CHANDRAKANTA SANTATI-5 BOOK SUMMARY

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चंद्रकांता संतति – 5
देवकीनंदन खत्री द्वारा लिखित
रिव्यू –

        चंद्रकांता संतति के इस भाग में भी बुराई अपनी जीत के लिए भरसक  Read more कोशिश करते नजर आती है पर उसके सारे प्रयत्न विफल हो जाते हैं | उसे क्या पता की सत्य परेशान हो सकता है पर हार नहीं सकता | वैसे ही बुराई का प्रतीक मायारानी और माधवी अंततः मृत्यु को प्राप्त हो जाती है |
वीरेंद्रसिंह और चंद्रकांता से जुड़े सारे लोग एक-एक कर एक जगह जमा होते हैं और अपनी खुशियां एक दूसरे के साथ बांटते हैं | इनके खुशियों में भूतनाथ भी शामिल है | उसने इन लोगों की वक्त -वक्त पर बहुत मदद की है | इसलिए मुजरिम होते हुए भी वह खुलेआम घूम रहा है |
हालांकि, मुकदमा उस पर भी चलाया जानेवाला है फिर भी सब लोग चाहते हैं कि वह बेकसूर साबित हो ! उसका गुनाह इतना संगीन भी नहीं जितना बड़ा गुनहगार उसे समझा जा रहा है | उसने यह गुनाह नागर के बहकावे में आकर किया था |
भूतनाथ के पास भी ढेर सारी दौलत है | वह चाहता तो धनी आदमी के जैसा जीवन जी सकता था लेकिन उसे पता है की असली खुशी अपने परिवार के साथ , मित्रों और रिश्तेदारों के साथ हंसी-खुशी और ईमानदारी से जीने में है |
इसीलिए अब वह अपने पापों का प्रायश्चित कर के पापों को पुण्य में बदलने की कोशिश कर रहा है | उधर दोनों राजकुमार जमानियाँ मे तिलिस्म तोड़ने में व्यस्त है | तिलिस्म भी ऐसा जहां पग – पग पर धोखा , षड्यंत्र और भयानक जाल बिछे है | कौन अपना है ? कौन पराया ? समझ में नहीं आता | अपनों के ही शक्ल में धोखा भी मिल जाता है | अब देखते हैं दोनों कुमार इसमें कितना सफल होते हैं ?
प्रस्तुत किताब के –
लेखक है – बाबू देवकीनंदन खत्री
प्रकाशक है – फिंगर प्रिन्ट प्रकाशन
पृष्ठ संख्या है – 296
उपलब्ध है – अमेजॉन और किंडल पर
सारांश –
“लीला” तो आपको याद होगी | यह मायारानी की दासी है जो जमानिया से मायारानी के साथ चली थी | मायारानी जब सभी लोगों के साथ वीरेंद्रसिंह के अय्यारो द्वारा गिरफ्तार कर ली गई थी तब रास्ते मे इसे लीला ने ही छुड़ाया था | जब वीरेंद्रसिंह का काफिला रोहतासगढ़ से चुनारगढ़ की तरफ जा रहा था |
इस लीला के पास मायारानी ने एक तिलिस्मी तमंचा दे रखा था जिसकी गोली का बारूद किसी को भी एक पल में बेहोश कर सकता था | लीला , मायारानी को छुड़ाकर वीरेंद्रसिंह के काफिले से दूर जंगल में ले गई | वहां उन दोनों ने बहुत तकलीफें उठाई फिर भी जिंदा बचे रहने की खुशी उन्हें हद से ज्यादा थी |
जंगल में उन्हें एक घुड़सवार मिला | उसको बेहोश करने के बाद उन्हें पता चला कि यह गोपालसिंह का आदमी था जो मैसेजवाली चिट्ठी और अंगूठी लेकर जमानिया जा रहा था | लीला और मायारानी उसको मार देती हैं और उसका सामान छीन लेती हैं |
इसी जंगल मे दूसरी तरफ माधवी है जो किशोरी की मौसेरी बहन है और किशोरी से दुश्मनी का भाव रखती है | वह बाकी सब लोगों के साथ रोहतासगढ़ के तहखाने मे नहीं गई बल्कि किले के नीचे से ही सेनापति कुबेरसिंह के साथ कही और चली गई थी | यह सेनापति कुबेरसिंह उन तीनों में से एक था जो माधवी के राज्य “गया” का राज्य कारभार चलाते थे |
यह भी माधवी को हासिल करना चाहता था | यद्यपि माधवी के एक हाथ की कलाई टूटी हुई थी पर वह बहुत ही खूबसूरत थी | इसी जंगल मे शिवदत्त का बेटा भीमसिंह भी अपने अय्यारो के साथ ठहरा हुआ था | अतः उसकी मुलाकात माधवी से होती है | वह भी अपने लोगों के साथ माधवी और सेनापति कुबेरसिंह से आकर मिलता है |
अब जंगल में इन सब की मुलाकात मायारानी और लीला से होती है | मायारानी इन सब की मदद से , फिर से जमानिया के तिलिस्म की रानी बनना चाहती है ताकि सत्ता और संपत्ति दोनों उसके हाथ आ सके और वह अपने बुरे मंसूबों में कामयाब हो सके | बाकी सब लोग भी उसका साथ इसलिए देते हैं कि उनके भी बुरे उद्देश्य पूर्ण हो सके |
मायारानी इन सबको लेकर जमानिया के तिलिस्म में पहुंच जाती है पर इस बार इस तिलिस्म के राजा गोपालसिंह पूरी तरह चौकन्ने है | उनको इस तिलिस्म का हाल मायारानी से ज्यादा पता है | तो क्या गोपालसिंह के रहते मायारानी अपने मकसद में कामयाब हो पाएगी ?
