रानी सुनवा के सौंदर्य पर मोहित होकर उसका अपहरण किया और उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा |
रानी सुनवा को छुड़ाने के लिए पथरीकोट की लड़ाई हुई | साथ में इंदल को भी दूसरी पत्नी पथरीकोट की राजकुमारी के रूप में मिली |
इस बार माहिल के चुगली का शिकार राजा परिमाल हुए | उन्होंने आल्हा परिवार को महोबे के बाहर का रास्ता दिखा दिया | अबकी बार आल्हा परिवार ने कन्नौज के राजा जयचंद का आश्रय लिया | इससे दिल्लीपति पृथ्वीराज चौहान जल – भून गया |
उसने माहिल की चुगली में फंसकर महोबे पर आक्रमण कर दिया | अब आप पढ़कर यह जानिए की महोबे की रक्षा कैसे होगी ? क्योंकि राजा परिमाल ने तो शस्त्र त्याग दिए हैं |
ब्रह्मानंद युद्ध में उतने माहिर नहीं है | मलखान सिरसागढ़ में है तो आगे क्या होगा ? क्या सब सुरक्षित रहेंगे या फिर माहिल सबको बर्बाद करने में कामयाब रहेगा | आल्हा और उदल हमेशा साथ-साथ रहे फिर लोक कहानियों के अनुसार पूजा करने सिर्फ आल्हा ही क्यों आते हैं ?
क्या इस जन्म में पांडव कौरवों से हार गए ? क्या हुआ उनका ? जानने के लिए जरूर पढ़िए ,”आल्हा -ऊदल की वीरगाथा” |
तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहीए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए …. धन्यवाद !!