अब लीला की बात बताते है जो घुड़सवार रामदीन का भेस बनाए थी | वह गोपालसिंह की चालाकी भरी चिठ्ठी से गिरफ्तार कर ली जाती है | जामनिया के तिलिस्म मे ही इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह भी है |
उन्होंने इसमे फंसी सरयू को छुड़ा लिया है | उनको इस तिलिस्म मे एक किताब मिली थी | उस किताब में लिखे अनुसार उनका तिलिस्म तोड़ना जारी है | इस तिलिस्म मे उन लोगों ने ऐसी ऐसी बातें देखी की उनका दिमाग ही चकरा गया |
उन्हें कई सारे गोपालसिंह दिखे | इससे वह यह जान ही नहीं पाए की असली गोपालसिंह कौन है ? ऐसे ही उनकी मुलाकात भैरोंसिंह से होती है जो पागलों जैसी बातें करते हैं और दोनों राजकुमारों को पहचानने से इनकार करते हैं | मायारानी ने भी गोपालसिंह के ऐसे – ऐसे करतब देखे की डर के मारे उसके होश उड़ गए |
उसी तरह तिलिस्म मे घटी अन्य घटनाओं के चलते दोनों राजकुमार किशोरी , कामिनी , लक्ष्मीदेवी , कमला ,लाडली और इंदिरा से भी मिल नहीं पाए जबकि वह भी इसी तिलिस्म में भेजी गई थी | यही इन दोनों राजकुमारों को एक बूढ़ा आदमी भी मिला जो खुद को उनका मददगार बताता था |
तिलिस्म मे घूमते हुए राजकुमारों को सात औरतें भी दिखी जिनमें से दो मुख्य थी और खुद को तिलिस्म के उस हिस्से की रानी बताती थी | यह दोनों बहने थी | इनकी ही शादी दोनों राजकुमारों के साथ हो गई | शादी के तुरंत बाद उनकी हत्या भी हो गई |
उनकी हत्या करनेवाला और कोई नहीं बल्कि भूतनाथ का बेटा “नानक” था पर वह इस तिलिस्म मे आया कैसे ? आया तो आया पर उसने इन दोनों बहनों को मारा क्यों ? इस पर उसका कहना था कि यह दोनों बहने नकली पहचान लेकर दोनों राजकुमारी से मिली थी | असलियत में वह कुमारो की दुश्मन थी | नानक की सत्यता को परखने के लिए उन्होंने दोनों लाशों के मुंह भी धुलवाये | तो क्या पता चला उन्हें ? पढ़कर जरूर जनिएगा |
पर क्या नानक सच में राजकुमारों की मदद करना चाहता था क्योंकि वह तो तारासिंह से बदला लेना चाहता था | बदला क्या ? वह तो तारासिंह को जान से ही मारने की सोचकर आया था | तारासिंह , वीरेंद्रसिंह के अय्यारो में से एक है | यह कुंवर आनंदसिंह के अय्यार है और भाई जैसे हैं |
नानक और तारासिंह की दुश्मनी कैसे हुई ? इसकी भी एक कहानी है | उसे आप किताब मे ही पढ़ लीजिएगा |
जैसे जामनिया मे तिलिस्म है वैसे ही चुनारगढ़ में भी है | अब एक-एक कर के सब लोग इसी तिलिस्म के पास जमा हो गए है | यही उनका रहने का इंतजाम भी करा दिया गया है | सारे मुजरिमों के फैसलों के लिए अब महाराज का दरबार भी यही लगता है |
यही एक कोठरी में भूतनाथ के साथ के बलभद्रसिंह भी रह रहे हैं | उसी रात भूतनाथ की मर्जी से बलभद्रसिंह को अगवा कर लिया जाता है जबकि अगले दिन महाराज उससे मिलने आनेवाले हैं | अब क्या जवाब देगा भूतनाथ ? क्या फिर से उस पर शक किया जाएगा ?
उनके साथ तिलिस्म मे हुए धोखे के बारे में जानकर दोनों राजकुमारों को बहुत बुरा लगा | इतने में ही उन्हें भैरोंसिंह सही सलामत हालत में मिले | उन्होंने इन कुमारों को बाकी युवतियों यानी की किशोरी , कामिनी , कमला इंदिरा , लाडली से मिलाया और उनकी भाभी लक्ष्मीदेवी से भी ….
यह सब मिलकर हंसी – खुशी की बातें करने लगे क्योंकि एक-एक करके उनके दुश्मन खत्म होते जा रहे थे | इंदिरा ने इनको बताया की मनोरमा , उसकी माँ सरयू का चेहरा बनाकर उसे अपने घर काशी ले गई थी |
यहाँ आप को उन सारी अद्भूत बातों का खुलासा मिलेगा जो इंदिरा ने मनोरमा के घर में देखी थी | इनके बारे मे आप को चंद्रकांता संतति -1 या 2 में पढ़ने को मिलेगा | बहुत सारे रहस्य , बहुत सारे किरदार , इसलिए बहुत सारी घटनाएं और बहुत सारा रोमांच लिए यह किताब है |
एक अलग रहस्यमई , रोमांचकारी दुनिया में प्रवेश करने के लिए , इन सारे पात्रों से मिलने के लिए ,इन कहानियों की यात्रा जरूर कीजिए |
तब तक पढ़ते रहिए | खुशहाल रहीए | मिलते हैं और एक नई किताब के साथ | तब तक के लिए ….
धन्यवाद !!

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